कैप्टन पितृ शरण रतूड़ी आज़ाद हिंद फ़ौज के गढ़वाली वीरों की कहानी (Captain Pitru Sharan Raturi, Story of Garhwali Heroes of Azad Hind Fauj)

कैप्टन पितृ शरण रतूड़ी: एक वीर स्वतंत्रता सेनानी और महान अधिकारी

कैप्टन पितृ शरण रतूड़ी एक भारतीय अधिकारी थे, जिनका योगदान भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) में अविस्मरणीय था। उनका जन्म 25 सितंबर 1920 को उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले में हुआ था। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और अपने अद्वितीय नेतृत्व और वीरता से भारतीय सेना और INA में एक अहम स्थान बनाया।

प्रारंभिक जीवन और सैन्य करियर

कैप्टन रतूड़ी का शैक्षिक जीवन प्रिंस ऑफ वेल्स रॉयल इंडियन मिलिट्री कॉलेज और भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून में बीता। ब्रिटिश भारतीय सेना में शामिल होने के बाद, उन्हें 18 वीं रॉयल गढ़वाल राइफल्स की 5वीं बटालियन में तैनात किया गया। जब जापान ने सिंगापुर पर आक्रमण किया, तो रतूड़ी की बटालियन को भी भारी संघर्ष का सामना करना पड़ा और अंततः वे युद्ध बंदी बन गए।

INA में भागीदारी और कलादान घाटी की लड़ाई

जापान के साथ युद्ध के बाद रतूड़ी ने भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) में शामिल होने का निर्णय लिया। सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में उन्होंने सुभाष ब्रिगेड की पहली बटालियन की कमान संभाली। 1944 में बर्मा में उन्होंने कलादान घाटी की लड़ाई में भारतीय सेना का नेतृत्व किया। रतूड़ी के नेतृत्व में भारतीय सैनिकों ने जापानी सैनिकों के साथ मिलकर ब्रिटिश सेना को हराया और मोवडोक बंदरगाह पर कब्जा कर लिया। उनके इस साहसिक और रणनीतिक कदम के लिए उन्हें सरदार-ए-जंग से सम्मानित किया गया और लेफ्टिनेंट कर्नल के पद पर पदोन्नत किया गया।

पुलिस सेवा में योगदान

वह युद्ध के बाद भारतीय पुलिस सेवा (IPS) में शामिल हुए। उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी देश की सेवा में बिताई और विशेष सेवा ब्यूरो (SSB) में निदेशक के रूप में कार्य किया। 1962 के चीन युद्ध के बाद, उन्हें सुरक्षा महानिदेशालय में प्रमुख कार्यभार सौंपा गया और वे 1977 से 1979 तक प्रधान निदेशक के रूप में कार्यरत रहे।

सेवानिवृत्ति के बाद

सेवानिवृत्ति के बाद, कैप्टन रतूड़ी को गृह मंत्रालय में विशेष कार्य अधिकारी (INA) के रूप में नियुक्त किया गया, जहां उन्होंने INA से जुड़ी महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों का निर्वाह किया। उन्होंने भारतीय सेना और पुलिस में अपनी सेवा के दौरान अपने आदर्शों और नेतृत्व से आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित किया।

कैप्टन रतूड़ी की विरासत

कैप्टन पितृ शरण रतूड़ी का योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और भारतीय पुलिस सेवा में अविस्मरणीय रहेगा। उनकी वीरता, साहस, और नेतृत्व ने न केवल भारत को स्वतंत्रता दिलाने में योगदान दिया बल्कि देश की सुरक्षा और संरक्षण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका जीवन आज भी हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत है।

उनकी साहसिकता और नायकत्व ने स्वतंत्रता संग्राम को एक नया दिशा दिया और उनकी प्रेरणा से आने वाली पीढ़ियां हमेशा प्रेरित रहेंगी।

कैप्टन पितृ शरण रतुरी के बारे में सामान्य प्रश्न (FQCs)

1. कैप्टन पितृ शरण रतुरी कौन थे?
कैप्टन पितृ शरण रतुरी भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) के एक प्रमुख अधिकारी थे, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे सुभाष ब्रिगेड की पहली बटालियन के कमांडर थे और 1944 में बर्मा के कालदान घाटी की लड़ाई में भाग लिया था।

