चेली - पहाड़ी कविता बेटी अपने मायके से सोचती हूं यहां विचारधारा
घुघूती जा हुनी चेली
बाबू घर बटी फूर्र के उड़ जानी
चमेली बेल जा बढ़नी चेली
देखन देखन , ठुल है जानी
जे घर में चेली नहातिन
ऊ घरे भितेर सुनसान है जां
चेलीयां घर भीतर उजाव फैलुनी
ऊ घरो आँगन छाजी जां
जे घर चेली आपुण हाथल एपण दिनी
च्याल जायदाद ल्हिबेर खुश हुनी
चेलिन कें मैते नराई लागजां
भिटोली ल्हिबेर संतुष्ट है जानी
च्याल कुले दीपक हुनी
चेली द्वी घरा का उजाव हुनी
च्योल एक कुलो तारन करूं
चेली द्विकुलनो उद्धार कर दीनी
ऊ बाब मस्तारी किस्मत वाल छन
जो आपुन हाथल ,कन्यादान करनी
सरोज उप्रेती
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