इंद्रमणि बडोनी: उत्तराखंड के गांधी (Indramani Badoni: Gandhi of Uttarakhand.)

इंद्रमणि बडोनी: उत्तराखंड के गांधी

परिचय:
इंद्रमणि बडोनी, जिन्हें 'उत्तराखंड के गांधी' के रूप में जाना जाता है, का जन्म 24 दिसंबर 1925 को टिहरी रियासत के जखोली ब्लॉक के अखोड़ी गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम पं. सुरेशानन्द बडोनी था। गाँव में ही प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद, माध्यमिक और उच्च शिक्षा के लिए वे नैनीताल और देहरादून गए। उनकी युवावस्था में ही उनका विवाह सुरजी देवी से हो गया। बडोनी जी ने डीएवी कॉलेज, देहरादून से स्नातक की डिग्री प्राप्त की और फिर रोजगार की तलाश में बम्बई गए। लेकिन स्वास्थ्य समस्याओं के कारण उन्हें अपने गांव लौटना पड़ा, जहां उन्होंने समाज सुधार के कार्यों में रुचि ली।

सामाजिक कार्यों की शुरुआत:
सन् 1953 में गांधीजी की शिष्या मीरा बेन टिहरी के गाँवों का दौरा कर रही थीं। इस दौरान उनकी मुलाकात इंद्रमणि बडोनी से हुई, और मीरा बेन की प्रेरणा से बडोनी ने सामाजिक कार्यों में अपनी भूमिका को समझा और पूरी लगन से समाज सेवा में जुट गए। 1961 में वे गाँव के प्रधान बने और बाद में जखोली विकास खंड के प्रमुख भी बने।

राजनीतिक यात्रा:
बडोनी ने उत्तर प्रदेश विधान सभा में तीन बार देवप्रयाग क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया और 1977 के विधान सभा चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में कांग्रेस और जनता पार्टी के प्रत्याशियों को पराजित किया। पर्वतीय विकास परिषद के उपाध्यक्ष रहते हुए उन्होंने सड़कों, शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली और पेयजल जैसी योजनाओं पर विशेष ध्यान दिया। उनकी पहाड़ी संस्कृति और परंपराओं के प्रति गहरी रुचि थी, और उन्होंने मलेथा की गूल तथा वीर माधो सिंह भंडारी की लोक गाथाओं का मंचन दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े शहरों में भी किया।

पृथक उत्तराखंड राज्य का आंदोलन:
1980 में इंद्रमणि बडोनी उत्तराखंड क्रांति दल के सदस्य बने। उन्होंने वन अधिनियम के विरोध में आंदोलन का नेतृत्व किया। 1988 में, उन्होंने तवाघाट से देहरादून तक 105 दिनों में 2000 किलोमीटर की पैदल यात्रा की। इस यात्रा के दौरान उन्होंने सैकड़ों गाँवों और शहरों का दौरा किया और पृथक उत्तराखंड राज्य की अवधारणा को घर-घर तक पहुँचाया।

उत्तराखंड आंदोलन का सूत्रधार:
1992 में मकर संक्रांति के अवसर पर बागेश्वर के उत्तरायणी मेले में उन्होंने उत्तराखंड क्रांति दल के प्रति जन समर्थन जुटाया और इसी वर्ष गैरसैण को उत्तराखंड की राजधानी घोषित किया। 1994 के राज्य आंदोलन में उन्होंने आमरण अनशन किया, जिससे उत्तराखंड राज्य की मांग को और अधिक प्रबलता मिली। बीबीसी ने उनके आंदोलन को सराहते हुए कहा, "यदि आपने जीवित एवं चलते-फिरते गांधी को देखना है तो आप उत्तराखंड की धरती पर चले जाएं।"

त्याग और बलिदान:
1994 में खटीमा और मसूरी हत्याकांड के विरोध में हुए आंदोलन में बडोनी को गिरफ्तार कर सहारनपुर जेल भेजा गया। उस समय मुजफ्फरनगर में हुए जघन्य कांड के बाद दिल्ली में हुई विशाल रैली में बडोनी जी ने उत्तराखंड के लिए अहिंसक आंदोलन का नेतृत्व किया।

जीवन का अंतिम समय:
1999 तक बडोनी जी ने अपने वृद्ध और कमजोर शरीर के बावजूद उत्तराखंड राज्य की स्थापना के लिए संघर्ष जारी रखा। 18 अगस्त 1999 को उत्तराखंड का यह वीर सपूत दुनिया से विदा हो गया। उनकी इस महान यात्रा को उत्तराखंड की जनता ने हमेशा याद रखा, और उन्हें 'उत्तराखंड के गांधी' के रूप में सम्मानित किया।

स्मरण:
इंद्रमणि बडोनी की प्रेरणा और संघर्ष शक्ति ने उन्हें जन-जन का नेता बना दिया। उनके संघर्ष और योगदान के बिना उत्तराखंड के अलग राज्य बनने की कल्पना अधूरी होती।

नोट:

  • इंद्रमणि बडोनी को उत्तराखंड में 'गांधी' की उपाधि दी गई।
  • 1988 में उनकी पैदल यात्रा से जनमानस में पृथक राज्य की मांग को बल मिला।
  • बीबीसी ने उनकी उपमा 'जीवित गांधी' से दी, जो उनके अहिंसक और सच्चे गांधीवादी व्यक्तित्व को दर्शाता है।

 इंद्रमणि बदोनी के बारे में  (FAQ) 

1. इंद्रमणि बदोनी कौन थे?

