नगरकोट धाम कांगड़ा की माता ब्रजेश्वरी देवी का सर्वश्रेष्ठ स्थान(Shaktipeeth Shri Bajreshwari Devi Temple, Kangra Mandir)

 ब्रिजेश्वरी मंदिर Shri Bajreshwari Devi Temple

Bajreshwari Mata Temple, Kangra
  • वर्णन 'बृजेश्वरी देवी मंदिर' हिमाचल प्रदेश के प्रसिद्ध हिन्दू मंदिरों में से एक है। इस मंदिर को भी देवी के शक्तिपीठों में गिना जाता है। 
    Bajreshwari Mata Temple, Kangra
  • स्थान काँगड़ा, हिमाचल प्रदेश
  • संबंधित लेख शक्तिपीठ, सती
  • मान्यता माना जाता है कि इसी स्थान पर माता सती का 'दाहिना वक्ष' गिरा था और माता यहाँ शक्तिपीठ रूप में स्थापित हो गईं।
  • तीन पिण्डियाँ मंदिर के गर्भगृह में प्रतिष्ठित पहली और मुख्य पिण्डी 'मां बृजेश्वरी' की है। दूसरी 'मां भद्रकाली' और तीसरी और सबसे छोटी पिण्डी 'मां एकादशी' की है।
  • अन्य जानकारी एकादशी के दिन चावल का प्रयोग नहीं किया जाता है, लेकिन इस शक्तिपीठ में माँ एकादशी स्वयं मौजूद हैं, इसलिए यहां भोग में चावल ही चढ़ाया जाता है।
Bajreshwari Mata Temple, Kangra

ब्रजेश्वरी मंदिरबृजेश्वरी का मंदिर, भारत के हिमाचल प्रदेश कांगड़ा जिले के कांगड़ा जिले में नगरकोट में स्थित है और कांगड़ा के नजदीकी रेलवे स्टेशन से 11 किमी दूर है। कांगड़ा किला पास स्थित है। एक पौराणिक कथा कहती है कि देवी सती के बाद भगवान शिव के सम्मान में अपने पिता यज्ञ में बलिदान किया था। शिव ने अपने शरीर को अपने कंधे पर ले लिया और तांडव शुरू कर दिया। उसे विश्व को नष्ट करने से रोकने के लिए भगवान विष्णु ने अपने चक्र के साथ सती का शरीर 51 भागों में विभाजित किया। सती के बायां स्तन इस स्थान पर गिर गए, इस प्रकार यह एक शक्ति पीठ बना। मूल मंदिर महाभारत के समय पांडवों द्वारा बनाया गया था। किंवदंती कहते हैं कि एक दिन पांडवों ने अपने स्वप्न में देवी दुर्गा को देखा था जिसमें उन्होंने उन्हें बताया कि वह नागराकोत गांव में स्थित है और यदि वे चाहते हैं कि वे स्वयं को सुरक्षित रखें तो उन्हें उस क्षेत्र में उनके लिए मंदिर बनाना चाहिए अन्यथा वे नष्ट हो जाएंगे। उसी रात उन्होंने नगरकोट गांव में उनके लिए एक शानदार मंदिर बनाया। यह मंदिर मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा कई बार लूट लिया गया था। मोहम्मद गज्नेवी ने इस मंदिर को कम से कम 5 बार लूट लिया, अतीत में इसमें सोने का टन और शुद्ध चांदी से बनने वाले कई घंट थे। 1905 में मंदिर एक शक्तिशाली भूकंप से नष्ट हो गया और बाद में सरकार ने इसे फिर से बनाया।
Bajreshwari Mata Temple, Kangra

 ब्रिजेश्वरी मंदिर पौराणिक कथा

बृजेश्वरी देवी के धाम के बारे मे कहते हैं कि जब सती ने पिता के द्वारा किए गए शिव के अपमान से कुपित होकर अपने पिता राजा दक्ष के यज्ञ कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए, तब क्रोधित शिव उनकी मृत देह को लेकर पूरी सृष्टि में घूमे। शिव का क्रोध शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। शरीर के यह टुकड़े धरती पर जहां-जहां गिरे वह स्थान 'शक्तिपीठ' कहलाया। मान्यता है कि काँगड़ा के इस स्थान पर माता सती का दाहिना वक्ष गिरा था, इसलिए बृजेश्वरी शक्तिपीठ में माँ के वक्ष की पूजा होती है।

