भारत के विष्णु मंदिर : बद्रीनाथ मन्दिर और कैसे जाएं
यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है , ये मंदिर भारत में उत्तराखंड में बद्रीनाथ में स्थित है।
बद्रीनाथ मंदिर चारधाम और छोटा चारधाम तीर्थ स्थलों में से एक है।
यह अलकनंदा नदी के बाएं तट पर नर और नारायण नामक दो पर्वत श्रेणियों के बीच स्थित है।
ये पंच-बदरी में से एक बद्री है।
उत्तराखंड में पंच बदरी, पंच केदार तथा पंच प्रयाग पौराणिक दृष्टि से तथा हिन्दू धर्म की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। प्राचीन शैली में बना भगवान विष्णु का यह मंदिर बेहद विशाल है।
इसकी ऊँचाई करीब 15 मीटर है।
इस धाम के बारे में यह कहावत है कि 'जो जाए बदरी, वो ना आए ओदरी' यानी जो व्यक्ति बद्रीनाथ के दर्शन कर लेता है, उसे पुनः माता के उदर यानी गर्भ में फिर नहीं आना पड़ता।
शास्त्रों में बताया गया है कि मनुष्य को जीवन में कम से कम एक बार बद्रीनाथ के दर्शन जरूर करने चाहिए।
पौराणिक कथा के अनुसार , भगवान शंकर ने बद्रीनारायण की छवि एक काले पत्थर पर शालिग्राम के पत्थर के ऊपर अलकनंदा नदी में खोजी थी।
शास्त्रों में बताया गया है कि मनुष्य को जीवन में कम से कम एक बार बद्रीनाथ के दर्शन जरूर करने चाहिए।
पौराणिक कथा के अनुसार , भगवान शंकर ने बद्रीनारायण की छवि एक काले पत्थर पर शालिग्राम के पत्थर के ऊपर अलकनंदा नदी में खोजी थी।
वह मूल रूप से तप्त कुंड हॉट स्प्रिंग्स के पास एक गुफा में बना हुआ था।
सोलहवीं सदी में गढ़वाल के राजा ने मूर्ति को उठवाकर वर्तमान बद्रीनाथ मंदिर में ले जाकर उसकी स्थापना करवा दी।
और यह भी माना जाता है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने 8 वी सदी में मंदिर का निर्माण करवाया था।
बद्रीनाथ को शास्त्रों और पुराणों में दूसरा बैकुण्ठ कहा जाता है।
एक बैकुण्ठ क्षीर सागर है जहां भगवान विष्णु निवास करते हैं और विष्णु का दूसरा निवास बद्रीनाथ है जो धरती पर मौजूद है।
बद्रीनाथ के बारे में यह भी माना जाता है कि यह कभी भगवान शिव का निवास स्थान था।
लेकिन विष्णु भगवान ने इस स्थान को शिव से मांग लिया था।
बदरीनाथ मंदिर को बदरीनारायण मंदिर भी कहा जाता है।
बद्रीनाथ तीर्थ का नाम बद्रीनाथ कैसे पड़ा यह अपने आप में एक रोचक कथा है।
कहते हैं एक बार देवी लक्ष्मी जब भगवान विष्णु से रूठ कर मायके चली गई तब भगवान विष्णु यहां आकर तपस्या करने लगे।
जब देवी लक्ष्मी की नाराजगी दूर हुई तो वह भगवान विष्णु को ढूंढते हुए यहां आई।
उस समय यहां बदरी का वन यानी बेर फल का जंगल था।
बदरी के वन में बैठकर भगवान ने तपस्या की थी इसलिए देवी लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को बद्रीनाथ नाम दिया।
अलकनंदा के तट पर स्थित अद्भुत गर्म झरना जिसे ‘तप्त कुंड’ कहा जाता है।
एक समतल चबूतरा जिसे ‘ब्रह्म कपाल’ कहा जाता है।
पौराणिक कथाओं में उल्लेखित एक ‘सांप’ शिला है |
शेषनाग की कथित छाप वाला एक शिलाखंड ‘शेषनेत्र’ है।
भगवान विष्णु के पैरों के निशान हैं- ‘चरणपादुका’ |
बद्रीनाथ से नजर आने वाला बर्फ़ से ढका ऊंचा शिखर नीलकंठ, जो ‘गढ़वाल क्वीन’ के नाम से जाना जाता है |
मान्यता है कि बद्रीनाथ में भगवान शिव को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिली थी।
इस घटना की याद दिलाता है वह स्थान जिसे आज ब्रह्म कपाल के नाम से जाना जाता है।
ब्रह्मकपाल एक ऊंची शिला है जहां पितरों का तर्पण श्राद्घ किया जाता है।
माना जाता है कि यहां श्राद्घ करने से पितरों को मुक्ति मिलती है।
बद्रीनाथ के पुजारी शंकराचार्य के वंशज होते हैं, जो रावल कहलाते हैं।
यह जब तक रावल के पद पर रहते हैं इन्हें ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है।
वर्ष 1951-52 में हमारे पूर्वज किस तरह... - श्री बद्रीनाथ धाम | यात्रा
रावल के लिए स्त्रियों का स्पर्श भी पाप माना जाता है।
बद्रीनाथ कैसे पहुंचे ?
हवाई मार्ग से:
बद्रीनाथ से निकटतम हवाई अड्डा जॉली ग्रांट है, जो ऋषिकेश से सिर्फ 26 किमी दूर स्थित है।
ट्रेन द्वारा:
बद्रीनाथ धाम से सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश 297 किलोमीटर , हरिद्वार 324 किलोमीटर और कोटद्वार 327 किलोमीटर है। केदारनाथ से गोपेश्वर होकर बद्रीनाथ 230 किलोमीटर है।
दिल्ली से बद्रीनाथ कैसे जायें ?
निगम दिल्ली से पांडुकेश्वर (बदरीनाथ) के लिए सीधी बस सेवा शुरू किया है।नई बस सेवा का लाभ दिल्ली से बदरीनाथ धाम के दर्शन करने वाले तीर्थयात्रियों और पर्वतीय रूट की सवारियों को भी मिलेगा।
बस रोजाना रात नौ बजे दिल्ली के अंतरराज्यीय बस अड्डा कश्मीरी गेट से रवाना होगी और तड़के तीन बजे तीर्थनगरी पहुंचेगी।
जय बदरी धाम !
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