ज्वालामुखी मंदिर(Shaktipeeth Mata Jawala Ji Temple)

ज्वालामुखी मंदिर(Shaktipeeth Mata Jawala Ji Temple)

Shaktipeeth Mata Jawala Ji Temple
ज्वालामुखी मंदिरतीर्थ यात्रा का यह लोकप्रिय स्थान कांगड़ा से बहुत दूर नहीं है । पवित्रता में खोखले चट्टान से निकलने वाली एक सदाबहार लौ, देवी की अभिव्यक्ति माना जाता है हर साल मार्च-अप्रैल और सितंबर-अक्टूबर के दौरान नवरात्रि उत्सव के दौरान यहाँ  मेले आयोजित होते हैं। कांगड़ा में सबसे प्रसिद्ध ज्वाला जी मंदिर हिमाचल प्रदेश राज्य के कांगड़ा जिले के ज्वालामुखी शहर में निचले हिमालय में स्थित है,
Shaktipeeth Mata Jawala Ji Temple

 जो धर्मशाला से लगभग 55 किलोमीटर दूर है। ज्वालाजी एक हिंदू देवी है। ज्वालाजी  ज्वाला देवी और ज्वालामुखी के नाम से भी जानी जाती है। ऐतिहासिक रूप से, ज्वाला जी को समर्पित मंदिर में माँ सती की जीभ गिरी थी | इस मंदिर में माता के दर्शन ज्योति रूप में होते है। ज्वालामुखी मंदिर के समीप में ही बाबा गोरा नाथ का मंदिर है। जिसे गोरख डिब्बी के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर का प्राथमिक निमार्ण राजा भूमि चंद ने करवाया था। बाद में महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसारचंद ने 1835 में इस मंदिर का पूर्ण निमार्ण कराया। मंदिर के अंदर माता की नौ ज्योतियां है जिन्हें, महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यावासनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका के नाम से जाना। 

ज्वालामुखी मंदिर  स्थान: नगरकोट, हिमाचल प्रदेश, भारत

ज्वालामुखी मंदिर, कांगडा घाटी से 30 कि॰मी॰ दक्षिण में हिमाचल प्रदेश में स्थित है। यह मंदिर 51 शक्ति पीठों में शामिल है। ज्वालामुखी मंदिर को जोता वाली का मंदिर और नगरकोट भी कहा जाता है। ज्वालामुखी मंदिर को खोजने का श्रेय पांडवो को जाता है। उन्हीं के द्वारा इस पवित्र धार्मिक स्थल की खोज हुई थी। इस स्थाल पर माता सती की जीभ गिरी थी। इस मंदिर में माता के दर्शन ज्योति रूप में होते है। ज्वालामुखी मंदिर के समीप में ही बाबा गोरा नाथ का मंदिर है। जिसे गोरख डिब्बी के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर का प्राथमिक निमार्ण राजा भूमि चंद के करवाया था। बाद में महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसारचंद ने 1835 में इस मंदिर का पूर्ण निमार्ण कराया। मंदिर के अंदर माता की नौ ज्योतियां है जिन्हें, महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यावासनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका, अंजीदेवी के नाम से जाना जाता है।

ज्वालामुखी मंदिर देवी की उत्पत्ति कथा

Shaktipeeth Mata Jawala Ji Temple

दूर्गा सप्तशती और देवी महात्यमय के अनुसार देवताओं और असुरों के बीच में सौ वर्षों तक युद्ध चला था। इस युद्ध में असुरो की सेना विजयी हुई। असुरो का राजा महिषासुर स्वर्ग का राजा बन गया और देवता सामान्य मनुष्यों कि भांति धरती पर विचलण करने लगे। तब पराजित देवता ब्रहमा जी को आगे कर के उस स्थान पर गये जहां शिवजी, भगवान विष्णु के पास गए। सारी कथा कह सुनाई। यह सुनकर भगवान विष्णु, शिवजी ने बड़ा क्रोध किया उस क्रोध से विष्णु, शिवजी के शरीर से एक एक तेज उत्पन्न हुआ। भगवान शंकर के तेज से उस देवी का मुख, विष्णु के तेज से उस देवी की वायें, ब्रहमा के तेज से चरण तथा यमराज के तेज से बाल, इन्द्र के तेज से कटि प्रदेश तथा अन्य देवता के तेज से उस देवी का शरीर बना। फिर हिमालय ने सिंह, भगवान विष्णु ने कमल, इंद्र ने घंटा तथा समुद्र ने कभी न मैली होने वाली माला प्रदान की। तभी सभी देवताओं ने देवी की आराधना की ताकि देवी प्रसन्न हो और उनके कष्टो का निवारण हो सके। और हुआ भी ऐसा ही। देवी ने प्रसन्न होकर देवताओं को वरदान दे दिया और कहा मै तुम्हारी रक्षा अवश्य करूंगी। इसी के फलस्वरूप देवी ने महिषासुर के साथ युद्ध प्रारंभ कर दिया। जिसमें देवी कि विजय हुई और तभी से देवी का नाम महिषासुर मर्दनी पड़ गया।

ज्वालामुखी मंदिर पौराणिक कथा

ज्वालामुखी मंदिर शक्ति पीठ मंदिरों मे से एक है। पूरे भारतवर्ष मे कुल 51 शक्तिपीठ है। जिन सभी की उत्पत्ति कथा एक ही है। यह सभी मंदिर शिव और शक्ति से जुड़े हुऐ है। धार्मिक ग्रंधो के अनुसार इन सभी स्थलो पर देवी के अंग गिरे थे। शिव के ससुर राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया जिसमे उन्होंने शिव और सती को आमंत्रित नही किया क्योंकि वह शिव को अपने बराबर का नही समझते थे। यह बात सती को काफी बुरी लगी और वह बिना बुलाए यज्ञ में पहुंच गयी। यज्ञ स्‍थल पर शिव का काफी अपमान किया गया जिसे सती सहन न कर सकी और वह हवन कुण्ड में कुद गयीं। जब भगवान शंकर को यह बात पता चली तो वह आये और सती के शरीर को हवन कुण्ड से निकाल कर तांडव करने लगे। जिस कारण सारे ब्रह्माण्ड में हाहाकार मच गया। पूरे ब्रह्माण्ड को इस संकट से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से 51 भागो में बांट दिया जो अंग जहां पर गिरा वह शक्ति पीठ बन गया। मान्यता है कि ज्वालाजी मे माता सती की जीभ गिरी थी। ज्वालामुखी मंदिर को जोता वाली का मंदिर और नगरकोट भी कहा जाता है।

 ज्वालामुखी मंदिर ज्वाला जी का इतिहास

काँगड़ा जिले के ज्वालामुखी कस्बे में स्थित ज्वाला देवी जी मंदिर का इतिहास माता सती के अग्निदाह और भगवान शिव के क्रोध से जुड़ा हुआ है। अपने पिता महाराजा दक्ष के द्वारा जब भगवान शिव का अपमान किए जाने के बाद जब माता सती ने अग्निदाह कर लिया तब उनकी मृत देह को लेकर भगवान शिव क्रोध में आकर तांडव करने लगे। उनके क्रोध को शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से माता की मृत देह को कई भागों में विभक्त कर दिया था तब माता सती की जीभ इस स्थान पर गिरी थी। माना जाता है कि जीभ के साथ माता की दिव्य ज्योति भी इस स्थान पर गिरी, इसी कारण है कि यहाँ 9 ज्वालाएँ प्रकट हुईं, जो आज भी निरंतर प्रज्ज्वलित हैं।
        इस मंदिर का वर्णन महाभारत समेत कई अन्य हिन्दू ग्रंथों में किया गया है। मंदिर के गर्भगृह में कुल 9 ज्वालाएँ प्रज्वलित हैं, जिनमें से सबसे बड़ी ज्योति माँ ज्वाला देवी के नाम से जानी जाती हैं। इसके अलावा 8 अन्य ज्वालाएँ माँ अन्नपूर्णा, माँ विध्यवासिनी, माँ चण्डी देवी, माँ महालक्ष्मी, माँ हिंगलाज माता, माँ सरस्वती, माँ अम्बिका देवी एवं माँ अंजी देवी हैं।
            माँ ज्वाला देवी के इस मंदिर का सर्वप्रथम निर्माण राजा भूमिचंद के द्वारा कराया गया। इसके बाद 1835 में महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसारचंद ने इस मंदिर का निर्माण कराया। माँ ज्वाला देवी लखनपाल, ठाकुर, गुजराल और भाटिया समुदाय की कुलदेवी मानी जाती हैं, ऐसे में इन सभी के द्वारा भी मंदिर में लगातार निर्माण कार्य कराए जाते रहे हैं।

ज्वालामुखी मंदिर का पौराणिक इतिहास

Shaktipeeth Mata Jawala Ji Temple

ज्वालामुखी मंदिर को शक्तिपीठों में से एक माना जाता है जो शिव की पत्नी सती की कहानी बताता है। जब उनके पिता दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया, तो उन्होंने जानबूझकर शिव को एक तपस्वी और अपनी बेटी के लिए अयोग्य कहकर फटकार लगाई। सती ने इसे व्यक्तिगत अपमान समझा और यज्ञ अग्नि में कूदकर अपनी जान दे दी। शिव क्रोधित हो गए और सती के शरीर को अपने कंधों पर रखकर तांडव या विनाश का दिव्य नृत्य शुरू कर दिया। ब्रह्माण्ड और सृजन को नष्ट करने से शिव को रोकने के लिए, भगवान विष्णु ने अपने चक्र से शव को कई टुकड़ों में काट दिया और जिन स्थानों पर ये टुकड़े गिरे, उन्हें शक्ति पीठ कहा जाता है। ज्वालामुखी मंदिर का निर्माण उस स्थान पर किया गया था जहां माना जाता है कि सती की जीभ गिरी थी।

ज्वालामुखी मंदिर का महत्व

Shaktipeeth Mata Jawala Ji Temple

मंदिर की इमारत में सोने का पानी चढ़ा हुआ गुंबद और चांदी की परत चढ़ाए गए फोल्डिंग दरवाजे हैं। इसके भीतर एक चौकोर गड्ढा है जिसमें से नाचती हुई लपटें बाहर निकलती हैं और यह अनादि काल से होता आ रहा है। आग की लपटें देवी का प्रतिनिधित्व करती हैं और सर्व-उपभोग करने वाली शक्ति (ऊर्जा) के रूप में उनकी शक्ति का प्रतीक हैं। इस मंदिर की अनूठी विशेषता एक मूर्ति या छवि की अनुपस्थिति है जो ऊर्जा के मूल तत्व में प्रकट होकर दिव्य प्राणियों की सभी सांसारिक धारणाओं को पार करती है। 

ज्वालामुखी मंदिर की वास्तुकला

Shaktipeeth Mata Jawala Ji Temple
मंदिर का संरचनात्मक डिजाइन सरल है और इसे वास्तुकला की 'इंडो-सिख' शैली में एक लकड़ी के मंच पर बनाया गया है। गुंबद और शिखर पर सोने की परत चढ़ी हुई है और मुख्य दरवाजे पर चांदी की परत चढ़ी हुई है। मुख्य मंदिर के सामने एक विशाल पीतल की घंटी है जो नेपाल के राजा द्वारा भेंट की गई थी।

 ज्वालामुखी मंदिर चमत्कार को झुठलाने के प्रयास

यह हम सभी जानते हैं कि हजारों वर्षों से भारत विदेशी आक्रांताओं का गुलाम रहा, जिनके मन में हिन्दू धर्म के प्रति मात्र घृणा का भाव ही था। इसी भाव से ग्रसित होकर मुस्लिम आक्रांताओं ने हजारों हिन्दू मंदिरों को नुकसान पहुँचाने का कार्य किया। इसी क्रम में ये आक्रांता ज्वाला जी मंदिर भी पहुँचे। मुगल शासक अकबर तो अपनी सेना लेकर ज्वाला जी मंदिर पहुँचा, जिसने मंदिर में सहस्त्राब्दियों से प्रज्वलित इन ज्वालाओं को पानी डालकर बुझाने की कोशिश की। इसके अलावा इन ज्वालाओं को लोहे के तवे से भी ढका गया लेकिन ज्वाला के प्रभाव से तवे में भी छेद हो गया, अंततः उसे हार मान कर ज्वाला जी मंदिर से वापस लौटना पड़ा।
        ब्रिटिश काल में अंग्रेजों ने भी उस ऊर्जा का पता लगाने का बहुत प्रयास किया जिसके कारण ये ज्वालाएँ कई वर्षों से लगातार प्रज्वलित हैं लेकिन वो भी असफल रहे। हालाँकि बाद में कई भू-गर्भ विशेषज्ञों ने भी जमीन के अंदर किसी ऊर्जा के भंडार की संभावना जताते रहे लेकिन वो भी कभी इसका पुख्ता प्रमाण नहीं दे सके। ऐसे ही कई प्रयास लगातार किए जाते रहे लेकिन विज्ञान के इस युग में हिन्दुओं की आस्था आज भी ज्वाला जी मंदिर में उसी प्रकार बनी हुई है, जैसे सदियों पहले हुआ करती थी।

ज्वालामुखी मंदिर के गुम्बद सहित छत

ज्वालामुखी मंदिर का इतिहास काफी प्राचीन है इस स्थान को पहली बार एक गाय पालक ने देखा था। वह अपनी गाय का पीछा करते हुए इस स्थान तक पहुंचा। इसके पीछे कारण यह था कि उसकी गाय दूध नही दे रही थी वह अपना सारा दूध पवित्र ज्वालामुखी में एक दिव्य कन्या को पिला आती थी। उसने यह दृश्य अपनी आँखो से देखा और वहां के राजा को बताया। राजा द्वारा सत्य की जाँच के लिए अपने सिपाहियों को भेजा गया। सिपाहियों ने भी यह नजारा देखा। उन्होंने सारी बात राजा को बताई और सत्य की जांच के पश्चात राजा द्वारा इस स्थान पर मंदिर का निर्माण कराया गया।
    ज्वालामुखी मंदिर के संबंध में एक कथा काफी प्रचलित है। यह १५४२ से १६०५ के मध्य का ही होगा तभी अकबर दिल्ली का राजा था। ध्यानुभक्त माता जोतावाली का परम भक्त था। एक बार देवी के दर्शन के लिए वह अपने गांववासियो के साथ ज्वालाजी के लिए निकला। जब उसका काफिला दिल्ली से गुजरा तो मुगल बादशाह अकबर के सिपाहियों ने उसे रोक लिया और राजा अकबर के दरबार में पेश किया। अकबर ने जब ध्यानु से पूछा कि वह अपने गांववासियों के साथ कहां जा रहा है तो उत्तर में ध्यानु ने कहा वह जोतावाली के दर्शनो के लिए जा रहे है। अकबर ने कहा तेरी मां में क्या शक्ति है ? और वह क्या-क्या कर सकती है ? तब ध्यानु ने कहा वह तो पूरे संसार की रक्षा करने वाली हैं। ऐसा कोई भी कार्य नही है जो वह नहीं कर सकती है। अकबर ने ध्यानु के घोड़े का सर कटवा दिया और कहा कि अगर तेरी मां में शक्ति है तो घोड़े के सर को जोड़कर उसे जीवित कर दें। यह वचन सुनकर ध्यानु देवी की स्तुति करने लगा और अपना सिर काट कर माता को भेट के रूप में प्रदान किया। माता की शक्ति से घोड़े का सर जुड गया। इस प्रकार अकबर को देवी की शक्ति का एहसास हुआ। बादशाह अकबर ने देवी के मंदिर में सोने का छत्र भी चढाया। किन्तु उसके मन मे अभिमान हो गया कि वो सोने का छत्र चढाने लाया है, तो माता ने उसके हाथ से छत्र को गिरवा दिया और उसे एक अजीब (नई) धातु का बना दिया जो आज तक एक रहस्य है। यह छत्र आज भी मंदिर में मौजूद है।
        मंदिर का मुख्य द्वार काफी सुंदर एव भव्य है। मंदिर में प्रवेश के साथ ही बाये हाथ पर अकबर नहर है। इस नहर को अकबर ने बनवाया था। उसने मंदिर में प्रज्‍जवलित ज्योतियों को बुझाने के लिए यह नहर बनवाया था। उसके आगे मंदिर का गर्भ द्वार है जिसके अंदर माता ज्योति के रूप में विराजमान है। मंदिर में अलग-अलग नौ ज्योतियां है जिसे अलग-अलग नाम से जाना जाता है। थोडा ऊपर की ओर जाने पर गोरखनाथ का मंदिर है जिसे गोरख डिब्बी के नाम से जाना जाता है। इस मे एक पानी का एक कुनड (KUND) है जो देख्नने मे खौलता हुआ लगता है पर वास्तव मे एकदम गरम नही है। ज्वालाजी के पास ही में 4.5 कि॰मी॰ की दूरी पर नगिनी माता का मंदिर है। इस मंदिर में जुलाई और अगस्त के माह में मेले का आयोजन किया जाता है। 5 कि॰मी॰ कि दूरी पर रघुनाथ जी का मंदिर है जो राम, लक्ष्मण और सीता को समर्पि है। इस मंदिर का निर्माण पांडवो द्वारा कराया गया था। ज्वालामुखी मंदिर की चोटी पर सोने की परत चढी हुई है।

प्रमुख त्योहार

ज्वालाजी में नवरात्रि के समय में विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। साल के दोनों नवरात्रि यहां पर बडे़ धूमधाम से मनाये जाते है। नवरात्रि में यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या दोगुनी हो जाती है। इन दिनों में यहां पर विशेष पूजा अर्चना की जाती है। अखंड देवी पाठ रखे जाते हैं और वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ हवन इत्यादि की जाती है। नवरात्रि में पूरे भारत वर्ष से श्रद्धालु यहां पर आकर देवी की कृपा प्राप्त करते है। कुछ लोग देवी के लिए लाल रंग के ध्वज भी लाते है।

मुख्य आकर्षण

मंदिर में आरती के समय अद्भूत नजारा होता है। मंदिर में पांच बार आरती होती है। एक मंदिर के कपाट खुलते ही सूर्योदय के साथ में की जाती है। दूसरी दोपहर को की जाती है। आरती के साथ-साथ माता को भोग भी लगाया जाता है। फिर संध्या आरती होती है। इसके पश्चात रात्रि आरती होती है। इसके बाद देवी की शयन शय्या को तैयार किया जाता है। उसे फूलो और सुगंधित सामग्रियों से सजाया जाता है। इसके पश्चात देवी की शयन आरती की जाती है जिसमें भारी संख्या में आये श्रद्धालु भाग लेते है।
आरतियों का समय संपादित करें
  • सुबह कि आरती 5.00
  • पंजूउपचार पूजन सुबह कि आरती के बाद
  • दोपहर कि आरती 12.00 बजे
  • संध्या आरती 7.00 बजे
  • शयन आरती 10.00 बजे
 ज्वालामुखी मंदिर कैसे जाएं
वायु मार्ग
ज्वालाजी मंदिर जाने के लिए नजदीकी हवाई अड्डा गगल में है जो कि ज्वालाजी से 46 कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित है। यहा से मंदिर तक जाने के लिए कार व बस सुविधा उपलब्ध है।
रेल मार्ग
रेल मार्ग से जाने वाले यात्रि पठानकोट से चलने वाली स्पेशल ट्रेन की सहायता से मरांदा होते हुए पालमपुर आ सकते है। पालमपुर से मंदिर तक जाने के लिए बस व कार सुविधा उपलब्ध है।
सड़क मार्ग
पठानकोट, दिल्ली, शिमला आदि प्रमुख शहरो से ज्वालामुखी मंदिर तक जाने के लिए बस व कार सुविधा उपलब्ध है। यात्री अपने निजी वाहनो व हिमाचल प्रदेश टूरिज्म विभाग की बस के द्वारा भी वहा तक पहुंच सकते है। दिल्ली से ज्वालाजी के लिए दिल्ली परिवहन निगम की सीधी बस सुविधा भी उपलब्ध है।
प्रमुख शहरो से ज्वालामुखी मंदिर की दूरी
पठानकोट: 123 कि.मी. दिल्ली: 473 कि.मी. कांगडा: 30 कि.मी. शिमला: 212 कि.मी. अंबाला: 273 कि.मी. धर्मशाला: 55 कि.मी.
ठहरना
ज्वालाजी में रहने के लिए काफी संख्या में धर्मशालाए व होटल है जिनमें रहने व खाने का उचित प्रबंध है। जो कि उचित मूल्यो पर उपलब्ध है। ज्वालामुखी मंदिर के पास का नजदीकी शहर पालमपुर व कांगडा है जहां पर काफी सारे डिलक्स होटल है। यात्री यहां पर भी ठहर सकते है यहा से मंदिर तक जाने के लिए बस व कार सुविधा मुहैया है

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