भगवान कृष्ण और माँ यशोदा: ममतामयी बंधन की कथा
प्रस्तावना
भगवान श्रीकृष्ण के बाल्यकाल की लीलाओं में उनकी माँ यशोदा के साथ की घटनाएँ बहुत ही प्रसिद्ध हैं। यशोदा का प्रेम और कृष्ण की शरारतें दोनों ही अद्वितीय थे। यशोदा और कृष्ण के बीच का यह बंधन सिर्फ माँ-बेटे का ही नहीं था, बल्कि इसमें एक दिव्य संबंध और भक्ति की अद्भुत झलक भी थी। इस कथा में यशोदा की कोशिशें और कृष्ण का चमत्कारिक रूप, दोनों ही महत्वपूर्ण हैं।
भगवान कृष्ण की शरारतें और यशोदा का निर्णय
कृष्ण अपनी बाल्यावस्था में बेहद शरारती थे, और उनकी इन शरारतों से गोकुलवासी तो परेशान होते ही थे, उनकी माँ यशोदा भी थक चुकी थीं। एक दिन, जब कृष्ण ने कोई बड़ी शरारत कर दी, तो यशोदा ने ठान लिया कि वह उन्हें सबक सिखाने के लिए बाँधेंगी। यशोदा रस्सी लेकर आईं और कृष्ण को बाँधने की कोशिश करने लगीं, लेकिन जैसे ही वह रस्सी बांधने लगीं, उन्हें एहसास हुआ कि रस्सी छोटी पड़ गई है।
यशोदा की कोशिशें और कृष्ण का चमत्कार
यशोदा ने सोचा कि शायद रस्सी छोटी थी, इसलिए वह एक और बड़ी रस्सी लेकर आईं, लेकिन वह रस्सी भी छोटी पड़ गई। फिर उन्होंने तीसरी रस्सी का प्रयास किया, लेकिन वह भी कृष्ण को बाँधने के लिए पर्याप्त नहीं थी। यशोदा को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि इतनी सारी रस्सियों के बावजूद भी वह अपने बेटे को बाँध नहीं पा रहीं। तभी उन्हें एहसास हुआ कि उनका बेटा साधारण नहीं है; वह कुछ चमत्कारी है।
जब यशोदा पूरी तरह से निराश हो गईं, तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी माँ को प्रसन्न करने के लिए उन्हें स्वयं को बाँधने की अनुमति दी। इस प्रकार, यशोदा ने अंततः अपने पुत्र को बाँध दिया, लेकिन यह बाँधना सिर्फ शारीरिक नहीं था, यह ममता और भक्ति का बंधन था जो यशोदा और कृष्ण के बीच था।
कथा की सीख
इस कथा से हमें यह सीख मिलती है कि चमत्कार हो सकते हैं, बशर्ते हमें उन पर विश्वास हो। कृष्ण का अपनी माँ के प्रति प्रेम और सम्मान इस बात को दर्शाता है कि चाहे हम कितने भी शक्तिशाली क्यों न हों, हमें अपने माता-पिता का सम्मान करना चाहिए और उन्हें प्रसन्न रखने का प्रयास करना चाहिए।
उपसंहार
भगवान श्रीकृष्ण और यशोदा के बीच का यह संबंध हमें जीवन में माँ-बेटे के अटूट प्रेम और भक्ति का महत्व सिखाता है। यह कथा हमें यह भी सिखाती है कि ईश्वर की लीलाएँ चमत्कारी होती हैं, और हमें उनके चमत्कारों में विश्वास रखना चाहिए। साथ ही, यह भी ध्यान रखना चाहिए कि हमारे माता-पिता हमारे लिए सबसे बड़ी शक्ति और आशीर्वाद हैं, और हमें हमेशा उनके प्रति आदर और प्रेम बनाए रखना चाहिए।
जय श्रीकृष्ण!
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