गणेश चतुर्थी के पारंपरिक शायरी और गीत "उत्तराखंड " - ganesh chaturthi ke paramparik shayari aur geet "uttarakhand "

गणेश चतुर्थी के पारंपरिक शायरी और गीत

"ओम्-प्रभात कु पर्व जाग": उत्तराखंड का पवित्र जागरण गीत

परिचय
उत्तराखंड की भूमि धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं की अद्भुत धरोहर है। यहाँ के निवासियों का जीवन प्रकृति, देवताओं, और आध्यात्मिकता से गहराई से जुड़ा हुआ है। इन्हीं परंपराओं में एक पवित्र जागरण गीत "ओम्-प्रभात कु पर्व जाग" है, जो न केवल देवताओं का आह्वान करता है, बल्कि समस्त सृष्टि के जागरण की प्रार्थना करता है। यह गीत उत्तराखंड के धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसे विशेष अवसरों पर गाया जाता है।

गीत का भावार्थ
यह जागरण गीत अपने आप में एक सम्पूर्ण आह्वान है, जो समस्त सृष्टि और जीवन के विभिन्न पहलुओं को जागृत करने की प्रार्थना करता है। इस गीत के माध्यम से पहाड़ी समाज अपनी आस्था, परंपराओं और जीवन के प्रति सम्मान प्रकट करता है। यह गीत विशेष रूप से उन अवसरों पर गाया जाता है जब किसी विशेष अनुष्ठान या पूजा का आयोजन किया जाता है।

गीत के बोल

ओम्-प्रभात कु पर्व जाग, गो-सरूप पृथ्वी जाग,
धर्म-सरुपी आकाश जाग, उदंकारी-काँठा जाग।
भानु पंखी-गरुण जाग, सप्त लोक जाग, इंद्र लोक जाग,
मेघ लोक जा----ग।

सुर्या-लोक जाग, चन्द्र-लोक जाग, तारा-लोक जाग,
पवन-लोक जाग, ब्रम्हा का वेद जाग, गोरी का गणेश जाग।
हरु भरू संसार जाग, जीव-जाग जीवन जा----ग।

सेतु-समुद्र जाग, खारी-समुद्र जाग, दुधी-समुद्र जाग,
खेराणी-समुद्र जाग।
घोर-समुद्र जाग, अघोर समुद्र जाग, प्रचंड-समुद्र जाग,
श्वेत-बंधू रामेश्वर जा----ग।

हियूं-हिवालू जाग, पाणी-पयाणु जाग, बाला-बैजनाथ जाग,
धोली-देवप्रयाग जाग।
हरी कु हरिद्वार जाग, काशी-विश्वनाथ जाग, बुढा-केदार जाग,
भोला शम्भू नाथ जाग।
काली-कुमाऊ जाग, चोपड़ा-चोथाण जाग, खटिम कु लिंग जाग,
सोबन की गादि जा----ग।

गीत का संदेश
इस जागरण गीत के माध्यम से हम केवल देवताओं का आह्वान नहीं करते, बल्कि यह गीत समस्त सृष्टि की जागृति की प्रार्थना करता है। यह गीत हमारे जीवन में प्राकृतिक तत्वों की महत्वता को भी दर्शाता है, जैसे सूर्य, चन्द्र, तारे, पवन, समुद्र आदि। इस गीत के बोल हमें यह याद दिलाते हैं कि हम सभी प्रकृति के अंग हैं और हमें अपनी सांस्कृतिक धरोहर का आदर और सम्मान करना चाहिए।

निष्कर्ष
"ओम्-प्रभात कु पर्व जाग" गीत उत्तराखंड के सांस्कृतिक और धार्मिक जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह गीत न केवल हमारी आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह हमें हमारी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ता है। इस गीत के माध्यम से हम अपनी परंपराओं और देवताओं के प्रति श्रद्धा प्रकट करते हैं और यह हमें जीवन की सकारात्मकता और शुभता की ओर प्रेरित करता है।


"दैणा होयां खोली का गणेशा": उत्तराखंड का आस्था से भरा जागरण गीत

परिचय
उत्तराखंड की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहरें हमें अपनी जड़ों और परंपराओं से जोड़ती हैं। यहाँ के जागरण गीत सदियों से हमारी आस्था और भक्ति का हिस्सा रहे हैं। "दैणा होयां खोली का गणेशा" एक ऐसा ही पारंपरिक जागरण गीत है, जो भगवान गणेश और अन्य देवताओं का आह्वान करता है। यह गीत विशेष रूप से उत्तराखंड के ग्रामीण इलाकों में लोकप्रिय है, जहाँ इसे विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों और उत्सवों के दौरान गाया जाता है।

