सिद्धपीठ हटकुणी उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल
सिद्धपीठ हटकुणी उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले में स्थित एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यह स्थान देवी हटकुणी माता को समर्पित है और इसे क्षेत्र के लोगों द्वारा अत्यंत पवित्र माना जाता है। हटकुणी माता को इस क्षेत्र की आराध्य देवी के रूप में पूजा जाता है, और यह स्थान अपनी प्राचीन परंपराओं, तांत्रिक साधनाओं और दिव्य वातावरण के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ पर भक्तजन दूर-दूर से आते हैं, विशेष रूप से नवरात्रों के दौरान, जब यहाँ भव्य आयोजन होते हैं।
हटकुणी पीठ का इतिहास
सिद्धपीठ हटकुणी का इतिहास बहुत पुराना है और इसे कई धार्मिक कथाओं और मान्यताओं से जोड़ा जाता है। माना जाता है कि इस पीठ की स्थापना आदि शंकराचार्य ने की थी, जिन्होंने हिंदू धर्म के पुनरुत्थान के लिए अनेक पीठों की स्थापना की थी।
प्रमुख पौराणिक कथाएँ:
हटकुणी माता की उत्पत्ति: एक मान्यता के अनुसार, हटकुणी माता महिषासुर मर्दिनी का अवतार मानी जाती हैं, जिन्होंने महिषासुर जैसे राक्षस का वध किया था। यह स्थान उनके वीरता और शक्ति का प्रतीक है।
देवी का आह्वान: एक अन्य कथा के अनुसार, जब टिहरी क्षेत्र में आसुरी शक्तियों का वर्चस्व बढ़ गया था, तब देवी हटकुणी का आह्वान किया गया था। उनके आगमन के बाद से ही यहाँ पर शांति और समृद्धि का दौर शुरू हुआ।
सिद्धपीठ हटकुणी की विशेषताएँ
तांत्रिक साधनाएँ: हटकुणी पीठ विशेष रूप से तांत्रिक साधकों के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ पर अनेक साधक अपनी साधनाएँ करते हैं और सिद्धियों की प्राप्ति के लिए तपस्या करते हैं। यहाँ पर विभिन्न तंत्र-मंत्र के अनुष्ठान भी किए जाते हैं।
पवित्र गुफाएँ: हटकुणी सिद्धपीठ के आसपास अनेक पवित्र गुफाएँ हैं, जिनमें साधक ध्यान और साधना करते हैं। इन गुफाओं में प्राकृतिक ऊर्जा का भंडार माना जाता है, जो साधकों की साधना को प्रभावशाली बनाती है।
अद्वितीय शांति और प्राकृतिक सौंदर्य: हटकुणी सिद्धपीठ अपने अद्वितीय प्राकृतिक सौंदर्य और शांति के लिए जाना जाता है। यह स्थान हिमालय की गोद में बसा हुआ है और यहाँ की प्राकृतिक छटा अद्भुत है। यहां के वातावरण में एक दिव्य शांति और पवित्रता महसूस की जा सकती है।
धार्मिक अनुष्ठान और मेले: यहाँ पर नियमित रूप से धार्मिक अनुष्ठान और मेले आयोजित किए जाते हैं। नवरात्रि के दौरान विशेष पूजा और अनुष्ठान होते हैं, जिनमें हजारों भक्त भाग लेते हैं।
हटकुणी सिद्धपीठ का महत्व
आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र: हटकुणी पीठ को एक अद्वितीय आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र माना जाता है। यह स्थान ध्यान, साधना और तांत्रिक अनुष्ठानों के लिए आदर्श है। यहाँ पर साधक आत्मिक शांति और सिद्धियों की प्राप्ति के लिए आते हैं।
समृद्ध सांस्कृतिक विरासत: हटकुणी पीठ उत्तराखंड की समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह स्थान स्थानीय संस्कृति और परंपराओं का प्रतीक है।
आस्था का प्रतीक: हटकुणी माता की आराधना से भक्तों को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। यहाँ पर आने वाले श्रद्धालु अपनी समस्याओं का समाधान प्राप्त करते हैं और अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए माता की शरण में आते हैं।
हटकुणी सिद्धपीठ तक कैसे पहुँचें
सिद्धपीठ हटकुणी तक पहुँचने के लिए निम्नलिखित मार्ग उपलब्ध हैं:
