सेना का वह वीर जवान: राइफलमैन जसवंत सिंह रावत - That brave soldier of the army: Rifleman Jaswant Singh Rawat
सेना का वह वीर जवान: राइफलमैन जसवंत सिंह रावत - That brave soldier of the army: Rifleman Jaswant Singh Rawat
1962 का वह दौर था जब भारत और चीन के बीच युद्ध चल रहा था, जिसे इंडो-चाइना वॉर के नाम से जाना जाता है। यह युद्ध 20 अक्टूबर से 21 नवंबर तक चला। लेकिन इस युद्ध में एक ऐसा जवान था, जिसने अकेले ही अपने शौर्य से दुश्मन के इरादों को मिट्टी में मिला दिया। वह जवान था गढ़वाल राइफल्स की चौथी बटालियन का वीर सपूत, राइफलमैन जसवंत सिंह रावत, जिसने 72 घंटों तक अकेले चीनी सेना से मुकाबला किया और 300 से अधिक सैनिकों को मार गिराया।
17 नवंबर 1962 का दिन
17 नवंबर को चीनी सेना ने अरुणाचल प्रदेश पर चौथी बार हमला किया, उनका इरादा क्षेत्र पर पूरी तरह कब्जा करना था। अरुणाचल प्रदेश के नूरारंग क्षेत्र में तैनात जसवंत सिंह ने अपनी पोस्ट नहीं छोड़ी और चीनी हमले का बहादुरी से सामना किया। इस लड़ाई में जसवंत सिंह के साथ दो और वीर जवान लांस नायक त्रिलोक सिंह और राइफलमैन गोपाल सिंह भी थे। इन तीनों ने चीनी सेना के मीडियम मशीन गन (MMG) से हो रहे हमले को रोकने की योजना बनाई।
चीनी सेना की मीडियम मशीन गन पर कब्जा
जसवंत सिंह, त्रिलोक सिंह और गोपाल सिंह ने भारी गोलीबारी के बीच चीनी सेना के बंकर तक पहुंचकर उनकी MMG पर कब्जा कर लिया। इस घटना ने चीनी सेना के मंसूबों पर पानी फेर दिया। हालांकि, इस प्रयास में त्रिलोक सिंह और जसवंत सिंह पर दुश्मनों ने गोली चला दी, जिसमें त्रिलोक सिंह शहीद हो गए, लेकिन गोपाल सिंह ने हिम्मत से MMG को भारतीय खेमे में पहुंचाया।
जसवंत सिंह का अंतिम संघर्ष
इस संघर्ष में ज्यादातर भारतीय जवान शहीद हो चुके थे, लेकिन जसवंत सिंह ने अपनी पोस्ट पर डटे रहकर लड़ाई जारी रखी। उनकी सहायता के लिए दो स्थानीय लड़कियां, सेला और नूरा, ने हथियारों की आपूर्ति की और अलग-अलग स्थानों पर हथियारों को छिपाने में मदद की। जसवंत ने जगह-जगह से चीनी सैनिकों पर हमला बोला, जिससे दुश्मन को भ्रमित किया और भारी नुकसान पहुंचाया।
अकेले 300 दुश्मनों को किया ढेर
जसवंत सिंह ने न केवल अपने अद्वितीय साहस का परिचय दिया बल्कि 10,000 फीट ऊंचाई पर स्थित इस कठिन पोस्ट पर चीनी सेना की एक पूरी टुकड़ी का अकेले सामना किया। इस लड़ाई में उन्होंने 300 से अधिक चीनी सैनिकों को मार गिराया। अंततः चीनी सैनिकों ने उन्हें पकड़कर मार डाला, लेकिन तब तक भारतीय सेना की अन्य टुकड़ियां मौके पर पहुंच गईं और चीनी सेना को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया।
वीरता का सम्मान
राइफलमैन जसवंत सिंह की इस अद्वितीय बहादुरी और शौर्य के लिए उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया, जबकि त्रिलोक सिंह और गोपाल सिंह को वीर चक्र प्रदान किया गया। उनके इस बलिदान को सम्मान देने के लिए उस स्थान पर जसवंत सिंह की याद में एक स्मारक झोपड़ी बनाई गई है।
जसवंत सिंह की याद में स्मारक
जिस स्थान पर जसवंत सिंह शहीद हुए, वहां एक झोपड़ी बनाई गई है, जिसमें उनके लिए एक बिस्तर सजाया गया है। इस पोस्ट पर तैनात सैनिक हर रोज बिस्तर की चादर बदलते हैं और उनके जूतों को पॉलिश कर वहां रखते हैं। यह स्मारक भारतीय सेना की परंपरा और इस वीर जवान की अमर गाथा का प्रतीक है।
राइफलमैन जसवंत सिंह रावत का बलिदान और उनकी बहादुरी भारतीय सेना के इतिहास में सदा अमर रहेगी। उनके शौर्य की यह कहानी हर भारतीय के दिल में देशभक्ति की भावना को और भी प्रगाढ़ करती है।
FAQs: जसवंत सिंह रावत और 1962 का भारत-चीन युद्ध
जसवंत सिंह रावत कौन थे?
- जसवंत सिंह रावत भारतीय सेना की गढ़वाल राइफल्स की चौथी बटालियन के वीर जवान थे, जिन्होंने 1962 के भारत-चीन युद्ध में असाधारण बहादुरी दिखाई और अकेले 72 घंटों में 300 से अधिक चीनी सैनिकों को मार गिराया।
जसवंत सिंह रावत ने कब और कहाँ पर चीनी सेना का सामना किया था?
- उन्होंने 17 नवंबर 1962 को अरुणाचल प्रदेश के नूरारंग क्षेत्र में चीनी सेना का सामना किया और अपनी पोस्ट पर डटे रहकर 72 घंटों तक चीनी सैनिकों से लोहा लिया।
जसवंत सिंह रावत की वीरता में स्थानीय लड़कियों की क्या भूमिका थी?
- दो स्थानीय लड़कियाँ, सेला और नूरा, ने जसवंत सिंह की सहायता की। उन्होंने उनके लिए हथियार और गोला-बारूद जुटाने में मदद की और चीनी सेना को भ्रमित करने के लिए विभिन्न स्थानों पर हथियार छिपाए।
जसवंत सिंह रावत को उनकी बहादुरी के लिए कौन से पुरस्कार से सम्मानित किया गया?
- उनकी इस अदम्य वीरता के लिए उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया, जो भारतीय सेना का दूसरा सर्वोच्च वीरता पुरस्कार है।
क्या जसवंत सिंह रावत के बलिदान की याद में कोई स्मारक है?
- हाँ, अरुणाचल प्रदेश में उनके बलिदान स्थल पर एक स्मारक झोपड़ी बनाई गई है, जिसे जसवंतगढ़ के नाम से जाना जाता है। इसमें उनका बिस्तर सजाया जाता है, और वहां के सैनिक उनकी याद में रोज बिस्तर की चादर बदलते हैं और उनके जूतों को पॉलिश करते हैं।
जसवंत सिंह के अलावा किन अन्य सैनिकों ने इस युद्ध में योगदान दिया?
- जसवंत सिंह के साथ लांस नायक त्रिलोक सिंह और राइफलमैन गोपाल सिंह ने भी चीनी सेना का सामना किया। इन दोनों वीर सैनिकों को वीर चक्र से सम्मानित किया गया।
1962 के भारत-चीन युद्ध का उद्देश्य क्या था?
- इस युद्ध का उद्देश्य दोनों देशों के बीच सीमा विवाद को लेकर था। चीन ने अरुणाचल प्रदेश पर कब्जा करने के लिए भारतीय क्षेत्र में हमला किया था, लेकिन भारतीय सेना के जवानों ने बहादुरी से इसका सामना किया।
जसवंत सिंह रावत को ‘अमर जवान’ क्यों कहा जाता है?
- जसवंत सिंह ने जिस अदम्य साहस से लड़ाई लड़ी और अपने बलिदान से भारतीय भूमि की रक्षा की, उसी के प्रतीक स्वरूप उन्हें अमर जवान कहा जाता है। भारतीय सेना उन्हें आज भी सम्मान और श्रद्धा के साथ याद करती है।
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