उत्तराखंड की महान विभूतियां : आज़ाद हिंद फौज का जांबाज़ सिपाही ‘केसरी चंद’, जिन्हें मिला जौनसारी गीतों में सम्मान (The great personalities of Uttarakhand 'Kesari Chand')
उत्तराखंड की महान विभूतियां : आज़ाद हिंद फौज का जांबाज़ सिपाही ‘केसरी चंद’, जिन्हें मिला जौनसारी गीतों में सम्मान
भारत की स्वतंत्रता संग्राम में लाखों वीरों ने अपना बलिदान दिया, और इनमें से एक नाम है वीर केसरीचंद का। उनका बलिदान न केवल उत्तराखंड बल्कि समूचे भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा गया है। केसरीचंद की वीरता और साहस ने न केवल जौनसार बावर को गर्व महसूस कराया, बल्कि उत्तराखंड के अन्य क्षेत्रों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बना।
वीर केसरीचंद का जीवन परिचय
वीर केसरीचंद का जन्म उत्तराखंड के जौनसार बावर क्षेत्र के क्यावा गांव में हुआ था। उनके पिता पं. शिवदत्त एक साधारण किसान थे। बचपन से ही केसरीचंद साहसी और निर्भीक थे। खेलकूद में भी उनकी विशेष रुचि थी, और इस कारण वह अपनी टोली के नायक होते थे। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा विकासनगर से प्राप्त की और डी.ए.वी. कॉलेज, देहरादून से हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की।
देश में स्वतंत्रता संग्राम की लहर के साथ ही केसरीचंद ने सभाओं और कार्यक्रमों में भाग लेना शुरू कर दिया था। उनके भीतर राष्ट्रीयता का जोश सवार था, और इसी कारण 1941 में उन्होंने इंटर्मीडिएट की पढ़ाई छोड़ दी और रॉयल इंडिया आर्मी सर्विस कोर में नायब सूबेदार के पद पर भर्ती हो गए।
आज़ाद हिंद फौज में शामिल होना
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, केसरीचंद को 1941 में मलाया युद्ध मोर्चे पर तैनात किया गया, जहां वे जापानी सेना द्वारा बंदी बना लिए गए। इसी दौरान नेताजी सुभाष चंद्र बोस के आह्वान पर आज़ाद हिंद फौज का गठन हुआ, और केसरीचंद ने इस फौज में शामिल होने का निश्चय किया। वह नेताजी के नारे "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा" से प्रभावित थे और अपने प्राणों की आहुति देने के लिए तैयार हो गए थे।
वीरता और बलिदान
1944 में आज़ाद हिंद फौज मणिपुर की राजधानी इम्फाल तक पहुंची, जहां केसरीचंद ने ब्रिटिश सेना के खिलाफ युद्ध में भाग लिया। इस दौरान एक पुल उड़ा देने के प्रयास में वह पकड़े गए और उन्हें दिल्ली की जिला जेल भेज दिया गया। वहां पर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ षड्यंत्र का आरोप लगाया गया और उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई।
केसरीचंद ने मात्र 24 वर्ष 6 माह की उम्र में फांसी का फंदा गले में डालते हुए भारत माता की जय और जय हिंद के नारे लगाए। उनका यह बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की अमर गाथा बन गया।
उत्तराखंड और जौनसार बावर का गौरव
वीर केसरीचंद का बलिदान उत्तराखंड और जौनसार बावर की धरा पर हमेशा याद रखा जाएगा। उनका नाम आज भी सम्मान और श्रद्धा के साथ लिया जाता है। उनकी पुण्य स्मृति में हर साल चकराता के पास चौलीथात, रामताल गार्डन में एक मेला आयोजित होता है, जिसमें हज़ारों लोग इस महान वीर सपूत को श्रद्धांजलि अर्पित करने आते हैं।
इसके अलावा, जौनसार बावर के बेहद लोकप्रिय लोकगीत 'हारुल' में वीर केसरीचंद के बलिदान को विशेष सम्मान दिया जाता है।
निष्कर्ष
वीर केसरीचंद का बलिदान न केवल उत्तराखंड, बल्कि समूचे भारत के लिए एक प्रेरणा है। उनके साहस, देशभक्ति और आत्मबलिदान ने भारत की स्वतंत्रता संग्राम को नया दिशा दी। उनके जैसे वीर सपूतों के योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता। उत्तराखंड के लोग हमेशा अपने वीर सपूत केसरीचंद को गर्व और श्रद्धा के साथ याद करेंगे, और उनके बलिदान को आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाएंगे
वीर केसरीचंद का जीवन और बलिदान - सामान्य प्रश्न (FAQs)
वीर केसरीचंद का जन्म कब और कहां हुआ था?
