कर्नल बुद्धि सिंह रावत: गढ़वाल के महान सपूत और आज़ाद हिंद फौज के सच्चे नायक (Colonel Buddhi Singh Rawat: The great son of Garhwal and a true hero of the Azad Hind Fauj)
कर्नल बुद्धि सिंह रावत: गढ़वाल के महान सपूत और आज़ाद हिंद फौज के सच्चे नायक
कर्नल बुद्धि सिंह रावत का जीवन एक प्रेरणा है, जो न केवल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महत्वपूर्ण समय का गवाह रहा, बल्कि गढ़वाल की वीरता और साहस का प्रतीक भी बन गया। उनका जन्म 15 नवंबर 1915 को पौड़ी जनपद के बमोलीए डबरालरय पट्टी में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा गढ़वाल में प्राप्त करने के बाद उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीए और एलएलबी की डिग्री हासिल की।
ब्रिटिश सेना में करियर की शुरुआत
1940 में, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान गढ़वाली सैनिकों की भर्ती के लिए लैन्सडाउन में प्रशिक्षण शुरू हुआ। कर्नल रावत ने इस अवसर का लाभ उठाते हुए सेना में भर्ती होने का निर्णय लिया। 1941 में, उन्होंने लेफ्टिनेंट के रूप में 2/18 गढ़वाल राइफल्स में सेवा शुरू की। वे मलाया युद्ध में भाग लेने के बाद, सिंगापुर में ब्रिटिश सेना के आदेश पर गए। वहां जापान के हमले के बाद, 15 फरवरी 1942 को ब्रिटिश सेना को आत्मसमर्पण करना पड़ा, लेकिन कर्नल रावत और उनके साथ भारतीय अफसरों को जापान ने अपने साथ जोड़ लिया।
आज़ाद हिंद फौज में महत्वपूर्ण भूमिका
नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में आज़ाद हिंद फौज के गठन में गढ़वाली सैनिकों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कर्नल रावत को मिलिट्री सचिव बनाया गया और वे नेताजी के साए में भारतीय सेना की रणनीति बनाने में योगदान देने लगे। उन्होंने सिंगापुर में अफसर ट्रेनिंग कलिंग की स्थापना की और भारतीय सैनिकों को युद्ध कौशल में प्रशिक्षित किया। 1943 में नेताजी ने सिंगापुर से अपना मुख्यालय रंगून स्थानांतरित कर दिया, जहां कर्नल रावत ने सेना की नीतियों को लागू किया।
स्वतंत्रता संग्राम के संघर्ष में योगदान
1945 में, जब आज़ाद हिंद फौज की स्थिति कमजोर हुई और जापान से मदद मिलना बंद हो गई, कर्नल रावत को अपनी सेना के साथ आत्मसमर्पण करना पड़ा। उन्हें भारतीय सेना के अधिकारियों के साथ ब्रिटिश सेना द्वारा बंदी बना लिया गया और विभिन्न जेलों में रखा गया। हालांकि, भारत छोड़ो आंदोलन के प्रभाव में ब्रिटिश अधिकारियों ने कुछ सैन्य अफसरों को रिहा कर दिया, और कर्नल रावत सहित गढ़वाली अफसरों को भी जेल से रिहा कर दिया गया।
स्वतंत्रता के बाद
15 अगस्त 1947 को भारत की स्वतंत्रता के साथ कर्नल रावत को सम्मानित किया गया और उन्हें सेना में फिर से जगह दी गई। स्वतंत्रता के बाद, कर्नल रावत ने गढ़वाल में पूर्व सैनिकों के पुनर्वास और कल्याण के लिए संगठन स्थापित किया। उनकी अथक सेवा और समर्पण ने गढ़वाल क्षेत्र में उन्हें सम्मानित किया और उन्होंने अपना पूरा जीवन सैनिकों और उनके परिवारों के कल्याण में समर्पित कर दिया।
निधन और Legacy
कर्नल बुद्धि सिंह रावत का निधन 17 जुलाई 1990 को हुआ, लेकिन उनकी वीरता, समर्पण और संघर्ष की कहानी आज भी गढ़वाल और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अमर है। उन्होंने न केवल भारतीय सेना में अपने योगदान से बल्कि अपनी नीतियों और संघर्षों के द्वारा भी भारतीय समाज में एक गहरी छाप छोड़ी।
(FAQs)
1. कर्नल बुद्धि सिंह रावत का जन्म कब और कहां हुआ था?
- कर्नल बुद्धि सिंह रावत का जन्म 15 नवम्बर 1915 को उत्तराखंड के पौड़ी जनपद के बमोलीए डबरालरय पट्टी में हुआ था।
2. कर्नल बुद्धि सिंह रावत ने किस विश्वविद्यालय से अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की थी?
- कर्नल रावत ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गढ़वाल में प्राप्त की और बाद में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए. और एल.एल.बी. की डिग्री प्राप्त की।
3. कर्नल रावत ने भारतीय सेना में कब और कहां से करियर की शुरुआत की?
- कर्नल रावत ने 1940 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान गढ़वाल रेजीमेंट में भर्ती होने के बाद 1941 में लेफ्टिनेंट के रूप में भारतीय सेना में करियर की शुरुआत की।
4. कर्नल रावत को आज़ाद हिंद फौज में कौन सा पद दिया गया था?
- कर्नल बुद्धि सिंह रावत को आज़ाद हिंद फौज में मिलिट्री सचिव नियुक्त किया गया था और उन्होंने नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ मिलकर सेना की नीतियों का निर्माण किया।
5. आज़ाद हिंद फौज में कर्नल रावत का योगदान क्या था?
- कर्नल रावत ने सिंगापुर में अफसर ट्रेनिंग कलिंग की स्थापना की और भारतीय सैनिकों को युद्ध कौशल में प्रशिक्षित किया। उन्होंने आज़ाद हिंद फौज की युद्ध रणनीतियों को प्रभावी रूप से लागू किया।
6. कर्नल रावत को कब और कहां बंदी बनाया गया था?
- कर्नल रावत को 1945 में आज़ाद हिंद फौज की हार के बाद जापान से मदद नहीं मिलने के कारण ब्रिटिश सेना द्वारा बंदी बना लिया गया। उन्हें विभिन्न जेलों में रखा गया था, जिनमें कलकत्ता, दिल्ली और मुल्तान शामिल थे।
7. कर्नल रावत की रिहाई कब हुई थी?
- कर्नल रावत को 1945 में ब्रिटिश अधिकारियों ने जेल से रिहा कर दिया था, जब भारत छोड़ो आंदोलन के प्रभाव में ब्रिटिश अधिकारियों ने समझौते किए थे।
8. कर्नल रावत का निधन कब हुआ?
- कर्नल बुद्धि सिंह रावत का निधन 17 जुलाई 1990 को हुआ था।
9. कर्नल रावत ने स्वतंत्रता के बाद कौन सा कार्य किया?
- स्वतंत्रता के बाद, कर्नल रावत ने गढ़वाल में पूर्व सैनिकों के पुनर्वास और कल्याण के लिए संगठन स्थापित किया और उनके जीवन की अव्यवस्थाओं को सुधारने के लिए कई योजनाओं का संचालन किया।
10. कर्नल रावत को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में किस प्रकार की भूमिका निभाई थी?
- कर्नल रावत ने आज़ाद हिंद फौज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में गढ़वाली सैनिकों की वीरता को बढ़ावा दिया। उनका योगदान विशेष रूप से आज़ाद हिंद फौज के सैन्य मामलों और रणनीतियों में था।
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