उत्तराखंड के महान साहित्यकार: शैलेश मटियानी
परिचय शैलेश मटियानी, जिन्हें आधुनिक हिंदी साहित्य का प्रमुख कहानीकार और गद्यकार माना जाता है, अपने लेखन के जरिए लाखों लोगों को ज्ञान देने वाले प्रेरणास्रोत रहे हैं। उनका जीवन संघर्ष और कड़ी मेहनत का प्रतीक था, और उन्होंने साहित्य जगत में अमूल्य योगदान दिया। उनके सम्मान में उत्तराखंड सरकार ने हिंदी साहित्य में उत्कृष्ट योगदान के लिए पुरस्कार की स्थापना की है।
प्रारंभिक जीवन शैलेश मटियानी का जन्म 14 अक्टूबर 1931 को उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के ग्राम बाड़ेछीना में हुआ था। उनका मूल नाम रमेशचंद्र सिंह मटियानी था। मात्र बारह वर्ष की उम्र में माता-पिता का देहांत हो जाने के कारण उन्हें कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा और पढ़ाई में व्यवधान आ गया। जीविका चलाने के लिए उन्हें एक बूचड़खाने में काम करना पड़ा, लेकिन उन्होंने अपने साहस और संकल्प से जीवन को एक नई दिशा दी।
शिक्षा और करियर की शुरुआत सत्रह वर्ष की आयु में उन्होंने दोबारा पढ़ाई शुरू की और हाईस्कूल की परीक्षा पास की। रोजगार की तलाश में वह दिल्ली पहुंचे, जहां उनकी साहित्यिक यात्रा की शुरुआत हुई। उनके लेख अमर कहानी और रंगमहल जैसी पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगे। इसके बाद उन्होंने इलाहाबाद और मुंबई में भी संघर्षपूर्ण जीवन बिताया और अपने लेखन कार्य को जारी रखा।
लेखन यात्रा शैलेश मटियानी ने 1950 से कविताएं और कहानियां लिखनी शुरू कीं। उनकी पहली कहानी संग्रह ‘मेरी तैंतीस कहानियां’ 1961 में प्रकाशित हुई। उन्होंने निम्न और मध्यम वर्ग के संघर्षों को अपनी कहानियों में बखूबी चित्रित किया। उनके प्रमुख कहानी संग्रहों में ‘डब्बू मलंग’, ‘रहमतुल्ला’, ‘पोस्टमैन’, ‘प्यास और पत्थर’, ‘महाभोज’, और ‘मिट्टी’ शामिल हैं। इसके अतिरिक्त उन्होंने ‘विकल्प’ और ‘जनपक्ष’ नामक पत्रिकाओं का भी संपादन किया।
पुरस्कार और सम्मान शैलेश मटियानी को उनके प्रथम उपन्यास ‘बोरीवली से बोरीबंदर तक’ के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा सम्मानित किया गया। उनकी कहानी ‘महाभोज’ को उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का प्रेमचंद पुरस्कार मिला। इसके अलावा उन्हें फणीश्वरनाथ रेणु पुरस्कार, साधना सम्मान, डी.लिट., लोहिया सम्मान और राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
अंतिम समय जीवन के अंतिम दिनों में, शैलेश मटियानी हल्द्वानी, उत्तराखंड में आ बसे थे। 24 अप्रैल 2001 को दिल्ली के शाहदरा अस्पताल में उनका निधन हो गया, और उनका अंतिम संस्कार हल्द्वानी में किया गया। उनके निधन के बाद उनकी स्मृति में ‘शैलेश मटियानी स्मृति कथा पुरस्कार’ की स्थापना की गई।
उपसंहार शैलेश मटियानी का जीवन प्रेरणा का स्रोत है। उन्होंने कठिन परिस्थितियों में भी अपनी लेखनी के माध्यम से समाज को नई दिशा दी और हिंदी साहित्य को समृद्ध किया। उनके अद्वितीय योगदान के कारण उत्तराखंड उन्हें सदैव सम्मान के साथ याद करेगा।
उत्तराखंड के महान साहित्यकार: शैलेश मटियानी पर अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)
1. शैलेश मटियानी कौन थे?
शैलेश मटियानी हिंदी साहित्य के प्रमुख कहानीकार और गद्यकार थे, जिन्होंने सामाजिक यथार्थ और मानवीय संवेदनाओं पर आधारित रचनाएँ लिखीं।
2. शैलेश मटियानी का जन्म और निधन कब और कहाँ हुआ?
