भगवान रामचन्द्र मंदिर(Mandir Shri Ramchandra Ji)

भगवान रामचन्द्र मंदिर(Mandir Shri Ramchandra Ji)

भगवान रामचन्द्र मंदिर(Mandir Shri Ramchandra Ji)

मणिकरण में भगवान रामचन्द्र मंदिरमणिकरण में एक और बहुत लोकप्रिय मंदिर भगवान रामचन्द्र मंदिर है, जो भगवान राम और उनकी पत्नी देवी सीता को समर्पित है। यह मंदिर 17वीं शताब्दी में राजा जगत सिंह द्वारा बनवाया गया था लेकिन मूर्ति भगवान राम के रूप में है। यह व्यापक रूप से माना जाता है कि राम की मूर्ति सीधे अयोध्या से लाई गई है। शहर के मध्य में स्थित इस मंदिर में भक्तों के लिए पर्याप्त जगह है। यहां का लंगर या सामुदायिक रसोई सभी भक्तों के लिए खुला है।
भगवान रामचन्द्र मंदिर(Mandir Shri Ramchandra Ji)
  1. यात्रा का सर्वोत्तम समय: 7मई से अक्टूबर
  2. खुलने का समय: सभी दिन दिन का समय
  3. प्रवेश शुल्क: निःशुल्क
  4. अवधि: ढाई घंटे
भगवान रामचन्द्र मंदिर(Mandir Shri Ramchandra Ji)
कुल्लू. हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले का भगवान राम से 400 साल पुराना नाता है. यहां पर भगवान रघुनाथ जी का मंदिर मौजूद है. अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर रघुनाथ की नगरी कुल्लू में उत्साह है.यहां पर भगवान रघुनाथ मंदिर के मुख्य छड़ीबदार महेश्वर सिंह भगवान रघुनाथ की चरण पादुका, चौकी, चौउंर लेकर रवाना अयोध्या के लिए रवाना हुए.

भगवान रघुनाथ का अयोध्या से 400 साल पुराना रिश्ता है. अयोध्या के राजस्व रिकॉर्ड में भगवान राम और भगवान त्रेता नाथ ठाकुर के मंदिर का रिकॉर्ड है.1660 ईसवीं में भगवान रघुनाथ कुल्लू आए थे. 300 साल पूरे होने पर कुल्लू में अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन किया गया है. महेश्वर सिंह ने कहा कि कुल्लू में 3 लोगों को अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा का निमंत्रण आया है.
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रतलब है कि महेश्वर सिंह भगवान रघुनाथ के मुख्य सेवक हैं और उनके साथ रघुनाथ के पुजारी सहित तीन लोग अयोध्या गए हैं. रामलला की जन्मभूमि अयोध्या से देवभूमि कुल्लू का 374 साल पुराना रिश्ता है. साल 1650 को रघुनाथ जी की मूर्ति को अयोध्या से कुल्लू लाया गया था. दस साल बाद 1660 को जो कुल्लू पहुंची और यहां पर भगवान रघुनाथ की अध्यक्षता में देवी-देवताओं का बड़ा यज्ञ हुआ. इसी यज्ञ को कुल्लू दशहरा के रूप में मनाया जाता है.
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रघुनाथ मंदिर की कहानी

