माँ तारा देवी मंदिर Maa Tara Devi Temple (Tara Devi Temple तारा देवी टेंपल )

Tara Devi Temple (तारा देवी टेंपल)  माँ भगवती तारा देवी मंदिर - शिमला

माँ तारा देवी मंदिर
स्थान:  तारा देवी पहाड़ी पर स्थित यह मंदिर शिमला से 10 किमी की दूरी पर स्थित है। "मां भगवती तारा देवी" मंदिर शिमला से लगभग 15 किलोमीटर दूर शिमला शहर के पश्चिमी भाग में तराव पर्वत पर शोघी के पास कालका-शिमला राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे स्थित है।

तारा देवी मन्दिर हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला से लगभग 13 कि.मी. की दूरी पर स्थित शोघी में है। देवी तारा को समर्पित यह मंदिर, तारा पर्वत या पहाड़ पर बना हुआ है। तिब्‍बती बौद्ध धर्म के लिए भी हिन्दू धर्म की देवी तारा का काफ़ी महत्‍व है, जिन्‍हें देवी दुर्गा की नौ बहनों में से नौवीं कहा गया है।
माँ तारा देवी मंदिर

माँ तारा देवी मंदिर इतिहास

यह मंदिर लगभग 250 वर्ष पुराना है, जिसकी स्‍थापना पश्चिम बंगाल के सेन वंश के एक राजा ने करवाई थी। मंदिर में स्थापित देवी की प्रतिमा लकड़ी की बनी हुई है। शरद नवरात्रि को यहाँ विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। ढाई सौ वर्ष पुराने इस मंदिर में तारा देवी की लकड़ी से बनी प्रतिमा बहुत सुन्दर और आकर्षित करने वाली है। यहाँ हर साल शारदीय नवरात्र पर अष्टमी के दिन माँ तारा की पूजा की जाती है। साथ ही मेले का भी आयोजन किया जाता है, जिसमें कुश्ती अहम हिस्सा है। मन्दिर से शोघी का ख़ूबसूरत नज़ारा देखने लायक़ होता है। प्रत्येक वर्ष भारी संख्या में श्रद्धालु यहाँ दर्शन के लिए आते हैं।

माँ तारा देवी मंदिर कथा

ऐसा माना जाता है कि तारा देवी माँ क्योंथल रियासत के राजपरिवार की कुलदेवी थीं। क्योंथल रियासत का राजपरिवार सेन वंश का है। एक कथा के अनुसार- राजा भूपेंद्र सेन जुनबा से गाँव जुग्गर शिलगाँव के जंगल में आखेट करने निकले, जहाँ पर माँ भगवती तारा के सिंह की गर्जना झाड़ियों से राजा को सुनाई दी। फिर थोड़ी देर के बाद एक स्त्री की आवाज गूंजी- "राजन! मैं तुम्हारी कुलदेवी हूँ, जिसे तुम्हारे पूर्वज बंगाल में ही भूल से छोड़कर आए थे। राजन! तुम यहीं मेरा मंदिर बनवाकर मेरी तारा मूर्ति स्थापित करो। मैं तुम्हारे कुल एवं पूजा की रक्षा करूंगी।" राजा ने तत्काल ही गाँव जुग्गर में दृष्टांत वाली जगह पर मंदिर बनवाकर एवं चतुर्भुजा तारा मूर्ति बनवाकर विधिवत प्रतिष्ठा करवा दी, जिससे यह तारा देवी का उत्तर भारत का मूल स्थान बन गया। तारा भगवती के विपुल एवं रोमांचक तेज के आगे असावधानी होने से भी देवी कुपित हो जाती हैं। तारा देवी का मन्दिर मूल स्थान जुग्गर में काफ़ी पहले खण्डहर बन चुका था, जिसके पत्थर अवशेष मात्र ही शेष थे। नव मंदिर का निर्माण कार्य जयशिव सिंह चंदेल सहित अन्य श्रद्धालुओं ने तैयार करवाया।

