उत्तराखंड की महान विभूतियां: डॉ. घनानंद पाण्डे जिन्हें 1969 में मिला पद्म विभूषण सम्मान (Dr. Ghananand Pandey: Pride of Uttarakhand)

उत्तराखंड की महान विभूतियां: डॉ. घनानंद पाण्डे जिन्हें 1969 में मिला पद्म विभूषण सम्मान

उत्तराखंड, जो भारत के उत्तर में स्थित एक भौगोलिक दृष्टि से विकट पर्वतीय राज्य है, ने न केवल आध्यात्मिक और धार्मिक क्षेत्र में योगदान दिया है, बल्कि यहां के महान विभूतियों ने देश के विभिन्न क्षेत्रों में भी अपनी अमिट छाप छोड़ी है। इनमें से एक प्रतिष्ठित नाम है डॉ. घनानंद पाण्डे का, जिन्होंने भारतीय रेलवे से लेकर उच्च शिक्षा और तकनीकी संस्थाओं तक अपनी गहरी छाप छोड़ी। उन्हें 1969 में उनकी असाधारण सेवाओं के लिए भारत सरकार द्वारा पद्म विभूषण जैसे सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नवाजा गया।

जन्म एवं प्रारंभिक जीवन
डॉ. घनानंद पाण्डे का जन्म 1 जनवरी 1902 को उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के रानीखेत में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा अल्मोड़ा और नैनीताल में हुई, और इसके बाद उन्होंने उच्च शिक्षा के लिए इलाहाबाद विश्वविद्यालय का रुख किया। 1922 में उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की और फिर 1925 में थॉमसन कॉलेज ऑफ सिविल इंजीनियरिंग (अब आई.आई.टी. रुड़की) से सिविल इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की।

व्यावसायिक जीवन एवं योगदान
डॉ. पाण्डे ने 1925 में भारतीय रेलवे इंजीनियरिंग सेवा में योगदान दिया और 1947 तक विभिन्न उच्च पदों पर कार्य किया। उन्होंने रेलवे बोर्ड में निदेशक के रूप में कार्य किया और भारतीय गंगा ब्रिज परियोजना के मुख्य इंजीनियर के रूप में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। 1950 से 1952 तक वह पूर्वोत्तर रेलवे के महाप्रबंधक रहे और इसके बाद 1952 में भारतीय गंगा ब्रिज परियोजना मोकामा में महाप्रबंधक के रूप में कार्य किया।

डॉ. पाण्डे का कार्य क्षेत्र रेलवे के अलावा भारतीय इस्पात उद्योग में भी महत्वपूर्ण था। रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान भिलाई, राउरकेला और दुर्गापुर जैसे सार्वजनिक क्षेत्र के इस्पात संयंत्र स्थापित हुए। उन्होंने 1960-61 में 'बेबी कार प्रोजेक्ट' जैसे महत्त्वपूर्ण विचारों की कल्पना की और छोटी कारों के निर्माण के लिए सिफारिश की।

शिक्षा और संस्थाओं में योगदान
डॉ. पाण्डे का शिक्षा क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान था। 1961 से 1966 तक रुड़की विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में कार्य करते हुए उन्होंने इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स, इंडिया की स्थापना की। उनकी शिक्षा के प्रति निष्ठा को देखते हुए रुड़की विश्वविद्यालय ने उन्हें 'डॉक्टर ऑफ इंजीनियरिंग' और कुमाऊं विश्वविद्यालय ने 'डॉक्टर ऑफ साइंस' की मानद उपाधि से सम्मानित किया।

उनकी भूमिका योजना आयोग के सदस्य के रूप में भी रही, जहां उन्होंने कई महत्त्वपूर्ण योजनाओं को क्रियान्वित किया। इसके साथ ही उन्होंने कई उच्च स्तरीय इंजीनियरिंग समितियों का नेतृत्व किया।

कुल एक दर्जन पुस्तकें हो चुकी हैं  प्रकाशित

लेखक घनानंद पांडे ‘मेघ’ का जन्म 2 नवंबर, 1952 को पिथौरागढ़ जनपद के नैनी (उड़ाई)गाँव में हुआ था। वह हिंदी और कुमाउनी दोनों भाषाओं में लेखन करते हैं। उनकी नरै (कुमाउनी गीत संग्रह), कल्पनाओं का सावन, पावन माटी का लाल: मेजर उत्तम सिंह सामंत समेत कुल एक दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। सैन्य पृष्ठभूमि पर लेखन करने के साथ-साथ उन्होंने  कुमाउनी में सरस गीतों की रचना  भी की है।

13 वें राष्ट्रीय कुमाउनी भाषा सम्मेलन में दिया जायेगा पुरूस्कार

काफी विचार विमर्श के बाद चयन समिति द्वारा घनानंद पांडे ‘मेघ’ का नाम घोषित किया गया है। समिति के सचिव सचिव व ‘पहरू’. संपादक डॉ. हयात सिंह रावत ने जानकारी देते हुए बताया कि लेखक घनानंद को यह पुरस्कार कुमाउनी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति प्रचार समिति कसारदेवी, अल्मोड़ा व ‘पहरू’ मासिक पत्रिका द्वारा आगामी 25, 26 व 27 दिसंबर, 2021 को होटल नरेंद्रा पैलेस, बागेश्वर में आयोजित होने वाले तीन दिनी 13 वें राष्ट्रीय कुमाउनी भाषा सम्मेलन में दिया जायेगा। श्री मेघ को पुरस्कार के रूप में पांच हजार एक सौ रू. की नकद धनराशि, अंगवस्त्र व प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जायेगा ।

पद्म विभूषण सम्मान
डॉ. घनानंद पाण्डे के असाधारण योगदान और सेवाओं के कारण उन्हें 1969 में भारत सरकार द्वारा पद्म विभूषण सम्मान से नवाजा गया, जो भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान में से एक है। उनका यह सम्मान केवल उनके पेशेवर योगदान की वजह से नहीं, बल्कि उनके द्वारा देश के लिए किए गए समर्पण और कार्यों के कारण भी था।

समाप्ति और धरोहर
डॉ. घनानंद पाण्डे ने अपना जीवन न केवल इंजीनियरिंग और शिक्षा के क्षेत्र में अविस्मरणीय योगदान देने में बिताया, बल्कि उन्होंने भारतीय समाज को प्रौद्योगिकी, शिक्षा और सार्वजनिक सेवा के क्षेत्र में नई दिशा भी दी। उनका जीवन समर्पण, कार्यक्षमता और राष्ट्रप्रेम का प्रतीक है, जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा।

उनके योगदान को हम कभी नहीं भूल सकते, और उनके कार्यों से प्रेरित होकर हम अपने समाज और देश को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।

(FAQs) 

  1. डॉ. घनानंद पाण्डे कौन थे?

    • डॉ. घनानंद पाण्डे एक प्रतिष्ठित भारतीय इंजीनियर और शिक्षाविद् थे, जिन्होंने भारतीय रेलवे और इस्पात उद्योग में उल्लेखनीय योगदान दिया। वे उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के रानीखेत में जन्मे थे और भारतीय रेलवे इंजीनियरिंग सेवा में उच्च पदों पर कार्यरत रहे।
  2. डॉ. घनानंद पाण्डे का जन्म कब और कहां हुआ था?

    • उनका जन्म 1 जनवरी 1902 को उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के रानीखेत में हुआ था।
  3. डॉ. पाण्डे की प्रारंभिक शिक्षा और उच्च शिक्षा कहां हुई?

    • उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अल्मोड़ा और नैनीताल में प्राप्त की और फिर उच्च शिक्षा के लिए इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक किया। उन्होंने थॉमसन कॉलेज ऑफ सिविल इंजीनियरिंग (अब आई.आई.टी. रुड़की) से सिविल इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल की।
  4. डॉ. पाण्डे का भारतीय रेलवे में योगदान क्या था?

    • 1925 में भारतीय रेलवे इंजीनियरिंग सेवा में शामिल होकर, डॉ. पाण्डे ने रेलवे के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने भारतीय गंगा ब्रिज परियोजना का नेतृत्व किया और रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया।
  5. भारतीय इस्पात उद्योग में डॉ. पाण्डे का क्या योगदान था?

    • उन्होंने भिलाई, राउरकेला, और दुर्गापुर में इस्पात संयंत्रों की स्थापना के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो भारत के औद्योगिक विकास में मील का पत्थर साबित हुए।
  6. डॉ. पाण्डे की शिक्षा क्षेत्र में भूमिका क्या थी?

    • 1961 से 1966 तक वे रुड़की विश्वविद्यालय के कुलपति रहे और उन्होंने इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स, इंडिया की स्थापना की। रुड़की विश्वविद्यालय और कुमाऊं विश्वविद्यालय ने उन्हें मानद उपाधियों से सम्मानित किया।
  7. डॉ. पाण्डे को कौन-कौन से सम्मान प्राप्त हुए?

    • उन्हें 1969 में भारत सरकार द्वारा पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया, जो भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। उनके शिक्षा और प्रौद्योगिकी क्षेत्र में योगदान को देखते हुए यह सम्मान प्रदान किया गया।
  8. डॉ. पाण्डे का सामाजिक योगदान क्या था?

    • उन्होंने योजना आयोग के सदस्य के रूप में कई योजनाओं को क्रियान्वित किया और विभिन्न उच्च स्तरीय इंजीनियरिंग समितियों का नेतृत्व किया, जिससे भारतीय समाज को नई दिशा मिली।
  9. डॉ. घनानंद पाण्डे का योगदान किस प्रकार आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्रोत है?

    • डॉ. पाण्डे का जीवन उनके समर्पण, कार्यक्षमता, और राष्ट्रप्रेम का प्रतीक है, जो आने वाली पीढ़ियों को अपने समाज और देश के लिए उत्कृष्ट कार्य करने के लिए प्रेरित करता रहेगा।
  10. डॉ. पाण्डे की धरोहर को कैसे संजोया जा सकता है?

    • उनकी धरोहर को उनके विचारों और कार्यों का अनुसरण करते हुए, और शिक्षा, प्रौद्योगिकी तथा सामाजिक कल्याण में उत्कृष्टता की दिशा में कदम बढ़ाकर संजोया जा सकता है।
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