इतिहास /बद्रीनाथ की कथा - महाशिवरात्रि और यक्ष (itihas /badrinath ki katha - mahashivratri aur yaksh)

इतिहास /बद्रीनाथ की कथा - महाशिवरात्रि और यक्ष (itihas /badrinath ki katha - mahashivratri aur yaksh)

 इस धाम का नाम बदरीनाथ क्यों पड़ा इसकी भी एक पौराणिक कथा है। राक्षस सहस्रकवच के संहार से बचनबद्ध होकर जब भगवान विष्णु नर-नारायण के बालरूप में थे तो देवी लक्ष्मी अपने पति की रक्षा में बेर- वृक्ष के रूप में अवतरित हुई तथा सर्दी, वर्षा, तूफान, हिमादि से भगवान की रक्षा के लिए बेर-वृक्ष ने नारायण को चारों ओर से ढक लिया । बेर-वृक्ष को बदरी भी कहते हैं। इसी कारण से लक्ष्मीनाथ भगवान विष्णु लक्ष्मी के बदरी रूप से इस धाम का बदरीनाथ कहलाया जाता है ।

भगवान शंकर के अवतार स्वरूप दक्षिण भारत में जगद्गुरू आदि शंकराचार्य जी का जन्म हुआ । वे ग्यारह वर्ष की अल्पायु में ही जोशीमठ होते हुये बदरीनाथ पधारे और जब मन्दिर खाली देखा तब अपने योगबल तपोवल से उन्हें प्रतीत हुआ कि मूर्ति नारदकुण्ड में पड़ी हुई है। वे स्वयं नारदकुण्ड में उतरे और मूर्ति को बाहर निकाला । जो काले पत्थर की थी । काले पत्थर की मूर्ति को देखकर उन्होंने सोचा कि यह भगवान विष्णु की मूर्ति नहीं हो सकती है और उन्होंने फिर उसे नारदकुण्ड में डाल दिया और पुनः नारद कुण्ड में डुबकी लगाई किन्तु हर बार उनके हाथ में वही मूर्ति आई तब उनको विश्वास हो गया कि यही भगवान विष्णु की मूर्ति है । आदि शंकराचार्य जी ने नारायण की मूर्ति को भैरवीचक्र के केन्द्र में विधिवत उसी स्थान पर स्थापना की जहां पर वह वर्तमान में विराजमान है । यह भी माना जाता है कि बदरीनाथ जी के मन्दिर का जीर्णोद्धार आदिगुरू शंकराचार्य जी द्वारा पुनः कराया गया। आदिगुरू शंकराचार्य जी ने जोशीमठ में तपस्या की और ज्योतिष्पीठ की स्थापना की। बदरीनाथ के निकट व्यासगुफा में भी आदि शंकराचार्य जी ने चार वर्षों तक निवास कर ब्रह्मसूत्र, गीता, उपनिषद तथा सनत्शुजातीय पर प्रमाणिक भाष्य लिखा था ।
 जगद्गुरू आदि शंकराचार्य जी 
भगवान शंकर के अवतार के रूप में जगतगुरू शंकराचार्य के इस क्षेत्र के हिन्दू मन्दिरों की सुव्यवस्था के प्रबन्ध भी किये और श्री बदरीनाथ को सारे भारतवर्ष के लिए स्थापित चार धामों में से श्रेष्ठतम धाम के रूप में प्रतिष्ठित किया तथा अन्य तीन धाम द्वारिका, जगन्नाथ एवं रामेश्वर से सम्बद्ध किया । आज भी इन चारों धामों का भारत की संस्कृति व राष्ट्रीय एकीकरण की दृष्टि से विशेष महत्व है । श्री शंकराचार्य जी के काल से बदरीनाथ में स्वयं भगवान विष्णु तीर्थ के अधिष्ठाता के रूप में पूजित हुये और शुद्ध वैष्णव पद्धति से दैनिक नित्य नियम, पूजा-अर्चना प्रारम्भ हुई तभी से यह परम्परा चली आ रही है । श्री बदरीनाथ मन्दिर के प्रमुख पुजारी दक्षिण भारत के मालावार क्षेत्र के आदि शंकराचार्य के वंशजों में से ही उच्चकोटि के शुद्ध नम्बूदरी ब्राह्मण ही होते हैं । यह प्रमुख पुजारी रावल के नाम से जाने जाते हैं । श्री बदरीनाथ जी की पूजा वैष्णव पद्धति से होती है।

बद्रीनाथ की कथा - महाशिवरात्रि और यक्ष

सद्‌गुरु बद्रीनाथ की कथा सुना रहे हैं कि कैसे विष्णु ने शिव और पार्वती के साथ छल किया। वे मंदिर के एक हज़ार सल पुराने इतिहास के बारे में भी बता रहे हैं।

