Danda Nagaraja, Baganikhal Pauri Uttarakhand

 पौड़ी गढ़वाल डांडा नागराजा  मंदिर उत्तराखंड 

पौड़ी से 37 किमी दूर स्थित है नागराजा मन्दिर। उत्तराखण्ड के गढ़वाल मण्डल में जिस देवशक्ति की सर्वाधिक मान्यता है वह है भगवान कृष्ण के अवतार के रूप में बहुमान्य नागराजा की। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब भगवान कृष्ण को यह क्षेत्र अत्यधिक पावन एवं सुन्दर लगा तो उन्होने नाग का रुप धारण कर भूमि पर लेट लेट कर इसकी परिक्रमा की । किन्तु इसके नाम से स्थापित पूजास्थल पौड़ी से लेकर जौनसार भाबर तक अनेकत्र पाये जाते हैं नागराजा को समर्पित ऐसा ही एक बहुमान्य देवस्थल पौड़ी जनपद मुख्यालय से लगभग 40 सेे41 किमी दूरी पर एक पहाड़ी के ऊपर स्थित है जो कि डांडा नागराजा के नाम से जाना जाता है।


पौड़ी शहर से लगभग 45 किमी० दूर अदवानी - बगानीखाल मार्ग पर स्थित है डांडा नागराजा मन्दिर । पौराणिक दृष्टि से इस मन्दिर का अपना एक अलग ही महत्व है। उत्तराखण्ड के गढ़वाल मण्डल में जिस देवशक्ति की सर्वाधिक मान्यता है वह है भगवान कृष्ण के अवतार के रूप में बहुमान्य नागराजा की है। इसका मुख्य धाम तो उत्तरकाशी में सेममुखेम है । किन्तु ऐसी मन्यता है कि सेममुखीम और यह मन्दिर दोनों एक ही हैं । काफल, बांज और बुरांस के घने वृक्षों से घिरे यह मन्दिर पर्यटकों के लिये आकर्षण का केन्द्र है। यह मन्दिर इतनी ऊंचाई पर स्थित है कि यहां से मां चन्द्रबदनी (टिहरी), भैरवगढ़ी (कीर्तिखाल), महाबगढ़ (यमकेश्वर), कण्डोलिया (पौड़ी) की पहाड़ियों की सुन्दरता दृष्टिगोचर होती है। मन्दिर के पुजारी श्री चन्डीप्रसाद देशवाल इस मन्दिर की मूलस्थापना लगभग 150 वर्ष पूर्व बताते हैं। बरसों से चली आ रही परंपरा के अनुसार समीपस्थ ग्राम सिल्सू के पुजारी यहां पूजा अर्चना करते हैं। वर्तमान में श्री चन्डीप्रसाद देशवाल तथा मनमोहन देशवाल बारी बारी से पूजा अर्चना का कार्य बखूबी निभा रहे हैं।

ग्राम रीई के शेखरानन्द चमोली ने प्राचीन मन्दिर का वर्ष 1994 में जीर्णोद्धार करके इसकी सुन्दरता को और भी निखार दिया है। पर्यटन विभाग द्वारा भी मन्दिर का सौन्दर्य़ीकरण जारी है। प्रत्येक वर्ष 13 या 14 अप्रैल को डांडा नागराजा मन्दिर में मेला आयोजित किया जाता है। जिसमें विशेषकर महिलायें अपनी परंपरागत वेशभूषा में अपने सिर पर अलंकृत मटकियां रखकर तथा उनके ऊपर नारियल को सजाकर शोभयात्रा के रूप में यहां आकर भेंटपूजा अर्पित करती हैं तथा भगवान श्रीकृष्ण को नृत्य के रूप में अपने श्रद्धासुमन अर्पित करती हैं । इस अवसर पर पुरूष श्रद्धालुओं की भी समनस्तर भूमिका रहती है। इस दिन श्रद्धालु मनौती पूर्ण होने पर मन्दिर में घण्टियां अर्पित करते हैं । यहां धार्मिक पर्यटकों के ठहरने के लिये धर्मशाला, होटल तथा पर्यटक अतिथिगृह है। वैसे तो वर्ष भर इस मन्दिर में कभी भी आया जा सकता है। लेकिन मार्च माह से जून माह तक कण्डोलिया टेका अदवानी के जंगल बुरांश के फूलों से लदे रहते हैं । पर्यटक ठण्डी ठण्डी मन्द हवा के साथ बांज बुरांश के छायादार वृक्षों का प्राकृतिक आनन्द लेकर मन्दिर तक पहुंच सकते हैं।




FQCs (Frequently Asked Questions) for Danda Nagraja Temple, Pauri Garhwal, Uttarakhand

1. डांडा नागराजा मंदिर कहां स्थित है?

