हरेला पर्व: उत्तराखंड में हरियाली का उत्सव - Harela festival: A celebration of greenery in Uttarakhand
उत्तराखंड का लोकपर्व हरेला: प्रकृति और मिट्टी से प्रेम की अनोखी दास्तान
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अगर आप जानना चाहते हैं कि उत्तराखंड के लोग प्रकृति और मिट्टी से कितना लगाव रखते हैं, तो आपको यहां के लोकपर्व हरेला का अनुभव अवश्य करना चाहिए। यह पर्व प्रकृति के प्रति उत्तराखंड के निवासियों की आस्था और प्रेम का प्रतीक है। हरेला के माध्यम से हम देख सकते हैं कि कैसे प्रकृति और कृषि से जुड़े विभिन्न पहलुओं को स्थानीय संस्कृति और परंपराओं में शामिल किया गया है।
उत्तराखंड में किसी भी पूजा और त्योहार में दो महत्वपूर्ण चीजें होती हैं: गो पूजा (गाय की पूजा) और प्रकृति से संबंधित किसी न किसी वस्तु की पूजा। यहां पेड़ लगाने के बाद उसकी पूजा करने का रिवाज है, जिसे अन्य स्थानों पर कम ही देखा जाता है। मिट्टी की पूजा और ग्वाल पूजा जैसी परंपराएं यहां के लोकजीवन में गहराई से रची-बसी हैं। इतना ही नहीं, उत्तराखंड में गोबर तक की पूजा होती है, जिसे मोलो महादेव कहा जाता है।
हरेला: प्रकृति प्रेम से जुड़ा एक विशेष पर्व
हरेला का शाब्दिक अर्थ है 'हरियाली' या 'हरा होना'। यह पर्व न केवल पर्यावरण की सुरक्षा का संदेश देता है, बल्कि हमारे जीवन में पेड़ों और हरियाली की महत्वपूर्ण भूमिका को भी दर्शाता है। इस त्योहार का उद्देश्य प्रकृति और कृषि की महत्वपूर्णता को उजागर करना है।
हरेला का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
उत्तराखंड में कृषि का मुख्य साधन वर्षा पर निर्भर करता है। यहाँ खेतों तक पानी पहुँचाने का एकमात्र साधन बारिश है। अगर समय पर बारिश हो जाती है तो फसल अच्छी होती है, अन्यथा खराब हो जाती है। इसी कारण यहाँ के लोग इंद्र देव सहित सभी प्रकृति देवों को प्रसन्न करने के लिए हरेला का पर्व मनाते हैं।
इस पर्व के दौरान, 5 या 7 प्रकार के बीजों को किसी बर्तन में अंकुरित किया जाता है। इसके लिए गेहूं, जौ, उड़द, सरसों, आदि के बीज प्रयोग में लाए जाते हैं। यह बीज बर्तन में रखकर उन्हें मिट्टी से ढक दिया जाता है और नियमित रूप से पानी दिया जाता है।
7 से 9 दिनों में ये बीज अंकुरित होते हैं और उनसे पता लगाया जाता है कि इस वर्ष फसल कैसी होगी। अंकुरित बीजों को हरेला कहा जाता है। ये हरेला बीज काटकर घर के दरवाजे के ऊपर और कानों पर लगाए जाते हैं। हरेला का यह अनुष्ठान समृद्धि और अच्छी फसल की कामना के साथ किया जाता है।
हरेला मनाने की विधि
हरेला का पर्व तीन बार मनाया जाता है:
चैत्र हरेला (मार्च-अप्रैल): यह हरेला पर्व नवसंवत्सर और नवरात्र के शुभ अवसर पर मनाया जाता है। इसे चैत्र नवरात्र के पहले दिन बीज बोकर नौवें दिन हरेला काटा जाता है। इस दौरान देवी दुर्गा की पूजा की जाती है।
श्रावण हरेला (जुलाई-अगस्त): यह हरेला पर्व श्रावण मास के पहले दिन मनाया जाता है। इस समय उत्तराखंड के किसान खेती की शुरुआत करते हैं। इसलिए इसे खेती का पर्व भी कहा जाता है। इस अवसर पर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा होती है।
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आश्विन हरेला (सितंबर-अक्टूबर): यह हरेला पर्व आश्विन मास के पहले दिन मनाया जाता है। इसे नवरात्र के पहले दिन बोया जाता है और दसवें दिन विजयदशमी के दिन काटा जाता है। इस दौरान माता दुर्गा की आराधना की जाती है।
हरेला के समय पारंपरिक पहाड़ी व्यंजन बनाए जाते हैं और अपने इष्ट देवताओं से अच्छी फसल की प्रार्थना की जाती है। इस त्योहार का वातावरण अद्भुत होता है, जिसमें परिवार और समाज के लोग मिलकर खुशी मनाते हैं।
हरेला पर्व की खास बातें