माँ तारा देवी मंदिर मान्यता

पौराणिक एवं सिद्ध मान्यता है कि जब-जब तारा देवी मंदिर के आस-पास के गाँवों में महामारी चेचक, प्लेग, हैजा एवं पशुओं में खुररोग, मुँहरोग, मस्से आदि फैले, तब-तब यहाँ लोकाचार मन्नत पद्धति एवं अनुष्ठान से सारी विभूतियों से प्रभावित श्रद्धालुओं ने मुक्ति पाई है।

माँ तारा देवी मंदिर पौराणिक कथन

पौराणिक कथानुसार राजा चंद्रसेन को देवी ने स्वप्न में दर्शन दिए कि वह जुग्गर मंदिर के सामने ऊपर शिखर पर मेरा मंदिर बनाकर मूर्ति प्रतिष्ठित करें। राजा ने ताख पहाड़ के चलुसीया नाम के शिखर पर मंदिर बनवाकर मूर्ति प्रतिष्ठित कर दी। माँ तारा अंबा ने राजा को फिर स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि मेरी इच्छा जुग्गर के सामने दक्षिण दिशा में पर्वत शिखर पर मंदिर की थी और कहा कि राजन तेरे महल से जहाँ तक चीटियों की कतार लगी मिले, उस पर चलते जाना। जिस स्थान पर वह कतार समाप्त होगी, उसी शिखर पर्वत पर मेरा मंदिर बनाकर विगृह स्थापित करना।

प्रात:काल उठकर राजा ने महल के द्वार के पास से चीटियों की कतार देखी, जिसके साथ-साथ चलकर घने वृक्षों एवं झाड़ियों से होता हुआ वह ताख शिखर के पहाड़ी पर आनंदपुर की ओर से जा पहुँचा वहाँ पर चीटियों की कतार समाप्त देखकर उसने मंदिर निर्माण का कार्य आरंभ कर दिया। मंदिर निर्मित होने पर राजा ने काष्ठ विगृह तारा चर्तुभुज एवं अष्टभुज रूप में स्थापित करवा दिया। तत्पश्चात् मूल धानुनिर्मित मूर्ति जुग्गर से विधि विधान सहित ले जाकर तारा देवी मंदिर में स्थापित कर दी। वर्तमान में भी तारा देवी मंदिर में भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है एवं हिमाचल प्रदेश सहित देश के श्रद्धालु एवं पर्यटक नवरात्रों में विशेष तौर पर दर्शनों के लिए माँ के दरबार में पहुँचते हैं। नवरात्रों के मौके पर माँ भगवती का पाठ एवं भंडारे का आयोजन भी किया जाता है। शिमला की जनता का मां तारा देवी पर गहरा विश्वास है। नवरात्रों में काफ़ी संख्या में भक्तजन माँ के दर्शन कर माँ का आशीर्वाद पाते हैं।

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नाम: माँ तारा देवी मंदिर

स्थान:

तारा देवी पहाड़ी पर स्थित यह मंदिर शिमला से 10 किमी की दूरी पर स्थित है। "मां भगवती तारा देवी" मंदिर शिमला से लगभग 15 किलोमीटर दूर शिमला शहर के पश्चिमी भाग में तराव पर्वत पर शोघी के पास कालका-शिमला राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे स्थित है।

किंवदंती:

इस मंदिर का इतिहास लगभग 250 वर्ष पुराना है जब यह मंदिर यहां बनाया गया था। ऐसी मान्यता है कि देवी तारा को पूर्वी राज्य बंगाल से हिमाचल प्रदेश लाया गया था। सैकड़ों वर्ष पहले सेन राजवंश के एक राजा ने इस क्षेत्र का दौरा किया था। यह राजा अपने पारिवारिक देवता को एक छोटी सी सोने की मूर्ति के रूप में एक लॉकेट में बंद करके लाया था, जिसे वह हमेशा अपनी ऊपरी भुजा के चारों ओर पहनता था।