- वीर केसरीचंद का जन्म 1 नवम्बर 1920 को उत्तराखंड के जौनसार बावर क्षेत्र के क्यावा गांव में हुआ था।
वीर केसरीचंद ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कहां से प्राप्त की थी?
- वीर केसरीचंद ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा विकासनगर से प्राप्त की और डी.ए.वी. कॉलेज, देहरादून से हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की।
केसरीचंद को भारतीय सेना में भर्ती होने के लिए क्या प्रेरित किया?
- देश में स्वतंत्रता संग्राम की लहर और राष्ट्रीयता का जोश उनके मन में जागा था, जिसके कारण उन्होंने 1941 में इंटर्मीडिएट की पढ़ाई छोड़कर रॉयल इंडिया आर्मी सर्विस कोर में नायब सूबेदार के पद पर भर्ती होने का निर्णय लिया।
वीर केसरीचंद ने आज़ाद हिंद फौज में कैसे भाग लिया?
- द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, केसरीचंद को 1941 में मलाया युद्ध मोर्चे पर तैनात किया गया था। जापानी सेना द्वारा बंदी बनाए जाने के बाद, नेताजी सुभाष चंद्र बोस के आह्वान पर उन्होंने आज़ाद हिंद फौज में शामिल होने का निर्णय लिया।
वीर केसरीचंद ने किस युद्ध में भाग लिया और उनकी वीरता किस प्रकार उभरी?
- 1944 में, आज़ाद हिंद फौज मणिपुर के इम्फाल तक पहुंची, जहां केसरीचंद ने ब्रिटिश सेना के खिलाफ युद्ध में भाग लिया। उन्होंने एक पुल उड़ा देने का प्रयास किया, जिसके बाद उन्हें पकड़कर दिल्ली की जिला जेल भेज दिया गया।
वीर केसरीचंद को फांसी की सजा क्यों दी गई?
- केसरीचंद पर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ षड्यंत्र का आरोप लगाया गया, जिसके कारण उन्हें फांसी की सजा दी गई।
केसरीचंद ने फांसी के समय क्या कहा?
- वीर केसरीचंद ने मात्र 24 वर्ष 6 माह की उम्र में फांसी का फंदा गले में डालते हुए "भारत माता की जय" और "जय हिंद" के नारे लगाए।
वीर केसरीचंद का बलिदान किस प्रकार उत्तराखंड और जौनसार बावर में याद किया जाता है?
- वीर केसरीचंद का बलिदान उत्तराखंड और जौनसार बावर की धरा पर हमेशा याद किया जाता है। उनके सम्मान में हर साल चकराता के पास चौलीथात, रामताल गार्डन में मेला आयोजित होता है। इसके अलावा, जौनसार बावर के लोकगीत 'हारुल' में भी उनके बलिदान का विशेष उल्लेख किया जाता है।
वीर केसरीचंद का बलिदान भारत के स्वतंत्रता संग्राम में क्यों महत्वपूर्ण है?
- वीर केसरीचंद का बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक अमर गाथा बन गया। उनके साहस और आत्मबलिदान ने स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी और आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित किया।
वीर केसरीचंद के बलिदान से हमें क्या प्रेरणा मिलती है?
- वीर केसरीचंद का बलिदान हमें देशभक्ति, साहस और आत्मसमर्पण की महत्वपूर्ण शिक्षा देता है। उनके जीवन से यह सिखने को मिलता है कि अपनी मातृभूमि के लिए जीवन समर्पित करना सर्वोत्तम कर्तव्य है।
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