दरवान सिंह नेगी: भारतीय सेना के पहले विक्टोरिया क्रॉस विजेता (Darwan Singh Negi: India's first Victoria Cross recipient.)

दरवान सिंह नेगी: भारतीय सेना के पहले विक्टोरिया क्रॉस विजेता

दरवान सिंह नेगी भारतीय सेना के पहले उन वीर सैनिकों में से एक थे जिन्हें ब्रिटिश भारतीय सेना द्वारा सर्वोच्च सम्मान, विक्टोरिया क्रॉस, से सम्मानित किया गया था। उनके अदम्य साहस और बलिदान की गाथा ने भारतीय सेना के इतिहास में एक अमिट छाप छोड़ी है। इस ब्लॉग में हम दरवान सिंह नेगी की जीवन गाथा, उनकी बहादुरी, और उनके द्वारा किए गए अतुलनीय योगदान पर चर्चा करेंगे।


दरवान सिंह नेगी का प्रारंभिक जीवन

दरवान सिंह नेगी का जन्म 4 मार्च 1883 को उत्तराखंड के वर्तमान चमोली जिले के काफरतीर गांव में एक साधारण किसान परिवार में हुआ था। बचपन से ही उनका झुकाव सेना की ओर था, और 1902 में, 19 वर्ष की आयु में, वे ब्रिटिश भारतीय सेना की 39वीं गढ़वाल राइफल्स में शामिल हो गए। उनकी निष्ठा, साहस और संकल्प ने उन्हें भारतीय सेना में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया।


प्रथम विश्व युद्ध में योगदान

प्रथम विश्व युद्ध के दौरान 1914 में, गढ़वाल राइफल्स की 39वीं बटालियन को भारतीय कोर के 7वें (मेरठ) डिवीजन के हिस्से के रूप में फ्रांस भेजा गया। इसी दौरान नेगी ने अद्वितीय साहस का प्रदर्शन किया। वे उस समय नायक (कॉर्पोरल के समकक्ष) के पद पर कार्यरत थे।

23-24 नवम्बर 1914 की रात को फेस्टुबर्ट के निकट उन्होंने ब्रिटिश सेना के साथ मिलकर दुश्मन की खाइयों पर कब्जा करने में अपनी जान की बाजी लगा दी। दो स्थानों पर घायल होने के बावजूद, उन्होंने दुश्मन के भीषण हमलों का सामना किया और मोर्चे पर डटे रहे। उनकी बहादुरी और साहस के लिए उन्हें विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया।


विक्टोरिया क्रॉस सम्मान

7 दिसंबर 1914 को लंदन गजट में प्रकाशित एक नोटिफिकेशन में महामहिम राजा-सम्राट द्वारा दरवान सिंह नेगी को भारतीय सेना के वीर सैनिकों में से एक के रूप में विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया। सम्मान का विवरण कुछ इस प्रकार था:

"23-24 नवम्बर की रात्रि को फेस्टुबर्ट के निकट, जब रेजिमेंट अपनी खाइयों से दुश्मनों को खदेड़ने और उन पर कब्जा करने में लगी हुई थी, उस समय नेगी ने अपनी जान की परवाह न करते हुए अद्भुत साहस का प्रदर्शन किया। यद्यपि वे सिर और बांह में दो स्थानों पर घायल हो गए थे, फिर भी उन्होंने दुश्मन पर आक्रमण जारी रखा और अंततः अपनी रेजिमेंट के साथ विजय प्राप्त की।"


सेना में आगे का सफर और परिवारिक योगदान

नेगी अपने करियर में सूबेदार (ब्रिटिश कैप्टन के समकक्ष) के पद तक पहुंचे और भारतीय सेना से सम्मान के साथ सेवानिवृत्त हुए। उनके साहस और वीरता की परंपरा उनके परिवार में भी जारी रही। उनके बेटे बलबीर ने भी भारतीय सेना में सेवा दी और कर्नल के पद तक पहुंचे, जबकि उनके पोते ने सेना में ब्रिगेडियर के पद पर कार्य किया। नेगी के विक्टोरिया क्रॉस को उनकी बहादुरी के प्रतीक के रूप में संजो कर रखा गया है।


