फ्योंली की कहान("Fyonli's Story" )
पहाड़ों में बसंत के लगभग खेतों की मुंडेर पर पीली सी बेहद खूबसूरत जूही के मानिन्द खिलखिलाती . हंसती . इठलाती . बतियाती “फ्योंली” भला पहाड़ में किसने नहीं देखी होगी। कोई इसे फ्यूली कह कर पुकारता है तो कोई फ्योंली । बहुत कम जीवन है अपनी फ्योंली का ।
“फ्योंली” पहाड़ के एक गांव में अपने गरीब पिता के साथ एक छोटे से झोपड़ी नुमा घर में रहती थी । मां बचपन में ही मर गयी थी । पिता ने बडे़ लाड प्यार से फ्योंली को पाला था । धीरे धीरे फ्यूली बडी होने लगी ।घर के आंगन में खेलती इठलाती फ्यूली देखते देखते तरूणी हो गयी ।उसका रूप सौन्दर्य पूर्णिमा की तरह निखारने लगा । सौन्दर्य ऐसा कि स्वर्ग की अप्सरा तक ईर्षित हो जाय। अपने गांव सखियों में सबकी प्यारी फ्यूली । उसकी आवाज भी कोयल की कुहुक जैसी । लम्बे घने बाल और गाती भी बहुत अच्छा । फ्यूली अपने पिता को बहुत प्यार करती थी । गरीब पिता ने भी बडे लाड प्यार से पाला था अपनी बिटिया को। मां बचपन में ही मर गयी थी पर मां का भी प्यार पिता ने ही दिया ।
एक बार एक राजकुमार आखेट करते करते जंगल से भटकते फ्योंली की झोपडी तक आ पहुंचा । साथ के सारे सिपाही भी जाने कहां भटक गये . भूखा प्यासा राजकुमार जब फ्यूली के छोटे से मिट्टी के घर के दरवाजे पर आया तो फ्यूली के पिता ने यथा शक्ति स्वागत किया फ्यूली ने गांव के पनघट का बांज की जडो से छनकर आया ठंडा जल पिलाया रात घिर गयी थी । घर के एक कोने मे साफ बिस्तर लगा कर राजकुमार के सोने का इंतजाम भी हो गया। भोजन में उस गरीब पिता ने जितना हो सकता व्यवस्था की । फ्यूली ने भी अपने सुन्दर हाथों से मंडुवे की रोटी , गहत की दाल . अपने सगवाडे में उगी राई की सब्जी बना दी । राजकुमार को परोसा गया । इतना स्वादिष्ट भोजन राजकुमार को कभी नहीं लगा । राजकुमार " फ्यूली के रूप, गुण, सहूर, बोली, संस्कार पर मोहित हो गया । सुबह हुयी तो राजकुमार ने विनम्रता से फ्योंली के पिता से कहा मैं आपकी बेटी से विवाह करना चाहता हूँ और अभी ।।
आर्द भाव से निवेदन किया । फ्योंली से भी पूछा। फ्योंली अपने गरीब और बूढे पिता को भला यूं ही अकेले कैसे छोड़ती । उसने राजकुमार से कहा समय समय पर आप यदि मुझे मेरे पिता से मिलने आने की आज्ञा दोगे और आने दोगे तो विवाह मंजूर है राजकुमार तैयार हो गया । पिता ने अपने कलेजे के टुकड़े को राजकुमार के साथ विदा किया । सोचा बेटी महलों मे राज करेगी . सुखी रहेगी कोई कमी नहीं रहेगी । हर पिता यही तो चाहता है कि ससुराल में बेटी सुखी रहे। ।विदा होते समय “फ्योंली " पिता के सीने से चिपक कर फुट फूट कर रोयी । फ्यूली को लेकर राजकुमार अपने महल में आया । उसे वस्त्र और आभूषण दिये । राजसी ठाठ बाट में रखा । कोई कमी न रहे सेवक सेविकाऐं सेवा में लगा दी । राजकुमार उससे एक पल भी अपनी आंखों से दूर नहीं रखता । धीरे धीरे समय बीतने लगा । एक महीना हो गया । फ्यूली को पिता की याद सताने लगी। उसने पति राजकुमार से इच्छा जताई कि मुझे पिता के पास जाना है. राजकुमार ने कहा फिर कभी जायेंगे ।