गबर सिंह नेगी - एक महान वीर योद्धा और विक्टोरिया क्रॉस विजेता (Gabar Singh Negi - a great warrior and Victoria Cross recipient.)
गबर सिंह नेगी - एक महान वीर योद्धा और विक्टोरिया क्रॉस विजेता
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जन्म और प्रारंभिक जीवन
गबर सिंह नेगी का जन्म 21 अप्रैल 1895 को टिहरी गढ़वाल राज्य के मंजौर गांव (वर्तमान टेहरी गढ़वाल जिला, उत्तराखंड) में हुआ था। हिमालय के इस क्षेत्र में जन्में नेगी का प्रारंभिक जीवन कठिनाइयों और संघर्षों से भरा हुआ था। अक्टूबर 1913 में उन्होंने ब्रिटिश भारतीय सेना की 39वीं गढ़वाल राइफल्स की दूसरी बटालियन में भर्ती ली, जहां उत्तराखंड के साहसी गढ़वाली सैनिकों की उपस्थिति थी।
प्रथम विश्व युद्ध में वीरता
प्रथम विश्व युद्ध छिड़ने के बाद गबर सिंह नेगी की बटालियन को भारतीय अभियान बल के साथ पश्चिमी मोर्चे पर भेजा गया। अक्टूबर 1914 में, नेगी की बटालियन फ्रांस में यप्रेस की लड़ाई में भाग ले रही थी। मार्च 1915 में, उन्हें न्यूवे चैपल की लड़ाई में भाग लेने का आदेश मिला, जहां उन्होंने दुश्मन के खतरनाक खाइयों पर हमला किया। तोपखाने की सीमित तैयारी और जर्मन सैनिकों के भारी प्रतिरोध के बावजूद, नेगी और उनके दल ने अद्वितीय साहस दिखाया। उन्होंने अपने दल के कमांडर की मृत्यु के बाद नेतृत्व संभाला और जर्मन खाइयों को अपने अदम्य साहस से जीता। हालांकि, इस महान संघर्ष में उन्होंने वीरगति प्राप्त की।
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विक्टोरिया क्रॉस सम्मान
गबर सिंह नेगी को उनकी अतुलनीय वीरता के लिए मरणोपरांत विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया। यह ब्रिटिश और राष्ट्रमंडल सेनाओं का सर्वोच्च सैन्य सम्मान है, जो असाधारण वीरता के लिए दिया जाता है। लंदन गजट में 28 अप्रैल 1915 को उनके इस वीरता के कार्य को विशेष सम्मान देते हुए प्रकाशित किया गया।
स्मारक और परंपराएं
गबर सिंह नेगी की कोई ज्ञात कब्र नहीं है; उनका नाम न्यूवे-चैपल मेमोरियल पर अंकित है। उनकी वीरता की याद में हर साल 21 अप्रैल को चंबा में 'गबर सिंह नेगी मेला' का आयोजन किया जाता है। इस मेले में सेना की भर्ती रैली, प्रदर्शनी, और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं, जो गढ़वाल राइफल्स के बहादुर सैनिकों की याद में एक प्रेरणा का स्रोत है।
नेगी का पदक और उनकी विरासत
उनका विक्टोरिया क्रॉस पदक उनके परिवार को सौंपा गया था, जो आज भी उनकी विधवा की स्मृतियों में जीवित है। यह वीरता का प्रतीक पदक उनकी पत्नी के लिए गर्व का स्रोत था, जो अपने जीवन के अंत तक इसे संभाल कर रखे रहीं।
निष्कर्ष
गबर सिंह नेगी जैसे वीर सैनिकों ने भारतीय इतिहास में अपनी अमिट छाप छोड़ी है। उनकी साहसिक गाथा आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती है और हमें याद दिलाती है कि सच्चे योद्धा कभी मरते नहीं, वे हमेशा हमारी स्मृतियों और इतिहास के पन्नों में अमर रहते हैं।
Frequently Asked Questions (FAQs) - गबर सिंह नेगी
1. गबर सिंह नेगी कौन थे?
- गबर सिंह नेगी भारतीय सेना के एक वीर सैनिक थे, जिन्होंने प्रथम विश्व युद्ध में अद्वितीय साहस दिखाया और ब्रिटिश भारतीय सेना में सेवा करते हुए दुश्मन से वीरतापूर्वक लड़े। उन्हें उनकी वीरता के लिए मरणोपरांत विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया था।
2. गबर सिंह नेगी का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
- उनका जन्म 21 अप्रैल 1895 को टिहरी गढ़वाल राज्य के मंजौर गांव (वर्तमान में टेहरी गढ़वाल, उत्तराखंड) में हुआ था।
3. उन्होंने किस बटालियन में सेवा दी?
- गबर सिंह नेगी ने ब्रिटिश भारतीय सेना की 39वीं गढ़वाल राइफल्स की दूसरी बटालियन में सेवा दी।
4. गबर सिंह नेगी ने प्रथम विश्व युद्ध में कौन-कौन से मोर्चों पर हिस्सा लिया?
- उन्होंने फ्रांस में यप्रेस की लड़ाई और न्यूवे चैपल की लड़ाई में भाग लिया। विशेषकर न्यूवे चैपल की लड़ाई में उनका अद्वितीय साहस और वीरता देखने को मिली।
5. गबर सिंह नेगी को विक्टोरिया क्रॉस कब प्रदान किया गया?
- उनकी बहादुरी और साहस के लिए उन्हें 10 मार्च 1915 के कार्यों के उपरांत मरणोपरांत विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया, जो 28 अप्रैल 1915 को लंदन गजट में प्रकाशित किया गया था।
6. गबर सिंह नेगी की स्मृति में क्या आयोजन होता है?
- उनकी याद में हर साल 21 अप्रैल को चंबा (उत्तराखंड) में 'गबर सिंह नेगी मेला' आयोजित किया जाता है, जिसमें सेना की भर्ती रैली, सांस्कृतिक कार्यक्रम और प्रदर्शनी होती हैं।
7. क्या गबर सिंह नेगी की कोई स्मारक कब्र है?
- गबर सिंह नेगी की कोई ज्ञात कब्र नहीं है। उनका नाम फ्रांस में न्यूवे-चैपल मेमोरियल पर अंकित है।
8. उनकी विरासत को कैसे संरक्षित किया गया है?
- गबर सिंह नेगी का विक्टोरिया क्रॉस पदक उनके परिवार को सौंपा गया था, जिसे उनकी विधवा ने गर्व के साथ संजोया। उनका यह पदक वीरता का प्रतीक है और उनके परिवार में गर्व का स्रोत बना हुआ है।
9. गबर सिंह नेगी की वीरता हमें क्यों प्रेरित करती है?
- उनकी बहादुरी और राष्ट्र के प्रति निष्ठा आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उन्होंने दुश्मन के सामने बहादुरी से लड़ाई लड़ी और यह साबित किया कि सच्चे योद्धा हमेशा हमारी स्मृतियों में जीवित रहते हैं।
10. गबर सिंह नेगी का योगदान भारतीय इतिहास में कैसे दर्ज है?
- गबर सिंह नेगी की वीरता और बलिदान ने भारतीय इतिहास में एक अमिट छाप छोड़ी है, जो हमें यह याद दिलाता है कि सच्चे योद्धा न केवल युद्ध में बल्कि लोगों के दिलों में भी हमेशा के लिए अमर हो जाते हैं।
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