2. कैप्टन रतुरी ने भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) में क्या भूमिका निभाई?
कैप्टन रतुरी INA में सुभाष ब्रिगेड की पहली बटालियन के कमांडर थे। उन्होंने कालदान घाटी की लड़ाई में अपनी बेजोड़ नेतृत्व क्षमता और रणनीतिक कौशल का प्रदर्शन किया, जिससे भारतीय सेनाओं को बर्मा में ब्रिटिश सैनिकों को परास्त करने में सफलता मिली।

3. कालदान घाटी की लड़ाई क्या थी, और इसमें कैप्टन रतुरी का योगदान क्या था?
कालदान घाटी की लड़ाई 1944 में बर्मा अभियान के दौरान लड़ी गई थी। कैप्टन रतुरी INA की पहली बटालियन का नेतृत्व कर रहे थे। उन्होंने जापानी सेना के साथ मिलकर ब्रिटिश सैनिकों पर आक्रमण किया और मावडोक बंदरगाह को अपने कब्जे में लिया। उनकी सफलता में रात के हमलों और रणनीतिक आक्रमणों ने निर्णायक भूमिका निभाई। उन्हें उनकी बहादुरी के लिए 'सरदार-ए-जंग' उपाधि दी गई।

4. कैप्टन रतुरी को उनकी वीरता के लिए कौन सा सम्मान मिला?
कैप्टन रतुरी को उनकी बहादुरी और नेतृत्व के लिए 'सरदार-ए-जंग' का उपाधि सुभाष चंद्र बोस ने दी। इसके अलावा, उन्हें लेफ्टिनेंट कर्नल के पद पर पदोन्नति मिली थी।

5. विश्व युद्ध II के बाद कैप्टन रतुरी का क्या योगदान था?
युद्ध के बाद, कैप्टन रतुरी भारतीय पुलिस सेवा (IPS) में शामिल हुए और महत्वपूर्ण पदों पर रहे। उन्होंने विशेष सेवा ब्यूरो (SSB) के निदेशक के रूप में कार्य किया और बाद में सुरक्षा निदेशालय के प्रधान निदेशक के रूप में कार्यरत रहे। उनके कार्यकाल में भारत की आंतरिक सुरक्षा को मजबूत किया गया।

6. कैप्टन रतुरी का प्रारंभिक जीवन कैसा था?
कैप्टन रतुरी का जन्म 25 सितंबर 1920 को वर्तमान उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले में हुआ था। उन्होंने अपनी शिक्षा प्रतिष्ठित संस्थानों जैसे प्रिंस ऑफ वेल्स रॉयल इंडियन मिलिट्री कॉलेज और भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून में प्राप्त की, इसके बाद उन्होंने ब्रिटिश भारतीय सेना में भर्ती हो गए।

7. कैप्टन रतुरी ने सैन्य सेवा से पुलिस सेवा में कैसे प्रवेश किया?
जापान के आत्मसमर्पण और विश्व युद्ध II के समाप्त होने के बाद, कैप्टन रतुरी ने 1949 में भारतीय पुलिस सेवा (IPS) जॉइन की। उन्होंने भारत की सुरक्षा के महत्वपूर्ण अभियानों में हिस्सा लिया और कई उच्च पदों पर कार्य किया।

8. कैप्टन रतुरी की सेवानिवृत्ति के बाद की विरासत क्या थी?
सेवानिवृत्ति के बाद कैप्टन रतुरी ने गृह मंत्रालय में विशेष ड्यूटी अधिकारी के रूप में कार्य किया। उनकी विरासत आज भी लोगों को प्रेरित करती है, विशेष रूप से उनके भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रीय सुरक्षा में योगदान के लिए।

9. स्वतंत्रता के बाद कैप्टन रतुरी ने भारत की सुरक्षा में किस प्रकार योगदान दिया?
कैप्टन रतुरी स्वतंत्रता के बाद भारत की आंतरिक सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। विशेष सेवा ब्यूरो (SSB) और सुरक्षा निदेशालय में उनके नेतृत्व में भारत की सुरक्षा प्रणाली को मजबूती मिली।

10. कैप्टन रतुरी की कुछ महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ क्या थीं?

  • INA के सुभाष ब्रिगेड की नेतृत्व में कालदान घाटी में सफलता प्राप्त की।
  • सुभाष चंद्र बोस द्वारा 'सरदार-ए-जंग' सम्मान प्राप्त किया।
  • स्वतंत्रता संग्राम के बाद महत्वपूर्ण सुरक्षा पदों पर कार्य किया, जैसे SSB और सुरक्षा निदेशालय में।

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