भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त अक्रूर: स्नान के समय हुआ दिव्य दर्शन - bhagavan shrikrishn ke param bhakt akroor: snan ke samay hua divya darshan
भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त अक्रूर: स्नान के समय हुआ दिव्य दर्शन
प्रस्तावना
भगवान श्रीकृष्ण की लीलाएँ केवल चमत्कारिक ही नहीं, बल्कि वे भक्तों के प्रति अपनी अपार कृपा और प्रेम भी प्रकट करती हैं। अक्रूर, श्रीकृष्ण के परम भक्त थे, जिनके जीवन में श्रीकृष्ण के साथ कई महत्वपूर्ण प्रसंग जुड़े हैं। अक्रूर जी का चरित्र एक ऐसा उदाहरण है, जो हमें भक्ति और विश्वास की वास्तविकता सिखाता है। आज हम आपको अक्रूरजी की कहानी बताएंगे, जिसमें उन्होंने स्नान करते समय भगवान कृष्ण का चतुर्भुज रूप देखा।
अक्रूरजी और श्रीकृष्ण
अक्रूरजी, भगवान श्रीकृष्ण के चाचा उग्रसेन के दरबारी थे। कंस द्वारा उग्रसेन को कैद कर लेने के बाद भी, अक्रूर ने अपने कर्तव्यों का पालन जारी रखा और गुप्त रूप से लोगों की रक्षा करते रहे। उन्होंने ही श्रीकृष्ण की पहली पत्नी रोहिणी को मथुरा से यशोदा के पास गोकुल पहुंचाया था। भगवान श्रीकृष्ण के प्रति उनकी भक्ति अत्यंत गहरी थी, जिसे एक महत्वपूर्ण घटना के माध्यम से और स्पष्ट रूप से देखा गया।
कंस की साजिश और अक्रूर का भेजा जाना
कंस ने श्रीकृष्ण को समाप्त करने के लिए कई प्रयास किए, लेकिन सभी विफल रहे। अंततः उसने एक धनुष यज्ञ आयोजित किया और मल्लयुद्ध में श्रीकृष्ण को मारने की योजना बनाई। इसके लिए कंस ने अक्रूरजी को श्रीकृष्ण और बलराम को वृंदावन से लाने का आदेश दिया। अक्रूरजी भगवान के दर्शन के लिए अत्यंत उत्सुक थे और रास्ते में कई प्रकार की कल्पनाएं करने लगे।
स्नान के समय चतुर्भुज रूप का दर्शन
जब अक्रूरजी मथुरा जाते समय यमुना नदी के ब्रह्मह्रद स्थान पर स्नान करने रुके, तो भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अपना दिव्य चतुर्भुज रूप दिखाया। अक्रूरजी जैसे ही नदी में डुबकी लगाए, उन्हें पानी में भगवान श्रीकृष्ण का चतुर्भुज रूप दिखाई दिया। घबराए अक्रूरजी ने बाहर आकर देखा कि कृष्ण और बलराम रथ पर बैठे हैं। पुनः डुबकी लगाने पर वही रूप जल में दिखा। इस दिव्य दर्शन से अक्रूरजी को एहसास हुआ कि श्रीकृष्ण ही सर्वव्यापक ब्रह्म हैं। इसके बाद उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण को प्रणाम किया और मथुरा पहुंचे।
अक्रूरजी का पांडवों के बारे में जानकारी देना
महाभारत काल में श्रीकृष्ण ने अक्रूरजी को हस्तिनापुर में पांडवों की स्थिति की जानकारी देने के लिए भेजा। अक्रूरजी ने कौरवों द्वारा पांडवों पर किए गए अन्याय की जानकारी दी। पुराणों में वर्णित है कि स्यमंतक मणि भी अक्रूरजी के पास थी, जिसे श्रीकृष्ण ने अकाल के समय मंगवाया था। मृत्यु के बाद अक्रूरजी की पत्नियों ने तपस्या के लिए वन में जाने का निश्चय किया, लेकिन श्रीकृष्ण के पौत्र वज्र ने उन्हें रोकने की कोशिश की।
सारांश
अक्रूरजी का जीवन श्रीकृष्ण की भक्ति, विश्वास और दिव्य दर्शन का प्रतीक है। उनके द्वारा स्नान के समय श्रीकृष्ण के चतुर्भुज रूप का दर्शन इस बात का प्रमाण है कि भक्ति में परम सत्य को पहचानने की शक्ति होती है। अक्रूरजी ने भगवान श्रीकृष्ण की उपासना और भक्तिपथ की एक उत्कृष्ट मिसाल प्रस्तुत की है, जिसे आज भी श्रद्धा और भक्ति के रूप में याद किया जाता है।
जय श्रीकृष्ण!
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