विरासत और सम्मान

उत्तराखंड के लैंसडाउन में गढ़वाल राइफल्स के रेजिमेंटल संग्रहालय का नाम उनके सम्मान में दरवान सिंह संग्रहालय रखा गया है। यह संग्रहालय उनके शौर्य की गाथाओं को जीवित रखता है और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत बना हुआ है।

दरवान सिंह नेगी की बहादुरी ने भारतीय सैनिकों को यह विश्वास दिलाया कि अपने देश के लिए कुछ भी करने का जज्बा रखने वाले सच्चे वीर योद्धा होते हैं। उनके साहसिक कार्यों ने न केवल भारतीय सेना में बल्कि पूरे देश में एक नई प्रेरणा का संचार किया।


निष्कर्ष:

दरवान सिंह नेगी की वीरता और बलिदान की गाथा भारतीय सेना के इतिहास का एक अहम अध्याय है। उनका विक्टोरिया क्रॉस सम्मान भारतीय सैनिकों की वीरता का प्रतीक है और उनकी कहानी हर भारतीय को गर्व से भर देती है। उनके अद्वितीय योगदान को सदैव स्मरण किया जाएगा और उनकी विरासत हमेशा हमें प्रेरणा देती रहेगी।


1. दरवान सिंह नेगी कौन थे?

दरवान सिंह नेगी भारतीय सेना के वीर सैनिक थे, जो गढ़वाल राइफल्स में सेवा करते थे। वे विक्टोरिया क्रॉस प्राप्त करने वाले पहले भारतीय सैनिकों में से एक थे, जो ब्रिटिश साम्राज्य के समय सबसे प्रतिष्ठित वीरता पुरस्कार था।

2. विक्टोरिया क्रॉस क्या है?

विक्टोरिया क्रॉस (VC) दुश्मन के सामने असाधारण वीरता के लिए ब्रिटिश और राष्ट्रमंडल बलों को दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान है। दरवान सिंह नेगी ने इसे प्रथम विश्व युद्ध के दौरान फेस्टुबर्ट की लड़ाई में अपनी बहादुरी के लिए प्राप्त किया था।

3. दरवान सिंह नेगी का जन्म और मृत्यु कब और कहाँ हुई थी?

दरवान सिंह नेगी का जन्म 4 मार्च 1883 को काफ़रतीर, गढ़वाल (अब चमोली जिला, उत्तराखंड) में हुआ था, और उनकी मृत्यु 24 जून 1950 को हुई।

4. दरवान सिंह नेगी ने विक्टोरिया क्रॉस कैसे प्राप्त किया?

प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, फ्रांस के फेस्टुबर्ट क्षेत्र में लड़ाई में उन्होंने असाधारण वीरता का परिचय दिया, जिसके लिए उन्हें विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया।

5. क्या दरवान सिंह नेगी का परिवार भी सेना में है?

हाँ, उनके बेटे बलबीर ने भारतीय सेना की गढ़वाल राइफल्स में सेवा की और कर्नल के पद पर पहुंचे। उनके पोते भी भारतीय सेना में ब्रिगेडियर के पद पर कार्यरत हैं।

6. दरवान सिंह नेगी के सम्मान में क्या कोई स्मारक है?

उत्तराखंड के लैंसडाउन में गढ़वाल राइफल्स के रेजिमेंटल संग्रहालय का नाम दरवान सिंह संग्रहालय रखा गया है, जो उनकी वीरता और बलिदान का प्रतीक है।

7. दरवान सिंह नेगी किस इकाई में सेवा करते थे?

उन्होंने 39वीं गढ़वाल राइफल्स की पहली बटालियन में सेवा की और कई कठिन युद्धों में अद्वितीय बहादुरी का प्रदर्शन किया।

8. दरवान सिंह नेगी के वीरता के कार्य की पूरी कहानी क्या है?

23-24 नवम्बर 1914 को फेस्टुबर्ट की लड़ाई के दौरान, उन्होंने खाइयों में आगे बढ़ते हुए दुश्मनों को खदेड़ा और बमों व गोलाबारी का सामना करते हुए अद्वितीय साहस दिखाया, जिसके लिए उन्हें विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया।

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