अल्पायु में शहीद हो गए थे गब्बर सिंह नेगी, इनकी बहादुरी को आज भी याद करती है ब्रिटिश सरकार!
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नाम: गब्बर सिंग नेगी (गोबर सिंग नेगी के नाम से भी प्रचलित)
जन्म की तारीख: 21 अप्रैल 1895
जन्म का स्थान: चंबा, उत्तराखंड
युद्ध की तारीख: 10 मार्च 1915
युद्ध का स्थान: नेव चापेल, फ्रांस
श्रेणी: राइफलमैन
रेजिमेंट: दूसरी बटालियन, 39 वीं गढ़वाल राइफल्स
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प्रथम विश्व युद्ध के वीर सैनिक गब्बर सिंह नेगी की बहादुरी का अंग्रेजी हुकुमत ने पूरा सम्मान किया। अंग्रेजों ने मरणापरांत गब्बर सिंह को ब्रिटिश सरकार ने सबसे बड़े विक्टोरिया क्रॉस सम्मान ने नवाजा। लेकिन दुख कि बात है कि अब अपनी चुनी हुई सरकारों को इससे कोई वास्ता नहीं है। समय-समय पर सरकारों ने उनके नाम पर कई घोषणाएं जरूर की पर कोई भी योजना धरातल पर नहीं उतरी। इससे खफा गब्बर सिंह के पैतृक गांव मंज्यूड़ के ग्रामीण बेमियादी धरने पर बैठ गए हैं।
ग्रामीण मंगलवार को वीसी गबर सिंह के पैतृक घर के परिसर में एकत्र हुए। यहां शासन-प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी कर धरना शुरू कर दिया। पूर्व सैनिक संगठन के अध्यक्ष इंद्र सिंह नेगी ने कहा कि पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने विक्टोरिया क्रॉस गबर सिंह मेले को पर्यटन मेला घोषित किया था। इसका शासनादेश भी जारी हो गया था, लेकिन मेले के आयोजन के लिए सरकार की ओर से कोई सहायता नहीं दी जा रही है।
ग्राम प्रधान महावीर नेगी का कहना था कि सरकार वीसी गबर सिंह के पैतृक घर के संरक्षण पर भी ध्यान नहीं दे रही है, इससे घर जीर्ण-शीर्ण हो गया है। गांव में सड़क नहीं है। ग्रामीणों को दो किमी खड़ी चढ़ाई चढ़कर गांव पहुंचना पड़ता है। 2009 में गांव के लिए सड़क स्वीकृत हुई थी, लेकिन अब तक नहीं बनी। यही नहीं गब्बर सिंह नेगी के नाम पर चंबा में सेना की भर्ती होती थी, लेकिन 2005 से सेना की भर्ती भी नहीं हो रही है। कहा कि राज्य सरकारों के उपेक्षित रवैये के चलते ग्रामीणों में रोष व्याप्त है। धरने पर ब्लॉक प्रमुख चंबा आनंदी नेगी, अतर सिंह नेगी, सुरेंद्र सिंह नेगी, कुंदन सिंह, लक्ष्मी नेगी, आशा देवी, पुलमा देवी, वीर सिंह नेगी, उदय सिंह, धन सिंह, बसंती देवी, रोशनी देवी आदि बैठे रहे।
कौन थे गब्बर सिंह नेगी
गब्बर सिंह नेगी का जन्म 21 अप्रैल 1895 को उत्तराखंड में टिहरी जिले के चंबा के पास मज्यूड़ गांव में एक गरीब परिवार में हुआ था। वह अक्तूबर 1913 में गढ़वाल रायफल में भर्ती हो गए। भर्ती होने के कुछ ही समय बाद गढ़वाल रायफल के सैनिकों को प्रथम विश्व युद्ध के लिए फ्रांस भेजा गया, जहां 1915 में न्यू शैपल में लड़ते-लड़ते 20 साल की अल्पायु में वो शहीद हो गए। मरणोपरांत गब्बर सिंह को ब्रिटिश सरकार के सबसे बड़े सम्मान विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित गया। सबसे कम उम्र में विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित होने वाले शहीद गब्बर सिंह नेगी थे। तब से हर साल 21 अप्रैल को चंबा में उनके स्मारक स्थल पर गढ़वाल राइफल द्वारा रेतलिंग परेड कर उन्हें सलामी दी जाती है। गढ़वाल राइफल का नाम विश्वभर में रोशन करने वाले वीर गब्बर सिंह नेगी की शहादत को याद करने के लिए हर चंबा में मेले का आयोजन होता है।
भारत के प्रथम विश्व युद्ध विक्टोरिया क्रॉस सम्मान प्राप्तकर्ता गबर सिंह नेगी की कहानी।
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प्रथम विश्व युद्ध में भारत के छह योद्धाओं को ब्रिटेन में वीरता के लिए दिया जाने वाला सर्वोच्च पुरस्कार विक्टोरिया क्रॉस प्राप्त हुआ है। शताब्दी स्मरणोत्सव के तहत युनाइटेड किंग्डम के लोगों ने उन साहसी पुरुषों की मातृभूमि को उनके नाम उत्कीर्ण की हुई कांस्य की स्मारक पट्टिका पेश करते हुए अपनी कृतज्ञता व्यक्त की। इस पुरालेख में उनकी कहानी का उल्लेख है।
रेजिमेंट: दूसरी बटालियन, 39 वीं गढ़वाल राइफल्स
- गबर सिंह नेगी का जन्म 21 अप्रैल 1895 में उत्तर भारत के उत्तराखंड राज्य के चम्ब्रा इलाके में हुआ था। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान वे 39 वें गढ़वाल राइफल्स की दूसरी बटालियन में राइफलमैन (बंदूकधारी) थे।
- केवल 21 वर्ष की आयु में वे मार्च, 1915 के नेव चापेल के युद्ध में हमला बल का हिस्सा बने। उस हमला बल में आधे से ज्यादा सैनिक भारतीय थे और यह पहली बड़ी कार्रवाई थी जब भारतीय सैन्यदल एक इकाई के रूप में लड़ा था। भारी क्षति के बावजूद वे एक प्रमुख दुश्मन की स्थिति लेने में कामयाब हुए, और इस युद्ध के दौरान उनकी वीरता के कारण ही गबर सिंह नेगी को मरणोपरांत विक्टोरिया क्रॉस पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उनका प्रशस्तिपत्र इस प्रकार उल्लेख करता है:
- 10 मार्च, 1915 को नेव चापेल में सबसे विशिष्ट बहादुरी के लिए, जर्मन स्थिति पर एक हमले के दौरान, राइफलमैन गबर सिंह नेगी बम साथ लिए संगीन से हमला करने वालों का एक हिस्सा थे जो दुश्मन के मुख्य मोर्चे में घुसकर हर बाधाओं को पार करने वाले पहले व्यक्ति थे, जिस कारण दुश्मन पीछे हटकर आखिरकार आत्मसमर्पण के लिए मजबूर हो गया। इस कार्रवाई के दौरान वे वीरगती को प्राप्त हो गए।
- गबर सिंग नेगी को नेव चापेल स्मारक पर श्रद्धांजली दी गई है। नेव चापेल में भारतीय स्मारक उन सभी 4,700 से ज्यादा भारतीय सैनिकों और श्रमिकों को श्रद्धांजली देता है जिन्होंने पश्चिमी मोर्चे पर अपनी जान गंवाई थी लेकिन उनका अंतिम विश्राम स्थान ज्ञात नहीं है।
- उनके गृह नगर चम्बा में उन्हें प्रतिवर्ष 20 या 21 अप्रैल (हिंदू पंचांग के आधार पर) को आयोजित होने वाले गबर सिंह नेगी मेला के द्वारा याद किया जाता है।
- 1971 में गढ़वाल रेजिमेंट ने चम्बा में उनका एक स्मारक बनाया जहां लोग उनकी बहादुरी पर श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं। इस स्मारक के आसपास का क्षेत्र मेले के दौरान बिल्कुल जीवंत हो उठता है।
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- गढ़वाल राइफल्स शांति सेना द्वारा ऑपरेशन पवन (1987-88) Operation Pawan by Garhwal Rifles Peace Force (1987-88)
- गढ़वाल राइफल्स 1971 युद्ध (Garhwal Rifles 1971 War)
- गढ़वाल राइफल्स कारगिल युद्ध (Garhwal Rifles Kargil War)
- गढ़वाल राइफल्स 1965 का भारत-पाकिस्तान युद्ध (Garhwal Rifles Indo-Pakistani War of 1965)
- गढ़वाल राइफल्स 1962 का भारत-चीन युद्ध (Garhwal Rifles Indo-China War of 1962)
- गबर सिंह नेगी (Gabar Singh Negi)
- जसवंत सिंह रावत (Jaswant Singh Rawat Indian soldier)
- दरबान सिंह नेगी (Darban Singh Negi
- गब्बर सिंह नेगी, इनकी बहादुरी को आज भी याद (Gabbar Singh Negi still remembers his bravery )
- लैंसडाउन पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखण्ड ( Lansdowne Pauri Garhwal, Uttarakhand)
- गढ़वाल राइफल्स भारतीय सेना की एक थलसेना रेजिमेंट (The Garhwal Rifles is an army regiment of the Indian Army)
- 1970 के दशक में गढ़वाल राइफल्स भर्ती( Garhwal Rifles Recruitment in the 1970s)
- आजाद हिन्द फौज में उत्तराखण्ड का भी बड़ा योगदान था (Uttarakhand also had a major contribution in the Azad Hind Fauj)
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