गणेश पूजा की विधि और पत्तों की अर्पण विधि: एक सम्पूर्ण मार्गदर्शिका - ganesh puja ki vidhi aur patton ki arpan vidhi: ek sampoorn margadarshika
गणेश पूजा की विधि: पत्तों की अर्पण विधि, शास्त्रीय प्रक्रिया और मूर्तिकला
गणेश: हिन्दू धर्म के प्रमुख देवता और उनकी महत्वपूर्ण कथाएँ
गणेश (अंग्रेज़ी: Ganesha) भारत के अति प्राचीन देवता हैं। गणेश शब्द ऋग्वेद में भी मिलता है और यजुर्वेद में भी इसका उल्लेख है। गणेश को शिव परिवार के देवता के रूप में पूजा जाता है और प्रत्येक शुभ कार्य से पहले उनकी पूजा की जाती है। गणेश को यह महत्वपूर्ण स्थान कब से प्राप्त हुआ, इस संबंध में अनेक मत प्रचलित हैं।
गणेश की कथा
पुराणों में गणेश के संबंध में कई कथाएँ वर्णित हैं:
सिर का कथन: एक कथा के अनुसार, जब शनि की दृष्टि गणेश के सिर पर पड़ी, तो उनका सिर जलकर भस्म हो गया। पार्वती के दुःख को देखकर ब्रह्मा ने सलाह दी कि जो पहला सिर मिले, उसे गणेश के शरीर पर लगा दिया जाए। पहला सिर हाथी के बच्चे का मिला, जिससे गणेश 'गजानन' बन गए।
द्वार पर बिठाना: एक अन्य कथा में, पार्वती ने गणेश को द्वार पर बिठा दिया और स्नान करने चली गईं। जब शिव पार्वती के भवन में प्रवेश करने लगे, तो गणेश ने उन्हें रोका। शिव ने क्रोधित होकर गणेश का सिर काट दिया।
एक दांत का कथन: एक और कथा के अनुसार, परशुराम जब शिव से मिलने आए, तो गणेश ने उन्हें रोका। इस पर परशुराम ने अपने फरसे से गणेश का एक दांत तोड़ दिया।
आर्येतर पूजा: कुछ विद्वानों का मानना है कि गणेश की पूजा आर्येतर जातियों द्वारा की जाती थी। हाथी की पूजा आरंभ में रक्त से की जाती थी, और बाद में सिन्दूर चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई।
गणेश की मान्यता
हिन्दू धर्म में गणेश जी को सर्वोपरि स्थान प्राप्त है। गणेश जी विघ्न विनायक हैं और भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को उनका जन्म हुआ था। गणेश का स्वरूप अत्यन्त मनोहर और मंगलकारी है। वे एकदन्त और चतुर्बाहु हैं, और उनके हाथों में पाश, अंकुश, मोदकपात्र और वरमुद्रा होती है। वे रक्तवर्ण और लम्बोदर हैं और रक्त चन्दन धारण करते हैं।
गणेश के प्रमुख नाम
गणेश के बारह प्रमुख नाम हैं, जिनका पाठ अथवा श्रवण करने से विघ्न दूर होते हैं। ये नाम हैं:
- सुमुख
- एकदन्त
- कपिल
- गजकर्णक
- लम्बोदर
- विकट
- विघ्ननाशक
- विनायक
- धूम्रकेतु
- गणाध्यक्ष
- भालचन्द्र
- विघ्नराज
पुराणों में वर्णन
गणेश के प्राकट्य और उनकी लीलाओं का वर्णन विभिन्न पुराणों में मिलता है:
पद्म पुराण: एक बार पार्वती ने अपने शरीर के मैल से एक पुरुषाकृति बनाई, जिसका मुख हाथी के समान था। जब उस आकृति को गंगा में डाला गया, तो वह विशाल हो गई। पार्वती ने उसे पुत्र कहकर पुकारा और देवताओं ने उन्हें गणेश नाम दिया।
लिंग पुराण: देवताओं ने शिव से दानवों के दुष्टकर्म में विघ्न उत्पन्न करने का वर मांगा। शिव ने 'तथास्तु' कहकर गणेश का प्राकट्य किया। गणेश का मुख हाथी के समान था और उनके हाथ में त्रिशूल और पाश थे।