जब शिव को अपना घर छोड़ना पड़ा

सद्‌गुरु बद्रीनाथ की कथा सुना रहे हैं कि कैसे विष्णु ने शिव और पार्वती के साथ छल किया। वे मंदिर के एक हज़ार सल पुराने इतिहास के बारे में भी बता रहे हैं।

सद्‌गुरु: बद्रीनाथ के बारे में एक कथा है। यह हिमालय में 10,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित एक शानदार जगह है, जहां शिव और पार्वती रहते थे। एक दिन नारायण यानी विष्णु के पास नारद गए और बोले, ‘आप मानवता के लिए एक खराब मिसाल हैं। आप हर समय शेषनाग के ऊपर लेटे रहते हैं। आपकी पत्नी लक्ष्मी हमेशा आपकी सेवा में लगी रहती हैं, और आपको लाड़ करती रहती हैं। इस ग्रह के अन्य प्राणियों के लिए आप अच्छी मिसाल नहीं बन पा रहे हैं। आपको सृष्टि के सभी जीवों के लिए कुछ अर्थपूर्ण कार्य करना चाहिए।’

इस आलोचना से बचने और साथ ही अपने उत्थान के लिए (भगवान को भी ऐसा करना पड़ता है) विष्णु तप और साधना करने के लिए सही स्थान की तलाश में नीचे हिमालय तक आए। वहां उन्हें मिला बद्रीनाथ, एक अच्छा-सा, छोटा-सा घर, जहां सब कुछ वैसा ही था जैसा उन्होंने सोचा था। साधना के लिए सबसे आदर्श जगह लगी उन्हें यह।
फिर उन्हें एक घर दिखा। वह उस घर के अंदर गए। घुसते ही उन्हें पता चल गया कि यह तो शिव का निवास है और वह तो बड़े खतरनाक व्यक्ति हैं। अगर उन्हें गुस्सा आ गया तो वह आपका ही नहीं, खुद का भी गला काट सकते हैं। ये आदमी खतरनाक है।

विष्णु ने धारण किया छोटे बच्चे का रूप

ऐसे में नारायण ने खुद को एक छोटे-से बच्चे के रूप में बदल लिया और घर के सामने बैठ गए। उस वक्त शिव और पार्वती बाहर कहीं टहलने गए थे। जब वे घर वापस लौटे तो उन्होंने देखा कि एक छोटा सा बच्चा जोर-जोर से रो रहा है।बच्चे को जोर जोर से रोते देख, पार्वती के भीतर मातृत्व जाग उठा और वे जाकर उस बच्चे को उठाना चाहती थीं। शिव ने पार्वती को रोकते हुए कहा, ‘इस बच्चे को मत छूना।’ पार्वती ने कहा, ‘कितने क्रूर हैं आप ! कैसी नासमझी की बात कर रहे हैं?

शिव बोले - "ये कोई अच्छा बच्चा नहीं है। ये खुद ही हमारे दरवाज़े के बाहर कैसे आ गया? आस-पास कोई भी नहीं है। बर्फ में माता-पिता के पैरों के निशान भी नहीं हैं। ये बच्चा है ही नहीं।"पार्वती ने कहा, ‘आप कुछ भी कहें, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। मेरे अंदर की मां बच्चे को इस तरह रोते नहीं देख सकती।’ और यह कहकर वे बच्चे को घर के अंदर ले गयीं। बच्चा पार्वती की गोद में आराम से था और शिव की तरफ बहुत ही खुश होकर देख रहा था। शिव इसका नतीजा जानते थे, लेकिन करें तो क्या करें? इसलिए उन्होंने कहा, ‘ठीक है, चलो देखते हैं क्या होता है।’
पार्वती ने बच्चे को खिला-पिला कर चुप किया और वहीं घर पर छोडक़र खुद शिव के साथ पास ही के गर्म पानी के कुंड में स्नान के लिए चली गईं। लौटकर आए तो देखा कि घर अंदर से बंद था। पार्वती हैरान थीं - "आखिर दरवाजा किसने बंद किया?" शिव बोले, ‘मैंने कहा था न, इस बच्चे को मत उठाना। तुम बच्चे को घर के अंदर लाईं और अब उसने अंदर से दरवाजा बंद कर लिया है।’

पार्वती ने कहा, ‘अब हम क्या करें?’

शिव और पार्वती केदारनाथ जा बसे

शिव के पास दो विकल्प थे। एक, जो भी उनके सामने है, उसे जलाकर भस्म कर दें और दूसरा, वे वहां से चले जाएं और कोई और रास्ता ढूंढ लें। उन्होंने कहा, ‘चलो, कहीं और चलते हैं क्योंकि यह तुम्हारा प्यारा बच्चा है इसलिए मैं इसे छू भी नहीं सकता।’

इस तरह शिव अपना ही घर गंवा बैठे, और शिव-पार्वती एक तरह से ‘अवैध प्रवासी’ बन गए। वे रहने के लिए भटकते हुए सही जगह ढूंढने लगे और आखिरकार केदारनाथ में जाकर बस गए। आप पूछ सकते हैं कि क्या वह इस बात को जानते थे। आप कई बातों को जानते हैं, लेकिन फिर भी आप उन बातों को होने देते हैं।
_________________________________________________________________________________
👉🏻 क्या आप जानते हैं बद्रीनाथ मंदिर किस जिले में स्थित है?(kya aap jaante hain badrinath mandir kis jile mein sthit hai?)
👉🏻जानिए बद्रीनाथ के तप्त कुंड का क्या है रहस्य? (janiye badrinath ke tapt kund ka kya hai rahasya?)
👉🏻   श्री बद्रीनाथ जी... (shri badrinath ji...)
👉🏻  सर्वश्रेष्ठ आराध्य देव श्री बद्रीनारायण ( पहला वैकुंठ धाम:- धरती पर बद्रीनाथ, )
👉🏻  इतिहास /बद्रीनाथ की कथा - महाशिवरात्रि और यक्ष (itihas /badrinath ki katha - mahashivratri aur yaksh)
👉🏻  इतिहास /बद्रीनाथ की कथा - महाशिवरात्रि और यक्ष (itihas /badrinath ki katha - mahashivratri aur yaksh)
👉🏻  बद्रीनाथ धाम मंदिर( Badrinath Dham Temple)
👉🏻  श्री बद्रीनाथजी की आरती (Shri Badrinath Aarti) jai badri vishal lyrics in hindi
👉🏻  आख़िर क्या है बद्रीनाथ से जुड़ा अनोखा रहस्य ( After all, what is the unique secret related to Badrinath?)
👉🏻  बद्रीनाथ मंदिर के बारे में /About Badrinath Temple
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

उत्तराखंड की महान शख्सियतें और योगदान

आजाद हिंद फौज के वीर सपूत केशरी चंद

केशरी चंद की वीरता और बलिदान की अद्भुत गाथा, जिन्होंने आजाद हिंद फौज में सेवा की।

स्वतंत्रता संग्राम के नायक: वीर केशरी चंद

स्वतंत्रता संग्राम में केशरी चंद की महत्वपूर्ण भूमिका और अद्वितीय योगदान।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उत्तराखंड का योगदान

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उत्तराखंड की वीरता और योगदान की चर्चा।

300 शब्दों में इन्द्रमणि बडोनी पर निबंध

इन्द्रमणि बडोनी की जीवन यात्रा और उनकी प्रेरणादायक सोच पर 300 शब्दों का निबंध।

200 शब्दों में इन्द्रमणि बडोनी पर निबंध

इन्द्रमणि बडोनी के जीवन और योगदान पर 200 शब्दों में निबंध।

पहाड़ों के गांधी इन्द्रमणि बडोनी पर कविता

इन्द्रमणि बडोनी की प्रेरणादायक यात्रा पर आधारित एक सुंदर कविता।

श्रद्धांजलि: आप अग्रणी थे, इन्द्रमणि जी

इन्द्रमणि बडोनी को समर्पित श्रद्धांजलि, जिन्होंने अपने कार्यों से समाज को नई दिशा दी।

पहाड़ों के गांधी: प्रेरणादायक यात्रा

इन्द्रमणि बडोनी की प्रेरणादायक यात्रा और उनके संघर्ष की गाथा।

उत्तराखंड की महान विभूतियाँ

उत्तराखंड की महान विभूतियों और उनके योगदान की झलक।

इन्द्रमणि बडोनी: उत्तराखंड के गांधी

इन्द्रमणि बडोनी, जो उत्तराखंड में गांधीजी के समान माने जाते हैं, का जीवन परिचय।

उत्तराखंड के महान व्यक्तित्व

उत्तराखंड के महान व्यक्तित्वों का जीवन परिचय और उनकी उपलब्धियाँ।

उत्तराखंड के महान नायक

उत्तराखंड के महान नायकों की कहानियाँ, जिन्होंने राज्य को गौरवान्वित किया।

1969 के गौरव: डॉ. घनानंद पांडेय

डॉ. घनानंद पांडेय की जीवन यात्रा और उत्तराखंड में उनका योगदान।

टिप्पणियाँ