कविता फुलारी / श्री नरेंद्र सिंह नेगी

फूलारी / श्री नरेंद्र सिंह नेगी – उत्तराखण्ड की समृद्ध लोक धरोहर

उत्तराखण्ड की लोक संगीत में श्री नरेंद्र सिंह नेगी का योगदान अविस्मरणीय है। उनके द्वारा गाए गए गीत न केवल पहाड़ी संस्कृति की गहरी झलक देते हैं, बल्कि इनकी लय, शब्द और भावनाएँ भी दिल को छू जाती हैं। उनका गाना "फूलारी" भी उत्तराखण्ड की विशेष लोकधारा का एक अहम हिस्सा है। इस गीत में बसंत ऋतु के आगमन के साथ फूलों, खुशियों और लोक जीवन के अद्वितीय पहलुओं का चित्रण किया गया है।

गीत के अर्थ और भावनाएँ

"फूलारी" गीत में प्रकृति की सुंदरता और उसकी संजीवनी शक्ति को व्यक्त किया गया है। श्री नरेंद्र सिंह नेगी ने इस गीत के माध्यम से बसंत ऋतु की ताजगी, फूलों की खुशबू, और जीवन में खुशियों की भावना को शब्दों में पिरोया है। गीत में विभिन्न फूलों का उल्लेख करते हुए यह बताया गया है कि प्रकृति से जुड़े होने की खुशी कितनी अद्भुत होती है।

गीत के प्रमुख अंशों में, "चला फुलारी फूलों को, सौदा-सौदा फूल बिरौला" का अर्थ है, फूलों का सौदा करते हुए प्रकृति के रंगों में बसी खुशियों को स्वीकार करना। वहीं, "हे जी सार्यूं मा फूलीगे ह्वोलि" और "घोघा देवा फ्योंल्या फूल" जैसे शब्दों में बसंत ऋतु और फूलों के रंगों को विशेष रूप से उजागर किया गया है।

गीत के प्रमुख अंश और उनकी भावनाएँ:

  1. "चला फुलारी फूलों को, सौदा-सौदा फूल बिरौला"
    यह वाक्य पहाड़ी संस्कृति में गहरे स्थान रखता है, जहाँ फूलों को सामूहिक रूप से इकट्ठा करके उनका सौदा किया जाता है, जिससे जीवन में खुशियाँ और समृद्धि आती हैं।

  2. "हे जी घर बौण बौड़ीगे ह्वोलु बालो बसंत"
    इस पंक्ति में बसंत ऋतु के आगमन का जश्न मनाने की बात की गई है। यह पर्व घर-घर खुशियाँ और उमंग लेकर आता है।

  3. "फुल फुलदेई दाल चौंल दे, घोघा देवा फ्योंल्या फूल"
    फूलदेई के दिन विशेष रूप से यह गीत बहुत लोकप्रिय है। बच्चे फूलों से घरों को सजाकर प्रकृति का आभार व्यक्त करते हैं।

  4. "घोघा फूलदेई की डोली सजली, गुड़ परसाद दै दूध भत्यूल"
    यहाँ फूलदेई के दौरान गुड़, दूध और अन्य पकवानों का उल्लेख किया गया है, जो इस पर्व को खास बनाते हैं। यह पर्व ना केवल उत्सव है, बल्कि यह लोकजीवन के एक अहम हिस्से का प्रतीक भी है।

उत्तराखण्ड की संस्कृति और लोकजीवन

यह गीत उत्तराखण्ड की संस्कृति और लोक जीवन को संजीवता से व्यक्त करता है। जहां एक ओर यह पहाड़ी जीवन के दर्द और संघर्ष को दर्शाता है, वहीं दूसरी ओर यह जीवन की खुशियों और उपलब्धियों का भी उत्सव मनाता है। श्री नरेंद्र सिंह नेगी के गीतों में पहाड़ी जीवन के हर पहलू को छुआ गया है, जो हर उम्र के व्यक्ति के दिल में अपनी जगह बना लेता है।

निष्कर्ष

श्री नरेंद्र सिंह नेगी का "फूलारी" गीत उत्तराखण्ड की लोक धरोहर का अभिन्न हिस्सा बन चुका है। यह गीत बसंत ऋतु, फूलों और प्रकृति से जुड़ी खुशियों को समर्पित है। गीत में व्यक्त भावनाएँ हमें यह सिखाती हैं कि प्रकृति और लोक जीवन का कितना गहरा संबंध है।

यदि आप इस गीत को सुनते हैं, तो यह न केवल आपके दिल को छूने वाला होता है, बल्कि आपको उत्तराखण्ड की माटी, उसके रंगों और खुशबुओं से भी जोड़ता है। "फूलारी" के माध्यम से श्री नरेंद्र सिंह नेगी ने पहाड़ी संस्कृति को एक नई पहचान दी है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए एक अमूल्य धरोहर बनकर रहेगी।

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