ब्रिजेश्वरी मंदिर ऐतिहासिक तथ्य

Bajreshwari Mata Temple, Kangra
कहा जाता है कि पहले यह मंदिर बहुत समृद्ध था। इसे बहुत बार विदेशी लुटेरों द्वारा लूटा गया। ग़ज़नवी शासक महमूद ने 1009 ई. में इस शहर को लूटा और मंदिर को नष्ट कर दिया। मस्जिद भी बना दी गई थी। मंदिर 1905 ई. में जोरदार भूकंप से पूरी तरह नष्ट हो गया था। 1920 में इसे दोबारा बनवाया गया।

ब्रिजेश्वरी मंदिर तीन धर्मों की आस्था का प्रतीक

माता बृजेश्वरी का यह शक्तिपीठ अपने आप में अनूठा और विशेष है, क्योंकि यहां मात्र हिन्दू भक्त ही शीश नहीं झुकाते, बल्कि मुस्लिम और सिक्ख धर्म के श्रद्धालु भी इस धाम में आकर अपनी आस्था के फूल चढ़ाते हैं। कहते हैं कि बृजेश्वरी देवी मंदिर के तीन गुंबद इन तीन धर्मों के प्रतीक हैं। पहला हिन्दू धर्म का प्रतीक है, जिसकी आकृति मंदिर जैसी है तो दूसरा मुस्लिम समाज का और तीसरा गुंबद सिक्ख संप्रदाय का प्रतीक है।

ब्रिजेश्वरी मंदिर माँ की पिण्डियाँ

तीन गुंबद वाले और तीन संप्रदायों की आस्था का केंद्र कहे जाने वाले माता के इस धाम में माँ की पिण्डियां भी तीन ही हैं। मंदिर के गर्भगृह में प्रतिष्ठित पहली और मुख्य पिण्डी माँ बृजेश्वरी की है। दूसरी माँ भद्रकाली और तीसरी और सबसे छोटी पिण्डी माँ एकादशी की है। माँ के इस शक्तिपीठ में ही उनके परम भक्त 'ध्यानु' ने अपना शीश अर्पित किया था। इसिलिए माँ के वे भक्त, जो ध्यानु के अनुयायी भी हैं, वे पीले रंग के वस्त्र धारण कर मंदिर में आते हैं और माँ का दर्शन पूजन कर स्वयं को धन्य करते हैं।

ब्रिजेश्वरी मंदिर मान्यता

Bajreshwari Mata Temple, Kangra

कहते हैं जो भी भक्त मन में सच्ची श्रद्धा लेकर माँ के इस दरबार में पहुंचता है, उसकी कोई भी मनोकामना अधूरी नहीं रहती। फिर चाहे मनचाहे जीवन साथी की कामना हो या फिर संतान प्राप्ति की लालसा। माँ अपने हर भक्त की मुराद पूरी करती हैं।

ब्रिजेश्वरी मंदिर आरती

मां के इस दरबार में पांच बार आरती का विधान है, जिसका गवाह बनने की इच्छा हर भक्त के मन में होती है। माँ बृजेश्वरी देवी के इस शक्तिपीठ में प्रतिदिन माँ की पांच बार आरती होती है। सुबह मंदिर के कपाट खुलते ही सबसे पहले माँ की शैय्या को उठाया जाता है। उसके बाद रात्रि के श्रृंगार में ही माँ की मंगला आरती की जाती है। मंगला आरती के बाद माँ का रात्रि श्रृंगार उतार कर उनकी तीनों पिण्डियों का जल, दूध, दही, घी और शहद के पंचामृत से अभिषेक किया जाता है। उसके बाद पीले चंदन से माँ का श्रृंगार कर उन्हें नए वस्त्र और सोने के आभूषण पहनाएं जाते हैं। प्रात: काल की आरती चना, पूरी, फल और मेवे का भोग लगाकर संपन्न होती है।
Bajreshwari Mata Temple, Kangra
दोपहर की आरती और भोग चढ़ाने की रस्म को यहाँ गुप्त रखा जाता है। दोपहर की आरती के लिए मंदिर के कपाट बंद रहते हैं, तब श्रद्धालु मंदिर परिसर में ही बने एक विशेष स्थान पर अपने बच्चों का मुंडन करवाते हैं। मान्यता है कि यहां बच्चों का मुंडन करवाने से माँ बच्चों के जीवन की समस्त आपदाओं को हर लेती हैं। मंदिर परिसर में ही भगवान भैरव का भी मंदिर है, लेकिन इस मंदिर में महिलाओं का जाना पूर्ण रूप से वर्जित हैं। यहां विराजे भगवान भैरव की मूर्ति बड़ी ही ख़ास है। कहते हैं, जब भी कांगड़ा पर कोई मुसीबत आने वाली होती है तो इस मूर्ति की आंखों से आंसू और शरीर से पसीना निकलने लगता है। तब मंदिर के पुरोहित विशाल हवन का आयोजन कर माँ से आने वाली आपदा को टालने का निवेदन करते हैं।

