श्री कूष्माण्डा महामन्त्र जप विधि एवं महत्व - Shri Kushmanda Mahamantra Chanting Method and Significance
श्री कूष्माण्डा महामन्त्र जप विधि एवं महत्व
श्री कूष्माण्डा देवी को देवी दुर्गा के चौथे स्वरूप के रूप में जाना जाता है, जो सम्पूर्ण सृष्टि की उत्पत्ति और सृजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इनकी उपासना से साधक को विशेष कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि का वास होता है। श्री कूष्माण्डा देवी के महामंत्र का जप विशेष फलदायी माना गया है। यहां श्री कूष्माण्डा महामंत्र जप की विधि और नियम दिए जा रहे हैं।
श्री कूष्माण्डा महामन्त्र जप क्रम
- अस्य श्री कूष्माण्डा महामन्त्रस्य
ऋषि: ब्रह्मा हैं, छन्द: अनुष्टुप् है और देवता श्री कूष्माण्डा हैं। बीज: क्लीं है, शक्ति: ह्रीं है, और कीलक: ॐ है। यह मन्त्र दिग्बन्धन से मुक्त कराता है।
कर न्यास (हाथों पर मन्त्रों की स्थापना)
- कां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः
- क्रीं तर्जनीभ्यां नमः
- कूं मध्यमाभ्यां नमः
- कैं अनामिकाभ्यां नमः
- क्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः
- क्रः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः
इस प्रक्रिया से साधक अपने हाथों पर श्री कूष्माण्डा देवी के शक्तियों का आह्वान करता है।
अङ्ग न्यास (शरीर के विभिन्न अंगों पर मन्त्रों की स्थापना)
- क्रां हृदयाय नमः
- क्रीं शिरसे स्वाहा
- कूं शिखायै वषट्
- के कवचाय हूं
- कौं नेत्रत्रयाय वौषट्
- क्रः अस्त्राय फट्
ध्यानम् (ध्यान)
"उद्यदात्रीशाननां चन्द्रचूडां, पंचास्यस्थां त्रीक्षणां सुप्रसन्नाम्।
शखाब्जेपद्मासनैः शोभिहस्तां, श्रीकूष्माण्डां हृदूसरोजेभजेहम्।।"
इस ध्यान मंत्र द्वारा साधक कूष्माण्डा देवी का ध्यान करता है, जो सूर्य के समान चमकती हैं, उनके पाँच मुख, तीन नेत्र हैं, और वे प्रसन्नचित्त रहती हैं। देवी की मूर्ति कमल पर विराजमान होती है और उनके हाथों में शंख, चक्र, गदा, और पद्म शोभा देते हैं।
पञ्चपूजा (पांच तत्वों से पूजन)
- लं पृथिव्यात्मिकायै गन्धं कल्पयामि
- हं आकाशात्मिकायै पुष्पाणि कल्पयामि
- यं वाय्वात्मिकायै धूपं कल्पयामि
- रं अग्न्यात्मिकायै दीपं कल्पयामि
- वं अमृतात्मिकायै नैवेद्यं कल्पयामि
- सं सर्वात्मिकायै ताम्बूलादि समस्तोपचारान् कल्पयामि
पञ्चपूजा के माध्यम से साधक पांच तत्वों - पृथ्वी, आकाश, वायु, अग्नि, और जल - को पूजन के रूप में देवी को अर्पित करता है। यह पूजा समस्त ऊर्जा और जीवन का प्रतीक है।
मूल मंत्र (मुख्य जप मंत्र)
"ॐ श्रीं ह्रीं क्रीं कूष्माण्डायै नमः"
यह महामंत्र कूष्माण्डा देवी की कृपा और आशीर्वाद को प्राप्त करने के लिए जपा जाता है। इस मंत्र के नियमित जप से जीवन में शांति, समृद्धि, और उन्नति का मार्ग प्रशस्त होता है।
अङ्ग न्यास (शरीर पर स्थापना)
- क्रां हृदयाय नमः
- क्रीं शिरसे स्वाहा
- कूं शिखायै वषट्
- के कवचाय हूं
- कौं नेत्रत्रयाय वौषट्
- क्रः अस्त्राय फट्
यह विधि शरीर के अंगों पर देवी की ऊर्जा को स्थापित करने की है, जिससे साधक की आत्मा और शरीर दोनों ही शक्ति से परिपूर्ण हो जाते हैं।
श्री कूष्माण्डा महामंत्र का महत्व
श्री कूष्माण्डा महामंत्र की साधना व्यक्ति को आध्यात्मिक ऊंचाई पर ले जाती है। देवी कूष्माण्डा सृष्टि की जननी हैं और उनकी कृपा से साधक की सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं। वे जीवन की कठिनाइयों को दूर कर मानसिक और शारीरिक शक्ति प्रदान करती हैं। उनकी उपासना से साधक के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और उसे हर कार्य में सफलता मिलती है।
निष्कर्ष
श्री कूष्माण्डा देवी की पूजा और महामंत्र जप से व्यक्ति अपने जीवन में अद्भुत परिवर्तन अनुभव कर सकता है। यह साधना न केवल आत्मिक शांति प्रदान करती है, बल्कि जीवन में आने वाली समस्याओं का समाधान भी करती है। नियमित रूप से इस मंत्र का जप करने से साधक को देवी की अपार कृपा प्राप्त होती है, और वह जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है।
सुझाव: आप इस पूजन विधि को नवरात्रि के चौथे दिन (कूष्माण्डा देवी के दिन) विशेष रूप से कर सकते हैं, ताकि देवी की विशेष कृपा प्राप्त हो सके।
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