कई वर्षों तक मूर्ति बंद रही लेकिन सेन राजवंश की 96वीं पीढ़ी में, राजा भूपेन्द्र सेन को एक दिन वर्तमान मंदिर के पास जुग्गर के घने जंगल में शिकार करते समय एक असामान्य अनुभव हुआ, जहां उन्हें अपने पवित्र परिवार के देवता के दर्शन हुए। देवी: "माँ तारा" अपने द्वारपाल भैरव और हनुमान जी के साथ, जिन्होंने लोगों के सामने प्रकट होने की तीव्र इच्छा व्यक्त की। राजा ने तुरंत माँ तारा के नाम पर 50 बीघे ज़मीन दान कर दी और वहाँ एक मंदिर का निर्माण करवाया, जिसमें वैष्णव परंपराओं के अनुसार देवी की एक लकड़ी की मूर्ति स्थापित की गई।

बाद में उसी राजवंश के राजा बलबीर सेन को एक सपना आया जिसमें देवी ने ताराव पर्वत की पहाड़ी चोटी पर स्थापित होने की इच्छा व्यक्त की । राजा ने अपने एक पंडित, जिनका नाम भवानी दत्त था, की सलाह पर अपनी राजधानी जुंगा में एक गुसानवु कारीगर से 'अष्टधातु' से बनी एक सुंदर मूर्ति तैयार करवाई और उसे 'शंकर' नामक हाथी पर रखवाकर विक्रमी युग में स्थापित करवाया। 1825 में ताराव पर्वत की पहाड़ी चोटी पर, जहां यह आज भी पूरी महिमा और भव्यता के साथ खड़ा है। तत्कालीन क्योंथल राज्य के सेन राजवंश आज तक शारदीय नवरात्र के दौरान अष्टमी पर अपनी कुल देवी मां तारा की पूजा करने की सदियों पुरानी परंपरा को निभा रहे हैं।

विवरण:

यह मंदिर देवी तारा को समर्पित है। मंदिर में सामान्य दिनों के अलावा, नवरात्र के दौरान देश के सभी हिस्सों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। मीठी महक वाले देवदार के जंगलों और हरे-भरे घास के मैदानों के बीच से ऊपर की ओर घूमती हुई ठंडी हवा के झोंके इस पवित्र मंदिर में आने वाले भक्तों, तीर्थयात्रियों और पर्यटकों में ताजगी और जोश का संचार करते हैं।

पहाड़ी की चोटी पर मंदिर के स्थान से ऐसा प्रतीत होता है कि देवी माँ तारा देवी अपने उपासकों पर असंख्य आशीर्वाद बरसाकर सभी को सुरक्षात्मक दृष्टि से रखती हैं।

त्यौहार:


माँ तारा देवी मंदिर


तारा देवी मंदिर की पूजा विधि विभिन्न रूपों में की जा सकती है, लेकिन निम्नलिखित एक सामान्य पूजा विधि 

  1. पूजा का आरंभ: पूजा का आरंभ गणेश जी की पूजा से होता है। आप गणेश चतुर्थी या शुक्ल पक्ष की पंचमी जैसे शुभ मुहूर्त पर गणेश जी को पूज सकते हैं। गणेश जी को लाल रंग के फूल, मोदक, दूर्वा, रोली, चावल, धूप, दीप, और नैवेद्य देकर पूजें।
  2. ध्यान और प्रार्थना: आप तारा देवी का ध्यान करें और उनसे मानसिक रूप से संवाद करें। उन्हें प्रार्थना करें कि वे आपके सभी कष्टों को हरें और आपको शक्ति और सुख प्रदान करें।
  3. शुद्धि करें: पूजा करने से पहले अपने आप को शुद्ध करें। स्नान करें और विशेष ध्यान दें कि आपके मन में किसी भी बुरे विचार या दोष की कोई उपस्थिति न हो।
  4. अङ्कुरित बीज: पूजा के लिए तारा देवी के अङ्कुरित बीज का उपयोग करें। इसे भूमि में बोएं और धार्मिकता से पाले जाएं।
  5. पूजा सामग्री: तारा देवी की पूजा के लिए पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य (मिठाई और फल), अगरबत्ती आदि की आवश्यकता होती है। इन सामग्री को ध्यानपूर्वक और शुद्ध रखें।
  6. आरती: तारा देवी को आरती दें। आप उन्हें प्रदक्षिणा करें और आरती करें। आरती के दौरान धूप और दीप उठाएं और आरती गाएं।
  7. प्रसाद: पूजा के बाद तारा देवी को मिठाई और फल के रूप में प्रसाद चढ़ाएं। यह प्रसाद फिर आप और आपके परिवार के सभी सदस्यों को बांट दें।
इस तरह से, तारा देवी की पूजा की विधि को सम्पन्न करें और उनके चरणों में अपने मन को समर्पित करें। भक्ति और श्रद्धा से किया गया यह आदर्श पूजन आपको तारा देवी की कृपा प्राप्त करने में सहायता करेगा।

