देशभक्त मोहन जोशी: एक स्वतंत्रता सेनानी की प्रेरणादायक कहानी - Patriot Mohan Joshi: The Inspirational Story of a Freedom Fighter
देशभक्त मोहन जोशी: एक स्वतंत्रता सेनानी की प्रेरणादायक कहानी
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
देशभक्त मोहन जोशी का जन्म 1 फरवरी 1896 को अल्मोड़ा में हुआ। उनके पिता, जयदत्त जोशी, सरकारी खजाने में लिपिक थे और बाद में पादरी बने। मोहन जोशी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा के साथ-साथ बी.ए. की डिग्री भी प्राप्त की। बचपन से ही, उन्होंने "किरिश्चन फ्रेंड एसोसियेशन" और "क्रिश्चियन यंग पीपल सोसाइटी" की स्थापना की, जो उनकी सामाजिक और राजनीतिक चेतना का परिचायक था।
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
मोहन जोशी की गांधीवादी विचारधारा से प्रेरणा ने उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए प्रेरित किया। 1916 में, उन्होंने कुमाऊ परिषद की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान दिया और 1921 में "शक्ति पत्रिका" का संपादन भी किया। 1925 में उन्हें अल्मोड़ा जिला बोर्ड का अध्यक्ष बनाया गया, जहां उन्होंने खाद्य विभाग और काष्ठ कला विभाग की स्थापना की।
स्वराज मंदिर की स्थापना
22 जून 1929 को मोहन जोशी ने गांधी जी के हाथों स्वराज मंदिर का शिलान्यास करवाया। गांधी जी ने अपनी पुस्तक "यंग इंडिया" में मोहन जोशी को ईसाई समाज का उत्कृष्ट पुष्प कहकर संबोधित किया। इस समय तक, मोहन जोशी स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख नेता के रूप में उभर चुके थे।
क्रांतिकारी गतिविधियाँ
1924 में बागेश्वर मेले में दिए गए मोहन जोशी के प्रेरक भाषण ने ब्रिटिश हुकूमत की नींद उड़ा दी। उन्हें गिरफ्तार करने के लिए 250 सशस्त्र पुलिस बल की मदद लेनी पड़ी और उन्हें तीन साल के सश्रम कारावास की सजा मिली।
महात्मा गांधी की प्रेरणा
मोहन जोशी की सक्रियता से प्रभावित होकर महात्मा गांधी ने 1929 में अल्मोड़ा की यात्रा की और मोहन जोशी को बागेश्वर ले गए, जहां उन्होंने स्वराज आश्रम की स्थापना की।
क्रिश्चियन नेशनलिस्ट का प्रकाशन
मोहन जोशी ने प्रयाग से "क्रिश्चयन नेशनलिस्ट" नामक अंग्रेजी साप्ताहिक की शुरुआत की, जिससे वे ईसाई समाज को जागृत करने के लिए प्रतिबद्ध हो गए।
अल्मोड़ा में तिरंगा फहराना
1930 में, मोहन जोशी ने अल्मोड़ा नगर पालिका (वर्तमान महिला चिकित्सालय) में तिरंगा फहराने का साहसिक कार्य किया। 75 से अधिक गोरखा सिपाही लाठियां और मशीनगन लेकर तैनात थे, लेकिन मोहन जोशी ने तिरंगा नहीं छोड़ा और अद्भुत साहस का परिचय दिया।
अंतिम समय
बीमारी के बावजूद, मोहन जोशी को 1932 में बागेश्वर में धारा 144 तोड़ने और सरकार के खिलाफ भाषण देने के आरोप में गिरफ्तार किया गया। उन्हें छह माह की जेल और 100 रुपए का अर्थ दंड मिला। स्वतंत्रता संग्राम के लिए संघर्ष करते हुए, उन्होंने 4 अक्टूबर 1940 को अंतिम सांस ली।
निष्कर्ष
मोहन जोशी की जीवन यात्रा और उनके योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अमर रहेंगे। उनकी साहसिकता, समर्पण, और बलिदान ने उन्हें भारतीय स्वतंत्रता सेनानी के रूप में स्थापित किया।
इस लेख को पढ़कर आप मोहन जोशी के जीवन और उनके योगदान के बारे में अधिक जान सकते हैं और उनके प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित कर सकते हैं
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देशभक्त मोहन जोशी पर पूछे जाने वाले सवाल और उनके उत्तर
मोहन जोशी का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
- मोहन जोशी का जन्म 1 फरवरी 1896 को अल्मोड़ा में हुआ था।
मोहन जोशी के पिता का नाम क्या था?
- मोहन जोशी के पिता का नाम जयदत्त जोशी था।
मोहन जोशी की प्रारंभिक शिक्षा क्या थी?
- मोहन जोशी ने बी.ए. तक की शिक्षा प्राप्त की थी।
मोहन जोशी ने किस विचारधारा से प्रेरित होकर कार्य किया?
- मोहन जोशी गांधीवादी विचारधारा से अत्यंत प्रेरित थे।
1916 में मोहन जोशी की कौन सी महत्वपूर्ण भूमिका थी?
- 1916 में मोहन जोशी ने कुमाऊ परिषद की स्थापना में अहम भूमिका निभाई थी।
मोहन जोशी ने 1921 में कौन सी पत्रिका का संपादन किया?
- मोहन जोशी ने 1921 में "शक्ति पत्रिका" का संपादन किया था।
मोहन जोशी को 1925 में कौन सा पद सौंपा गया था?
- 1925 में मोहन जोशी को अल्मोड़ा जिला बोर्ड का अध्यक्ष बनाया गया था।
स्वराज मंदिर की स्थापना किसने की और इसका शिलान्यास किसने किया?
- स्वराज मंदिर की स्थापना मोहन जोशी ने की थी और इसका शिलान्यास गांधी जी ने किया था।
मोहन जोशी ने "स्वाधीन प्रजा" नामक पत्रिका कब प्रारंभ की?
- मोहन जोशी ने 1930 में "स्वाधीन प्रजा" नामक पत्रिका प्रारंभ की।
मोहन जोशी ने बागेश्वर मेले में किस प्रकार के भाषण दिए और इसका परिणाम क्या हुआ?
- मोहन जोशी ने बागेश्वर मेले में प्रेरणादायक भाषण दिए, जिससे ब्रिटिश हुकूमत की नींद उड़ी और उन्हें तीन साल का सश्रम कारावास मिला।
महात्मा गांधी मोहन जोशी से प्रभावित होकर कब अल्मोड़ा आए?
- महात्मा गांधी 1929 में मोहन जोशी से प्रभावित होकर अल्मोड़ा आए।
मोहन जोशी का असली नाम क्या था और उन्होंने इसे क्यों बदला?
- मोहन जोशी का असली नाम विक्टर जोजफ जोशी था, जिसे उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने से पहले बदलकर मोहन जोशी कर दिया।
मोहन जोशी ने 1930 में अल्मोड़ा नगर पालिका पर क्या किया?
- मोहन जोशी ने 1930 में अल्मोड़ा नगर पालिका पर तिरंगा फहराया और इसके लिए अद्भुत साहस का परिचय दिया।
मोहन जोशी की अंतिम सांस कब और कहाँ आई?
- मोहन जोशी ने 4 अक्टूबर 1940 को अंतिम सांस ली
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