कविता: 7 to 8 - पहाड़ी शेणियों को सलाम (चेली पराई नहीं होती) - Poem: 7 to 8 - Pahari Sheniyon Ko Salam (Cheli Parai Nahin Hoti)
कविता 7. पहाड़ी शेणियों को सलाम – एक सच्ची श्रद्धांजलि
पहाड़ी शेणियों को सलाम – एक सच्ची श्रद्धांजलि
पहाड़ी जीवन जितना कठिन है, उससे भी कहीं ज्यादा दृढ़ और सशक्त होती हैं वो महिलाएँ, जिन्हें हम प्यार से "पहाड़ी शेणियाँ" कहते हैं। ये शेणियाँ अपने कंधों पर पूरे परिवार का भार उठाए दिन-रात काम करती हैं, और इन्हीं की मेहनत से पहाड़ों में जीवन का संचार होता है। यह ब्लॉग उन परिश्रमी, निडर, और बलवान पहाड़ी महिलाओं को समर्पित है, जिनकी कठिनाइयों से भरी दिनचर्या और मुस्कान हमें प्रेरणा देती है।
कविता:
तेरी खूटी, म्यर सलाम
सब पहाड़ी शेणियो कू प्रणाम,
आसान नेह पहाड़ो जीवन,
त्येर मेहनत बडू ऊके आसान।
ये पंक्तियाँ पहाड़ी महिलाओं के अथक श्रम को एक सलाम हैं। उनका जीवन पहाड़ों जितना कठिन है, पर उनकी मेहनत हर मुश्किल को आसान बना देती है। उनका त्याग और समर्पण असाधारण है।
पहाड़ जस जीवन,
फिर ले बड़ी रू त्यर मुस्कान,
राति बट्टी ब्याव तक बस कामे काम,
हे! पहाड़ी शेणी - तू छे महान।
दिनभर का संघर्ष और रात तक बगैर थके काम करते रहना, यही उनकी पहचान है। उनकी मुस्कान इस संघर्ष को झेलने की ताकत देती है। सच में, ये पहाड़ी शेणियाँ महान हैं।
गोठ बट्टी भतेर तक,
घर बट्टी बण तक,
कसी संभाल दी छे,
नू हूनि तुकु थकान।
ये पंक्तियाँ उनकी जिम्मेदारियों का बखान करती हैं। चाहे गोठ में मवेशियों की देखभाल हो या घर में बच्चों की देखभाल, सब कुछ उनके कंधों पर है। यह उनका संकल्प और दृढ़ता ही है कि वे कभी थकान का अनुभव नहीं करतीं।
म्यर पहाड़ो शेणी,
निडर, मेहनती और बलवान,
करनू तुके आज प्रणाम,
त्यर खूटी, म्यर सलाम।
पहाड़ की इन महिलाओं का साहस, मेहनत, और ताकत उन्हें अद्वितीय बनाते हैं। उनकी मेहनत को एक प्रणाम है, और उनके अद्वितीय योगदान को हमारा सलाम।
पहाड़ी शेणियों को हमारा सादर प्रणाम और दिल से सलाम। जय उत्तराखंड!
कविता 8.चेली पराई नहीं होती – एक पहाड़ी बेटी का अपने परिवार से जुड़ाव
पहाड़ों की बेटियाँ, जिन्हें "चेली" कहते हैं, अपनी धरती और परिवार से हमेशा गहरे भावनात्मक रूप से जुड़ी होती हैं। वे चाहे ससुराल चली जाएँ, लेकिन उनका मन हमेशा अपने मायके से जुड़ा रहता है। उनकी आत्मा में बसती है वह ममता और अपनापन जो उन्हें कभी पराया नहीं होने देता। यह ब्लॉग उन पहाड़ी बेटियों को समर्पित है जो हर जिम्मेदारी निभाते हुए अपने माता-पिता से दूर हो जाती हैं, पर अपने दिल में उनके लिए हमेशा प्यार बनाए रखती हैं।
कविता:
मैत बे सरास जैबर
चेली पराई नि हुन,
पराणी व्यूकी मेते मी रू,
चेली आपुण इज-बौज्यू बट्टी दूर नि हुन।
पंक्तियाँ बताती हैं कि चाहे चेली विवाह करके पराई हो जाए, फिर भी वह अपने मायके से भावनात्मक रूप से जुड़ी रहती है। अपने पति के साथ नए जीवन में कदम रखते हुए भी उसकी आत्मा अपने माता-पिता के पास ही रहती है।
रीत निभउ सरास जा छो,
आपुण घर छोड़ दुसरो घर बसु छो,
सास-सौरो मि आपुण इज-बाप देखु छो,
चेली बट्टी बण बे संसार संझू छो।
एक बेटी, अपने माता-पिता की शिक्षा और संस्कारों के बल पर नए रिश्तों को अपना लेती है और अपने ससुराल को भी अपने मायके जैसा मानती है। वह अपने सास-ससुर में अपने इजा-बौज्यू का रूप देखती है और उस नए परिवार को अपना संसार मान लेती है।
चेली कभे ने पराई नि हुन,
आपुण इज-बौज्यू बट्टी दूर नि हुन।
आखिर में, ये शब्द बताते हैं कि एक बेटी चाहे कहीं भी हो, उसके दिल में हमेशा अपने माता-पिता का प्यार और सम्मान बना रहता है। वह भले ही शारीरिक रूप से दूर हो जाए, पर भावनात्मक रूप से वह कभी पराई नहीं होती।
निष्कर्ष
पहाड़ी चेली अपने हर कदम पर अपने परिवार के संस्कारों और प्रेम को जीती है। वह भले ही दूसरे घर चली जाए, लेकिन अपने मायके से उसका रिश्ता कभी नहीं टूटता। उसकी आत्मा में बसे ये रिश्ते उसे कभी दूर नहीं होने देते।
सच्चे मायनों में, चेली पराई नहीं होती। वह हमेशा अपने इजा-बौज्यू के दिल में और अपनी धरती में बसी रहती है। जय उत्तराखंड!
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें