उत्तराखंड की महान विभूतियां: विश्वेश्वर दत्त सकलानी, 50 लाख वृक्ष लगाने वाला युगपुरुष (Vishweshwar Dutt Saklani, the man who planted 50 lakh trees)

उत्तराखंड की महान विभूतियां: विश्वेश्वर दत्त सकलानी, 50 लाख वृक्ष लगाने वाला युगपुरुष

उत्तराखंड की सांस्कृतिक और पर्यावरणीय धरोहर में एक अनमोल रत्न के रूप में विश्वेश्वर दत्त सकलानी का नाम दर्ज है। जिन्हें 'वृक्ष मानव', 'वनऋषि', और 'पहाड़ का मांझी' कहा जाता है। उनके अद्वितीय प्रयासों ने सकलाना घाटी को हरा-भरा और जीवंत बना दिया, और उनके द्वारा लगाए गए 50 लाख से अधिक वृक्ष आज भी हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत बने हुए हैं।

जन्म और प्रारंभिक जीवन

विश्वेश्वर दत्त सकलानी का जन्म 2 जून 1922 को उत्तराखंड के टिहरी जिले के सकलाना पट्टी के ग्राम पुजार में हुआ था। उनके दादा से उन्होंने बचपन में ही वृक्षों के महत्व और पर्यावरण के प्रति कर्तव्य को समझा था। बचपन से ही उन्हें पेड़ लगाने का गहरा शौक था, और वे अक्सर अपने दादा के साथ जंगलों में वृक्षारोपण करने जाते थे। उनके बड़े भाई नागेन्द्र सकलानी ने टिहरी रियासत के खिलाफ विद्रोह में अपनी जान गंवाई थी, और इसने विश्वेश्वर दत्त के जीवन को एक नई दिशा दी।

जीवन में आए बड़े परिवर्तन

विश्वेश्वर दत्त के जीवन में बड़ा मोड़ तब आया जब उनकी पत्नी शारदा देवी का निधन हुआ। पत्नी की असमय मृत्यु ने उनका वृक्षों से लगाव और बढ़ा दिया। यह घटना उनके जीवन का turning point बन गई, और उन्होंने ठान लिया कि वृक्षारोपण ही उनके जीवन का उद्देश्य रहेगा।

वृक्षारोपण में संघर्ष और सफलता

वृक्षारोपण के इस संकल्प को निभाने के दौरान उन्हें स्थानीय ग्रामीणों का विरोध भी झेलना पड़ा था। गांववाले मानते थे कि पहाड़ों में उगने वाली घास उनके पशुओं के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन विश्वेश्वर दत्त ने कभी हार नहीं मानी। उनके प्रयासों के कारण आज सकलाना घाटी में हरे-भरे जंगल खड़े हैं, और यह पूरी घाटी एक हरे-भरे जीवन से भर गई है।

वृक्षों की प्रचुरता ने जहां जलस्रोतों को पुनर्जीवित किया, वहीं यहां के पशुओं को चारे की पर्याप्त आपूर्ति होने लगी। उनके संघर्षों का परिणाम यह रहा कि आज 1200 हेक्टेयर से भी अधिक क्षेत्रफल में उनके लगाए गए वृक्ष खड़े हैं, जो पर्यावरण के लिए वरदान साबित हो रहे हैं।

पुरस्कार और सम्मान

विश्वेश्वर दत्त सकलानी के अद्वितीय कार्य के लिए उन्हें 19 नवंबर 1986 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा 'इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्ष मित्र पुरस्कार' से सम्मानित किया गया। इसके अलावा, उनकी मेहनत और समर्पण को देखते हुए न्यायालय ने वन विभाग के खिलाफ फैसला दिया और कहा कि वृक्षारोपण कोई अपराध नहीं है।

दु:खद स्थिति और देहावसान

विश्वेश्वर दत्त सकलानी की आंखों की रोशनी 2007 में चली गई, और इसके बाद उन्हें चलने-फिरने में भी कठिनाई होने लगी। इसके बावजूद, उन्होंने पर्यावरण संरक्षण की अपनी मुहिम को जारी रखा। उनका जीवन पर्यावरण के प्रति समर्पित था, और उन्होंने 18 जनवरी 2019 को 96 वर्ष की आयु में अंतिम सांस ली।

विरासत और प्रेरणा

विश्वेश्वर दत्त सकलानी की महानता को शायद ही कभी सार्वजनिक पहचान मिली, लेकिन उनके द्वारा किए गए अद्वितीय कार्य और उनके संघर्षों की कहानी आज भी लोगों के दिलों में जीवित है। उनकी प्रेरणा और कार्य न केवल उत्तराखंड बल्कि पूरे भारत के लिए एक अमिट धरोहर बन चुके हैं।

इस महान कार्य को देखने के बाद यह कहा जा सकता है कि "जहां वृक्ष होते हैं, वहीं जीवन होता है", और विश्वेश्वर दत्त सकलानी ने इस सत्य को धरती पर साकार किया।

"वृक्ष मानव की गाथा"

जंगलों की छांव में पला,
प्रकृति का सच्चा रखवाला।
पेड़ों को अपना धर्म बनाया,
हरित धरा को जीवन दिलाया।

सूनी घाटी में हरियाली लाई,
सूखे सपनों में नमी बसाई।
पत्तों की सरसराहट में गीत गाया,
मिट्टी के कण-कण में प्यार समाया।

पत्नी की याद ने जोश जगाया,
हर वृक्ष में उसका रूप दिखाया।
वन विभाग ने चाहा रोके,
पर धरा के इस सपूत ने न झुके।

पचास लाख वृक्षों का है साया,
सकलानी ने इसे अपना घर बनाया।
हर पत्ता, हर शाख़ बोलती है,
"यह धरती उनकी ऋणी है।"

कौन कहता है इंसान अकेला है?
देखो, जहां-जहां हरियाली का मेला है।
वहां गूंजती है एक ही वाणी,
"वृक्ष मानव, विश्वेश्वर दत्त सकलानी।"

🌿 "जिन्होंने धरा को जीवन दिया,
उनका नाम सदा अमर रहेगा।"
🌿

निष्कर्ष

विश्वेश्वर दत्त सकलानी का जीवन हमारे लिए एक प्रेरणा का स्रोत है। उनका कार्य न केवल पर्यावरण की रक्षा में महत्वपूर्ण था, बल्कि इसने हमें यह भी सिखाया कि दृढ़ निश्चय और संघर्ष से किसी भी मुश्किल को पार किया जा सकता है। उत्तराखंड की यह महान विभूति हमेशा हमारे दिलों में जिंदा रहेगी, और उनकी मुहिम से जुड़े वृक्ष आने वाली पीढ़ियों के लिए आशीर्वाद साबित होंगे।

FQCs (Frequently Queried Concepts) - विश्वेश्वर दत्त सकलानी 'वृक्ष मानव'

1. विश्वेश्वर दत्त सकलानी कौन थे?

विश्वेश्वर दत्त सकलानी उत्तराखंड के पर्यावरणविद और समाजसेवी थे, जिन्हें 'वृक्ष मानव' और 'वनऋषि' के नाम से जाना जाता है। उन्होंने अपने जीवन में 50 लाख से अधिक पेड़ लगाए और पर्यावरण संरक्षण के लिए अपना जीवन समर्पित किया।

2. विश्वेश्वर दत्त सकलानी का जन्म कब और कहां हुआ था?

इनका जन्म 2 जून 1922 को उत्तराखंड के टिहरी जिले के सकलाना पट्टी के पुजार गांव में हुआ था।

3. सकलानी जी को 'वृक्ष मानव' क्यों कहा जाता है?

उन्होंने अपने जीवन में 50 लाख से अधिक पेड़ लगाए और 1200 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र को हरित क्षेत्र में बदल दिया, जिससे पर्यावरण संरक्षण और पुनरुद्धार में उनका अतुलनीय योगदान हुआ।

4. सकलानी जी के जीवन का Turning Point क्या था?

उनकी पत्नी शारदा देवी की असमय मृत्यु उनके जीवन का महत्वपूर्ण मोड़ थी। इसके बाद उन्होंने वृक्षारोपण को अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया।

5. सकलानी जी ने वृक्षारोपण में क्या संघर्ष झेले?

स्थानीय ग्रामीणों ने शुरुआत में उनके कार्य का विरोध किया, क्योंकि उनका मानना था कि वृक्षारोपण से पशुओं के लिए घास कम हो जाएगी। इसके बावजूद, उन्होंने अपने मिशन को जारी रखा और सकलाना घाटी को हराभरा बना दिया।

6. सकलानी जी के प्रयासों का पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ा?

उनके लगाए गए वृक्षों ने जल स्रोतों को पुनर्जीवित किया, पशुओं के लिए चारे की आपूर्ति सुनिश्चित की, और सकलाना घाटी को एक हरित क्षेत्र में बदल दिया।

7. सकलानी जी को कौन-कौन से पुरस्कार मिले?

उन्हें 1986 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा 'इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्ष मित्र पुरस्कार' से सम्मानित किया गया।

8. क्या सकलानी जी को किसी न्यायालय से समर्थन मिला था?

जी हां, न्यायालय ने वन विभाग के खिलाफ फैसला दिया और कहा कि वृक्षारोपण कोई अपराध नहीं है।

9. विश्वेश्वर दत्त सकलानी की आंखों की रोशनी कब गई?

2007 में उनकी आंखों की रोशनी चली गई, लेकिन उन्होंने पर्यावरण संरक्षण की अपनी मुहिम जारी रखी।

10. सकलानी जी का देहावसान कब हुआ?

उन्होंने 18 जनवरी 2019 को 96 वर्ष की आयु में अंतिम सांस ली।

11. सकलानी जी की प्रेरणा का स्रोत क्या था?

उनके दादा, जिन्होंने उन्हें वृक्षों के महत्व और पर्यावरण संरक्षण का पाठ सिखाया, और उनके भाई नागेंद्र सकलानी, जिन्होंने टिहरी रियासत के खिलाफ विद्रोह में बलिदान दिया, उनकी प्रेरणा के मुख्य स्रोत थे।

12. सकलानी जी की विरासत क्या है?

उनके द्वारा लगाए गए पेड़ और उनके संघर्षों की कहानी पर्यावरण संरक्षण की मिसाल हैं। उनकी प्रेरणा से आज भी लोग वृक्षारोपण और पर्यावरण बचाने की दिशा में काम कर रहे हैं।

13. सकलानी जी के कार्यों का सबसे बड़ा संदेश क्या है?

"जहां वृक्ष होते हैं, वहीं जीवन होता है।" उनके कार्य हमें सिखाते हैं कि दृढ़ निश्चय और समर्पण से पर्यावरण संरक्षण और समाज कल्याण संभव है।

14. सकलाना घाटी को हरित क्षेत्र बनाने में उनकी भूमिका क्या थी?

सकलानी जी ने अपने जीवनकाल में सकलाना घाटी में हजारों हेक्टेयर भूमि पर वृक्षारोपण किया, जिससे यह क्षेत्र आज एक हरित क्षेत्र के रूप में जाना जाता है।

15. सकलानी जी के जीवन से हमें क्या सीख मिलती है?

उनका जीवन सिखाता है कि पर्यावरण संरक्षण, समर्पण और संघर्ष से किसी भी मुश्किल को पार किया जा सकता है। वे न केवल उत्तराखंड, बल्कि पूरे भारत के लिए प्रेरणा स्रोत हैं।

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