निकटतम हवाई अड्डा: जॉली ग्रांट हवाई अड्डा, देहरादून (लगभग 150 किलोमीटर दूर)
निकटतम रेलवे स्टेशन: ऋषिकेश रेलवे स्टेशन (लगभग 135 किलोमीटर दूर)
सड़क मार्ग: हटकुणी पीठ तक सड़क मार्ग द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है। यह स्थान टिहरी गढ़वाल के प्रमुख स्थानों से सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है।
हटकुणी सिद्धपीठ का दौरा करने का सही समय
हटकुणी सिद्धपीठ का दौरा करने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से जून के बीच होता है। इस समय के दौरान, मौसम सुहावना होता है और श्रद्धालु आराम से अपनी यात्रा का आनंद ले सकते हैं। विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान यहां आना अत्यधिक लाभकारी माना जाता है।
हटकुणी में आयोजित प्रमुख उत्सव
नवरात्रि: नवरात्रि के दौरान हटकुणी पीठ पर विशेष पूजा और अनुष्ठान होते हैं। यह समय देवी की आराधना के लिए सबसे पवित्र माना जाता है।
वार्षिक मेला: हटकुणी पीठ पर हर साल एक वार्षिक मेला आयोजित किया जाता है, जिसमें हजारों भक्त भाग लेते हैं और देवी का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
आस-पास के दर्शनीय स्थल
तेहरी झील: यह एक विशाल जलाशय है जो जल क्रीड़ा के लिए प्रसिद्ध है। हटकुणी पीठ के निकट होने के कारण यह पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है।
चंद्रबदनी मंदिर: एक और प्रसिद्ध धार्मिक स्थल जो देवी चंद्रबदनी को समर्पित है। यह स्थान प्राकृतिक सुंदरता और धार्मिक महत्व के लिए जाना जाता है।
सुरकंडा देवी मंदिर: यह मंदिर देवी दुर्गा के एक रूप को समर्पित है और अपने अद्वितीय वास्तुकला और मनोहारी दृश्यों के लिए प्रसिद्ध है।
यात्रा के दौरान ध्यान देने योग्य बातें
- आवश्यक वस्त्र: चूंकि यह स्थान पहाड़ी क्षेत्र में स्थित है, इसलिए गर्म कपड़े ले जाना आवश्यक है।
- आवश्यक दवाइयाँ: यदि आप किसी विशेष चिकित्सा की आवश्यकता रखते हैं, तो अपनी दवाइयाँ साथ ले जाना न भूलें।
- पानी और खाद्य सामग्री: अपनी यात्रा के दौरान पानी और खाद्य सामग्री साथ ले जाएं, क्योंकि पहाड़ी क्षेत्रों में इन्हें प्राप्त करना कठिन हो सकता है।
- स्थान के नियमों का पालन करें: सिद्धपीठ पर जाने से पहले वहाँ के नियमों और अनुशासन का पालन करें।
निष्कर्ष
सिद्धपीठ हटकुणी एक अद्वितीय धार्मिक और आध्यात्मिक स्थल है, जो अपनी समृद्ध धार्मिक परंपराओं और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है। यह स्थान भक्तों के लिए एक दिव्य अनुभव प्रदान करता है और उन्हें आत्मिक शांति और समृद्धि की प्राप्ति में सहायक होता है। यदि आप धार्मिक यात्रा की योजना बना रहे हैं, तो हटकुणी पीठ का दौरा अवश्य करें और देवी हटकुणी के आशीर्वाद से अपनी जीवन यात्रा को सफल बनाएं।
पौराणिक शक्तिपीठ माँ राजराजेश्वरी चूलागढ़
हिमालय का गढ़वाल क्षेत्र देव भूमि के नाम से विख्यात है। यह भूमि अनादिकाल से देवी देवताओं की निवास स्थली और अवतारों की लीला भूमि रही है। यहां पर प्रसिद्ध ऋषियों ने ज्ञान विज्ञान की ज्योति जलाई और समस्त वेद, पुराणों, शास्त्रों की रचना की।
माँ राज राजेश्वरी का पावन शक्तिपीठ इसी हिमालय पर्वत पर स्थित है। श्रीमुख पर्वत, बालखिल्य पर्वत, वारणावत पर्वत और श्रीक्षेत्र के अंतर्गत माँ राज राजेश्वरी के परमधाम का वर्णन मिलता है।
माँ राजराजेश्वरी का मंदिर बालखिल्य पर्वत की सीमा में मणि द्वीप आश्रम में स्थित है जो कि बासर, केमर, भिलंग एवं गोनगढ़ के केन्द्रस्थल में चमियाला से 15 कि.मि. और मांदरा गाँव से 2 कि.मि. दूरी पर रमणीक पर्वत पर स्थित है।