डांडा नागराजा मंदिर उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में स्थित है। यह पौड़ी शहर से लगभग 37-45 किमी की दूरी पर अदवानी-बगानीखाल मार्ग पर एक पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित है।

2. डांडा नागराजा मंदिर का धार्मिक महत्व क्या है?

मंदिर भगवान श्रीकृष्ण के नागराजा अवतार को समर्पित है। ऐसा माना जाता है कि भगवान कृष्ण ने इस क्षेत्र की सुंदरता देखकर नाग का रूप धारण कर भूमि पर लेटकर इसकी परिक्रमा की थी।

3. डांडा नागराजा मंदिर का मुख्य आकर्षण क्या है?

मंदिर से मां चंद्रबदनी (टिहरी), भैरवगढ़ी (कीर्तिखाल), महाबगढ़ (यमकेश्वर), और कंडोलिया (पौड़ी) की पहाड़ियों का सुंदर दृश्य देखा जा सकता है। मंदिर काफल, बांज, और बुरांश के घने वृक्षों से घिरा हुआ है, जो इसे और आकर्षक बनाते हैं।

4. मंदिर का इतिहास क्या है?

डांडा नागराजा मंदिर की स्थापना लगभग 150 वर्ष पूर्व की गई थी। मंदिर का जीर्णोद्धार वर्ष 1994 में ग्राम रीई के शेखरानंद चमोली द्वारा किया गया था।

5. मंदिर में पूजा-अर्चना कौन करता है?

मंदिर की पूजा परंपरागत रूप से समीपस्थ ग्राम सिल्सू के पुजारी करते हैं। वर्तमान में श्री चंडीप्रसाद देशवाल और मनमोहन देशवाल बारी-बारी से पूजा-अर्चना का कार्य करते हैं।

6. मंदिर में विशेष आयोजन कब होता है?

प्रत्येक वर्ष 13 या 14 अप्रैल को मंदिर में मेला आयोजित किया जाता है। इस अवसर पर महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में अलंकृत मटकियां और नारियल लेकर भेंट चढ़ाती हैं। श्रद्धालु भगवान को नृत्य और गीतों के माध्यम से श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

7. मनौती पूर्ण होने पर श्रद्धालु क्या करते हैं?

मनौती पूर्ण होने पर श्रद्धालु मंदिर में घड़ियां और अन्य वस्तुएं अर्पित करते हैं।

8. मंदिर तक कैसे पहुंचा जा सकता है?

मंदिर तक पहुंचने के लिए अदवानी-बगानीखाल मार्ग का उपयोग किया जाता है। नजदीकी प्रमुख शहर पौड़ी है, जो सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है।

9. मंदिर में ठहरने की क्या सुविधाएं हैं?

मंदिर के पास धर्मशाला, होटल और पर्यटक अतिथिगृह उपलब्ध हैं।

10. मंदिर का सबसे अच्छा यात्रा समय कब है?

मार्च से जून का समय यात्रा के लिए आदर्श है। इस दौरान बुरांश के जंगल फूलों से ढके होते हैं और ठंडी हवा के साथ यात्रा सुखद बन जाती है।

11. डांडा नागराजा मंदिर का सेममुखेम मंदिर से क्या संबंध है?

ऐसा माना जाता है कि सेममुखेम (उत्तरकाशी) और डांडा नागराजा मंदिर दोनों एक ही आध्यात्मिक शक्ति से जुड़े हुए हैं।

12. मंदिर तक जाने का मार्ग कितना कठिन है?

मंदिर तक का मार्ग हरे-भरे जंगलों से होकर जाता है। यह स्थान पहाड़ी क्षेत्र में स्थित है, लेकिन अच्छी सड़क सुविधाओं के कारण पहुंचने में कोई विशेष कठिनाई नहीं होती।

13. मंदिर में कौन-कौन से पेड़-पौधे पाए जाते हैं?

मंदिर के चारों ओर काफल, बांज, और बुरांश के घने पेड़ पाए जाते हैं।

14. क्या मंदिर धार्मिक पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है?

हां, यह मंदिर धार्मिक पर्यटकों के लिए एक प्रमुख आकर्षण है, जो इसके प्राकृतिक सौंदर्य और धार्मिक महत्व के कारण सालभर दर्शन के लिए आते हैं।

15. डांडा नागराजा मंदिर में क्या अनूठा अनुभव मिलता है?

मंदिर में श्रद्धालु को आध्यात्मिक शांति के साथ-साथ पहाड़ों और प्राकृतिक दृश्यों का आनंद लेने का अवसर मिलता है। यह स्थान स्थानीय लोककथाओं और परंपराओं से भी गहराई से जुड़ा हुआ है।

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