आज़ाद हिंद फ़ौज में गढ़वाली सैनिकों के शामिल होने की कहानी -The story of the involvement of Garhwali soldiers in the Azad Hind Fauj

आज़ाद हिंद फ़ौज में गढ़वाली सैनिकों के शामिल होने की कहानी

आज़ादी की लड़ाई में गढ़वाली सैनिकों का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है, विशेषकर जब बात आती है भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की। 23 अप्रैल 1930 का दिन गढ़वाली सैनिकों के साहस और देशभक्ति की एक यादगार घटना को दर्शाता है। यह घटना पेशावर में घटित हुई, जब गढ़वाल राइफ़ल्ज़ के सैनिकों ने अपने अधिकारियों के आदेश का विरोध किया और अपने देशवासियों पर गोली चलाने से मना कर दिया। इस साहसिक क़दम ने ब्रिटिश साम्राज्य को हिला दिया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक नई ऊर्जा का संचार किया।

1. पेशावर कांड का इतिहास

गढ़वाल राइफ़ल्ज़, जो ब्रिटिश सेना की एक प्रमुख और पेशेवर इन्फेंट्री यूनिट मानी जाती थी, 1930 में पेशावर में भारतीय नागरिकों पर गोली चलाने के आदेश के खिलाफ खड़ी हो गई। यह आदेश एक ब्रिटिश कप्तान द्वारा दिया गया था, लेकिन गढ़वाली सैनिकों ने इस आदेश का पालन करने से मना कर दिया। जब कप्तान ने आदेश दिया, "थ्री राउंड फायर!", तो गढ़वाली सैनिकों के नेता चंद्र सिंह भंडारी ने आदेश दिया, "गढ़वाली सीज़ फायर, गढ़वाली गोली मत चलाना।" यह बग़ावती कदम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया। इन सैनिकों ने स्पष्ट रूप से कहा कि "सेना का काम दुश्मनों से लड़ना है, अपने ही देशवासियों पर गोली चलाना नहीं।"

2. सुभाष चंद्र बोस और आज़ाद हिंद फ़ौज

गढ़वाली सैनिकों के इस विरोध ने सुभाष चंद्र बोस को प्रेरित किया, और उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) की स्थापना की। सुभाष चंद्र बोस ने देखा कि गढ़वाली सैनिकों में भारतीयों के लिए लड़ने की अद्वितीय भावना थी, और उन्होंने INA में गढ़वाली सैनिकों को प्रमुख स्थान दिया। वह इस कदर प्रभावित थे कि उन्होंने अपनी सुरक्षा और बाहरी रक्षा का पूरा जिम्मा गढ़वाली सैनिकों को सौंपा। इस तरह गढ़वाली सैनिकों की वीरता और समर्पण ने INA के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

3. सिंगापुर की लड़ाई और गढ़वाली सैनिकों का योगदान

जब द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सेना सिंगापुर में जापान के खिलाफ लड़ी, तो वहां पर गढ़वाली सैनिकों ने भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। सिंगापुर में ब्रिटिश सेना के 80,000 सैनिकों को केवल 30,000 जापानी सैनिकों के सामने आत्मसमर्पण करना पड़ा, जिसमें अधिकांश सैनिक भारतीय थे। इन भारतीय सैनिकों में से एक बड़ी संख्या गढ़वाली राइफ़ल्ज़ के थे, जो बाद में INA में शामिल हुए और ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ लड़ाई में शहीद हो गए।

4. रास बिहारी बोस का योगदान

रास बिहारी बोस, जिनका जन्म देहरादून में हुआ था, ने गढ़वाली सैनिकों से जुड़े एक अहम मोड़ पर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में योगदान दिया। उन्होंने ग़दर विद्रोह के दौरान ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष किया और बाद में जापान में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को समर्थन दिया। रास बिहारी बोस की योजना और गढ़वाली सैनिकों की वीरता ने आज़ाद हिंद फ़ौज के गठन को संभव बनाया, और उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी।

5. गढ़वाली सैनिकों की वीरता की गाथा

गढ़वाली सैनिकों की वीरता सिर्फ़ सुभाष चंद्र बोस के INA तक सीमित नहीं थी। ये सैनिक अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ़ अपनी हर लड़ाई में अग्रणी थे और अपनी मातृभूमि के लिए शहादत देने में गर्व महसूस करते थे। इन सैनिकों ने अंग्रेज़ी शासन के खिलाफ़ अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी।

निष्कर्ष:

गढ़वाली सैनिकों की वीरता और उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। उनका ये साहसिक क़दम ना सिर्फ़ अंग्रेज़ी साम्राज्य के खिलाफ़ एक खुली चुनौती था, बल्कि ये भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक नई आशा और प्रेरणा का स्रोत बना। इन सैनिकों की कुर्बानियों ने सुभाष चंद्र बोस और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों को आगे बढ़ने की ताकत दी और आज़ाद हिंद फ़ौज की नींव रखी, जो ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ़ एक मजबूती से खड़ी हुई।

गढ़वाली सैनिकों की वीरता और देशभक्ति की यह कहानी आज भी हमें प्रेरणा देती है और हमें अपने देश के प्रति अपने कर्तव्यों को निभाने की प्रेरणा देती है।

Frequently Asked Questions (FAQs)  गढ़वाली सैनिकों के आज़ाद हिंद फ़ौज में शामिल होने की कहानी:

FAQs - आज़ाद हिंद फ़ौज में गढ़वाली सैनिकों के शामिल होने की कहानी

1. पेशावर कांड क्या था?

