श्री शनि चालीसा (1)/ Shree Shani Chalisa (1)

 श्री शनि चालीसा (1)

श्री शनि चालीसा भगवान शनिदेव की महिमा को स्तुति रूप में व्यक्त करने वाली हिन्दी भक्ति ग्रंथ है। इस चालीसा का पाठ शनिदेव के भक्तों द्वारा किया जाता है ताकि वे उनके श्रीचरणों में शरणागत हों और उनसे कृपा, आशीर्वाद, और सुरक्षा प्राप्त करें।

श्री शनि चालीसा को पढ़ने की विधि

  1. शुभ मुहूर्त का चयन: श्री शनि चालीसा का पाठ करने के लिए एक शुभ मुहूर्त का चयन करें, जैसे कि सन्ध्या के समय या शनिवार के दिन।
  2. पूजा स्थान का चयन: एक शुद्ध और साफ पूजा स्थान का चयन करें जहां आप पूजा कर सकते हैं।
  3. शनि देव की मूर्ति या छवि का स्थापना: शनि देव की मूर्ति या छवि को एक स्थान पर स्थापित करें।
  4. पंज अग्रपूजा: पंज अग्रपूजा करें जिसमें फूल, दीप, धूप, अक्षत, और नैवेद्य शामिल होते हैं।
  5. शनि चालीसा का पाठ: शनि चालीसा का पाठ भक्तिभाव से करें।
  6. आरती और भजन: शनि देव की आरती और उनके भजनों का आनंद लें।
  7. मन्त्रों का जप: शनि देव के मंत्रों का जप करें, जैसे "ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः"।
  8. आरती और प्रशाद: शनि देव की आरती करें और प्रसाद बाँटें।
  9. भक्ति भाव: पूजा के दौरान और उसके बाद, आपको भक्ति भाव से शनि देव की आराधना करनी चाहिए।

इस विधि को अपनी आदतों और परंपराओं के अनुसार समायोजित करें, क्योंकि यह स्थानीय संस्कृति और आचार्यों के अनुसार भिन्न हो सकती है।

॥ दोहा ॥

श्री शनिश्चर देवजीसुनहु श्रवण मम् टेर ।

कोटि विघ्ननाशक प्रभोकरो न मम् हित बेर ॥

॥ सोरठा ॥

तव स्तुति हे नाथजोरि जुगल कर करत हौं ।

करिये मोहि सनाथविघ्नहरन हे रवि सुव्रन ॥

॥ चौपाई ॥

शनिदेव मैं सुमिरौं तोहीविद्या बुद्धि ज्ञान दो मोही ।

तुम्हरो नाम अनेक बखानौंक्षुद्रबुद्धि मैं जो कुछ जानौं 

अन्तककोणरौद्रय मगाऊँकृष्ण बभ्रु शनि सबहिं सुनाऊँ ।

पिंगल मन्दसौरि सुख दाताहित अनहित सब जग के ज्ञाता ।

नित जपै जो नाम तुम्हाराकरहु व्याधि दुःख से निस्तारा ।

राशि विषमवस असुरन सुरनरपन्नग शेष सहित विद्याधर ।

राजा रंक रहहिं जो नीकोपशु पक्षी वनचर सबही को ।

कानन किला शिविर सेनाकरनाश करत सब ग्राम्य नगर भर ।

डालत विघ्न सबहि के सुख मेंव्याकुल होहिं पड़े सब दुःख में ।

नाथ विनय तुमसे यह मेरीकरिये मोपर दया घनेरी ।

मम हित विषम राशि महँवासाकरिय न नाथ यही मम आसा ।

जो गुड़ उड़द दे बार शनीचरतिल जव लोह अन्न धन बस्तर ।

दान दिये से होंय सुखारीसोइ शनि सुन यह विनय हमारी 

नाथ दया तुम मोपर कीजैकोटिक विघ्न क्षणिक महँ छीजै ।

वंदत नाथ जुगल कर जोरीसुनहु दया कर विनती मोरी ।

कबहुँक तीरथ राज प्रयागासरयू तोर सहित अनुरागा ।

कबहुँ सरस्वती शुद्ध नार महँया कहूँ गिरी खोह कंदर महँ ।

ध्यान धरत हैं जो जोगी जनिताहि ध्यान महँ सूक्ष्म होहि शनि ।

है अगम्य क्या करूँ बड़ाईकरत प्रणाम चरण शिर नाई ।

जो विदेश से बार शनीचरमुड़कर आवेगा निज घर पर।

रहें सुखी शनि देव दुहाईरक्षा रवि सुत रखें बनाई ।

जो विदेश जावैं शनिवारागृह आवैं नहिं सहै दुखारा ।

संकट देय शनीचर ताहीजेते दुखी होई मन माही ।

सोई रवि नन्दन कर जोरीवन्दन करत मूढ़ मति थोरी ।

ब्रह्मा जगत बनावन हाराविष्णु सबहिं नित देत अहारा ।

हैं त्रिशूलधारी  त्रिपुरारीविभू देव मूरति एक वारी 

इकहोइ धारण करत शनि नितवंदत सोई शनि को दमनचित ।

जो नर पाठ करै मन चित सेसो नर छूटै व्यथा अमित से ।

हौं सुपुत्र धन सन्तति बाढ़ेकलि काल कर जोड़े ठाढ़े ।

पशु कुटुम्ब बांधन आदि सेभरो भवन रहिहैं नित सबसे ।

नाना भांति भोग सुख साराअन्त समय तजकर संसारा ।

पावै मुक्ति अमर पद भाईजो नित शनि सम ध्यान लगाई 

पढ़ें प्रात जो नाम शनि दसरहैं शनीश्चर नित उसके बस ।

पीड़ा शनि की कबहुँ न होईनित उठ ध्यान धेरै जो कोई ।

जो यह पाठ करें चालीसाहोय सुख साखी जगदीशा ।

चालिस दिन नित पढ़ें सबेरेपातक नाशै शनी घनेरे ।

रवि नन्दन की अस प्रभुताईजगत मोहतम नाशै भाई 

याको पाठ करै जो कोईसुख सम्पति की कमी न होई ।

निशिदिन ध्यान धेरै मनमाहींआधिव्याधि ढिंग आवै नाहीं ।

॥ दोहा ॥

पाठ शनीश्चर देव कोकीहौं 'विमलतैयार । 

करत पाठ चालीस दिनहो भवसागर पार ॥

जो स्तुति दशरथ जी कियोसम्मुख शनि निहार । 

सरस सुभाषा में वहीललिता लिखें सुधार ॥

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