माँ राज राजेश्वरी के बारे में आख्यान मिलता है कि देवासुर संग्राम के समय आकाश मार्ग से गमन करते समय भगवती का खड्ग (एक अज्ञात धातु से बना एक "शक्ति शस्त्र" तलवार जैसा हथियार) चुलागढ की पहाड़ी पर गिरा था। भारतीय पुरातत्व विभाग के अनुसार पिछले लाखों वर्षों से मंदिर के गर्भगृह में यह 'शक्ति शस्त्र' मौजूद है। माँ राज राजेश्वरी दस "महाविद्या" में से एक 'त्रिपुर सुंदरी' का रूप हैं। माता राज राजेश्वरी टिहरी रियासत के राज वंश द्वारा पूजी जाती थी। कनक वंश के राजा सत्य सिंध (छत्रपति) ने 14 वीं शताब्दी में माँ राजराजेश्वरी मंदिर का पुनर्निर्माण कराया था।
स्कंदपुराण में यह उल्लेख मिलता है कि एक बार जब पृथ्वी पर अवश्रण हुआ तो ब्रह्मा जी ने इसी देव भूमि में आकर माँ राज राजेश्वरी का स्तवन किया। स्कन्दपुराण में निम्न उल्लेख है:-
शिवां सरस्वती लक्ष्मी, सिद्धि बुद्धि महोत्सवा।
केदारवास सुंभंगा बद्रीवास सुप्रियम।।
राज राजेश्वरी देवी सृष्टि संहार कारिणीम ।
माया मायास्थितां वामा, वाम शक्ति मनोहराम।।
(स्कन्दपुराण, केदारखण्ड अध्याय 110)
राजा सत्यसिन्ध (छत्रपति ) की राजधानी छतियारा थी जो कि चूलागढ़ से मात्र 6 कि.मि. पर स्थित है। राजा सत्यसिन्ध ने चूलागढ़ में माँ राज राजेश्वरी की उपासना की जिसकी राजधानी के ध्वंसावशेष आज भी छतियारा के नजदीक देखने को मिलते हैं। पंवार वंशीय शासक अजयपाल का यहां गढ़ होने का प्रमाण मिलता है। चूलागढ़ पर्वत से खैट पर्वत, यज्ञकुट पर्वत, भैरवचटी पर्वत, , हटकुणी तथा भृगु पर्वत का निकटता से दृष्यावलोकन किया जा सकता है। माँ राज राजेश्वरी मंदिर से थोड़ी दूरी पर "गज का चबूतरा" नामक स्थल है जहां पर राजा की कचहरी लगती थी। इसके नजदीक ही राजमहल और सामंतों के निवास थे।जिनके ध्वंशावशेष यहां विखरे पड़े हैं। गढ़पति ने पानी की व्यवस्था एवं सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए मंदिर से दो किलोमीटर लंबी सुरंग जमीन के अंदर खुदवाई थी जो मंदिर के नीचे वहने वाली बालगंगा तक जाती थी। इसमे जगह जगह पत्थर के दीपक विद्यमान थे जिनसे रोशनी की जाती थी। सुरंग में जाने के लिए पत्थर की सीढ़ियां बनी हुई थी। अभी यह सुरंग बंद पड़ी हुई है।
मंदिर में पूजा दो रावल (पुजारी) द्वारा की जा रही है, जो गांव "मांदरा" के नौटियाल वंशीय परिवारों के हैं। रावल की सहायता के लिए महाराजा टिहरी ने केपार्स के चौहान परिवारों को गजवाण गांव में जमीन गूंठ में दान दी हुई है।जो कि भगवती के नाम से आज भी विद्यमान है। मंदिर में नवरात्रों में सेवा कार्य केपार्स और गडारा गांवों के 'चौहान' परिवारों द्वारा किया जाता है।
मंदिर में नवरात्रि, पूजन एवं जात के दौरान छतियारा के 'गड़वे' (
माता के दास) द्वारा ढोल, दमांऊ बजाया जाता है। इन्हें भी महाराजा द्वारा भरण पोषण हेतु जमीन दान दी हुई है।
माँ राज राजेश्वरी मंदिर में प्रत्येक नवरात्रों में पूजा अर्चना की जाती है। तथा दूर-दूर से श्रद्धालु यहाँ आते हैं और अपनी मनौती मांगते हैं और माँ का आशीर्वाद लेते हैं। मंदिर में माँ राज राजेश्वरी मंदिर ट्रस्ट के द्वारा नित्य धूप दीप, साफ सफाई तथा रखरखाव का प्रवन्ध किया गया है। मंदिर में जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए ठहरने की पूर्ण व्यवस्था है।
Jaidev Bhumi
उत्तराखंड के खूबसूरत पहाड़ों, सांस्कृतिक धरोहर, और धार्मिक स्थलों की यात्रा पर आपका स्वागत है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें