उत्तराखंड की महान विभूतियां: आजादी के योद्धा भवानी सिंह रावत (Great personalities of Uttarakhand: Freedom fighter Bhavani Singh Rawat.)

उत्तराखंड की महान विभूतियां: आजादी के योद्धा भवानी सिंह रावत

उत्तराखंड की वीरभूमि ने अनेक साहसी योद्धाओं को जन्म दिया, जिन्होंने देश की आजादी के संग्राम में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। इन महान विभूतियों में एक विशेष नाम आता है भवानी सिंह रावत का, जिनकी गिनती गढ़वाल के सबसे सक्रिय क्रांतिकारियों में होती है। उनका जीवन और संघर्ष हमें प्रेरित करता है और आज भी उनके बलिदान की स्मृति उत्तराखंड की संस्कृति में जिंदा है।

जन्म और प्रारंभिक जीवन

  • जन्म: 8 अक्टूबर 1910, ग्राम पंचूर, चौंदकोट, पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड
  • मृत्यु: 6 मई 1986

भवानी सिंह रावत का जन्म 8 अक्टूबर 1910 को उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले के पंचूर गांव में हुआ था। उनके पिता नाथूसिंह ब्रिटिश सेना में कैप्टन थे, और इसी कारण भवानी सिंह का बचपन सेना की छावनियों में बीता। लैंसडाउन आर्मी स्कूल में शिक्षा प्राप्त करने के दौरान उन्हें अंग्रेज बच्चों द्वारा किए जाने वाले भेदभावपूर्ण व्यवहार का सामना करना पड़ा, जिससे उनके मन में ब्रिटिश शासन के प्रति आक्रोश पैदा हुआ।

क्रांतिकारी गतिविधियों की शुरुआत

भवानी सिंह की पढ़ाई चंदौसी और हिन्दू कॉलेज, दिल्ली में हुई, जहां उनकी मुलाकात भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद से हुई। इस समय तक भवानी सिंह क्रांतिकारियों के संपर्क में आ चुके थे और उन्होंने देश की आजादी को ही अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया था। वह लाला लाजपत राय और अन्य प्रमुख क्रांतिकारियों से प्रेरित थे और हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र सभा के सक्रिय सदस्य बन गए। उन्होंने भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव जैसे महान क्रांतिकारियों के साथ मिलकर स्वतंत्रता संग्राम में योगदान दिया।

दुगड्डा में चंद्रशेखर आजाद का ठिकाना

जब पुलिस से बचने के लिए चंद्रशेखर आजाद को एक सुरक्षित स्थान की आवश्यकता पड़ी, तो भवानी सिंह ने उन्हें दुगड्डा स्थित अपने गांव नाथूपुर में ठहरने का निमंत्रण दिया। इस प्रस्ताव को आजाद ने स्वीकार किया और अपने साथियों के साथ दुगड्डा आ गए। एक सप्ताह तक भवानी सिंह का घर ही आजाद और उनके साथियों का सुरक्षित ठिकाना बना रहा, जहां आजाद ने अपने साथियों को निशानेबाजी का अभ्यास भी कराया। साझासैंण के जंगल में उन्होंने अपने अद्भुत निशानेबाजी कौशल का प्रदर्शन किया, जिसे देखकर उनके साथी आश्चर्यचकित रह गए।

अंग्रेजी हुकूमत से संघर्ष और बलिदान

लाहौर षड्यंत्र केस के समय, जब क्रांतिकारी दल के एक सदस्य कैलाशपति ने ब्रिटिश हुकूमत के सामने भेद खोल दिया, तो भवानी सिंह को मुंबई भेजा गया। वहां वह एक उर्दू पत्रिका के संपादक के रूप में कार्यरत रहे। 25 दिसंबर 1932 को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन सबूतों की कमी के कारण उन्हें रिहा कर दिया गया। इसके बाद, अंग्रेजी सरकार ने उनके पिता की पेंशन भी बंद कर दी।

चंद्रशेखर आजाद स्मारक और अंतिम दिन

भवानी सिंह अपने गांव नाथूपुर लौट आए और चंद्रशेखर आजाद स्मारक के निर्माण में जुट गए। 6 मई 1986 को भवानी सिंह रावत का निधन हो गया। उनकी समाधि आजाद पार्क में बनाई गई है, जहां पर चंद्रशेखर आजाद की आदमकद प्रतिमा स्थापित है। यहां पर एक स्मृति वृक्ष भी है, जिस पर आजाद ने निशाना साधा था। वन विभाग ने उनके जीवन से जुड़ी घटनाओं को चित्रों के माध्यम से पार्क की दीवारों पर उकेरा है। हर वर्ष 27 फरवरी को दुगड्डा में चंद्रशेखर आजाद की स्मृति में बलिदानी मेले का आयोजन किया जाता है।