ब्राह्म वैवर्त पुराण, स्कन्द पुराण और शिव पुराण: इन पुराणों में भी गणेश के अवतार की भिन्न-भिन्न कथाएँ मिलती हैं। प्रजापति विश्वकर्मा की दो कन्याएँ सिद्धि और बुद्धि गणेश की पत्नियाँ हैं, जिनसे दो पुत्र हुए: क्षेम और लाभ।
गणेश की पूजा से विघ्न दूर होते हैं और जीवन में सुख, समृद्धि और शांति आती है। गणेश जी की उपासना में श्रद्धा और भक्ति से की गई पूजा विशेष लाभकारी होती है।
गणेश जी की पूजा और उनके विभिन्न रूपों का वर्णन पुराणों में विस्तृत रूप से मिलता है। गणेश जी का वाहन समय-समय पर बदलता रहा है, और उनके प्रत्येक युग के वाहन में उनका विशेष महत्व और प्रतीकात्मकता है।
गणेश जी के विभिन्न युगों के वाहन:
सत्य युग: इस युग में गणेश जी का वाहन सिंह था। वे दस भुजाओं वाले और तेजस्वरूप थे। उनका नाम विनायक था।
त्रेतायुग: इस युग में गणेश जी का वाहन मयूर था। वे छह भुजाओं वाले और श्वेत वर्ण के थे। इस समय वे मयूरेश्वर के नाम से प्रसिद्ध थे।
द्वापर युग: इस युग में गणेश जी का वर्ण लाल था। वे चार भुजाओं वाले थे और मूषक उनका वाहन था। इस समय वे गजानन के नाम से प्रसिद्ध हुए।
कलि युग: इस युग में गणेश जी का रंग धूम्रवर्ण है। वे घोड़े पर आरूढ़ रहते हैं और उनके दो हाथ होते हैं। उनका नाम धूम्रकेतु है।
गणेश जी की कथा और मान्यताएँ:
सृष्टि की कथा: एक बार पार्वती जी ने अपने शरीर के मैल से एक आकृति बनाई, जिसका मुख हाथी के समान था। जब भगवान शिव ने इसे देखा और पार्वती जी के आदेश के बिना अंदर प्रवेश किया, तो गणेश जी का सिर काट दिया गया। बाद में हाथी के बच्चे का सिर लगाकर गणेश जी को गजानन नाम दिया गया।
पारंपरिक पूजा और उपासना: गणेश जी की पूजा की शुरुआत किसी भी कार्य से पहले की जाती है, ताकि विघ्न दूर हों और कार्य सफल हो। गणेश जी को बुद्धि, समृद्धि और सिद्धियों के दाता माना जाता है।
प्रमुख नाम: गणेश जी के बारह प्रमुख नाम हैं जैसे सुमुख, एकदन्त, कपिल, गजकर्णक, लम्बोदर, विकट, विघ्ननाशक, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचन्द्र, विघ्नराज, द्वैमातुर, गणाधिप, हेरम्ब, गजानन।
पूजा विधि और विशेषताएँ:
विधि: गणेश जी की पूजा में 21 पत्तियों की अर्पण का विधान है, जिन्हें गणेश जी के प्रधान नामों से संबोधित किया जाता है। इनकी पूजा केवल पेड़-पौधों की पत्तियों से भी की जा सकती है, और यह पूजा बहुत ही सरल है।
विशेषताएँ: गणेश जी संगीत के स्वर 'धैवत' से जुड़े हुए हैं। वे सभी सिद्धियों और समृद्धियों के दाता हैं और अपनी उपासना से जल्दी प्रसन्न होते हैं। गणेश जी की पूजा में पत्तियों, फूलों और सरल सामग्री से भी आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है।
गणेश जी की आराधना हर भक्त के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि वे विघ्नों को दूर करते हैं और हर प्रकार के कार्य में सफलता के लिए मार्गदर्शन करते हैं
