कटारमल सूर्य मन्दिर अल्मोड़ा (कटारमल)उत्तराखण्ड।

कटारमल सूर्य मन्दिर  अल्मोड़ा (कटारमल)उत्तराखण्ड।

इस मन्दिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि ,यहाँ भगवान सूर्य की मूर्ति किसी ,धातु या पत्थर से निर्मित नही है, बल्कि बड़ की लकडी अर्थात बरगद की लकड़ी से बनी है। जो अदभुत और अनोखी है। यहाँ के सूर्य भगवान की मूर्ति बड़ की लकड़ी से बने होने के कारण ऐसे बड़ादित्य या बड़आदित्य मंदिर कहा जाता है। इस मंदिर में भगवान सूर्य देव की मूर्ति पद्मासन में स्थित है। इस मंदिर में सूर्य देव की 2 मूर्तियां है। यह मंदिर पूर्वमुखी है। भगवान सूर्य नारायण रोज सुबह उदय के समय अपने भवन में किरणें बिखेरते हैं।

सनातनधर्म और सनातन संस्कृति में सूर्यपूजा का पुराना इतिहास है। तभी तो सनातन धर्म के आदि पंचदेवों में एक सूर्यदेव भी हैं। जिन्हें कलयुग का एकमात्र दृश्य देव माना जाता है। सूर्य को देव या सूर्यनारायण मानते हुए देश में कुछ जगहों पर सूर्यमंदिरों का भी समय समय पर निर्माण होता रहा है। जो आज भी कई रहस्य लिए हुए हैं।



जानकारों के अनुसार भारत में मौजूद प्राचीन मंदिर आज भी इतिहास के साक्षी बने ज्यों के त्यों खड़े हैं। हालांकि कुछ प्राचीन मंदिर अब अपने असली आकार में नहीं हैं यानि खंडित हो चुके हैं लेकिन फिर भी यह मंदिर इतिहास की कई घटनाओं व कहानियों को समेटे हुए हैं।

एक ऐसा ही प्राचीन मंदिर है ‘कटारमल सूर्य मन्दिर’। इस मंदिर को उड़ीसा में स्थित सूर्य देव के प्रसिद्ध कोणार्क मंदिर के बाद दूसरा सूर्य मंदिर माना जाता है।

देवभूमि उत्तराखण्ड के अल्मोड़ा में कटारमल नामक स्थान पर भगवान सूर्यदेव से संबंधित प्राचीन मंदिर ‘कटारमल सूर्य मन्दिर’ स्थित है। यह मंदिर उत्तराखण्ड में अल्मोड़ा जिले के अधेली सुनार नामक गांव में है। मंदिर के निर्माण के समय को लेकर विद्वान एकमत नहीं हैं।

कुछ जानकारों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण नौवीं या ग्यारहवीं शताब्दी में कटारमल नामक एक शासक द्वारा करवाया गया माना जाता है। वहीं कुछ विद्वान इस मंदिर का निर्माण छठीं से नवीं शताब्दी में हुआ मानते हैं।


यह भी कहा जाता है कि प्राचीन काल में कुमाऊं में कत्यूरी राजवंश का शासन था। इसी वंश के शासकों ने इस मंदिर के निर्माण में अपना योगदान दिया था। लेकिन पुरातत्व विभाग द्वारा मंदिर की वास्तुकला व स्तंभों पर उत्कीर्ण अभिलेखों को लेकर किए गए अध्ययनों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण समय तेरहवीं सदी माना गया है।

कटारमल सूर्य मन्दिर को ‘बड़ आदित्य सूर्य मन्दिर’ के नाम से भी जाना जाता है। इसका कारण है कि इस मन्दिर में स्थापित भगवान आदित्य की मूर्ति पत्थर या धातु की न होकर बड़ के पेड़ की लकड़ी से बनी हुई है।

इस मंदिर का मुख पूर्व दिशा की ओर है। कटारमल सूर्य मन्दिर का निर्माण एक ऊंचे व वर्गाकार चबूतरे पर किया गया है। मुख्य मन्दिर के आस-पास ही भगवान गणेश, भगवान शिव, माता पार्वती, श्री लक्ष्मीनारायण, भगवान नृसिंह, भगवान कार्तिकेय के साथ ही अन्य देवी-देवताओं से संबंधित ४५ के करीब छोटे-बड़े मन्दिर बने हुए हैं।

नागर शैली में बने इस मंदिर की संरचना त्रिरथ है। मन्दिर का ऊंचा शिखर अब खंडित हो चुका है। गर्भगृह का प्रवेश द्वार जो बेजोड़ काष्ठ कला का उत्कृष्ट उदाहरण था, उसके कुछ अवशेषों को नई दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में रखा गया है। इस मंदिर की प्राचीनता को देखते हुए भारतीय पुरातत्त्व विभाग द्वारा इसे संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है।

पौराणिक कथा के अनुसार सतयुग में उत्तराखण्ड में ऋषि-मुनियों पर एक असुर ने अत्याचार किये थे। इस दौरान द्रोणगिरी, कषायपर्वत व कंजार पर्वत के ऋषि मुनियों ने कौशिकी यानि कोसी नदी के तट पर पहुंचकर सूर्य-देव की आराधना की। इसके बाद प्रसन्न होकर सूर्य-देव ने अपने दिव्य तेज को एक वटशिला में स्थापित किया। इसी वटशिला पर ही तत्कालीन शासक ने सूर्य-मन्दिर का निर्माण करवाया। वही मंदिर आज कटारमल सूर्य-मन्दिर के नाम से पूरे विश्व में प्रसिद्ध है।

कटारमल सूर्य मन्दिर अल्मोड़ा से रानीखेत मार्ग के नजदीक स्थित है। मंदिर तक वायु, रेल व सड़क मार्ग द्वारा पहुंचा जा सकता है। देश के कई राज्यों खासकर दिल्ली से उत्तराखंड के लिए उत्तराखंड राज्य परिवहन की कई बसें उपलब्ध हैं। मंदिर का नजदीकी एयर पोर्ट रामनगर व हल्द्वानी के पास पंतनगर में स्थित है। यहां से मंदिर की दूरी १३२ किलोमीटर के करीब है।

इस स्थान तक रेलगाड़ी के द्वारा भी आसानी से पहुंचा जा सकता है। नजदीकी रेलवे स्टेशन काठगोदाम और रामनगर हैं। काठगोदाम से मंदिर की दूरी १०० किलोमीटर के लगभग है और रामनगर से १३० किलोमीटर के करीब है। एयरपोर्ट व रेलवे स्टेशन से बस या टैक्सी के द्वारा मंदिर तक पहुंच सकते हैं। अल्मोड़ा पहुंचने के बाद १८ किलोमीटर आगे जाकर, ३ किलोमीटर पैदल चलते हुए देश विदेश से आने वाले श्रद्धालु व पर्यटक मंदिर में पहुंचते हैं।

।। जय भगवान श्रीसूर्यनारायण ।।

पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन युगों से उत्तराखंड देवभूमि रही है। यहाँ पहाड़ो पर ऋषि मुनि अपनी जप तप करते थे। एक बार द्रोणागिरी , कक्षयपर्वत और कंजार पर्वत पर ऋषि मुनि अपना जप तप कर रहे थे। तभी उनको वहाँ एक असुर परेशान करने लगा। ऋषियों ने वहाँ से भाग कर , कौशिकी नदी ( कोसी नदी ) के तट पर शरण ली। वहाँ उन्होंने भगवान सूर्य देव की आराधना की । तब भगवान सूर्य देव ने प्रसन्न होकर अपने  तेज को एक वटशिला मे स्थापित कर दिया । जैसा कि विदित है, ऊर्जा और तेज के सामने नकारात्मक शक्तियां नही टिक सकती हैं

वटशिला के तेज के सामने असुर परास्त हो गया ,और ऋषियों ने निर्बिघ्न अपनी पूजा आराधना,जप तप किया। बाद में कत्यूरी वंशज राजा कटारमल देव ने इसी वटशिला पर भगवान सूर्यदेव के भव्य मंदिर का निर्माण कराया।
यह मंदिर 11वी शताब्दी का माना जा सकता है। इस मंदिर के लकड़ी के गुम्बद के हिसाब से यह 8 वी या 9 वी शताब्दी का लगता है।मंदिर की दीवार पर तीन लाइन लिखा एक शिलालेख भी है।

 कटारमल के पास कोसी नामक कस्बाई बाजार पड़ता है एवं पास में कोसी नदी ( कौशिकी नदी ) भी प्रवाहित होती है।
कटारमल के सूर्य मंदिर को कोर्णाक सूर्य मंदिर के बाद सबसे प्राचीन मंदिर माना जाता है। 



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