श्री शनि चालीसा: महिमा, पाठ विधि और संपूर्ण चालीसा

श्री शनि चालीसा: महिमा, पाठ विधि और संपूर्ण चालीसा

परिचय
श्री शनि चालीसा भगवान शनिदेव की महिमा का स्तुति रूप में वर्णन करने वाला एक पवित्र भक्ति ग्रंथ है। शनिदेव को न्याय के देवता माना जाता है, जो अपने भक्तों को उनके कर्मों के अनुसार फल प्रदान करते हैं। इस चालीसा का पाठ करने से शनि देव के श्रीचरणों में शरणागत होकर उनकी कृपा, आशीर्वाद और सुरक्षा प्राप्त होती है।

श्री शनि चालीसा को पढ़ने की विधि

  1. शुभ मुहूर्त का चयन: शनिवार के दिन या संध्या समय श्री शनि चालीसा का पाठ करना विशेष शुभ होता है।
  2. पूजा स्थान: एक शुद्ध और साफ स्थान पर पूजा करें।
  3. शनि देव की स्थापना: शनि देव की मूर्ति या छवि को पूजा स्थान पर स्थापित करें।
  4. पंज अग्रपूजा: फूल, दीप, धूप, अक्षत और नैवेद्य से पूजा आरंभ करें।
  5. शनि चालीसा का पाठ: पूरी भक्ति और श्रद्धा से श्री शनि चालीसा का पाठ करें।
  6. आरती और भजन: पाठ के बाद शनि देव की आरती और भजन करें।
  7. मंत्रों का जाप: शनि देव के मंत्रों का जाप करें, जैसे - "ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः"।
  8. प्रसाद वितरण: आरती के बाद प्रसाद वितरण करें।
  9. भक्ति भाव: पूरी पूजा में भक्ति भाव बनाए रखें।

श्री शनि चालीसा

॥ दोहा ॥

श्री शनिश्चर देवजी, सुनहु श्रवण मम् टेर।
कोटि विघ्ननाशक प्रभो, करो न मम् हित बेर॥

॥ सोरठा ॥

तव स्तुति हे नाथ, जोरि जुगल कर करत हौं।
करिये मोहि सनाथ, विघ्नहरन हे रवि सुव्रन॥

॥ चौपाई ॥

शनि देव मैं सुमिरौं तोही, 
विद्या बुद्धि ज्ञान दो मोही।
तुम्हरो नाम अनेक बखानौं, 
क्षुद्रबुद्धि मैं जो कुछ जानौं।

अन्तक, कोण, रौद्रय मगाऊँ, 
कृष्ण बभ्रु शनि सबहिं सुनाऊँ।
पिंगल मन्दसौरि सुख दाता, 
हित अनहित सब जग के ज्ञाता।

नित जपै जो नाम तुम्हारा, 
करहु व्याधि दुख से निस्तारा।
राशि विषमवस असुरन सुरनर, 
पन्नग शेष साहित विद्याधर।

राजा रंक रहहिं जो नीको, 
पशु पक्षी वनचर सबही को।
कानन किला शिविर सेनाकर, 
नाश करत सब ग्राम्य नगर भर।

डालत विघ्न सबहि के सुख में, 
व्याकुल होहिं पड़े सब दुख में।
नाथ विनय तुमसे यह मेरी, 
करिये मोपर दया घनेरी।

मम हित विषयम राशि मंहवासा, 
करिय न नाथ यही मम आसा।
जो गुड  उड़द दे वार शनीचर, 
तिल जब लोह अन्न धन बिस्तर।

दान दिये से होंय सुखारी, 
सोइ शनि सुन यह विनय हमारी।
नाथ दया तुम मोपर कीजै, 
कोटिक विघ्न क्षणिक महं छीजै।

वंदत नाथ जुगल कर जोरी, 
सुनहुं दया कर विनती मोरी।
कबहुंक तीरथ राज प्रयागा, 
सरयू तोर सहित अनुरागा।

कबहुं सरस्वती शुद्ध नार महं, 
या कहु गिरी खोह कंदर महं।
ध्यान धरत हैं जो जोगी जनि, 
ताहि ध्यान महं सूक्ष्म होहि शनि।

है अगम्य क्या करूं बड़ाई, 
करत प्रणाम चरण शिर नाई।
जो विदेश में बार शनीचर, 
मुड कर आवेगा जिन घर पर।

रहैं सुखी शनि देव दुहाई, 
रक्षा रवि सुत रखैं बनाई।
जो विदेश जावैं शनिवारा, 
गृह आवैं नहिं सहै दुखाना।

संकट देय शनीचर ताही, 
जेते दुखी होई मन माही।
सोई रवि नन्दन कर जोरी, 
वन्दन करत मूढ  मति थोरी।

ब्रह्‌मा जगत बनावन हारा, 
विष्णु सबहिं नित  देत अहारा।
हैं त्रिशूलधारी त्रिपुरारी, 
विभू देव मूरति एक वारी।

इकहोइ धारण करत शनि नित, 
वंदत सोई शनि को दमनचित।
जो नर पाठ करै मन चित से, 
सो नर छूटै व्यथा अमित से।

हौं सुपुत्र धन सन्तति बाढ़े, 
कलि काल कर जोड़े ठाढ़े।
पशु कुटुम्ब बांधन आदि से, 
भरो भवन रहिहैं नित सबसे।

नाना भांति भोग सुख सारा, 
अन्त समय तजकर संसारा।
पावै मुक्ति अमर पद भाई, 
जो नित शनि सम ध्यान लगाई।

पढ़ै प्रात जो नाम शनि दस, 
रहै शनीश्चर नित उसके बस।
पीड़ा शनि की कबहुं न होई, 
नित उठ ध्यान धरै जो कोई।

जो यह पाठ करै चालीसा, 
होय सुख साखी जगदीशा।
चालिस दिन नित पढ़ै सबेरे, 
पातक नाशे शनी घनेरे।

रवि नन्दन की अस प्रभुताई, 
जगत मोहतम नाशै भाई।
याको पाठ करै जो कोई, 
सुख सम्पत्ति की कमी न होई।

निशिदिन ध्यान धरै मन माही, 
आधिव्याधि ढिंग आवै नाही।

॥ दोहा ॥

पाठ शनीश्चर देव को, कीहौं 'विमल' तैयार।
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार॥


शनि चालीसा पाठ के लाभ

  • शनिदेव की कृपा प्राप्त होती है।
  • जीवन में आने वाले कष्ट और बाधाओं का निवारण होता है।
  • आधि-व्याधि और मानसिक तनाव से मुक्ति मिलती है।
  • घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
  • भक्तों को भक्ति और सच्चाई के मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती है।

निष्कर्ष:
श्री शनि चालीसा का पाठ करने से भक्तों को शनिदेव की कृपा और आशीर्वाद मिलता है। इसे श्रद्धा और समर्पण के साथ पढ़ने से हर प्रकार की पीड़ा और कठिनाइयों से मुक्ति संभव है। शनिदेव के चरणों में भक्ति भाव से समर्पित रहकर हम उनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।

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