गणेश जी की पूजा के लिए विभिन्न पत्तों और सामग्री की अर्पण विधि शास्त्रों में उल्लेखित है। यह विधि विशेष रूप से गणेश जी की पूजा को अधिक प्रभावी और फलदायी बनाती है। निम्नलिखित विवरण में गणेश जी की पूजा विधि, पत्तों की अर्पण विधि, और मूर्तिकला के बारे में जानकारी दी गई है:
गणेश पूजा की विधि
पत्तों की अर्पण विधि:
- सुमुखाय नमः - शमी पत्र चढ़ाएं।
- गणाधीशाय नमः - भंगरैया का पत्ता चढ़ाएं।
- उमापुत्राय नमः - बिल्वपत्र चढ़ाएं।
- गजमुखाय नमः - दूर्वादल चढ़ाएं।
- लम्बोदराय नमः - बेर के पत्ते चढ़ाएं।
- हरसूनवे नमः - धतूरे के पत्ते चढ़ाएं।
- शूर्पकर्णाय नमः - तुलसी दल चढ़ाएं।
- वक्रतुण्डाय नमः - सेम के पत्ते चढ़ाएं।
- गुहाग्रजाय नमः - अपामार्ग के पत्ते चढ़ाएं।
- एकदन्ताय नमः - भटकटैया के पत्ते चढ़ाएं।
- हेरम्बाय नमः - सिंदूर वृक्ष के पत्ते चढ़ाएं।
- चतुर्होत्रे नमः - तेजपात के पत्ते चढ़ाएं।
- सर्वेश्वराय नमः - अगस्त के पत्ते चढ़ाएं।
- विकराय नमः - कनेर के पत्ते चढ़ाएं।
- इभतुण्डाय नमः - अश्मात के पत्ते चढ़ाएं।
- विनायकाय नमः - मदार के पत्ते चढ़ाएं।
- कपिलाय नमः - अर्जुन के पत्ते चढ़ाएं।
- बटवे नमः - देवदारु के पत्ते चढ़ाएं।
- भालचंद्राय नमः - मरुआ के पत्ते चढ़ाएं।
- सुराग्रजाय नमः - गांधारी के पत्ते चढ़ाएं।
- सिद्धि विनायकाय नमः - केतकी के पत्ते चढ़ाएं।
पूजा की शास्त्रीय विधि:
गणेश पूजा की शास्त्रीय विधि में 16 प्रमुख क्रियाएँ होती हैं:
- आह्वान - देवता को बुलाना।
- आसन - देवता के लिए आसन तैयार करना।
- पाद्य - देवता के चरणों को धोना।
- अध्र्य - देवता को जल अर्पित करना।
- आचमनीय - जल का आचमन।
- स्नान - देवता को स्नान कराना।
- वस्त्र - देवता को वस्त्र अर्पित करना।
- यज्ञोपवीत - देवता को यज्ञोपवीत पहनाना।
- गंधपुष्प - सुगंधित वस्त्र और पुष्प अर्पित करना।
- पुष्पमाला - पुष्पमाला अर्पित करना।
- धूप-दीप - धूप और दीप जलाना।
- नैवेद्य - खाद्य पदार्थ अर्पित करना।
- ताम्बूल - पान और सुपारी अर्पित करना।
- आरती - आरती उतारना।
- प्रदक्षिणा - देवता की परिक्रमा करना।
- पुष्पांजलि - पुष्पांजलि अर्पित करना।
गणेश की मूर्तिकला:
गणेश जी की मूर्तिकला भारतीय कला और संस्कृति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है:
- मूर्तियाँ: गणेश जी की मूर्तियाँ विभिन्न आकारों और प्रकारों में होती हैं। आरंभ में दो भुजाओं वाली मूर्तियाँ थीं, लेकिन धीरे-धीरे सोलह भुजाओं तक की मूर्तियाँ भी बनाई जाने लगीं।
- स्थापन: गणेश जी की मूर्तियाँ उत्तर भारत में कम देखने को मिलती हैं, जबकि महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में इनकी पूजा और उत्सव विशेष रूप से धूमधाम से मनाए जाते हैं।
- महाराष्ट्र का गणेश उत्सव: महाराष्ट्र में गणेश उत्सव ने धार्मिक और राजनीतिक महत्व भी प्राप्त कर लिया है।
गणेश जी की पूजा विधिवत और पूर्ण समर्पण भाव से करने से न केवल व्यक्तिगत लाभ होता है, बल्कि घर और परिवार में सुख-शांति और समृद्धि भी आती है।
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