गढ़वाल राइफल्स: वीरता और पराक्रम के 137 गौरवशाली वर्ष (Garhwal Rifles: 137 glorious years of valor and bravery.)

गढ़वाल राइफल्स: वीरता और पराक्रम के 137 गौरवशाली वर्ष


परिचय:
आज का दिन उत्तराखंड के लिए गर्व और वीरता से भरा है। उत्तराखंड की यह भूमि, जो अपने प्राकृतिक सौंदर्य, हरी-भरी वादियों और धार्मिक पर्यटन स्थलों के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है, उसी धरती पर अनेक वीरों ने जन्म लिया है जिन्होंने अपने साहस से इतिहास में अमरता प्राप्त की। इसी धरती पर वीरता और बलिदान का प्रतीक मानी जाने वाली गढ़वाल राइफल्स का स्थापना दिवस मनाया जा रहा है। आज गढ़वाल राइफल्स अपने 137वें वर्ष में प्रवेश कर चुकी है और उत्तराखंड इस गौरवपूर्ण दिन को पूरे हर्षोल्लास के साथ मना रहा है।

गढ़वाल राइफल्स का इतिहास और स्थापना:
गढ़वाल राइफल्स की स्थापना 5 मई 1887 को अल्मोड़ा में हुई और इसी वर्ष 4 नवंबर 1887 को लैंसडाउन में गढ़वाल राइफल्स की छावनी बनाई गई। बलभद्र सिंह नेगी का नाम इस रेजीमेंट की स्थापना के साथ जुड़ा हुआ है। कंधार के युद्ध में उनके अद्वितीय साहस और युद्ध कौशल के कारण उन्होंने कई सम्मान प्राप्त किए, जिनमें 'आर्डर ऑफ मैरिट', 'आर्डर ऑफ ब्रिटिश इंडिया', और 'सरदार बहादुर' जैसे प्रतिष्ठित पदक शामिल हैं। उनकी वीरता को देखकर ब्रिटिश शासकों ने गढ़वालियों के युद्ध कौशल को मान्यता दी और गढ़वाल राइफल्स की नींव रखी।

गढ़वाल राइफल्स का चिह्न और युद्ध नारा:
1891 में गढ़वाल राइफल्स को अपनी विशिष्ट पहचान मिली जब उसके प्रतीक चिन्ह में फीनिक्स बाज को स्थान दिया गया। बाद में यह प्रतीक माल्टीज क्रॉस में परिवर्तित कर दिया गया, जिसमें फैलाए हुए पंखों वाला बाज बनाया गया, जो शुभ माना जाता है। रेजीमेंट का युद्ध नारा 'बद्री विशाल लाल की जय' है, जो भगवान बद्रीनाथ को समर्पित है और गढ़वालियों के साहस को प्रदर्शित करता है।

प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध में गढ़वाल राइफल्स की भूमिका:
प्रथम विश्व युद्ध में गढ़वाल राइफल्स की असली परीक्षा हुई, जब ‘न्यू शैपल’ के युद्ध में गढ़वालियों ने विपरीत परिस्थितियों में दुश्मनों को मात दी। इस युद्ध में गब्बर सिंह नेगी ने अद्वितीय साहस दिखाया और वीरगति को प्राप्त हुए। द्वितीय विश्व युद्ध में भी गढ़वाल राइफल्स ने अपने वीरता का लोहा मनवाया और कई निर्णायक युद्धों में अहम भूमिका निभाई।

अन्य युद्ध और अभियान:
1962 के भारत-चीन युद्ध, 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्ध, 1987-88 में ऑपरेशन पवन, और 1999 के कारगिल युद्ध में गढ़वाल राइफल्स ने दुश्मनों को खदेड़ कर अपनी वीरता सिद्ध की। इन युद्धों में गढ़वाल राइफल्स के जवानों ने दुश्मनों के सामने अडिग रहकर देश की सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

गढ़वाल राइफल्स की बटालियनों का गठन:
नीचे गढ़वाल राइफल्स की बटालियनों का गठन और उनके स्थापनाकाल की जानकारी दी गई है:

  1. प्रथम गढ़वाल राइफल्स – 5 मई 1887 (अल्मोड़ा) और 4 नवंबर 1887 (लैंसडाउन)
  2. द्वितीय गढ़वाल राइफल्स – 1 मार्च 1901 (लैंसडाउन)
  3. तृतीय गढ़वाल राइफल्स – 20 अगस्त 1916 (लैंसडाउन)
  4. चौथी गढ़वाल राइफल्स – 28 अगस्त 1918 (लैंसडाउन)
  5. पांचवी गढ़वाल राइफल्स – 1 फरवरी 1941 (लैंसडाउन)
  6. छठवीं गढ़वाल राइफल्स – 15 सितंबर 1941 (लैंसडाउन)
  7. सातवीं गढ़वाल राइफल्स – 1 जुलाई 1942 (लैंसडाउन)
  8. आठवीं गढ़वाल राइफल्स – 1 जुलाई 1948 (लैंसडाउन)
  9. नौवी गढ़वाल राइफल्स – 1 जनवरी 1965 (कोटद्वार)
  10. दसवीं गढ़वाल राइफल्स – 15 अक्टूबर 1965 (कोटद्वार)
  11. ग्याहवीं गढ़वाल राइफल्स – 1 जनवरी 1967 (बैंगलौर)
  12. बारहवीं गढ़वाल राइफल्स – 1 जून 1971 (लैंसडाउन)
  13. तेरहवीं गढ़वाल राइफल्स – 1 जनवरी 1976 (लैंसडाउन)
  14. चौदहवीं गढ़वाल राइफल्स – 1 सितंबर 1980 (कोटद्वार)
  15. सोलहवीं गढ़वाल राइफल्स – 1 मार्च 1981 (कोटद्वार)
  16. सत्रहवीं गढ़वाल राइफल्स – 1 मई 1982 (कोटद्वार)
  17. अठारहवीं गढ़वाल राइफल्स – 1 फरवरी 1985 (कोटद्वार)
  18. उन्नीसवीं गढ़वाल राइफल्स – 1 मई 1985 (कोटद्वार)