गीत का भावार्थ
यह गीत भगवान गणेश, भूमि के देवता, पंच नाम देवता, और नौखंडी नरसिंह जैसे प्रमुख देवताओं का आह्वान करता है। "दैणा होयां" का अर्थ होता है "जागृत हो," जो इस गीत के माध्यम से देवी-देवताओं को जागृत करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने की प्रार्थना को दर्शाता है। इस गीत में विशेष रूप से उन देवताओं का स्मरण किया गया है जो उत्तराखंड के विभिन्न क्षेत्रों और पहाड़ियों के संरक्षक माने जाते हैं।

गीत के बोल

दैणा होयां खोली का गणेशा, दैणा होयां मोरी का नारेणा हे
दैणा होयां खोली का गणेशा, दैणा होयां मोरी का नारेणा हे

दैणा होयां भूमि का भुम्याला हे, दैणा होयां पॉँच नाम देवा हे
दैणा होयां भूमि का भुम्याला हे, दैणा होयां पॉँच नाम देवा हे

दैणा होयां नौ खोली का नाग हे, दैणा होयां नौखंडी नरसिंघा हे
दैणा होयां नौ खोली का नाग हे, दैणा होयां नौखंडी नरसिंघा हे

गीत की महिमा
इस जागरण गीत की गूंज हमें हमारे सांस्कृतिक और धार्मिक मूल्यों की याद दिलाती है। "दैणा होयां खोली का गणेशा" गीत उत्तराखंड के पहाड़ी समाज की आस्था और परंपराओं का प्रतीक है। गीत में जिन देवताओं का आह्वान किया गया है, वे न केवल धार्मिक जीवन के अभिन्न अंग हैं, बल्कि वे प्रकृति और जीवन के विभिन्न तत्वों का भी प्रतिनिधित्व करते हैं।

निष्कर्ष
"दैणा होयां खोली का गणेशा" केवल एक गीत नहीं है, बल्कि यह उत्तराखंड के पारंपरिक जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस गीत के माध्यम से हम अपने देवी-देवताओं के प्रति आस्था प्रकट करते हैं और उनसे हमारे जीवन में शुभता और समृद्धि की प्रार्थना करते हैं। यह गीत हमें याद दिलाता है कि हमारी संस्कृति और परंपराएं हमें एकजुट रखती हैं और हमें हमारे धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों से जोड़ती हैं।


Om-prabhat ko parv jaag, Go-sarup pirthvi jaag, Dharm-sarup jaag, Udankari-kantha jaag
Bhanu pankhi garud jaag, Sapt lok jaag, Indra lok jaag, Megh lok ja----g

Surya-lok jaag, Chandra-lok jaag, Taara-lok jaag, Pawan-lok jaag
Brahma ka ved jaag, Gori ka ganesha jaag
Haru-Bharu sansaar jaag, Jev-Jaag jevan ja----g

Setu samudra jaag, Khari samudra jaag, Dudhi samudra jaag
Kherani jaag, Ghor samudra jaag, Aghor samudra jaag
Prachand samudra jaag, Shwet bandhu Rameshwar ja----g

Hyu-Hiwalu jaag, Paani-Payalu jaag, Baala-Bejnaath jaag
Dhauli-Devprayag jaag, Hari ku Haridwar jaag, Kashi-Vishwanath jaag
Budha-Kedaar jaag, Bhola-Shambhu naath jaag
Kaali-Kumau jaag, Chopda-Chauthan jaag
Khatim ku ling jaag, Sauban ki gaadi ja----g

Main line:
Dena hoya kholi ka ganesha hey, Dena hoya mori ka narena hey
Dena hoya kholi ka ganesha hey, Dena hoya mori ka narena hey

Dena hoya bhumi ka bhumyala hey, Dena hoya panch naam deva hey
Dena hoya bhumi ka bhumyala hey, Dena hoya panch naam deva hey

Dena hoya no kholi ka nag hey, Dena hoya noukhundi narsingha hey
Dena hoya no kholi ka nag hey, Dena hoya noukhundi narsingha hey

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