ब्रिजेश्वरी मंदिर भोग तथा प्रसाद

Bajreshwari Mata Temple, Kangra

दोपहर के बाद मंदिर के कपाट दोबारा भक्तों के लिए खोल दिए जाते हैं और भक्त माँ का आशीर्वाद लेने पहुंच जाते हैं। कहते हैं एकादशी के दिन चावल का प्रयोग नहीं किया जाता है, लेकिन इस शक्तिपीठ में माँ एकादशी स्वयं मौजूद हैं, इसलिए यहां भोग में चावल ही चढ़ाया जाता है। सूर्यास्त के बाद इन पिण्डियों को स्नान कराकर पंचामृत से इनका दोबारा अभिषेक किया जाता है। लाल चंदन, फूल व नए वस्त्र पहनाकर माँ का श्रृंगार किया जाता है और इसके साथ ही सांय काल आरती संपन्न होती है। शाम की आरती का भोग भक्तों में प्रसाद रूप में बांटा जाता है। रात को माँ की शयन आरती की जाती है, जब मंदिर के पुजारी माँ की शैय्या तैयार कर माँ की पूजा-अर्चना करते हैं।

ब्रजेश्वरी मंदिर में माता पिंडी रूप में विराजमान हैं। यहां माता का प्रसाद तीन भागों में विभाजति करके चढ़ाया जाता है। पहला प्रसदा महासरस्वती, दूसरा महालक्ष्मी और तीसरा महाकाली को चढ़ाकर भक्तों में बांटा जाता है। मंदिर के गर्भगृह में भी तीन पिंडी हैं, पहली मां ब्रजेश्वरी, दूसरी मां भद्रकाली और तीसरी सबसे छोटी पिंडी एकादशी की है।
सभी मनोकामनाएं होती हैं पूरी
Bajreshwari Mata Temple, Kangra
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, एकदाशी के दिन चावल का प्रयोग नहीं किया जाता लेकिन इस शक्तिपीठ में मां एकादशी स्वयं मौजूद हैं, इसलिए उनको प्रसाद के रूप में चावल ही चढ़ाया जाता है। कांगड़ा मां के दरबार में पांच बार आरती का विधान है। यहां बच्चों के मुंडन करवाने की भी व्यवस्था है। जो भी भक्त सच्चे मन से मां के दरबार में पूजा-उपासना करता है, उसकी सभी मनोकामना पूरी होती हैं।
तीन धर्मों के प्रतिक हैं तीन गुंबद
Bajreshwari Mata Temple, Kangra

