प्राचीन श्री सिद्धबली धाम कोटद्वार | हनुमान मंदिर | संकट मोचन
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श्री सिद्धबली धाम कोटद्वार |
सिद्धों के डांडा के रूप में जाना जाने वाला श्री सिद्धबली मंदिर कोटद्वार शहर के बाहर एक पहाड़ी पर स्थित हनुमान जी को समर्पित मंदिर है, जो खो नदी के तट पर बसा हुआ एक शांत और रहस्यमयी मंदिर के रूप में जाना जाता है। संकटमोचन भगवान हनुमान के कारण ही कोटद्वार क्षेत्र एक अलग पहचान से दुनिया भर में परिचित है। करोड़ो लोगों की यह अटूट आस्था ही तो है जो उन्हें इस पवित्र धाम की ओर खींच लाती है और हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ सिद्ध बाबा के मंदिर में देखने को मिलती हैं।
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श्री सिद्धबली धाम कोटद्वार |
सिद्धबली बाबा के भक्त उनकी स्थान देवता, भुम्याल देवता के रूप में अखाध आस्था के साथ पूजा करते है। जब किसी श्रद्धालु द्वारा सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद यहां पूरी होती है। तो वह मनोकामना पूरी होते ही मंदिर में भंडारा कर हनुमान जी को भोग लगाते हैं। श्रद्धालुओं पर बजरंग बली की नेमत इस कदर बरसती है कि यहां भंडारा आयोजन के लिए भक्तों को सालों साल काफी इंतजार करना पड़ता है। धाम में भंडारे करने वालो की अगले सात वर्षों यानी 2025 तक भंडारों को करवाने की एडवांस बुकिंग चल रही है।
मान्यता है कि सिद्धबली का इतिहास रामायण काल से भी जुड़ा हुआ है साथ ही प्रसिद्ध मंदिर सिद्धबली का संबंध कत्युर वंश से भी है।
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श्री सिद्धबली धाम कोटद्वार |
सबसे पहले बात करते है कत्युर वंश की, मान्यताओं के अनुसार सिद्धबली खुद कत्युर वंश के राजा का पुत्र था, जिसे गुरु गोरखनाथ के आशीर्वाद से सिद्धि प्राप्त हुई थी। कत्युर वंश के राजा कुंवर की छह रानियां थी लेकिन संतान नहीं होने पर दुखी था। अपने ईष्ठ गोरखनाथ से संतान प्राप्ति की मन्नत के लिए वह गोरछपीठ जा रहा था। रास्ते में उनको दो बड़ी भैंसें लड़ती नजर आई जिसे कोई छुड़ा नहीं पा रहा था। कुंवरपाल ने एक झटके में दोनों भैंसों को अलग-अलग दिशा में फेंक दिया। जिसकी वह भैंसें थी उसकी लड़की विमला ने भी पहले इन भैंसों की लड़ाई छुड़ाने के लिए उनको इसी तरह इधर-उधर फेंक दिया था। कहा जाता है कि उसी वक्त विमला के पिता ने इतने ही ताकतवर वर से उसका विवाह कराने की कही थी। विमला को राजा कुंवर को दे दिया गया। कुछ दिनों बाद विमला ने पुत्र को जन्म दिया। कहा जाता है कि छह रानियों ने ईर्ष्यावश साजिश रचकर रानी को पुत्र के साथ घर से बाहर निकलवा दिया।
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श्री सिद्धबली धाम कोटद्वार |
विमला जंगल छोलिया उडियार (गुफा) में चली गई और वहीं बच्चे को पाला और उसका नाम हरपाल रखा। उस वक्त ढाक (राशन का व्यापार) चला करती थी। राजा की ढाक को हरपाल लूटने लगा। उसकी मां को पता चलने पर उसने उसे मौके पर जाकर पकड़ लिया। राजा के सैनिकों ने विमला को पहचानते हुए पूरी कहानी कुंवरपाल को बताई। निसंतान कुंवर उसे वापस लाना चाहता था, लेकिन उसने दो शर्त रखी, पहली क्षेत्र में नरभक्षी बाघ मारना और कालूमल सूबेदार से राजा के लुटे घोड़ों को वापस लाना।
