गिरीश तिवारी "गिर्दा" का प्रसिद्ध गीत: "ततुक नी लगा उदेख" (Girish Tiwari's famous song: 'Tatuk Ne Laga Udek')
गिरीश तिवारी "गिर्दा" का प्रसिद्ध गीत: "ततुक नी लगा उदेख"
गिरीश तिवारी "गिर्दा" ने अपनी कविताओं और गीतों के माध्यम से उत्तराखंड की सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक चेतना को जागृत किया। उनके गीत जन-आंदोलनों की आवाज बने और पहाड़ों के लोगों की पीड़ा, संघर्ष और उम्मीदों को अभिव्यक्त किया। "ततुक नी लगा उदेख" गिर्दा का एक ऐसा ही कालजयी गीत है, जो संघर्ष और उम्मीद के संदेश से ओतप्रोत है।
गीत के बोल
"ततुक नी लगा उदेख"
ततुक नी लगा उदेख,
घुनन मुनई नि टेक।
जैंता एक दिन तो आलो,
उ दिन यो दुनी में। (1)
जै दिन कठुलि रात ब्यालि,
पौ फाटला कौ कड़ालो।
जैंता एक दिन तो आलो,
उ दिन यो दुनी में। (2)
जै दिन चोर नी फलाल,
कैके जोर नी चलौल।
जैंता एक दिन तो आलो,
उ दिन यो दुनी में। (3)
जै दिन नान-ठुलो नि रौलो,
जै दिन त्योर-म्यरो नि होलो।
जैंता एक दिन तो आलो,
उ दिन यो दुनी में। (4)
चाहे हम नि ल्यै सकूं,
चाहे तुम नि ल्यै सको।
मगर क्वे न क्वे त ल्यालो,
उ दिन यो दुनी में। (5)
वि दिन हम नि हुंलो लेकिन,
हमलै वी दिनै हुंलो।
जैंता एक दिन तो आलो,
उ दिन यो दुनी में। (6)
गीत का संदेश
"ततुक नी लगा उदेख" सिर्फ एक गीत नहीं है, बल्कि यह उम्मीद, संघर्ष और बदलाव की पुकार है। गिर्दा ने इस गीत के माध्यम से ऐसे दिन की कल्पना की है, जब अन्याय और असमानता का अंत होगा, और एक नई, बेहतर दुनिया की शुरुआत होगी। यह गीत पहाड़ी जीवन के संघर्ष, सामाजिक अन्याय और आमजन की उम्मीदों को बखूबी बयां करता है।
गीत की प्रासंगिकता
गिर्दा का यह गीत उत्तराखंड आंदोलन और सामाजिक आंदोलनों का प्रमुख हिस्सा रहा है। उनके गीतों ने जनता को संघर्ष के लिए प्रेरित किया और सामाजिक बदलाव की दिशा में उनकी सोच को नई उड़ान दी।
गिर्दा की कविताओं की विशिष्टता
गिर्दा की कविताओं और गीतों में उत्तराखंड की मिट्टी की खुशबू है। उनके शब्द पहाड़ी समाज के दर्द, उत्साह और संघर्ष को उजागर करते हैं। "ततुक नी लगा उदेख" जैसे गीत उनकी सोच और दृष्टिकोण को दर्शाते हैं, जो सिर्फ साहित्यिक नहीं, बल्कि सामाजिक क्रांति का माध्यम भी है।
"गिर्दा का यह गीत हमेशा हमें प्रेरित करता रहेगा कि एक दिन नई सुबह जरूर आएगी, जब न्याय, समानता और स्वतंत्रता का सूरज हर ओर चमकेगा।"
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