17वीं सदी में कुल्लू के राजा जगत सिंह के शासन काल (1637 से 1662 ईस्वी) के दौरान हनुमान और माता सीता संग रघुनाथ जी की मूर्ति को कुल्लू लाया गया था. कहा जाता है कि राजा जगत सिंह के शासनकाल में मणिकर्ण घाटी के टिप्परी गांव में एक गरीब ब्राह्मण दुर्गा दत्त रहता था. उस समय किसी के द्वारा राजा जगत सिंह को गरीब ब्राह्मण के पास मोती होने की गलत सूचना दी गई. जब राजा ने ब्राह्मण से मोती मांगे तो ब्राह्मण के पास कोई मोती नहीं थे. जिसके चलते ब्राह्मण ने राजा के डर से अपने परिवार संग आत्मदाह कर लिया. जिसके बाद से राजा जगत सिंह को एक गंभीर बीमारी ने जकड़ लिया.
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अयोध्या से कुल्लू कैसे आए रघुनाथ? जिसके बाद पयोहारी बाबा किशन दास ने राजा जगत सिंह को सलाह दी कि वह अयोध्या के त्रेता नाथ मंदिर से रघुनाथ, माता सीता और हनुमान की मूर्ति को कुल्लू में स्थापित करें और राजा अपना राजपाट भगवान रघुनाथ को सौंप दें तभी उनको ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्ति मिल पाएगी. जिसके बाद राजा जगत सिंह द्वारा अयोध्या से मूर्ति लाने के लिए बाबा किशन दास के भक्त दामोदर दास को भेजा. जब दामोदर दास अयोध्या के त्रेता नाथ मंदिर से भगवान रघुनाथ, माता सीता और हनुमान की मूर्तियां लेकर लौटे तो राजा ने पूरे विधि विधान से इन मूर्तियों को रघुनाथ मंदिर में स्थापित किया और सारा कामकाज भगवान रघुनाथ को सौंप दिया. तब से लेकर आज तक राज परिवार भगवान रघुनाथ के छड़ी बरदार बनकर उनकी सेवा कर रहे हैं.

कुल्लू का दशहरा: कुल्लू जिले में हर साल अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव मनाया जाता है. जिसमें देश-विदेश से लोग शामिल होते हैं. ये दशहरा उत्सव 7 दिन तक चलता है और भगवान रघुनाथ की रथ यात्रा से दशहरा महोत्सव की शुरुआत होती है. इस रथ यात्रा में जिले भर से सैकड़ों देवी-देवता शामिल होते हैं. भगवान रघुनाथ की रथ यात्रा की समाप्ति के साथ ही दशहरा उत्सव का भी समापन होता है.

भगवान रघुनाथ की मूर्ति से जुड़ी मान्यता: बता दें कि भगवान रघुनाथ की मूर्ति कुल्लू में अयोध्या के त्रेता नाथ मंदिर से 1660 ईस्वी में लाई गई थी. मान्यता है कि इस मूर्ति के आने के बाद कुल्लू के राजा को बीमारी से मुक्ति मिली थी. ऐसे में हर साल यहां पर अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव का भी आयोजन किया जाता है. जिसमें जिला कुल्लू के विभिन्न इलाकों से देवी-देवता इस दशहरा उत्सव में शिरकत करते हैं. वहीं, मान्यता है कि भगवान रघुनाथ की यह मूर्ति अश्वमेध यज्ञ के दौरान त्रेता युग में भगवान श्री राम के हाथ से तैयार की गई थी. जिसका राजस्व रिकॉर्ड आज भी अयोध्या में दर्ज है.
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मणिकरण शहर हिमाचल प्रदेश राज्य में 1760 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। मणिकरण अपने ऐतिहासिक, धार्मिक और पर्यटन के रूप में लोगों के बीच काफी लोकप्रिय है। पहाड़ियों में घिरे प्रसिद्ध गुरुद्वारे की भूमि होने के कारण, मणिकरण का भगवान शिव और गुरु नानकजी दोनों का इतिहास यहां देखा जा सकता है।

मणिकरण शहर हिमाचल प्रदेश राज्य में 1760 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। मणिकरण अपने ऐतिहासिक, धार्मिक और पर्यटन के रूप में लोगों के बीच काफी लोकप्रिय है। पहाड़ियों में घिरे प्रसिद्ध गुरुद्वारे की भूमि होने के कारण, मणिकरण का भगवान शिव और गुरु नानकजी दोनों का इतिहास यहां देखा जा सकता है। मणिकरण में कई पर्यटन स्थल हैं, जिसमें खूबसूरत मंदिर, खीर गंगा और पार्वती घाटी के ट्रैकिंग ट्रेल्स शामिल है, लेकिन सबसे लोकप्रिय आकर्षण यहां के गर्म पानी के झरने हैं। यहां भाप लगातार पृथ्वी की सतह के नीचे से उठती है, जिसकी वजह से पानी यहां गर्म रहता है। साथ ही इन पानी में हीलिंग पावर भी है, जिसमें स्नान करने से कई बीमारियां ठीक होती हैं।

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