bharat uttarakhand chamoli (sab kuchh) ( भारत उत्तराखंड चमोली (सब कुछ) )

 भारत उत्तराखंड चमोली (सब कुछ)  India Uttarakhand Chamoli (Everything) 

चमोली chamoli

जनपद - चमोली

  • चमोली शब्द चन्द्रमौलेश्वर से उत्पन्न माना जाता है। चन्द्रमोलेश्वर का अपभ्रंश चम्वाला शिवालय हुआ जिसके कारण क्षेत्र का नाम चमोली पड़ा।
  • चमोली शब्द की व्युत्पत्ति सुवर्ण के पर्यायवाची शब्द 'चामीकार' से भी मानी जाती है।
  • चमोली नामकरण से पूर्व इसे लाल सांगा कहते थे। लाल सांगा के निकट चमोलीनाथ मंदिर था जिसके नाम से चमोली नामकरण हुआ।
  • 1870 में इसे चमोली नाम मिला जब इसे पौड़ी जिले की तहसील बनाया गया।
(लाल सांगा- पूर्व में अलकनन्दा नदी पर झूला पुल बना था। जिसे बांधने के लिए लाल रंग के लोहे के सांगल लगाये गये थे। अतः इसे लाल सांगा बोला जाता था।)
  • 24 फरवरी, 1960 को चमोली जिला बना। 1970 में मुख्यालय गोपेश्वर बनाया गया।
  • मुख्यालय - गोपेश्वर
  • स्थापना वर्ष - 1960
  • पड़ोसी जिले/देश/राज्य
  • पूर्व में - पिथौरागढ़ एवं बागेश्वर
  • पश्चिम में - रुद्रप्रयाग एवं उत्तरकाशी
  • दक्षिण में - अल्मोड़ा, पौड़ी एवं बागेश्वर
  • उत्तर में - चीन
  • क्षेत्रफल - 8030वर्ग किमी
  • जनसंख्या - 3,91,605(3.88%)
  • पुरुष - 193991
  • ग्रामीण - 3,32,209
  • महिला - 197614
  • शहरी - 59,396
  • जनघनत्व - 49
  • साक्षरता - 82.65%
  • पुरुष - 95.40%
  • महिला - 72.32%
  • लिंगानुपात - 1019
  • शिशु लिंगानुपात - 889
विधानसभा सीटें - बद्रीनाथ, कर्णप्रयाग, थराली SC

तहसीलें - जोशीमठ, कर्णप्रयाग, गैरसैंण, थराली, चमोली, पोखरी, घाट, आदिबदरी (चाँदपुरगढ़ी), जिलासू, नारायणबगड़, नन्दप्रयाग, देवाल (12)

विकासखण्ड - जोशीमठ(पैनखण्डा), कर्णप्रयाग, गैरसैंण, थराली, दशोली, पोखरी(नागपुर), घाट, देवाल, नारायणबगड़ (9)

