आख़िर क्या है बद्रीनाथ से जुड़ा अनोखा रहस्य ( After all, what is the unique secret related to Badrinath?)
आख़िर क्या है बद्रीनाथ से जुड़ा अनोखा रहस्य ( After all, what is the unique secret related to Badrinath?)
बद्रीनाथ से जुड़ा अनोखा रहस्य |
बद्रीनाथ धाम चार प्रमुख धामों में से एक है। बद्रीनाथ धाम को सृष्टि का आठवां बैकुंठ माना जाता है। कहते हैं कि इस धाम में भगवान श्री हरि छह माह तक योगनिद्रा में लीन रहते हैं और छह माह तक अपने द्वार पर आए भक्तों को दर्शन देते हैं। मंदिर के गर्भ गृह में स्थित भगवान बद्रीनाथ की विशाल मूर्ति शालिग्राम शिला से बनी हुई चतुर्भुज अवस्था और ध्यान की मुद्रा में है। इस धाम की अनोखी बात यह है कि मंदिर के पट बंद होने पर भी मंदिर में अखंड दीपक प्रज्जवलित रहता है। भगवान बद्रीनाथ का जोशीमठ में भगवान नरसिंह की मूर्ति से ख़ास जुड़ाव माना गया है।
बद्रीनाथ से जुड़ा अनोखा रहस्य |
भगवान नरसिंह की मूर्ति के बारे में ऐसी मान्यता है कि आदि गुरु शंकराचार्य जिस दिव्य शालिग्राम पत्थर में नारायण की पूजा करते थे, उसमें एकाएक भगवान नरसिंह भगवान की मूर्ति उभर आयी और उसी क्षण उन्हें नारायण के दर्शन के साथ अद्भुत ज्ञान - ज्योति की प्राप्ति हुई। भगवान नारायण ने उन्हें नरसिंह रूप के रौद्र रूप की जगह शांत रूप में दर्शन दिया, तभी से लोक मंगलकारी नारायण का शांत स्वरूप, मूर्ति जन आस्था के रूप में विख्यात है।
आपको बता दें कि इसी पावन मंदिर में भगवान बद्रीनाथ के कपाट बंद हो जाने के बाद उनकी मूर्ति को जोशीमठ लाकर छह माह तक भगवान बद्रीनाथ की पूजा भी इसी मंदिर में की जाती है। मान्यता है कि जोशीमठ में स्थित नरसिंह भगवान की मूर्ति का एक हाथ, साल दर साल पतला होता जा रहा है और अभी वर्तमान में भगवान नरसिंह भगवान के हाथ का वह हिस्सा सुई की गोलाई के बराबर रह गया है। ऐसे में जिस दिन ये हाथ अलग हो जाएगा उस दिन नर और नारायण पर्वत, यानि जय - विजय पर्वत आपस में मिल जाएंगे और उसी क्षण से बद्रीनाथ धाम का मार्ग पूरी तरह बंद हो जाएगा।
मान्यता है कि आने वाले कुछ वर्षों में वर्तमान बद्रीनाथ धाम और केदारेश्वर धाम लुप्त हो जाएंगे और वर्षों बाद भविष्य में "भविष्य बद्री" नामक नए तीर्थ का उद्गम होगा। लोक मान्यताओं के अनुसार भविष्य में बद्रीनाथ भगवान, जोशीमठ से 22 किलोमीटर आगे "भविष्य बद्री" के रूप में प्रकट होकर दर्शन देंगे। मान्यता है कि जिस दिन जोशीमठ में भगवान नरसिंह की मूर्ति से हाथ अलग हो जाएगा, आगे चलकर उसी दिन जोशीमठ में भगवान विष्णु जी की मूर्ति प्रकट होगी।
बद्रीनाथ से जुड़ा अनोखा रहस्य |
बद्रीनाथ का क्या इतिहास था?
बद्रीनाथ राज्य उत्तराखण्ड में से एक यह एक प्राचीन मंदिर है। इस मन्दिर पर हिन्दुओ की बड़ी ही अटूट आस्था बनी हुई है;
- बद्रीनाथ मंदिर का निर्माण ७वीं-९वीं सदी में होने के प्रमाण मिलते हैं बद्रीनाथ मन्दिर में हिंदू धर्म के देवता विष्णु के एक रूप "बद्रीनारायण" की पूजा होती है। यहाँ उनकी १ मीटर (३.३ फीट) लंबी शालिग्राम के वृक्षों के कारण पड़ा था। एडविन टी॰ एटकिंसन ने अपनी पुस्तक, "द हिमालयन गजेटियर" में इस बात का उल्लेख किया है कि इस स्थान पर पहले बद्री के घने वन पाए जाते थे, हालाँकि अब उनका कोई निशान तक नहीं बचा है।
- विष्णु पुराण में इस क्षेत्र से संबंधित एक कथा है, जिसके अनुसार धर्म के दो पुत्र हुए- नर तथा नारायण) और नर-नारायण ने ही क्रमशः अगले जन्म में क्रमशः अर्जुन तथा कृष्ण के रूप में जन्म लिया था।
- महाभारतकालीन एक अन्य मान्यता यह भी है कि इसी स्थान पर पाण्डवों ने अपने पितरों का पिंडदान किया था। इसी कारण से बद्रीनाथ के ब्रम्हाकपाल क्षेत्र में आज भी तीर्थयात्री अपने पितरों का आत्मा का शांति के लिए पिंडदान करते हैं।
- बद्रीनाथ मन्दिर की उत्पत्ति के विषय में अनेक मत प्रचलित हैं। कुछ स्रोतों के अनुसार, यह मन्दिर आठवीं शताब्दी तक एक बौद्ध मठ था, जिसे आदि शंकराचार्य ने एक हिन्दू मन्दिर में परिवर्तित कर दिया। इस तर्क के पीछे मन्दिर की वास्तुकला एक प्रमुख कारण है, जो किसी बौद्ध विहार (मन्दिर) के सामान है; इसका चमकीला तथा चित्रित मुख-भाग भी किसी बौद्ध मन्दिर के समान ही प्रतीत होता है।
- अन्य स्रोत बताते हैं कि इस मन्दिर को नौवीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा एक तीर्थ स्थल के रूप में स्थापित किया गया था। एक अन्य मान्यता यह भी है कि शंकराचार्य छः वर्षों तक (८१४ से ८२० तक) इसी स्थान पर रहे थे। इस स्थान में अपने निवास के दौरान वह छह महीने के लिए बद्रीनाथ में, और फिर शेष वर्ष केदारनाथ में रहते थे। हिंदू अनुयायियों का कहना है कि बद्रीनाथ की मूर्ति देवताओं ने स्थापित की थी। जब बौद्धों का पराभव हुआ, तो उन्होंने इसे अलकनन्दा में फेंक दिया। शंकराचार्य ने ही अलकनंदा नदी में से बद्रीनाथ की इस मूर्ति की खोज की, और इसे तप्त कुंड नामक गर्म चश्मे के पास स्थित एक गुफा में स्थापित किया।
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