उत्तर: 23 अप्रैल 1930 को पेशावर में गढ़वाल राइफ़ल्ज़ के सैनिकों ने भारतीय नागरिकों पर गोली चलाने से इनकार कर दिया। यह घटना ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ़ गढ़वाली सैनिकों द्वारा की गई बग़ावत थी, जिसमें उन्होंने अपने अधिकारियों के आदेशों की अवहेलना की थी।

2. गढ़वाल राइफ़ल्ज़ के सैनिकों ने गोली क्यों नहीं चलाने का निर्णय लिया?

उत्तर: गढ़वाली सैनिकों ने यह निर्णय लिया क्योंकि उनका मानना था कि सेना का कर्तव्य दुश्मन से लड़ने का है, न कि अपने ही देशवासियों पर गोली चलाने का। इस बग़ावत का नेतृत्व चंद्र सिंह भंडारी ने किया था।

3. इस घटना का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर क्या प्रभाव पड़ा?

उत्तर: इस घटना ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में नई ऊर्जा का संचार किया। यह घटना सुभाष चंद्र बोस के लिए प्रेरणास्त्रोत बनी और उन्होंने अपनी ‘आज़ाद हिंद फ़ौज’ की परिकल्पना को साकार किया।

4. पेशावर कांड ने सुभाष चंद्र बोस को कैसे प्रभावित किया?

उत्तर: पेशावर कांड ने सुभाष चंद्र बोस के दिमाग़ में आज़ाद हिंद फ़ौज की परिकल्पना को ठोस रूप में ढाला। गढ़वाली सैनिकों के साहस और वीरता ने उन्हें एक नई दिशा दी और वे उन्हें अपनी सेना में शामिल करने के लिए प्रेरित हुए।

5. आज़ाद हिंद फ़ौज में गढ़वाली सैनिकों की भूमिका क्या थी?

उत्तर: गढ़वाली सैनिकों ने आज़ाद हिंद फ़ौज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सुभाष चंद्र बोस ने अपनी सेना की सुरक्षा की जिम्मेदारी गढ़वाली सैनिकों को सौंपी और गढ़वालियों को अहम पदों पर नियुक्त किया, जिनमें मेजर देव सिंह दानू और INA के विभिन्न प्रमुख अधिकारी शामिल थे।

6. किस प्रकार गढ़वाली सैनिकों ने द्वितीय विश्व युद्ध में अंग्रेजों को हराया?

उत्तर: द्वितीय विश्व युद्ध में गढ़वाली सैनिकों ने जापानियों के साथ मिलकर अंग्रेजों को हराया। सिंगापुर की लड़ाई में 30,000 जापानी सैनिकों ने 80,000 ब्रिटिश सैनिकों को आत्मसमर्पण करने पर मजबूर किया, जिसमें गढ़वाली सैनिकों का महत्वपूर्ण योगदान था।

7. किसे 'गढ़वाली फ़ौजी' कहा जाता है?

उत्तर: 'गढ़वाली फ़ौजी' वे सैनिक होते हैं जो उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र से आते हैं। ये सैनिक भारतीय सेना में अपनी वीरता, साहस और समर्पण के लिए प्रसिद्ध हैं, और आज़ाद हिंद फ़ौज में भी इनका योगदान अविस्मरणीय है।

8. सुभाष चंद्र बोस ने गढ़वाली सैनिकों को क्यों चुना?

उत्तर: सुभाष चंद्र बोस ने गढ़वाली सैनिकों को उनके अदम्य साहस, वीरता और देशभक्ति के कारण चुना। उनका मानना था कि गढ़वाली सैनिक स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं और उन्होंने इन्हें आज़ाद हिंद फ़ौज के उच्च पदों पर नियुक्त किया।

9. गढ़वाली सैनिकों की वीरता का क्या प्रमाण हैं?

उत्तर: गढ़वाली सैनिकों की वीरता का प्रमाण उनकी युद्धों में भागीदारी और शहादत है। INA में शामिल होने वाले पहले शहीद भी गढ़वाली थे। इसके अलावा, इंग्लैंड की टैंक टुकड़ी पर सुसाइड अटैक करने वाली पहली इन्फ़ेंट्री भी गढ़वालियों की थी।

10. पेशावर कांड के बाद गढ़वाली सैनिकों के साथ क्या हुआ?

उत्तर: पेशावर कांड के बाद गढ़वाली सैनिकों को कोर्ट मार्शल किया गया था, लेकिन उनका जवाब था कि सेना का काम अपने ही देशवासियों पर गोली चलाना नहीं है। इसके बाद, गढ़वाली सैनिकों को बग़ावत के लिए दंडित किया गया, लेकिन उनकी वीरता और साहस ने उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नायक बना दिया।

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