श्रीयाज्ञवलक्यविरचितं सूर्यार्यास्तोत्रम् (The Surya Arya Stotra composed by Shri Yajnavalkya.)

 श्रीयाज्ञवलक्यविरचितं सूर्यार्यास्तोत्रम्

शुकतुण्डच्छवि सवितुश्चण्डरुचेः पुण्डरीकवनबन्धोः।
मण्डलमुदित वन्दे कुण्डलमाखण्डलाशायाः ॥१॥

भावार्थ:
भगवान सूर्य का तेज परम प्रचण्ड है, जो सुग्गे (तोता) की चोंच जैसी लालिमा लिए हुए है। उनका यह तेज सम्पूर्ण दिशाओं को कुण्डल रूपी छवि प्रदान करता है। उनका यह उदय मण्डल मैं वन्दन करता हूँ, जो सम्पूर्ण सृष्टि को आलोकित करता है।


**यस्योदयास्तसमये सुरमुकुट निघृष्टचरणकमलोऽपि।
कुरुतेऽञ्जलिं त्रिनेत्रः स जयति धाम्नां निधिः सूर्यः ॥२॥

भावार्थ:
जिनके उदय और अस्त होते समय, भगवान शिव के चरणकमल भी देवताओं के मुकुट से घिसते हुए अञ्जलि में प्रणाम करते हैं। भगवान सूर्य की जय हो, जिनका तेज सम्पूर्ण धामों को आलोकित करता है।


**उदयाचलतिलकाय प्रणतोऽस्मि विवस्वते ग्रहेशाय।
अम्बरचूडामणये दिग्वनिताकर्णपूराय ॥३॥

भावार्थ:
जो भगवान सूर्य उदयाचल पर्वत की चोटी पर अपने तेज से चमकते हैं, मैं उन सूर्यदेव को प्रणाम करता हूँ। वे ग्रहों के शासक और आकाश के चूड़ामणि हैं, जो सम्पूर्ण दिशाओं को अपनी किरणों से आभायुक्त करते हैं।


**जयति जनानन्दकरः करनिकरनिरस्ततिमिरसङ्घातः।
लोकालोकालोकः कमलारुणमण्डलः सूर्यः ॥४॥

भावार्थ:
भगवान सूर्य, जिनका स्वभाव है सम्पूर्ण जनसमाज को आनन्दित करना, जिनकी किरणों से तमाम अंधकार नष्ट हो जाते हैं। वे अपनी लाल कमल के समान दिव्य मण्डल से सम्पूर्ण पृथ्वी और आकाश को प्रकाशित करते हैं।


**प्रतिबोधितकमलवनः कृतघटनश्चक्रवाकमिथुानाम्‌ ।
दर्शितसमस्तभुवनः परहितनिरतो रविः सदा जयति ॥५॥

भावार्थ:
भगवान सूर्य, जो कमल के फूलों को खिलाने वाले हैं, जिनकी किरणों से चकवा-चकवी के जोड़े मिलकर प्रसन्न होते हैं। वे सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को आलोकित करते हुए, सदा दूसरों के हित में तत्पर रहते हैं।


**अपनयतु सकलकलिकृतमलपटलं सुप्रतप्तकनकाभः।
अरविन्दवृन्दविघटनपटुतरकिरणोत्करः सविता ॥६॥

भावार्थ:
भगवान सूर्य, जिनकी किरणें पवित्र और निपुण हैं, वे सम्पूर्ण संसार के पापों को समाप्त कर देते हैं। उनका तेज सुवर्ण के समान तप्त है, जो संसार को शुद्ध करता है।


**उदयाद्रिचारुचामर हयखुरपरिहितरेणुराग ।
हरितह्य हरितपरिकर गगनाङ्गदीपक नमस्तेऽस्तु ॥७॥

भावार्थ:
भगवान सूर्य, जो उदयाचल पर्वत के लिए चंवर का काम करते हैं और जिनके हरे रंग वाले घोड़े आकाश को प्रकाशमान करते हैं, मैं उन्हें प्रणाम करता हूँ। वे शरणागत वत्सल और आकाश को प्रज्वलित करने वाले दीपक के समान हैं।


**उदितवति त्वपिय विकसति मुकुलीयति समस्तमस्तमितबिम्वे।
नह्यन्यस्मिन्‌ दिनकरसकलं कमलायते भुवनम्‌ ॥८॥

भावार्थ:
भगवान सूर्य, जिनकी किरणों से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड जागृत होता है, जिनका तेज सदैव बढ़ता हुआ सम्पूर्ण पृथ्वी को प्रकाशित करता है। उनके बिना संसार का कोई अस्तित्व नहीं है।


**जयति रविरुदयसमये बालातपः कनकसंनिभोयस्य।
कुसुमाञ्जलिरिव जलधो तरन्ति रथसप्तयः सप्त ॥६॥

भावार्थ:
भगवान सूर्य, जिनकी रश्मियाँ स्वर्ण के समान तप्त होती हैं, उनके उदय होते ही सम्पूर्ण सृष्टि जग जाती है और उनकी किरणों से सात घोड़े रथ के समान समुद्र में तैरने लगते हैं।


**आर्याः साम्वपुरे सप्त आकाशात्‌ पतिताभुवि।
यस्य कण्ठे गृहे वापि न स लक्ष्म्या वियुज्यते ॥१०॥

भावार्थ:
यह स्तुति प्रथम साम्बपुरी में आकाश से प्राप्त हुई थी, जो इसके अभ्यास करता है अथवा जिसके घर में यह पढ़ी जाती है, उसकी सम्पत्ति और समृद्धि कभी खत्म नहीं होती।