ब्रजेश्वरी मंदिर में हिंदुओं और सिखों के अलावा मुस्लिम भी आस्था के फूल चढ़ाते हैं। मंदिर में मौजूद तीन गुंबद तीन धर्मों के प्रतीक हैं। पहला गुंबद हिंदू धर्म का है, जिसकी आकृति मंदिर जैसी है, दूसरा सिख संप्रदाय का और तीसरा गुंबद मुस्लिम समाज का प्रतीक है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, महिषासुर को मारने के बाद मां दुर्गा को कुछ चोटे आई थीं। उन चोटों को दूर करने के लिए देवी मां ने अपने शरीर पर मक्खन लगाया था। जिस दिन मां ने यह मक्खन लगाया था, उस दिन देवी की पिंडी को मक्खन से ढका जाता है और सप्ताह भर उत्सव मनाया जाता है।
भविष्य की घटनाओं के बारे में बता देता है मंदिर
मंदिर की खासियत यह है कि मंदिर भविष्य में होने वाली घटनाओं के बारे में भक्तों को पहले से ही आगह कर देता है। यहां आसपास में अगर कोई बड़ी समस्या आने वाली होती है तो भैरव बाबा की मूर्ति से आंसुओं का गिरना शुरू हो जाता है। तब मंदिर के पुजारी विशाल हवन का आयोजन कर मां से आपदा को टालने के लिए निवेदन करते हैं। भैरव बाबा के मंदिर में महिलाओं का जाना वर्जित है। बताया जाता है कि बाबा भैरव की मूर्ति पांच हजार साल पुरानी है। मंदिर के मुख्य द्वारा के आगे ध्यानु भगत की मूर्ति मौजूद है, जिन्होंने अकबर के समय में देवी को अपना सिर चढ़ाया था।
मंदिर को कई बार लूटा गया
इसके बाद 1337 में मुहम्मद बीन तुगलक और पांचवी शताब्दी में सिकंदर लोदी ने भी इस मंदिर को लूटकर तबाह कर दिया था। एकबार अकबर यहां आए थे और मंदिर के पुन: निर्माण में सहयोग भी किया था। फिर साल 1905 में भूंकप से मंदिर पूरी तरह नष्ट हो गया, जिसे सरकार द्वारा वर्तमान मंदिर को 1920 में दोबारा बनवाया गया।
पांडवों ने करवाया था मंदिर का निर्माण
Bajreshwari Mata Temple, Kangra
माना जाता है कि महाभारत काल में पांडवों ने इस मंदिर का निर्माण किया था। बताया जाता है कि पांडवों ने मां को सपने में बताया था कि वह कांगड़ा जिले में स्थित हैं। इसके बाद पांडवों ने मंदिर का निर्माण कराया। इस मंदिर को विदेशियों द्वारा भी काफी लूटा भी गया है। 1009 ईं में गजनवी शासक महमूद ने इस मंदिर को लूटकर नष्ट कर दिया था। बताया जाता है कि मोहम्मद गजनवी ने इस मंदिर को पांच बार लूटा था।
चमत्कारिक है मां ब्रजेश्वरी देवी का मंदिर, हर इच्छा होती है पूरी
51 शक्तिपीठों में से एक हिमाचल के कांगड़ा जिले में स्थित ब्रजेश्वरी देवी का मंदिर का प्रसिद्ध है। यहां माता भगवान शिव के रूप भैरव नाथ के साथ विराजमान हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यहां माता सती का दाहिना वक्ष गिरा था। मां का यह धाम नरगकोट के नाम से भी प्रसिद्ध है। इस मंदिर का वर्णन दुर्गा स्तुति में किया गया है। मंदिर के पास में ही बाण गंगा है, जिसमें स्नान करने का विशेष महत्व है। इस मंदिर में सालभर भक्त मां के दरबार में आकर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं लेकिन नवरात्र के दिनों मंदिर की शोभा देखने लायक होती है। मंदिर में आकर भक्त की हर तकलीफ दर्शन मात्र से दूर हो जाती है। आइए जानते हैं ब्रजेश्वरी मंदिर के बारे में कुछ अनसुनी बातें…

टिप्पणियाँ

उत्तराखंड के नायक और सांस्कृतिक धरोहर

उत्तराखंड के स्वतंत्रता सेनानी और उनका योगदान

उत्तराखंड के उन स्वतंत्रता सेनानियों की सूची और उनके योगदान, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई।

पहाड़ी कविता और शब्दकोश

उत्तराखंड की पारंपरिक पहाड़ी कविताएँ और शब्दों का संकलन, जो इस क्षेत्र की भाषा और संस्कृति को दर्शाते हैं।

गढ़वाल राइफल्स: एक गौरवशाली इतिहास

गढ़वाल राइफल्स के गौरवशाली इतिहास, योगदान और उत्तराखंड के वीर सैनिकों के बारे में जानकारी।

कुमाऊं रेजिमेंट: एक गौरवशाली इतिहास

कुमाऊँ रेजिमेंट भारतीय सेना की सबसे पुरानी और प्रतिष्ठित पैदल सेना रेजिमेंटों में से एक है। इस रेजिमेंट की स्थापना 18वीं शताब्दी में हुई थी

लोकप्रिय पोस्ट

केदारनाथ स्टेटस हिंदी में 2 लाइन(kedarnath status in hindi 2 line) something

जी रया जागी रया लिखित में , | हरेला पर्व की शुभकामनायें (Ji Raya Jagi Raya in writing, | Happy Harela Festival )

हिमाचल प्रदेश की वादियां शायरी 2 Line( Himachal Pradesh Ki Vadiyan Shayari )

हिमाचल प्रदेश पर शायरी स्टेटस कोट्स इन हिंदी(Shayari Status Quotes on Himachal Pradesh in Hindi)

महाकाल महादेव शिव शायरी दो लाइन स्टेटस इन हिंदी (Mahadev Status | Mahakal Status)

हिमाचल प्रदेश पर शायरी (Shayari on Himachal Pradesh )

गढ़वाली लोक साहित्य का इतिहास एवं स्वरूप (History and nature of Garhwali folk literature)