बगलामुखी मंदिर(Mata Baglamukhi Temple Bankhandi)
बगलामुखी माताबगलामुखी या बागला हिंदू धर्म में 10 महाविद्यायों में से एक है। बगलामुखी देवी अपने भक्तों की गलतफहमी और भ्रम (या भक्त के दुश्मन) को अपने खडग से दूर करती है। इसके अलावा उत्तर भारत में इन्हें पितम्बारा माँ के नाम से भी बुलाया जाता है। कांगड़ा के निकट कोटला किले के द्वार पर बगलामुखी का मंदिर स्थित है। यह माना जाता है कि बगलामुखी मंदिर में हवन करवाने का विशेष महत्व है,
Mata Baglamukhi Temple Bankhandi |
जिससे कष्टों का निवारण होने के साथ-साथ शत्रु भय से भी मुक्ति मिलती है। द्रोणाचार्य, रावण, मेघनाद इत्यादि सभी महायोद्धाओं द्वारा माता बगलामुखी की आराधना करके अनेक युद्ध लड़े गए। नगरकोट के महाराजा संसार चंद कटोच भी प्राय: इस मंदिर में आकर माता बगलामुखी की आराधना किया करते थे, जिनके आशीर्वाद से उन्होंने कई युद्धों में विजय पाई थी। तभी से इस मंदिर में अपने कष्टों के निवारण के लिए श्रद्धालुओं का निरंतर आना आरंभ हुआ और श्रद्धालु नवग्रह शांति, ऋद्धि-सिद्धि प्राप्ति सर्व कष्टों के निवारण के लिए मंदिर में हवन-पाठ करवाते हैं।
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महाविद्या मां बगलामुखी जी की शरण में आने वाले भक्तों के जीवन में कोई भी समस्याएं शेष नहीं रह जातीं ।
माँ बगलामुखी मंदिर कांगड़ा जिले का एक प्रमुख धार्मिक पर्यटन स्थल है। पौराणिक कथाओं में देवी बगलामुखी को 10 महाविद्याओं में से एक माना जाता है, जिनकी पूजा शत्रुओं पर विजय पाने के लिए की जाती है। बगलामुखी मंदिर, हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जनपद में ज्वालामुखी से करीब 22 किलोमीटर दूर बनखंडी कस्बे में स्थित प्रसिद्ध शक्तिपीठ है। बगलामुखी माता का यह प्राचीन मंदिर लाखों लोगों की आस्था का केंद्र है। यह माना जाता है कि इस मंदिर की स्थापना द्वापर युग में पांडवों द्वारा अज्ञातवास के दौरान एक ही रात में की गई थी।
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कहा जाता है कि माता पीतवर्ण के वस्त्र, पीत आभूषण तथा पीले रंग के पुष्पों की ही माला धारण करती हैं। ‘बगलामुखी जयंती’ पर यहां मेले का आयोजन भी किया जाता है। वर्षभर देश-प्रदेश से लोग यहां आकर अपने कष्टों के निवारण के लिए हवन, पूजा-पाठ करवाकर माता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
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- विवरण यह 'बगलामुखी मंदिर' कोटला क़स्बा, कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) में स्थित प्रसिद्ध शक्तिपीठ है। यह मंदिर हिन्दू धर्म के लाखों लोगों की आस्था का केन्द्र है।
- राज्य हिमाचल प्रदेश
- ज़िला कांगड़ा
- निर्माता माना जाता है कि मंदिर की स्थापना द्वापर युग में पांडवों द्वारा अज्ञातवास के दौरान एक ही रात में की गई थी।
- भौगोलिक स्थिति मंदिर ज्वालामुखी से 22 किलोमीटर दूर 'वनखंडी' नामक स्थान पर स्थित है।
- संबंधित लेख बगलामुखी मंदिर, हिमाचल प्रदेश, कांगड़ा
- विशेष यहाँ प्राचीन शिवालय में आदमकद शिवलिंग स्थापित है, जहाँ लोग माता के दर्शन के उपरांत शिवलिंग पर अभिषेक करते हैं।
- अन्य जानकारी यहाँ प्रतिवर्ष 'बगलामुखी जयंती' पर मेले का आयोजन भी किया जाता है, जिसमें विभिन्न राज्यों से आये लोग सम्मिलित होते हैं।
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बगलामुखी मंदिर