गो पूजा: हरेला के अवसर पर गायों की पूजा की जाती है। गायों को सजाया जाता है और उन्हें विशेष भोजन दिया जाता है। यह पर्व हमें गौसंवर्धन और पर्यावरण की सुरक्षा का संदेश देता है।
मिट्टी की पूजा: हरेला के समय मिट्टी की पूजा की जाती है, जिसे ग्वाल पूजा कहा जाता है। इस पूजा का उद्देश्य कृषि और प्रकृति के प्रति सम्मान प्रकट करना है।
रोपणी पर्व: हरेला के अवसर पर रोपणी पर्व भी मनाया जाता है। इस दिन खेतों में नए पौधों की रोपाई की जाती है और यह प्रक्रिया उत्साह और उमंग के साथ संपन्न होती है।
मोलो महादेव की पूजा: हरेला के दौरान गोबर के शिवलिंग का निर्माण करके उसकी पूजा की जाती है। इसे मोलो महादेव कहते हैं। इस पूजा के माध्यम से समाज के लोग प्रकृति और कृषि के महत्व को समझते हैं और उसे संरक्षित करने का संकल्प लेते हैं।
हरेला पर्व के लाभ
पर्यावरण संरक्षण: हरेला पर्व पर्यावरण की सुरक्षा का संदेश देता है। इस दिन लोग पेड़ लगाते हैं और उनकी पूजा करते हैं, जिससे वृक्षारोपण को बढ़ावा मिलता है।
सामाजिक एकता: हरेला पर्व समाज के लोगों को एकजुट करता है। इस दिन लोग मिलकर पर्व मनाते हैं, जिससे सामाजिक समरसता और भाईचारे का भाव बढ़ता है।
कृषि की समृद्धि: हरेला पर्व के माध्यम से कृषि और खेती के महत्व को समझा जाता है। यह पर्व किसानों को खेती के प्रति जागरूक करता है और उन्हें समृद्धि की ओर ले जाता है।
हरेला पर्व का संदेश
हरेला पर्व हमें यह सिखाता है कि हमारी समृद्धि और विकास का आधार प्रकृति है। हमें अपने पर्यावरण की सुरक्षा करनी चाहिए और उसे संरक्षित रखने के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए। हरेला पर्व एक अवसर है जब हम प्रकृति के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझते हैं और उसे निभाने का संकल्प लेते हैं।
निष्कर्ष
हरेला पर्व उत्तराखंड की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। यह पर्व न केवल पर्यावरण की सुरक्षा का संदेश देता है, बल्कि हमें अपने जीवन में प्रकृति की महत्वपूर्णता को समझने का अवसर भी प्रदान करता है। हरेला के माध्यम से हम अपनी धरती, मिट्टी, और पेड़ों के प्रति सम्मान और आस्था प्रकट करते हैं।
यह पर्व हमें यह सिखाता है कि हमारी प्रकृति ही हमारी सबसे बड़ी धरोहर है, जिसे हमें सहेजकर रखना चाहिए। यदि आप भी प्रकृति के प्रति यह अद्वितीय प्रेम देखना चाहते हैं, तो उत्तराखंड के हरेला पर्व में अवश्य शामिल हों और इस अद्भुत परंपरा का हिस्सा बनें।
इस ब्लॉग पोस्ट के माध्यम से आप हरेला पर्व की विशेषताओं और महत्व को समझ पाएंगे। यह पर्व निश्चित रूप से आपके दिल को छू जाएगा और आपको प्रकृति से प्रेम करने की प्रेरणा देगा।
हरेला पर शायरी: प्रकृति और संस्कृति का उत्सव
हरियाली का पर्व, मिट्टी से प्यार सिखाए,
हरेला हमें प्रकृति का महत्व बतलाए।
पेड़ों की छांव और खेतों की हरीतिमा,
इस पर्व में सजीव हो जाएं हमारी संस्कृति की गरिमा।
हरेला का त्योहार, हरियाली का आभास,
कृषि की शुरुआत का करे यह उल्लास।
शिव-पार्वती के आशीष से हो जीवन हरा-भरा,
प्रकृति के प्रेम में हर दिल हो खिला-खिला।
हरेला मनाएं, प्रकृति को अपनाएं,
पेड़ों से जीवन की महत्ता को समझाएं।
यह पर्व न केवल खेती का शुभारंभ है,
बल्कि प्रकृति से जुड़े हर रंग का संगम है।
हरे भरे खेत, मन की हरियाली,
हरेला का पर्व लाए सुखद खुशहाली।
हर बीज में छिपी है समृद्धि की आशा,
इस दिन करें प्रकृति के प्रति विश्वास की अभिलाषा।
हरेला की हर कोपल में जीवन का संदेश,
प्रकृति का सम्मान, यही है इसका आदेश।
पेड़ों की पूजा और मिट्टी से नाता,
यह पर्व हमें प्रकृति से जोड़े हर बाता।
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