 15 महत्वपूर्ण तथ्य जो तारा देवी मंदिर से संबंधित 

  1. तारा देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश के शिमला जिले में स्थित है।
  2. यह मंदिर लगभग 250 साल पुराना है और इसका निर्माण प्राचीन काल में किया गया था।
  3. तारा देवी को दुर्गा माँ का एक स्वरूप माना जाता है।
  4. मंदिर की स्थापना ब्राह्मण जगन्नाथ ने की थी जो भक्त और धार्मिक व्यक्ति थे।
  5. मंदिर के अंदर तारा देवी की मूर्ति स्थापित है, जिसे तारा माता के रूप में पूजा जाता है।
  6. तारा देवी मंदिर पर्वतीय इलाके में स्थित होने के कारण यहां का प्राकृतिक सौंदर्य देखने को मिलता है।
  7. यह मंदिर स्थानीय लोगों के लिए भक्ति और परंपरागत उत्सवों का सेंटर है।
  8. मंदिर में धार्मिक अनुष्ठान और पूजा द्वारा भक्तों को शक्ति और सुख प्राप्त होता है।
  9. तारा देवी मंदिर के चारों ओर अन्य धार्मिक स्थल और शिव मंदिर भी स्थित हैं।
  10. इस मंदिर में प्रतिदिन भक्तों द्वारा आरती और भजन किए जाते हैं।
  11. मंदिर में सफेद और लाल रंग के फूलों से सजावट की जाती है।
  12. तारा देवी को यहां प्रसाद के रूप में मिठाई और फल चढ़ाया जाता है।
  13. मंदिर के अध्यक्ष द्वारा विशेष पर्वों और त्योहारों में भक्तों का अच्छा व्यवहार किया जाता है।
  14. तारा देवी मंदिर के आस-पास अनेक पर्वतीय यात्रा मार्ग हैं, जो पर्वत प्रेमियों के लिए आकर्षक हैं।
  15. तारा देवी मंदिर का दर्शन स्थलीय और बाहरी पर्वतीय पर्यटकों के लिए एक प्रसिद्ध धार्मिक यात्रा स्थल है।
यह 15 महत्वपूर्ण तथ्य तारा देवी मंदिर के बारे में हैं जो इसे एक विशेष और महत्वपूर्ण स्थान बनाते हैं।


प्रत्येक वर्ष शारदीय नवरात्र की अष्टमी के दौरान मंदिर परिसर में एक मेला भी आयोजित किया जाता है। हर वर्ष कुश्ती इस मेले की पुरानी परंपरा है।

कैसे पहुँचें
यहाँ तक पहुँचने के लिए राजधानी शिमला से 7 कि.मी. व उसके बाद 5 कि.मी. पैदल तिरछे मार्ग से होकर जाना पड़ता है। मार्ग में बान, बाँस, काले भोंरे, देवदार के घने जंगल आदि आते हैं। दूसरा मार्ग शिमला से तारा देवी मंदिर तक 18 कि.मी. सड़क द्वारा है। यहाँ पहुँच कर चारों ओर का दृश्य देखते ही बनता है।

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