बगलामुखी मंदिर हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा जनपद के कोटला क़स्बा में स्थित प्रसिद्ध शक्तिपीठ है। यह मंदिर हिन्दू धर्म के लाखों लोगों की आस्था का केन्द्र है। बगुलामुखी का यह मंदिर महाभारत कालीन माना जाता है। पांडुलिपियों में माँ के जिस स्वरूप का वर्णन है, माँ उसी स्वरूप में यहाँ विराजमान हैं। ये पीतवर्ण के वस्त्र, पीत आभूषण तथा पीले रंग के पुष्पों की ही माला धारण करती हैं। 'बगलामुखी जयंती' पर यहाँ मेले का आयोजन भी किया जाता है। 'बगलामुखी जयंती' पर हर वर्ष हिमाचल प्रदेश के अतिरिक्त देश के विभिन्न राज्यों से लोग आकर अपने कष्टों के निवारण के लिए हवन, पूजा-पाठ करवाकर माता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
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बगलामुखी मंदिर स्थिति
हिमाचल प्रदेश देवताओं व ऋषि-मुनियों की तपोस्थली रहा है। कांगड़ा जनपद के कोटला क़स्बे में स्थित माँ श्री बगलामुखी का सिद्ध शक्तिपीठ है। वर्ष भर यहाँ श्रद्धालु मन्नत माँगने व मनोरथ पूर्ण होने पर आते-जाते रहते हैं। माँ बगलामुखी का मंदिर ज्वालामुखी से 22 किलोमीटर दूर 'वनखंडी' नामक स्थान पर स्थित है। मंदिर का नाम 'श्री 1008 बगलामुखी वनखंडी मंदिर' है। राष्ट्रीय राजमार्ग पर कांगड़ा हवाईअड्डे से पठानकोट की ओर 25 किलोमीटर दूर कोटला क़स्बे में पहाड़ी पर स्थित इस मंदिर के चारों ओर घना जंगल व दरिया है। यह मंदिर प्राचीन कोटला क़िले के अंदर स्थित है।
बगलामुखी मंदिर इतिहास
यह माना जाता है कि इस मंदिर की स्थापना द्वापर युग में पांडवों द्वारा अज्ञातवास के दौरान एक ही रात में की गई थी, जिसमें सर्वप्रथम अर्जुन एवं भीम द्वारा युद्ध में शक्ति प्राप्त करने तथा माता बगलामुखी की कृपा पाने के लिए विशेष पूजा की गई थी। कालांतर से ही यह मंदिर लोगों की आस्था व श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है। वर्ष भर असंख्य श्रद्धालु, जो ज्वालामुखी, चिंतापूर्णी, नगरकोट इत्यादि के दर्शन के लिए आते हैं, वे सभी इस मंदिर में आकर माता का आशीर्वाद भी प्राप्त करते हैं। इसके अतिरिक्त मंदिर के साथ प्राचीन शिवालय में आदमकद शिवलिंग स्थापित है, जहाँ लोग माता के दर्शन के उपरांत शिवलिंग पर अभिषेक करते हैं।
बगलामुखी मंदिर प्रथम आराधना
माता बगलामुखी का दस महाविद्याओं में 8वाँ स्थान है तथा इस देवी की आराधना विशेषकर शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए की जाती है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार माता बगलामुखी की आराधना सर्वप्रथम ब्रह्मा एवं विष्णु ने की थी। इसके उपरांत परशुराम ने माता बगलामुखी की आराधना करके अनेक युद्धों में शत्रुओं को परास्त करके विजय पाई थी।
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बगलामुखी मंदिर महत्व
बगलामुखी जयंती पर मंदिर में हवन करवाने का विशेष महत्व है, जिससे कष्टों का निवारण होने के साथ-साथ शत्रु भय से भी मुक्ति मिलती है। द्रोणाचार्य, रावण, मेघनाद इत्यादि सभी महायोद्धाओं द्वारा माता बगलामुखी की आराधना करके अनेक युद्ध लड़े गए। नगरकोट के महाराजा संसार चंद कटोच भी प्राय: इस मंदिर में आकर माता बगलामुखी की आराधना किया करते थे, जिनके आशीर्वाद से उन्होंने कई युद्धों में विजय पाई थी। तभी से इस मंदिर में अपने कष्टों के निवारण के लिए श्रद्धालुओं का निरंतर आना आरंभ हुआ और श्रद्धालु नवग्रह शांति, ऋद्धि-सिद्धि प्राप्ति सर्व कष्टों के निवारण के लिए मंदिर में हवन-पाठ करवाते हैं।
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पौराणिक कथाओं में मां बगलामुखी का महत्व: इस पूरी सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा का ग्रंथ जब एक राक्षस ने चुरा लिया और पाताल में छिप गया तब उसके वध के लिए मां बगलामुखी की उत्पत्ति हुई। पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान मां का मंदिर बनाया और पूजा अर्चना की। पहले रावण और उसके बाद लंका पर जीत के लिए श्रीराम ने शत्रुनाशिनी मां बगला की पूजा की और वियज पाई।
