भारत का इकलौता असुर मंदिर, "राहू मंदिर" India's only Asura temple, "Rahu Temple"

 दुनिया का एकमात्र राहू मंदिर

उत्तराखंड के इस मंदिर में शिवजी के साथ होती है राहु की पूजा,

राहु केतु पूजा  - हिंदू ज्योतिष के अनुसार, राहु और केतु सूर्य और चंद्रमा के मार्ग के दो बिंदुओं को दर्शाते हैं। वे ईश्वरीय घेरे के चारों ओर घूमते हैं। जब सूर्य और चंद्रमा इनमें से किसी एक फोकस पर होते हैं तो जिस तरह से अंधकार होता है, वह सूर्य के निगलने की कल्पना प्रस्तुत करता है।
                उत्तराखंड में है भारत का इकलौता असुर मंदिर, राहु दोष की होती है
उत्तराखंड में राहु मंदिर

राहु भारतीय ग्रंथों में नौ प्रसिद्ध खगोलीय पिंडों में से एक है। अन्य आठ पिंडों के विपरीत, राहु  एक छाया इकाई है। यह ग्रहण का कारण बनता है और इसे उल्काओं का राजा भी माना जाता है। राहु पृथ्वी के चारों ओर अपनी पूर्ववर्ती कक्षा में चंद्रमा के आरोहण का प्रतिनिधित्व करता है।

हिंदू पौराणिक कथाओं में कुछ खातों के अनुसार, केतु जैमिनी गोत्र से संबंधित है। जबकि राहु पैतीनसा गोत्र से हैं। इस प्रकार दोनों अलग-अलग विशेषताओं वाली पूरी तरह से अलग संस्थाएं हैं लेकिन एक ही शरीर के दो हिस्से हैं। केतु को आम तौर पर "छाया" ग्रह कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इसका मानव जीवन के साथ-साथ संपूर्ण सृष्टि पर भी जबरदस्त प्रभाव पड़ता है। 

राहु स्त्री वर्ग का है और केतु तटस्थ भाव का है। राहु पारलौकिक जानकारी का कारक है और केतु मोक्ष या अंतिम स्वतंत्रता का कारक या संबंध कारक है। राहु नाना-नानी को देखता है और केतु पितातुल्य दादा-दादी को दर्शाता है।
उत्तराखंड के इस मंदिर में शिवजी के साथ होती है राहु की पूजा,

देवताओं के साथ यहां असुर की होती है पूजा, उत्तर भारत का है एकमात्र मंदिर राहु मंदिर!


पौड़ी। उत्तराखंड को यूं ही देवभूमि नहीं कहा जाता है। यहां कई मंदिर हैं जो अपने रहस्यों और पौराणिक कथाओं के लिए लोकप्रिय हैं और उनमें से राहु मंदिर पौड़ी जिले में स्थित है। यूं तो आपने हर जगह देवी-देवताओं की पूजा के बारे में सुना होगा, लेकिन उत्तराखंड के पौड़ी जिले में देवताओं के साथ-साथ राक्षसों की भी पूजा की जाती है। इसके साथ ही मंदिर में शुभ और अशुभ ग्रहों की पूजा करने दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं।राहु मंदिर उत्तराखंड के पौड़ी जिले के पैठणी गांव में स्थित है। जहां लोग दूर-दूर से अपने पापों से मुक्ति पाने आते हैं।मंदिर में मैग्ना खिचड़ी का भोग लगाया जाता है। और भंडारे में भी भक्त यही भोग लगाते हैं। 'स्कद पुराण' के केदारखंड में उल्लेख है कि राहु ने राष्ट्रकूट पर्वत की तलहटी में राठवाहिनी और नवलिका नदियों के संगम पर भगवान शिव की घोर तपस्या की, जिसके कारण यहां राहु मंदिर की स्थापना हुई।

इस क्षेत्र को 'रथराकूट पर्वत' के नाम पर 'रथ क्षेत्र' कहा जाता था। बाद में राहु के गोत्र "पैथिनासी" के साथ गाँव का नाम पैठणी रखा गया। स्थानीय लोगों के अनुसार कहा जाता है कि आद्य शंकराचार्य ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था। कहा जाता है कि जब शंकराचार्य दक्षिण से हिमालय की तीर्थ यात्रा पर आए तो उन्हें पेठी गांव के इस इलाके में राहु का प्रभाव महसूस हुआ। जिसके बाद उन्होंने पैठणी गांव में राहु मंदिर का निर्माण शुरू कराया।राहु कौन था?पुराणों में कहा गया है कि समुद्र मंथन से निकले अमृत को देखकर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से राक्षस राहु का सिर धड़ से अलग कर दिया। कहा जाता है कि इस पैठनी गांव में राहु का कटा हुआ सिर गिरा था, जिसके बाद वहां एक भव्य मंदिर बनाया गया था। यही कारण है कि इस मंदिर में भगवान शिव के साथ राहु की मूर्ति विराजमान है।

कैसी है मंदिर की संरचना?मंदिर पत्थरों से बने एक उभरे हुए चबूतरे पर बना है। इसके चारों कोनों में कर्ण प्रसाद (मंदिर) बनाया गया है। साथ ही मंदिर की दीवारों के पत्थरों में आकर्षक नक्काशी की गई है। जिसमें राहु के कटे सिर के साथ भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र खुदा हुआ है। और मंदिर के बाहर और अंदर गणेश आदि देवताओं की प्राचीन पाषाण (पत्थर) मूर्तियाँ स्थापित हैं।स्थानीय सुधीर जोशी का कहना है कि उत्तर भारत में राहु का एकमात्र मंदिर पैठणी में है, जहां दूर-दूर से श्रद्धालु ग्रह दोष से मुक्ति पाने आते हैं। साथ ही उनका कहना है कि मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है। और यहां पूजा करने से राहु दोष से मुक्ति मिलती है। जिसके लिए देश भर से लोग यहां आते हैं।

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