- जन्म: 14 अक्टूबर 1931, बाड़ेछीना, अल्मोड़ा, उत्तराखंड
- निधन: 24 अप्रैल 2001, दिल्ली
3. उनका असली नाम क्या था?
उनका असली नाम रमेशचंद्र सिंह मटियानी था।
4. शैलेश मटियानी के जीवन में प्रमुख संघर्ष क्या थे?
मात्र बारह वर्ष की उम्र में उनके माता-पिता का देहांत हो गया, जिसके कारण उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ी। जीविका चलाने के लिए उन्हें बूचड़खाने में काम करना पड़ा।
5. उनकी साहित्यिक यात्रा की शुरुआत कैसे हुई?
उन्होंने 1950 से कविताएँ और कहानियाँ लिखना शुरू किया। उनकी पहली कहानी संग्रह ‘मेरी तैंतीस कहानियां’ 1961 में प्रकाशित हुई।
6. शैलेश मटियानी की सबसे प्रसिद्ध रचनाएँ कौन-कौन सी हैं?
उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं:
- 'महाभोज'
- 'डब्बू मलंग'
- 'बोरीवली से बोरीबंदर तक'
- 'सर्पगंधा'
7. उनकी कहानियों का मुख्य विषय क्या था?
उनकी कहानियाँ निम्न और मध्यम वर्ग के संघर्षों, समाज की विषमताओं, और मानव जीवन की वास्तविकताओं पर केंद्रित थीं।
8. उन्हें कौन-कौन से पुरस्कार मिले?
- उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का प्रेमचंद पुरस्कार
- फणीश्वरनाथ रेणु पुरस्कार
- लोहिया सम्मान
- राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार
9. ‘महाभोज’ का क्या महत्व है?
‘महाभोज’ उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना है, जो राजनीतिक भ्रष्टाचार और सामाजिक असमानता पर आधारित है। यह हिंदी साहित्य की एक मील का पत्थर मानी जाती है।
10. शैलेश मटियानी ने कौन-कौन सी पत्रिकाएँ संपादित कीं?
उन्होंने ‘विकल्प’ और ‘जनपक्ष’ नामक पत्रिकाओं का संपादन किया।
11. उनके साहित्यिक योगदान को किस तरह सम्मानित किया गया है?
उत्तराखंड सरकार ने उनके सम्मान में ‘शैलेश मटियानी स्मृति कथा पुरस्कार’ की स्थापना की है।
12. क्या उनकी आत्मकथा उपलब्ध है?
उनकी आत्मकथात्मक लेखन शैली उनकी कहानियों और संस्मरणों में झलकती है, जैसे 'कागज की नाव'।
13. शैलेश मटियानी का हिंदी साहित्य में क्या योगदान है?
उन्होंने हिंदी साहित्य को सामाजिक यथार्थ और मानवीय संवेदनाओं से जोड़ा। उनकी रचनाएँ समाज के वंचित वर्ग की आवाज बनीं।
14. उन्होंने साहित्य के अलावा किन क्षेत्रों में योगदान दिया?
शैलेश मटियानी ने सामाजिक सुधार, शिक्षा और पत्रकारिता के क्षेत्र में भी योगदान दिया।
15. उनकी रचनाओं में कौन से सामाजिक मुद्दे उठाए गए हैं?
उनकी रचनाएँ जातिवाद, गरीबी, शोषण, और राजनीतिक भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर आधारित हैं।
16. उनका अंतिम समय कहाँ बीता?
जीवन के अंतिम वर्षों में वे हल्द्वानी, उत्तराखंड में बसे और दिल्ली में उनका निधन हुआ।
17. उनकी कहानियों में भाषा की क्या विशेषता है?
उनकी भाषा सरल, संवेदनशील और समाज के आम लोगों की बोली से प्रभावित थी।
18. उनकी सबसे पहली प्रकाशित कहानी कौन सी थी?
उनकी कहानियाँ ‘अमर कहानी’ और ‘रंगमहल’ पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई थीं।
19. क्या उनकी रचनाएँ आज भी प्रासंगिक हैं?
हाँ, उनकी रचनाएँ आज भी समाज की समस्याओं को समझने और उनका समाधान खोजने में मदद करती हैं।
20. शैलेश मटियानी को उत्तराखंड में किस रूप में याद किया जाता है?
उन्हें साहित्य के क्षेत्र में उत्तराखंड का गौरव और समाज का संवेदनशील चितेरा माना जाता है।
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