अपनी ईजा, अपनी धरती: कविता - Apni Eeza, Apni Dharati: Poetry

अपनी ईजा, अपनी धरती: कविता

हमारी माताएं और हमारी धरती हमेशा से एक गहरे बंधन से बंधी रही हैं। पहाड़ों की कठोरता, मिट्टी की सच्चाई, और मां की ममता को एक ही धागे से जोड़ने वाली यह कविता हमारी जड़ों, हमारे खेतों, और हमारी मिट्टी की याद दिलाती है। यह कविता मां की त्याग, उसकी मेहनत, और उसके संघर्षों का मार्मिक चित्रण करती है। आइए, इस कविता के माध्यम से हम अपनी ईजा (मां) और धरती को नमन करें।


अपनी ईजा अपनी धरती

पार्वती ने रचा था गणेश को
मिट्टी में श्वेद गूंद कर,
वैसे ही हमें भी हमारी ईजा ने बड़ा किया,
खेतों में अपनी हड्डियां, अपनी जवानी मिला कर।

इन खेतों, इन पहाड़ों में बसी है,
हमारी मां की सारी दास्तां,
उसकी पीड़, उसका दर्द,
जो उससे गुजरा था हर रोज
इस कठोर निर्दयी पहाड़ पर।

ये माटी, ये धरती ही उसकी सच्ची सखी थी,
जब वो किसी से कुछ न कह पाती,
तो दातुली से मिट्टी पर उकेरती थी
धरती से संवाद के कुछ रेखण।

वो उसी के पास रोज जा
बटोर के लाती घास,
सुबह-शाम नौले से पानी,
मिट्टी के चूल्हे पे सेखती रोटी,
और अपने घावों पर लगाती मिट्टी का लेप।

सब बैठते घरों में चौके और चटायी पर,
वो चौका होने पर भी बैठती
अपनी धरती, अपनी सखी के पास।
मां को ईजा कहोगे,
तो मिट्टी को जडजा कहना ही पड़ेगा।

और कभी मां का दर्द जानना हो,
तो आ के बैठना अपनी जडजा के पास।
भविष्य में मां के न रहने पर भी,
वो रहेगी,
तुम कहीं भी हो,
किस भी हालत में।

मां की याद सताए, जी घबराए,
तो चले आना
अपनी मिट्टी के पास,
अपने खेतों के पास।

वो जडजा है, वो मां से प्यार देगी,
अपना आंचल, अपनी थाह देगी।
वो तो थाती है,
सदियों से देती आई है,
और आगे भी देती रहेगी।


हमारी जिम्मेदारी: अपनी जड़ों से जुड़ना

यह कविता न केवल ईजा (मां) की ममता का चित्रण करती है, बल्कि हमें हमारी जिम्मेदारी की याद भी दिलाती है। हमारी मिट्टी, हमारी धरती, हमारी मातृभूमि हमारी थाती है, जिसे हमें संजोकर रखना है।

गणेश की तरह, हमें भी अपनी माताओं और अपनी धरती के प्रति वह आदर और समर्पण दिखाना होगा। यह धरती हमें प्रेम, शांति और सुरक्षा देती आई है। क्या हम इसे उसी सच्चाई से संजोकर रख सकते हैं?

#उत्तराखंड_माँगे_भू_कानून
#हमारी_जमीन_हमारी_ईजा

Frequently Asked Questions (FQC):

Q1: कविता में 'ईजा' और 'जडजा' का क्या अर्थ है?
A1: "ईजा" उत्तराखंड में मां को कहा जाता है, और "जडजा" मिट्टी को प्रतीकात्मक रूप में संबोधित किया गया है। कविता में मां और धरती के बीच का गहरा रिश्ता दिखाया गया है, जहां धरती को मां की सच्ची सखी के रूप में दर्शाया गया है।


Q2: कविता का मुख्य संदेश क्या है?
A2: कविता मां की ममता, त्याग, और संघर्षों को दर्शाती है, साथ ही हमारी धरती से जुड़ाव और उसके प्रति प्रेम और जिम्मेदारी का आह्वान करती है। यह धरती को हमारी मां की तरह संजोने की जरूरत पर बल देती है।


Q3: इस कविता का 'गणेश' से क्या संबंध है?
A3: कविता में पार्वती द्वारा गणेश की रचना का उल्लेख है, जहां मिट्टी से गणेश का निर्माण किया गया था। उसी प्रकार, मां (ईजा) भी हमें इसी मिट्टी के जरिए बड़ा करती है। गणेश की तरह, हमें भी अपनी मां और धरती का आदर करना चाहिए।


Q4: 'उत्तराखंड भू कानून' का कविता से क्या संबंध है?
A4: "उत्तराखंड भू कानून" का संदर्भ हमारी जमीन और उसकी सुरक्षा से जुड़ा है। कविता उत्तराखंड की भूमि और उसकी सांस्कृतिक महत्ता पर जोर देती है, साथ ही अपनी जमीन को संजोने और उसकी रक्षा करने की अपील करती है।


Q5: कविता में पहाड़ी जीवन के कौन से पहलू दिखाए गए हैं?
A5: कविता में पहाड़ी जीवन की कठिनाइयां, जैसे पानी लाना, घास बटोरना, और मिट्टी के चूल्हे पर रोटी बनाना, साथ ही मां की मेहनत और धरती के प्रति उसका प्रेम दिखाया गया है। यह जीवन के संघर्ष और धरती के साथ गहरे संबंधों को उजागर करती है।

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