एक सैनिक, जिसे मौत के बाद भी मिल रहे हैं प्रमोशन - A soldier who is receiving promotions even after death.

एक सैनिक, जिसे मौत के बाद भी मिल रहे हैं प्रमोशन

जसवंत सिंह रावत: वीरता की मिसाल

राइफ़लमैन जसवंत सिंह रावत भारतीय सेना के एक वीर सैनिक थे, जिन्होंने 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान असाधारण वीरता का प्रदर्शन करते हुए अपनी जान की आहुति दी। उनकी शहादत ने उन्हें न केवल भारतीय सेना में, बल्कि देशभर में एक अमिट स्थान दिलवाया।

जसवंत सिंह रावत की वीरता:

17 नवंबर 1962 को नूरानांग, अरुणाचल प्रदेश में हुई लड़ाई के दौरान जसवंत सिंह रावत ने अपनी लाइट मशीन गन के साथ एक अकेले चीनी सेना का मुकाबला किया। उनका किला इतना मजबूत था कि चीनी सैनिक बार-बार हमले करते रहे, लेकिन जसवंत सिंह ने कभी भी पीछे नहीं हटने का फैसला लिया।

उनके साथ लांसनायक त्रिलोक सिंह नेगी और गोपाल सिंह गोसाईं भी थे, जो उनके साथ मिलकर एक बंकर पर ग्रेनेड फेंककर चीनी सैनिकों का सामना करते थे। उन्होंने चीनी मीडियम मशीन गन को कब्जे में लेकर उसे भारतीय चौकी की ओर मोड़ दिया और दुश्मन को भारी नुकसान पहुंचाया।

72 घंटे तक अकेले मुकाबला करते हुए जसवंत सिंह अंततः शहीद हो गए। उनकी वीरता की कहानी आज भी भारतीय सेना और नागरिकों के दिलों में जीवित है।

मृत्यु के बाद भी जसवंत सिंह का सम्मान:

जसवंत सिंह रावत की शहादत के बाद उनके बलिदान को सम्मानित करने के लिए नूरानांग में एक मंदिर बनाया गया है। यहाँ उनकी व्यक्तिगत वस्तुएं रखी गई हैं और यह स्थान सैनिकों और जनरल्स द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित करने का स्थान बन चुका है।

इतना ही नहीं, भारतीय सेना ने जसवंत सिंह रावत के साथ एक विशेष सम्मान भी किया है। वह भारतीय सेना के अकेले सैनिक हैं, जिन्हें मौत के बाद पदोन्नति दी गई। पहले उन्हें नायक के पद पर प्रमोट किया गया, फिर कैप्टन और अब वे मेजर जनरल के पद पर पहुंच चुके हैं।

जसवंत सिंह रावत की सेवा:

जसवंत सिंह रावत को हर दिन की शुरुआत में बेड टी, नाश्ता और रात का खाना दिया जाता है। भारतीय सेना के पांच जवान चौबीसों घंटे उनकी सेवा में तैनात रहते हैं। उनका बिस्तर लगाया जाता है, उनके जूतों की पॉलिश होती है और उनके यूनिफॉर्म की प्रेस भी की जाती है।

यह सब उनकी मृत्यु के बावजूद उनकी सेवा में हो रहा है, और यह भारतीय सेना की वीरता और सम्मान की निशानी है।

शहीद जसवंत सिंह का सम्मान:

उनकी शहादत के बाद, जसवंत सिंह रावत के परिवार को विशेष सम्मान मिलता है। जब भी कोई छुट्टी मंजूर होती है, तो भारतीय सेना उनके चित्र को पूरे सैनिक सम्मान के साथ उनके उत्तराखंड के पुश्तैनी गांव भेजती है। इस सम्मान में उनका चित्र लौटाया जाता है, और यह परंपरा आज भी चल रही है।

अंतिम शब्द:

जसवंत सिंह रावत की वीरता और उनकी निस्वार्थ सेवा का उदाहरण आज भी भारतीय सेना के जवानों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनकी शहादत और बलिदान ने उन्हें अमर बना दिया है, और वे हमेशा हमारे दिलों में जीवित रहेंगे।

इमेज कैप्शन: जसवंत सिंह रावत चीनियों के साथ लड़ाई में वीरगति को प्राप्त हुए थे।


Frequently Asked Questions (FQCs) 

1. जसवंत सिंह रावत कौन थे?

जसवंत सिंह रावत भारतीय सेना के राइफलमैन थे, जिन्होंने 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान असाधारण वीरता का प्रदर्शन करते हुए शहीद हो गए। उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था।

2. जसवंत सिंह रावत की शहादत कहां हुई थी?

जसवंत सिंह रावत की शहादत 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान अरुणाचल प्रदेश के नूरानांग क्षेत्र में हुई थी, जहां उन्होंने चीनी सैनिकों से अकेले मुकाबला किया।

3. जसवंत सिंह रावत को मौत के बाद क्या सम्मान मिला?

जसवंत सिंह रावत को उनकी शहादत के बाद पदोन्नति मिली। वह पहले नायक, फिर कैप्टन और अब मेजर जनरल के पद पर प्रमोट किए गए हैं।

4. जसवंत सिंह रावत के बारे में कौन सी विशेषताएँ प्रचलित हैं?

जसवंत सिंह रावत के बारे में यह प्रसिद्ध कहानी है कि उन्होंने 72 घंटे तक अकेले चीनी सैनिकों का सामना किया। अंततः उन्होंने अपनी अंतिम गोली से आत्महत्या कर ली, जब उन्हें लगा कि चीनी सैनिक उन्हें बंदी बना लेंगे।

5. जसवंत सिंह रावत की याद में क्या स्मारक बनाए गए हैं?

जसवंत सिंह रावत की शहादत की याद में नूरानांग में एक मंदिर बनाया गया है, जहां उनकी इस्तेमाल की गई चीज़ें रखी गई हैं। यह स्थान भारतीय सेना के जवानों और जनरल्स द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित करने का स्थल बन चुका है।

6. जसवंत सिंह रावत का सम्मान किस प्रकार किया जाता है?

जसवंत सिंह रावत का सम्मान उनके चित्र के रूप में किया जाता है। जब भी उनके परिवार को छुट्टी की मंजूरी मिलती है, तो उनके चित्र को पूरे सैनिक सम्मान के साथ उनके गांव भेजा जाता है।

7. जसवंत सिंह रावत के बारे में कुछ अन्य तथ्य क्या हैं?

जसवंत सिंह रावत की शहादत के बाद चीनी सैनिकों ने उनका सिर धड़ से अलग कर दिया था, लेकिन उनके साहस और वीरता से प्रभावित होकर चीनी कमांडर ने उनकी प्रतिमा बनवाकर भारतीय सैनिकों को भेंट की।

8. जसवंत सिंह रावत के योगदान को कैसे सम्मानित किया जाता है?

जसवंत सिंह रावत का योगदान उनके साथियों और भारतीय सेना द्वारा हमेशा सम्मानित किया जाता है। उनकी वीरता को न केवल भारतीय सैनिक बल्कि चीनी सैनिक भी मानते हैं। 

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