निष्कर्ष:

गढ़वाल राइफल्स की स्थापना से लेकर आज तक यह रेजीमेंट भारतीय सेना में साहस और बलिदान का प्रतीक बनी हुई है। गढ़वाल राइफल्स ने न केवल प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध में बल्कि कई अन्य संघर्षों में भी अपनी वीरता का प्रदर्शन किया है। उत्तराखंड की इस वीर रेजीमेंट ने हमेशा देश की सुरक्षा और सम्मान की रक्षा की है। गढ़वाल राइफल्स के इस 137वें स्थापना दिवस पर हमें उनके बलिदानों और अदम्य साहस को सलाम करना चाहिए।

Frequently Asked Questions (FAQs) 

  1. गढ़वाल राइफल्स का इतिहास क्या है?
    गढ़वाल राइफल्स की स्थापना 5 मई 1887 को अल्मोड़ा में हुई थी और बाद में उसी साल 4 नवंबर 1887 को लैंसडाउन में इसका मुख्यालय स्थापित किया गया। यह रेजीमेंट भारतीय सेना में अपने साहस और वीरता के लिए प्रसिद्ध है।

  2. गढ़वाल राइफल्स का युद्ध नारा क्या है?
    गढ़वाल राइफल्स का युद्ध नारा है "बद्री विशाल लाल की जय," जो भगवान बद्रीनाथ के प्रति गढ़वाली सैनिकों की आस्था और सम्मान को दर्शाता है।

  3. गढ़वाल राइफल्स की स्थापना के पीछे कौन थे?
    गढ़वाल राइफल्स की स्थापना में बलभद्र सिंह नेगी का महत्वपूर्ण योगदान था। उन्होंने कंधार युद्ध में अपनी वीरता का प्रदर्शन किया और गढ़वाली सैनिकों की एक अलग बटालियन बनाने की सिफारिश की।

  4. गढ़वाल राइफल्स का मुख्यालय कहाँ स्थित है?
    गढ़वाल राइफल्स का मुख्यालय उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में लैंसडाउन में स्थित है। यह स्थान भारतीय सेना के गढ़वाल रेजिमेंट सेंटर के रूप में जाना जाता है।

  5. गढ़वाल राइफल्स ने कौन-कौन से युद्धों में भाग लिया है?
    गढ़वाल राइफल्स ने प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध, भारत-चीन युद्ध (1962), भारत-पाक युद्ध (1965, 1971), ऑपरेशन पवन (1987-88), और कारगिल युद्ध (1999) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

  6. गढ़वाल राइफल्स की बटालियनों का गठन कब हुआ था?
    गढ़वाल राइफल्स की प्रथम बटालियन की स्थापना 5 मई 1887 को हुई थी और अन्य बटालियनों का गठन अलग-अलग समय पर किया गया, जैसे कि द्वितीय बटालियन 1 मार्च 1901 को और अंतिम उन्नीसवीं बटालियन 1 मई 1985 को स्थापित हुई।

  7. गढ़वाल राइफल्स के प्रतीक चिन्ह (बाज) का क्या महत्व है?
    गढ़वाल राइफल्स के प्रतीक चिन्ह के रूप में बाज का उपयोग होता है, जो उनकी शक्ति, साहस और शुभ संकेत का प्रतीक है। बैज में 'द गढ़वाल राइफल्स रेजिमेंट' अंकित होता है।

  8. गढ़वाल राइफल्स का भारत की सेना में क्या योगदान है?
    गढ़वाल राइफल्स ने भारतीय सेना में अपने अद्वितीय युद्ध कौशल और बलिदान से अमूल्य योगदान दिया है, जिसने देश की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

  9. लैंसडाउन का नाम कैसे पड़ा?
    लैंसडाउन का नाम भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड हेनरी लैंसडाउन के नाम पर 1890 में रखा गया था। इससे पहले इसे कालूडांडा कहा जाता था।

  10. गढ़वाल राइफल्स को अलग पहचान कब मिली?
    1891 में गोरखा बटालियन की खुखरी हटाकर गढ़वाल राइफल्स को एक अलग प्रतीक चिन्ह (फोनिक्स बाज) दिया गया, जिससे गढ़वाली सैनिकों को एक अलग पहचान मिली।

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