षडङ्ग तर्पणम् – कूष्माण्डा देवी की पूजा विधि - Shadang Tarpanam – Kushmanda Devi Puja Vidhi

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षडङ्ग तर्पणम् – कूष्माण्डा देवी की पूजा विधि

देवी कूष्माण्डा की पूजा में षडङ्ग तर्पणम् एक विशेष विधि है जिसमें देवी के विभिन्न अंगों की पूजा की जाती है। इस अनुष्ठान का उद्देश्य देवी की कृपा प्राप्त करना और उनके आशीर्वाद से जीवन में शांति और समृद्धि प्राप्त करना है। पूजा के दौरान हृदय, शिर, शिखा, कवच, नेत्र और अस्त्र की शक्ति का तर्पण किया जाता है।

हृदय तर्पणम्:

"क्रां हृदयाय नमः। हृदय शक्ति श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः।"

शिर तर्पणम्:

"क्रीं शिरसे स्वाहा। शिरो शक्ति श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः।"

शिखा तर्पणम्:

"कूं शिखायै वषट्। शिखा शक्ति श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः।"

कवच तर्पणम्:

"के कवचाय हूं। कवच शक्ति श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः।"

नेत्र तर्पणम्:

"क्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्। नेत्र शक्ति श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः।"

अस्त्र तर्पणम्:

"कः अस्त्राय फट्। अस्त्र शक्ति श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः।"


लयाङ्ग तर्पणम्

"ॐ श्रीं ह्रीं क्रीं कूष्माण्डायै नमः। कूष्माण्डा श्री। (10 बार) पूजयामि तर्पयामि नमः।"


प्रथमावरणम्

"ॐ सौः क्लीं ऐं सर्वाशापरिपूरकायन नमः। 
ॐ ऐं इन्द्राय नमः। इन्द्र श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। 
ॐ धं धर्मराजाय नमः। धर्मराज श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। ॐ
 वं वरुणाय नमः। वरुण श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः। 
ॐ क्रीं कुबेराय नमः। कुबेर श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः।"

यह प्रथमावरण की देवताओं की पूजा विधि है, जिनमें इन्द्र, धर्मराज, वरुण और कुबेर शामिल हैं। इन देवताओं को सपरिवार, सायुध और सशक्तिक रूप में पूजित और तर्पित किया जाता है।

"ॐ श्रीं ह्रीं क्रीं कूष्माण्डायै नमः। कूष्माण्डा श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः।
अभीष्टसिद्धि में देहि शरणागत वत्सले। भक्त्या समर्पये तुभ्यं प्रथमावरणार्चनम्।
अनेन प्रथमावरणार्चनेन श्री कूष्माण्डाम्बा प्रीयथाम्।"


द्वितीयावरणम्

इस अवरण में कामेश्वरी, कान्ता, कृशोदरी, कलावती, काली, चण्डी, तन्त्रिका और परस्परा देवियों की पूजा की जाती है।

"ॐ कामेश्वर्यै नमः। कामेश्वरी श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः।
ॐ कान्तायै नमः। कान्ता श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः।
ॐ कृशोदर्यै नमः। कृशोदरी श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः।
ॐ कलावत्यै नमः। कलावती श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः।
ॐ काल्यै नमः। काली श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः।
ॐ चण्डिन्यै नमः। चण्डी श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः।
ॐ तन्त्रिकायै नमः। तन्त्रिका श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः।
ॐ परस्परायै नमः। परस्परा श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः।"

यह पूजा विधि देवी कूष्माण्डा के दूसरे अवरण की देवियों के लिए की जाती है।

"अभीष्टसिद्धि में देहि शरणागत वत्सले।
भक्त्या समर्पये तुभ्यं द्वितीयावरणार्चणम्।
अनेन द्वितीयावरणार्चनेन श्री कूष्माण्डाम्बा प्रीयथाम्।"


तृतीयावरणम्

इस अवरण में हृदय, शिर, शिखा, कवच, नेत्र और अस्त्र की शक्तियों का तर्पण किया जाता है।

"ॐ सर्वसंमोहनाय नमः।
ॐ क्रां हृदयाय नमः। हृदय शक्ति श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः।
ॐ की शिरसे स्वाहा। शिरो शक्ति श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः।
ॐ कूं शिखायै वषट्। शिखा शक्ति श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः।
ॐ कै कवचाय हूं। कवच शक्ति श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः।
ॐ कौं नेत्रत्रयाय वौषट्। नेत्र शक्ति श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः।
ॐ क्रः अस्त्राय फट्। अस्त्र शक्ति श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः।"

"अभीष्टसिद्धि में देहि शरणागत वत्सले।
भक्त्या समर्पये तुभ्यं तृतीयावरणार्चणम्।
अनेन तृतीयावरणार्चनेन श्री कूष्माण्डाम्बा प्रीयथाम्।"


तुरियावरणम्

"ॐ गं गङ्गायै नमः। गङ्गा श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः।
ॐ यं यमुनायै नमः। यमुना श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः।
ॐ सौः सरस्वत्यै नमः। सरस्वती श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः।"

"अभीष्टसिद्धि में देहि शरणागत वत्सले।
भक्त्या समर्पये तुभ्यं तुरियावरणार्चणम्।
अनेन तुरियावरणार्चनेन श्री कृष्माण्डाम्बा प्रीयथाम्।"


पञ्चमावरणम्

"ॐ श्रीं ह्रीं क्रीं कूष्माण्डायै नमः। कूष्माण्डा श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः।
ॐ ह्रीं नमः शिवाय साम्बशिव श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः।
ॐ नवदुर्गाभ्यो नमः। वनदुर्गाम्बा श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः।"

"अभीष्टसिद्धि में देहि शरणागत वत्सले।
भक्त्या समर्पये तुभ्यं पञ्चमावरणार्चणम्।
अनेन पञ्चमावरणार्चनेन श्री कूष्माण्डाम्बा प्रीयथाम्।"


पञ्चपूजा

"लं पृथिव्यात्मिकायै गन्धं कल्पयामि।
हं आकाशात्मिकायै पुष्पाणि पूजयामि।
यं वाय्वात्मिकायै धूपं कल्पयामि।
रं अग्न्यात्मिकायै दीपं कल्पयामि।
वं अमृतात्मिकायै अमृतं महानैवेद्यं कल्पयामि।
सं सर्वात्मिकायै ताम्बूलादि समस्तोपचारान् कल्पयामि।"


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