उत्तराखंड के इस महान क्रांतिकारी भवानी सिंह रावत का जीवन त्याग, साहस और देशभक्ति का प्रतीक है, जो हमेशा हमें देशभक्ति के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता रहेगा।

भवानी सिंह रावत - 

  1. इनका जन्म 8 अक्टूबर 1910 को नाथुपुर गांव 
  2. स्थान - दुगड्डा , पौड़ी में हुआ ।
  3. शिक्षा - प्रारंभिक शिक्षा लैंसडाउन फिर मुरादाबाद चले । 
  4.  ये आजाद के नेतृत्व वाले हिंदुस्तान प्रजातान्त्रिक समाजवादी संघ के एकमात्र सदस्य थे
  5.  भवानी सिंह रावत का चंद्रशेखर आजाद से गहरा नाता रहा है. काकोरी कांड के बाद चंद्रशेखर आजाद अपने क्रांतिकारी साथियों के साथ दुगड्डा आए थे । तब भवानी सिंह रावत का घर ही चंद्रशेखर आजाद का ठिकाना हुआ करता था ।
  6. 1930 में गडोडिया स्टोर में डकैत पड़ी वे उसमे शामिल थे।
  7. 1931 में बम्बई पुलिस द्वारा गिरफ्तार ।
  8. फरवरी 1933 में रिहा हो गए ।
  9.  इन्होने दुगड्डा (पौड़ी)में शहीद मेले की शुरुआत की ।
  10. 6 मई 1986 रुड़की में पंचलान में विलीन हो गए ।

Frequently Asked Questions (FAQs):

  1. भवानी सिंह रावत कौन थे?

    • भवानी सिंह रावत एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी और गढ़वाल, उत्तराखंड के क्रांतिकारी नायक थे, जिन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  2. भवानी सिंह रावत का जन्म कब और कहाँ हुआ था?

    • उनका जन्म 8 अक्टूबर 1910 को ग्राम पंचूर, चौंदकोट, पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड में हुआ था।
  3. भवानी सिंह रावत ने स्वतंत्रता संग्राम में कैसे योगदान दिया?

    • उन्होंने हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र सभा के सदस्य के रूप में भगत सिंह, राजगुरु, और सुखदेव जैसे महान क्रांतिकारियों के साथ मिलकर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लड़ाई लड़ी और आजादी के लिए अनेक प्रयास किए।
  4. चंद्रशेखर आजाद के साथ उनका क्या संबंध था?

    • चंद्रशेखर आजाद को जब एक सुरक्षित स्थान की जरूरत पड़ी, तब भवानी सिंह ने उन्हें अपने गांव नाथूपुर में आश्रय दिया और उनके ठहरने की व्यवस्था की।
  5. दुगड्डा में भवानी सिंह रावत ने चंद्रशेखर आजाद की मदद कैसे की?

    • भवानी सिंह ने अपने घर को चंद्रशेखर आजाद और उनके साथियों के लिए ठिकाना बनाया, जहां उन्होंने निशानेबाजी का अभ्यास भी कराया और एक सुरक्षित माहौल प्रदान किया।
  6. भवानी सिंह रावत को कब गिरफ्तार किया गया?

    • उन्हें 25 दिसंबर 1932 को मुंबई में गिरफ्तार किया गया, लेकिन पर्याप्त सबूत न होने के कारण उन्हें रिहा कर दिया गया।
  7. भवानी सिंह रावत ने स्वतंत्रता संग्राम के बाद क्या किया?

    • स्वतंत्रता संग्राम के बाद उन्होंने अपने गांव नाथूपुर में लौटकर चंद्रशेखर आजाद स्मारक के निर्माण में योगदान दिया और स्वतंत्रता सेनानियों की स्मृति को सहेजने का कार्य किया।
  8. भवानी सिंह रावत का निधन कब हुआ?

    • उनका निधन 6 मई 1986 को हुआ।
  9. आजाद पार्क का क्या महत्व है?

    • आजाद पार्क में भवानी सिंह रावत की समाधि और चंद्रशेखर आजाद की आदमकद प्रतिमा स्थापित है। यहाँ पर एक स्मृति वृक्ष भी है, जिस पर आजाद ने निशाना साधा था। यह पार्क स्वतंत्रता सेनानियों की स्मृति को समर्पित है।
  10. बलिदानी मेले का आयोजन क्यों होता है?

    • हर वर्ष 27 फरवरी को दुगड्डा में चंद्रशेखर आजाद की स्मृति में बलिदानी मेले का आयोजन होता है, ताकि स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान को सम्मान दिया जा सके।
  11. भवानी सिंह रावत की विरासत का क्या महत्व है?

    • भवानी सिंह रावत का जीवन साहस, देशभक्ति और त्याग का प्रतीक है, जो उत्तराखंड के लोगों और खासकर युवाओं को देशप्रेम और बलिदान के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।
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