**आर्याः सप्त सदा यस्तु सप्तम्यां सप्तधा जपेत्‌।
तस्य गेहं च देहं च पद्मा सत्यं न मुञ्चति ॥११॥

भावार्थ:
जो व्यक्ति प्रत्येक सप्तमी तिथि को इस स्तुति का सात पाठ करता है, उसके शरीर और घर में लक्ष्मी सदा वास करती है। यह सत्य है कि उसकी दरिद्रता और रोग समाप्त हो जाते हैं।


**निधिरेष दरिद्राणां रोगिणां परमौषधम्।
सिद्धिः सकलकार्याणां गाथेयं संस्मृता रवेः॥१२॥

भावार्थ:
यह सूर्यार्यास्तोत्र दरिद्रों के लिए अमूल्य खजाना, रोगियों के लिए सर्वोत्तम औषधि, और सभी कार्यों में सिद्धि प्राप्त करने का कारण है।


सम्पूर्ण सूर्यार्यास्तोत्र
यह स्तोत्र श्री याज्ञवल्क्य द्वारा रचित है और सूर्यदेव के प्रति उनकी श्रद्धा और सम्मान को व्यक्त करता है। जो इसका पाठ करता है या इसे सुनता है, उसे हर प्रकार की सुख-समृद्धि और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।


नोट: इस स्तोत्र का नियमित पाठ विशेष रूप से स्वास्थ्य, समृद्धि, और पापों से मुक्ति के लिए अत्यंत लाभकारी माना जाता है।

श्रीयाज्ञवलक्यविरचितं सूर्यार्यास्तोत्रम्  Frequently Asked Questions (FAQs) 

1. क्या है श्रीयाज्ञवलक्यविरचितं सूर्यार्यास्तोत्रम्?

उत्तर: यह सूर्यार्यास्तोत्र श्री याज्ञवल्क्य द्वारा रचित एक महत्वपूर्ण स्तोत्र है, जिसमें भगवान सूर्य के महान गुण, उनके तेज और उनके प्रति श्रद्धा का वर्णन किया गया है। इसे सूर्य देव की पूजा और आशीर्वाद के लिए पढ़ा जाता है।

2. सूर्यार्यास्तोत्र के लाभ क्या हैं?

उत्तर: इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से स्वास्थ्य में सुधार, समृद्धि की प्राप्ति, पापों से मुक्ति, और समस्त कार्यों में सफलता मिलती है। यह दरिद्रता और रोगों को दूर करता है और व्यक्ति को मानसिक शांति प्रदान करता है।

3. क्या सूर्यार्यास्तोत्र का पाठ हर दिन करना चाहिए?

उत्तर: हां, सूर्यार्यास्तोत्र का नियमित पाठ करने से दिन-प्रतिदिन के जीवन में सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। खासकर सूर्यास्त और सूर्योदय के समय इसका पाठ विशेष लाभकारी माना जाता है।

4. क्या सूर्यार्यास्तोत्र का पाठ करने से स्वास्थ्य पर कोई असर पड़ता है?

उत्तर: हां, यह स्तोत्र स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी माना जाता है। यह शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को उत्तम बनाता है और रोगों से मुक्ति दिलाता है।

5. सूर्यार्यास्तोत्र को किस दिन पढ़ना चाहिए?

उत्तर: सूर्यार्यास्तोत्र को विशेष रूप से रविवार को पढ़ने की सलाह दी जाती है, क्योंकि यह दिन सूर्य देव को समर्पित होता है। इसके अलावा, व्यक्ति इसे हर रोज़ या विशेष अवसरों पर भी पढ़ सकता है।

6. क्या सूर्यार्यास्तोत्र से आर्थिक समृद्धि मिल सकती है?

उत्तर: जी हां, इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को आर्थिक समृद्धि और समस्त कार्यों में सफलता प्राप्त होती है। इसके माध्यम से घर में लक्ष्मी का वास होता है और दरिद्रता का नाश होता है।

7. क्या सूर्यार्यास्तोत्र को घर में पढ़ा जा सकता है?

उत्तर: हां, सूर्यार्यास्तोत्र को घर में पढ़ने से समृद्धि और शांति का वास होता है। इसे घर के पवित्र स्थान पर पढ़ने से विशेष लाभ मिलता है।

8. सूर्यार्यास्तोत्र के कौन से श्लोक विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं?

उत्तर: सूर्यार्यास्तोत्र के सभी श्लोक भगवान सूर्य के गुणों का गुणगान करते हैं, लेकिन विशेष रूप से श्लोक 6, 10, और 11 में सूर्य देव के अद्भुत प्रभाव और उनकी कृपा का विस्तार से वर्णन किया गया है।

9. क्या सूर्यार्यास्तोत्र को जपने से जीवन में बदलाव आता है?

उत्तर: हां, सूर्यार्यास्तोत्र का जप जीवन में सकारात्मक बदलाव लाता है। यह व्यक्ति को आत्मविश्वास, शांति और सफलता प्राप्त करने में मदद करता है।

10. किस प्रकार से सूर्यार्यास्तोत्र का पाठ किया जाता है?

उत्तर: सूर्यार्यास्तोत्र का पाठ साफ मन से और सही उच्चारण के साथ किया जाना चाहिए। इसे सूर्योदय या सूर्यास्त के समय किया जाता है, और यह मानसिक शांति और शुभ परिणाम देता है।

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