कहते हैं कि हरपाल ने बाघ को न सिर्फ पकड़ा बल्कि उसमें सवार होकर राजमहल आ गया। लेकिन कालूमल को हराने के बाद जब वह वापस लौट रहा था तो कालूमल ने रास्ते में खाई खोदकर उसमें बरछे रख दिए। हरपाल घोड़े सहित खाई में गिर गया और बरछा घोड़े को चीरता हुआ उसके सीने में घुस गया जिससे हरपाल की मौत हो गई। यह सुनकर राजा, उसके सैनिक और हरपाल की मां विमला भी जंगल की ओर दौड़ी। विमला शुरू से ही गोरखनाथ की भक्त थी। उसकी पुकार सुनकर गोरखनाथ वहां प्रकट हुए और हरपाल को जीवित कर दिया। लेकिन हरपाल को राजा को देने से इनकार करते हुए कहा कि तूने इस बालक की शक्ति को नहीं पहचाना, इसलिए गोरखनाथ ने उसे सिद्धप्राप्त कराकर अपने साथ रख लिया। बलवान होने के चलते उसे सिद्धबली के नाम से जाना गया।
मान्यता है कि सिद्धबाबा ने इसी स्थान पर कई सालों तक तप किया
अब आपको उस किंवदंती के में बारें में बतातें है, जहाँ सिद्धबली मंदिर के इतिहास को रामायण काल से भी जोड़ा जाता है, जब रामायण काल में माता सीता की खोज के दौरान राम रावण का युद्ध चल रहा था उस संग्राम में भगवान लक्ष्मण घायल होकर मूर्छित हो गए थे। वहाँ वैद्य ने भगवान लक्ष्मण को चेतना में लाने के लिए तथा उनके उपचार के लिए श्री हनुमान जी को उत्तराखण्ड के चमोली स्तिथ द्रोणागिरी पर्वत से संजीवनी बूटी मंगवाई।
जब हनुमान जी वायु मार्ग से द्रोणागिरी पर्वत की ओर बढ़ रहे थे। तो रास्ते में उनकी भेंट एक शक्तिशाली राक्षस से हुई और दोनों के बीच घन्घोर युद्ध हुआ। तब हनुमान को एहसास हुआ कि यह राक्षस नहीं बल्कि दिव्या शक्ति है, भगवान हनुमान ने उन्हें अपने वास्तविक रूप में आने को कहा, और वह दिव्या शक्ति यानी सिद्ध बाबा अपने वास्तविक रूप में आए। सिद्ध बाबा ने हनुमान जी से इसी स्थान में बसने तथा इस स्थान पर आने वाले सभी श्रद्धालुओं की मनोकामना को पूर्ण करने का वचन लिया और यह वचन हनुमान जी ने सिद्ध बाबा को दिया तभी से इस स्थान पर भगवान हनुमान और सिद्ध बाबा की पूजा की जाती है।
एक मान्यता यह भी है
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श्री सिद्धबली धाम कोटद्वार |
इस मंदिर की अनेक मान्यताओं में से एक मान्यता यह भी है कि ब्रिटिश शासन काल में एक मुस्लिम ऑफिसर इसी जगह से घोड़े पर सवार गुजर रहे थे। तब वह अचानक से वहां बेहोश हो गए तभी उन्हें सपने में आया कि सिद्धबली बाबा की समाधि के पास एक मंदिर बनाया जाए। जब वह होश में आये तो उन्होंने आसपास के लोगों को अपने सपने के बारे में बताया। जिसके बाद यह मंदिर यहां लोगों की मदद से बनाया गया। यहां इस मंदिर पर हर धर्म के व्यक्ति आते हैं। अपनी मन्नतें मांगते हैं यहां जो भी श्रद्धालु आता है खाली हाथ नहीं जाता है। वहीं धाम में प्रसाद के रूप में गुड़ की भेली चढ़ाई जाती है।
ऐसा भी माना जाता है कि कोटद्वार शहर के लोग प्राचीन समय में अपनी फसल का पहला हिस्सा भगवान सिद्धबली के मंदिर में चढ़ाते थे इसलिए सिद्धबाबा को वहाँ का भूम्याल देवता भी कहा जाता है।
प्राचीन श्री सिद्धबली धाम कोटद्वार FQCs
1. श्री सिद्धबली धाम कहां स्थित है?
उत्तर:
श्री सिद्धबली धाम उत्तराखंड के कोटद्वार शहर के बाहर एक पहाड़ी पर स्थित है, जो खो नदी के किनारे है।
2. श्री सिद्धबली धाम किस देवता को समर्पित है?
उत्तर:
यह मंदिर भगवान हनुमान जी को समर्पित है और इसे संकटमोचन हनुमान जी का दिव्य धाम माना जाता है।
3. श्री सिद्धबली धाम का नाम कैसे पड़ा?
उत्तर:
किंवदंती के अनुसार, सिद्धबली बाबा कत्युर वंश के राजा कुंवरपाल के पुत्र थे, जिन्हें गोरखनाथ जी का आशीर्वाद प्राप्त हुआ और उन्हें ‘सिद्ध’ की उपाधि मिली। उनके नाम पर इस स्थान का नाम ‘सिद्धबली’ पड़ा।
4. श्री सिद्धबली धाम का पौराणिक महत्व क्या है?
उत्तर:
यह धाम रामायण काल से जुड़ा हुआ माना जाता है। मान्यता है कि संजीवनी बूटी लाते समय भगवान हनुमान जी ने इसी स्थान पर सिद्ध बाबा से भेंट की थी और वचन दिया था कि यहां आने वाले श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी।
5. क्या श्री सिद्धबली धाम में भंडारा आयोजन होता है?
उत्तर:
जी हां, यहां भंडारे के आयोजन के लिए भक्तों को वर्षों पहले से पंजीकरण कराना पड़ता है। वर्तमान में अगले सात वर्षों तक की बुकिंग हो चुकी है।
6. श्री सिद्धबली धाम से संबंधित प्रमुख किंवदंती कौन-सी है?
उत्तर:
किंवदंती के अनुसार, ब्रिटिश शासन काल में एक मुस्लिम ऑफिसर ने इस स्थान पर मंदिर बनाने का स्वप्न देखा और उसके बाद स्थानीय लोगों ने मिलकर मंदिर का निर्माण किया।
7. मंदिर में प्रसाद के रूप में क्या चढ़ाया जाता है?
उत्तर:
मंदिर में प्रसाद के रूप में गुड़ की भेली चढ़ाई जाती है।
8. किस धर्म के लोग श्री सिद्धबली धाम में पूजा करने आते हैं?
उत्तर:
यहां हर धर्म और समुदाय के लोग श्रद्धा के साथ पूजा करने आते हैं।
9. क्या सिद्धबली धाम में धार्मिक अनुष्ठान और त्योहार मनाए जाते हैं?
उत्तर:
जी हां, मंदिर में प्रमुख हिंदू त्योहार जैसे हनुमान जयंती, नवरात्रि, राम नवमी, और अन्य धार्मिक अनुष्ठान धूमधाम से मनाए जाते हैं।
10. श्री सिद्धबली धाम कैसे पहुंचा जा सकता है?
उत्तर:
कोटद्वार रेलवे स्टेशन निकटतम स्टेशन है। यहां से ऑटो या टैक्सी द्वारा मंदिर तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। नजदीकी हवाई अड्डा देहरादून का जॉली ग्रांट एयरपोर्ट है।
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