  • उत्तर: इंद्रमणि बदोनी उत्तराखंड के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी और सामाजिक कार्यकर्ता थे, जिन्हें 'उत्तराखंड के गांधी' के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने उत्तराखंड राज्य के निर्माण के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया और सामाजिक कल्याण, पर्यावरण संरक्षण तथा शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय भूमिका निभाई।

2. इंद्रमणि बदोनी का जन्म कब और कहां हुआ था?

  • उत्तर: इंद्रमणि बदोनी का जन्म 24 दिसंबर 1925 को उत्तराखंड के टिहरी राज्य के जखोली ब्लॉक के अखोदी गाँव में हुआ था।

3. इंद्रमणि बदोनी को सामाजिक कार्य में शामिल होने के लिए क्या प्रेरित किया?

  • उत्तर: इंद्रमणि बदोनी को प्रसिद्ध गांधीवादी कार्यकर्ता मीरा बेन से प्रेरणा मिली, जिन्होंने उन्हें अपने गाँव और क्षेत्र की भलाई के लिए काम करने की प्रेरणा दी। इसके बाद उन्होंने सामाजिक कल्याण, शिक्षा और स्थानीय समुदाय के विकास पर ध्यान केंद्रित किया।

4. इंद्रमणि बदोनी ने अपने जीवन में कौन-कौन सी महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाईं?

  • उत्तर: इंद्रमणि बदोनी ने अपने गाँव के प्रधान (ग्राम प्रधान) के रूप में कार्य किया और बाद में जखोली विकास खंड के नेता बने। उन्होंने उत्तर प्रदेश विधानसभा में देवप्रयाग क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया और कई स्थानीय और राज्य आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई।

5. इंद्रमणि बदोनी का उत्तराखंड राज्य आंदोलन में क्या योगदान था?

  • उत्तर: इंद्रमणि बदोनी उत्तराखंड राज्य के निर्माण के लिए कट्टर समर्थक थे। उन्होंने 1988 में तवांगहाट से देहरादून तक एक ऐतिहासिक 2000 किलोमीटर की पदयात्रा की, जो राज्य के गठन के लिए जन जागरूकता फैलाने का एक महत्वपूर्ण कदम था। वह 1994 के उत्तराखंड राज्य आंदोलन में भी सक्रिय थे, जिसमें उन्होंने भूख हड़ताल की, जिससे राज्य गठन की दिशा में महत्वपूर्ण दबाव पड़ा।

6. 1994 की भूख हड़ताल का क्या महत्व था?

  • उत्तर: 1994 में इंद्रमणि बदोनी ने उत्तराखंड राज्य के गठन में हो रही देरी के विरोध में भूख हड़ताल की थी। उनकी हड़ताल ने राष्ट्रीय स्तर पर ध्यान आकर्षित किया और वह राज्य के निर्माण के लिए एक प्रतीक बन गए। उनकी भूख हड़ताल ने उत्तराखंड के लोगों को एकजुट किया और राज्य की मांग को मजबूत किया।

7. इंद्रमणि बदोनी ने उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर को बचाने के लिए क्या किया?

  • उत्तर: इंद्रमणि बदोनी उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण के लिए सक्रिय थे। उन्होंने स्थानीय लोक परंपराओं को बढ़ावा दिया, जैसे कि मल्लेठा और वीर मधो सिंह भिंदारी के लोक गीतों को दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों में प्रस्तुत किया। उन्होंने उत्तराखंड के ग्लेशियरों और ऊंचे क्षेत्रों में यात्राओं को भी बढ़ावा दिया, जिससे क्षेत्र की प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक महत्व पर ध्यान केंद्रित हुआ।

8. इंद्रमणि बदोनी का उत्तराखंड में क्या योगदान था?

  • उत्तर: इंद्रमणि बदोनी का उत्तराखंड में योगदान अतुलनीय था। उन्हें राज्य के गठन के लिए उनके संघर्षों और आंदोलनों के कारण 'उत्तराखंड के गांधी' के रूप में जाना जाता है। उनकी निस्वार्थ सेवा, संघर्ष और सामाजिक सुधारों के कारण उन्होंने राज्य की राजनीति और सामाजिक आंदोलन को दिशा दी।

9. इंद्रमणि बदोनी को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा?

  • उत्तर: इंद्रमणि बदोनी को अपने राजनीतिक और सामाजिक कार्यों के दौरान कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिनमें संसाधनों की कमी, व्यक्तिगत स्वास्थ्य समस्याएँ और राजनीतिक दबाव शामिल थे। फिर भी, उन्होंने अपनी संघर्ष की राह को नहीं छोड़ा और राज्य के निर्माण के लिए संघर्ष जारी रखा।

10. इंद्रमणि बदोनी का निधन कब हुआ था?

  • उत्तर: इंद्रमणि बदोनी का निधन 18 अगस्त 1999 को हुआ था, जब वह एक लंबी बीमारी से जूझ रहे थे। उनका निधन उत्तराखंड राज्य के लिए एक बड़ी क्षति था और उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा।

11. "अगर आप जीते हुए गांधी को देखना चाहते हैं, तो उत्तराखंड जाइए" इस वाक्य का क्या अर्थ है?

  • उत्तर: यह वाक्य, जो बीबीसी द्वारा कहा गया था, इंद्रमणि बदोनी के उत्तराखंड में किए गए योगदान को उजागर करता है। उन्होंने महात्मा गांधी की तरह ही अहिंसात्मक तरीके से सामाजिक और राजनीतिक संघर्ष किए थे। यह वाक्य उनके गांधीवादी दृष्टिकोण और उत्तराखंड में उनकी अनमोल भूमिका को पहचानता है।
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