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- मां बगलामुखी को पीतांबरी भी कहा जाता है। इस कारण मां के वस्त्र, प्रसाद, मौली और आसन से लेकर हर कुछ पीला ही होता है। मान्यता है कि युद्ध हो या राजनीति या फिर कोर्ट-कचहरी के विवाद, मां के मंदिर में यज्ञ कर हर कोई मन वांछित फल पाता है
- मान्यता तो ये भी है कि महाभारत काल में यहीं से पांडवों को विजय श्री का वरदान प्राप्त हुआ था। कहा जाता है कि महाभारत काल में पांडव जब विपत्ति में थे तब भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें मां बगलामुखी के इस स्थान की उपासना करने करने के लिए कहा था। उस समय मां की मूर्ति एक चबूतरे पर विराजमान थी। मान्यता है कि पांडवों ने इस त्रिगुण शक्ति स्वरूपा की आराधना कर विपत्तियों से मुक्ति पाई और अपना खोया हुआ राज्य वापस पा लिया।
- ऐसी मान्यता है कि सिद्धिदात्री मां बगलामुखी के दाएं ओर धनदायिनी महालक्ष्मी और बाएं ओर विद्यादायिनी महासरस्वती विराजमान हैं। कहा जाता है कि मां बगलामुखी की पावन मूर्ति विश्व में केवल तीन स्थानों पर विराजित है। एक नेपाल में दूसरी मध्य प्रदेश के दतिया में और एक नलखेड़ा में। कहा जाता है कि नेपाल और दतिया में श्री श्री 1008 आद्या शंकराचार्य जी द्वारा मां की प्रतिमा स्थापित की गयी, जबकि नलखेड़ा में इस स्थान पर मां बगलामुखी पीताम्बर रूप में शाश्वत काल से विराजित है।
- नवरात्रि के दिनों में माहौल भक्तिभय हो जाता है। जगह-जगह मंदिरों में लंबी कतारे लग जाती हैं, लोग माता के दर्शन कर उनका आर्शीवाद लेना चाहते हैं। नवरात्रि के इस पावन अवसर पर आज हम आपको नलखेड़ा में स्थित प्रसिद्ध शक्तिपीठ मां बगलामुखी मंदिर के बारे में बताएंगे। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में दर्शन करने से भक्तों के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। जानिए बगलामुखी मंदिर से जुड़ी ऐसी बातें, जो शायद आप नहीं जानते होंगे।
- मान्यता है कि मां बगलामुखी की उपासना और साधना से माता वैष्णोदेवी और मां हरसिद्धि के समान ही साधक को शक्ति के साथ धन और विद्या प्राप्त होती है। कहा जाता है कि सोने जैसे पीले रंग वाली, चांदी के जैसे सफेद फूलों की माला धारण करने वाली और चंद्रमा के समान संसार को प्रसन्न करने वाली इस त्रिशक्ति का देवीय स्वरूप हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करता है।
- अब बात करते हैं तीन मुख वाली मां बगलामुखी मंदिर के बारे में। कहा जाता है कि ये मंदिर उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर से 100 किलोमीटर दूर ईशान कोण में आगर मालवा जिला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर दूर नलखेड़ा में लखुन्दर नदी के तट पर पूर्वी दिशा में विराजमान है।
- अहम बात ये है कि मां बगलामुखी की इस चमत्कारी मूर्ति की स्थापना का कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं मिला है। मान्यता है कि ये मूर्ति स्वयं सिद्ध स्थापित है। काल गणना के हिसाब से यह स्थान करीब पांच हजार साल से भी पहले से स्थापित है। बगलामुखी की यह प्रतिमा पीताम्बर स्वरूप की है। इसी कारण यहां पीले रंग की सामग्री चढ़ाई जाती है। जैसे कि पीला कपड़ा, पीली चूनरी, पीला प्रसाद और पीले फूल।
- इस मंदिर की पिछली दीवार पर पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए स्वास्तिक बनाने का भी प्रचलन है। भक्तों का मानना है कि मनोकामनाओं की पूर्ति यहां होती है। मंदिर परिसर में हवन कुंड है जिसमें आम और खास सभी भक्त अपनी आहुति देते हैं। अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए किए जाने वाले इस हवन में पीली सरसों, हल्दी, कमल गट्टा, तिल, जौ, घी, नारियल आदि का होम किया जाता है। मान्यता है कि माता के इस मंदिर में हवन करने से सफलता के अवसर दोगुने हो जाते है।
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