अगले महीने फिर अगले महीने का वायदा करते करते महीने बीत गये राजकुमार फ्योंली को उसके पिता के पास नहीं ले गया । महलों की खिडकियों से झांकती दूर पहाड़ी को जब भी फ्योंली देखती तो पिता की याद आ जाती । किसी बूढ़े गरीब को खांसते देखती तो पिता याद आ जाती । फ्यूली की आंखों में टपटप आंसू बहते । धीरे धीरे फ्योंली बीमार होने लगी । पिता से न मिलने की पीडा ने उसे अंदर से तोड कर रख दिया । इतनी बीमार होने लगी कि राजकुमार ने राजमहल क्या दुनिया के वेद्य इलाज के लिए बुला दिये । पर कोई बीमारी नहीं पकड़ पाया । राजकुमार फ्योंली को बहुत प्रेम करता था उसने ऐलान किया कि जो फ्योंली का उपचार करेगा उसे सारी सम्पति दी जायेगी । बहुत इलाज किया पर कुछ नहीं हुआ ।
फ्योंली दिन प्रति दिन सूखती रही और बिस्तर पर पड़ी-पड़ी रोती रहती । एक दिन फ्यूली को लगा उसकी मृत्यु नजदीक आ गयी है । उसने धीमे से इशारे से अपने पति को कहा मैं अब दुनिया से जाती हूँ आपने मुझें बहुत प्यार दिया इसके लिए आभार । टपटप बहते आंसुओं और कलेजे से निकली आवाज से कहा हो सके तो मेरी लाश को मेरे मायके की खेत की मुंडेर पर गाढ़ देना । क्योंकि अब सुना है पिता भी न रहे। आपने पिता से मिलने का वायदा किया था विवाह के वक्त पर निभाया नहीं । यह कहते कहते फ्योंली पति की बांहों में मर गयी । राजकुमार फूट फूट कर रोया । उसे बहुत पश्चाताप हुआ । फ्योंली की इच्छा अनुसार उसने बड़ी श्रद्धा और सम्मान से फ्यूली को उसके पिता के खेत की मुंडेर पर समाधि दे दी । खूब रोया । पर अपने पिता के खेत मे मौत के बाद ही सही . फ्यूली फिर जी उठी और खिल-खिला उठी व मुस्कुरा उठी । उतनी खूबसूरती से जितनी वह थी । फ्यूंली के फूल के रुप में ।
फूल खिलाला डालियों मा
फ्योंली हंसली पाखियों मा...
काली रौनक बांदो की मुखड़ी मा
कुत्गयाली लगली जिकुड़ी मा...
फूल खिलाला डालियों मा
फ्योंली हंसली पाखियों मा....
हियूंद आलू काठियों मा
मोलियार आली डालियों मा....
जय देव भूमि उत्तराखंड 🌹🌹
******
हे जी सार्यूं मा फूलीगे ह्वोलि फ्योंली लयड़ी
मैं घौर छोड्यावा
हे जी घर बौण बौड़ीगे ह्वोलु बालो बसंत
मैं घौर छोड्यावा
*********
रीता पाखौं मा भी फ्योलीं फ्योलीं......
फ्योलीं ज्वान हुवेग्ये...
फ्योलीं ज्वान हुवेग्ये हो.. ओ
र रा रा रा हो....र रा रा रा ...हो।
नमस्कार मित्रों एक समय था गढरत्न नेगी जी और सुष्मा श्रेष्ठ जी द्वारा गाये गीतों का गूंज अभी भी कानों में आती है बहुत ही सुंदर रचना कि है फ्योलीं के फुल पर और पाखौं में बहुत ही खूबसूरत लगते है फूलदेही त्यौहार में सबसे पहले इसी फ़ूल को चोखट में देवताओं मे चढाते है
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें