हिमाचल प्रदेश के हस्तकला व वास्तुकला(Handicrafts and Architecture of Himachal Pradesh)

हिमाचल प्रदेश के हस्तकला व वास्तुकला

हिमाचल प्रदेश के हस्तकला -

कुल्लू - कुल्लू की शालें प्रसिद्ध हैं टो बुशहर की टोपियाँ बहुत लोकप्रिय हैं। काष्ठ, पाषाण तथा धातुकला में भी हिमाचल प्रदेश समृद्ध है। मसरूर मंदिर की पाषाण कला इतनी उत्कृष्ट है कि इसे हिमाचल प्रदेश का अंजता, एलोरा कहा जाता है। धातुकला की उत्कृष्ट मिसाल हाटकोटी, हाटेश्वरी, भीमाकाली की मूर्तियाँ हैं। गोम्पाओं में भी धातुकला की मिसालें देखी जा सकती है। काष्ठकला के लिए किन्नौर और लाहौल-स्पीति के गोम्पा, चम्बा, काँगड़ा, मण्डी के मंदिर प्रसिद्ध हैं। काष्ठकला के लिए भरमौर का लक्षणा देवी और शक्ति देवी मंदिर, निर्मण्ड का महादेव मंदिर, लाहौल का मृकुला देवी मंदिर, मण्डी का मगरू महादेव मंदिर प्रसिद्ध हैं।

हिमाचल प्रदेश के हस्तकला व वास्तुकला

हिमाचल प्रदेश के वास्तुकला -

वास्तुकला की दृष्टि से हिमाचल प्रदेश के मंदिरों को छतों के आकार के आधार पर शिखर, समतल-छत, गुंबदाकार, बंद छत, स्तूपाकार और पैगोड़ा शैली में बाँटा जा सकता है -
  1. शिखर शैली - इस शैली के मंदिरों में छत के ऊपर का हिस्सा पर्वत चोटीनुमा होता है। काँगड़ा का मसरूर रॉक कट मंदिर इस शैली से बना है।
  2. समतल शैली - समतल छत शैली में समतल छत होने के साथ-साथ इनकी दीवारों पर काँगड़ा शैली के चित्रों को चित्रित किया गया है। सुजानपुर टीहरा का नर्बदेश्वर मंदिर, नूरपुर का ब्रज स्वामी मंदिर, स्पीति के ताबों, बौद्ध मठ भी इसी शैली के हैं। समतल शैली में मुख्यत: राम और कृष्ण के मंदिर हैं।
  3. गुंबदाकार शैली - काँगड़ा का ब्रजेश्वरी देवी, ज्वालाजी, चिंतपूर्णी मंदिर, बिलासपुर का नैनादेवी मंदिर, सिरमौर का बालासुंदरी मंदिर इस शैली से संबंधित हैं। इस प्रकार की शैली से बने मंदिरों पर मुगल और सिक्ख शैली का प्रभाव है।
  4. स्तूपाकार शैली - जुब्बल के हाटकोटी के हाटेश्वरी और शिव मंदिर को इसी शैली में रखा जा सकता है। इस शैली के अधिकतर मंदिर जुब्बल क्षेत्र में हैं।
  5. बंद-छत शैली - यह हिमाचल प्रदेश की सबसे पुरानी शैली है। भरमौर का लक्षणा देवी मंदिर और छतराड़ी के शक्ति देवी के मंदिरों के नाम इस शैली में लिए जा सकते हैं।
  6. पैगोड़ा शैली - कुल्लू के हिडिम्बा देवी (मनाली), मण्डी का पराशर मंदिर इस शैली से बने हुए हैं।

पहाड़ी वास्तु शैली

हिमाचल प्रदेश में कई मंदिर पहाड़ी वास्तु शैली से निर्मित हुए हैं। इसे स्थानीय परंपरागत शैली कहा जा सकता है। यह शैली पिछड़े ग्रामीण अंचलों में अधिक प्रचलित है। मंदिर निर्माण के लिए पत्थरों का प्रयोग किया गया है। छत के लिए स्लेट तथा लकड़ी का प्रयोग किया जाता है। दीवार के अंदर और बाहर चिकनी मिट्टी का प्रयोग किया जाता है। दरवाजों, खिड़कियों तथा किवाड़ों में देवदार की लकड़ी का प्रयोग किया गया है। इस लकड़ी में नक्काशी की गई है। नक्काशी में फल - फूल, पशु - पक्षियों के चित्र बनाए गए हैं।

इस शैली के मंदिर तीन मंजिलों से अधिक नहीं होते हैं। मंदिर के गृह विभाग में प्रधान देवता का मोहरा रखा जाता है। जिसके दर्शन के लिए दरवाजा खुला रखा जाता है। देवता के धुनें के लिए अलग स्थान बनाया जाता है देवता के आभूषणों, वस्त्रों, वाद्ययंत्रों, मोहरों को सुरक्षित रखने के लिए  विशेष स्थल बनाया जाता है। इन्हें धरातल के कमरे में रखा जाता है। लेकिन इन्हें रखने के लिए ऊपर की मंजिल से रास्ता होता है। मंदिर से कुछ दूरी पर ‘देहरा’ बना होता है। यह एक छोटा सा मंदिर होता है जहां प्रत्येक संक्रांति को देवता की पूजा होती है। देहरे में देवता का गुर आवेश में आकर लोगों को शुभकामनाएं देता है और मनोकामना पूर्ण करने का वचन देता है। देवता का गुर लोगों के बारे में भविष्यवाणी भी करता है। 

पहाड़ी वास्तु शैली के निर्मित मंदिर मंडी जिले में मगरू महादेव मंदिर छतरी, कुल्लू में बिजली महादेव मंदिर और वशिष्ठ मंदिर तथा जिला किन्नौर में कामरु मंदिर सांगला प्रमुख है। इस प्रकार के मंदिर में गुबंद की तरह आकार प्रदान किया गया है। गुबंद नुमा शैली का प्रभाव निचले हिमाचल में अधिक देखा जा सकता है इस शैली में बने मंदिरों का ढांचा चौकोर होता है। गुबंद को सुनहरे रंग में रंगा जाता है। दीवारों तथा छतों को भित्ति चित्रों से सजाया जाता है। मंदिरों को अंदर से शीशों के विभिन्न आकार के टुकड़ों तथा संगमरमर से सजाया जाता है। इसका प्रयोग फर्श तथा दीवारों में किया गया है। यहां के मंदिर जहां प्रवेश की संपन्न वास्तुकला की ओर ध्यान आकर्षित करते हैं, वही उन में विराजित देवी देवता की आराधना कर जन-जन उनके आशीर्वाद की कामना करते हैं। हिमाचल प्रदेश में जिला बार मंदिरों का विवरण निम्न प्रकार से है। 

  • मंडी  - बाबा भूतनाथ, त्रिलोकीनाथ, नैना देवी रिवालसर, शिकारी माता, कामाक्षा देवी।
  • कुल्लू - हिडिम्बा देवी मनाली, परशुराम मंदिर निरमंड।
  • बिलासपुर - नैना देवी, बाबा बालक नाथ, लक्ष्मी नारायण।  
  • हमीरपुर - बाबा बालक नाथ दियोट सिद्ध, शनि देव मंदिर, संतोषी माता मंदिर, राधा कृष्ण मंदिर। 
  • ऊना - बाबा डेरा रुद्रु, जोगी पंगा, चिंतपूर्णी माता मंदिर, बाबा भड़बाग सिंह। 
  • चम्बा - लक्ष्मी नारायण मंदिर समूह, नर्सिंग मंदिर। 

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