चमोली की पर्वत श्रेणियां
मंदाकिनी श्रेणी
खमिल श्रेणी
नंदाकोट - दूधातोली श्रेणी
ग्वालदम श्रेणी - गंगा व सरयू के पठारों को अलग करती है।
तुंगनाथ - बद्रीनाथ श्रेणी से अलकनन्दा तक विस्तारित।
दूधातोली - उत्तराखण्ड का पामीर । यहां से नयार पूर्वी, पश्चिमी, रामगंगा, आटागाड, तथा बिनो 5 नदियां निकलती है।
धनपुर श्रेणी
रामणी श्रृंखला
प्रमुख कुण्ड
तप्त कुण्ड - बदरीनाथ
गौरीकुण्ड - केदारनाथ मार्ग पर
शैलोदक कुण्ड - मदमहेश्वर सूर्य कुण्ड, ऋषि कुण्ड, उर्वशी कुण्ड, नन्दीकुण्ड, विष्णु कुण्ड, ताराकुण्ड, शिवकुण्ड, रूद्रकुण्ड, अमृतकुण्ड, छत्राकुण्ड(औली), भाप कुण्ड(तपोवन) एवं बैराश कुण्ड। बिरही घाटी कुलसारी (पिण्डर नदी के बायें)
प्रमुख ताल
भेकल ताल - बधाण में
ब्रह्म ताल - बधाण में
झलताल - इसे सुपताल भी कहते है, यह घाट, नन्दप्रयाग में है।
हेमकुण्ड - गोविन्दघाट के आगे इसे लक्ष्मण सरोवर या लोकपाल ताल भी कहा जाता है।
बेनीताल - कर्णप्रयाग के निकट
काकभुषुण्डी ताल - भ्यूंडार में
वासुकीताल
सुखताल - घाट के ऊपर है।
गौणाताल - चमोली में
विष्णु ताल - सत्यपथ(सतोपंथ) के निकट
दूधाताल - दूधातोली में।
गड्यार ताल - दशौली
जलताल - सुखताल के निकट
मणीभद्र सरोवर - विरही के पूर्व में
चिनाब झील - जोशीमठ
अर्वा ताल - चमोली एवं उत्तरकाशी की सीमा पर स्थित है।
ब्रह्म ताल - भंकलताल के निकट ही स्थित है जहां तिलाती बुग्याल स्थित है।
जिले के प्रमुख ग्लेशियर
1. दूनागिरी ग्लेशियर
2. तिपराबमक
3. सतोपंथ
4. बद्रीनाथ ग्लेशियर
5. खड़क ग्लेशियर
6. भगीरथ ग्लेशियर
जिले के प्रमुख दर्रे
चमोली - चीन के मध्य दरे -
1. नीति दर्रा
2. माणा दर्रा
3. किंगरी - बिंगरी दर्रा
4. डुंग्रीला
5. बालचा
6. घाटरलिया
7. कोई दर्रा
8. भ्यूंडार दर्रा
9. सलसला दर्रा
10. तुनजुन दर्रा
11. चोरहोती दर्रा
12. लमलंग दर्रा

चमोली - पिथौरागढ़ के मध्य दर्रे -
1. बाराहोती
2. मार्चयोक
3. टोपिढूंगा
4. लातुधुरा

चमोली के स्थानीय दर्रे -
1. कुनकुलखाल दर्रा

चमोली - बागेश्वर के मध्य एकमात्र दर्रा - 1. सुंदरदूंगा
चमोली - उत्तरकाशी मध्य एकमात्र दर्रा - कालिंदी दर्रा

जिले के प्रमुख बुग्याल
वेदिनी - रूपकुण्ड मार्ग में, बर्नेडी हट के लिए जाना जाता है।
पातरान चौणियां - वेदिनी के समीप
क्वारी पास - विरही के ऊपर
गोरसों - औली के ऊपर
नन्दनकानन - फूलों की घाटी के ऊपर
रताकोण - बदरीनाथ के ऊपर
घसतोली - बदरी नाथ के ऊपर
बर्मी - रुद्रनाथ
लक्ष्मीवन - बदरीनाथ के आगे।
जलीसेरा - बड़गांव तपोवन के ऊपर
मनपै बुग्याल - नन्दीकुण्ड से कालीमठ के ऊपर
भेटी - घाट के ऊपर
मनणी बुग्याल
खादू खर्क - वसुधारा के निकट
लाता खर्क - तपोवन के ऊपर
डांग खर्क - तपोवन के ऊपर
कोरा खर्क - नीति से आगे
बागची खर्क - थराली के ऊपर
अविन खर्क - थराली के ऊपर
केंचुआ खर्क - धोतीधार के समीप

जिले के प्रमुख गुफाएं
1. टिम्मरसैण गुफा
2. भृगु गुफा
3. मुचकुन्द गुफा
4. गंगतोली गुफा
5. व्यास गुफा
6. ग्वारख्या उडियार
7. स्वीली उडियार
8. रामगुफा
9. गणेश गुफा
10. रिखु उडियार
11. स्कन्द गुफा

प्रमुख तीर्थ/पर्यटन स्थल
काकभुषुण्डि तीर्थ- विष्णुप्रयाग से 28 किमी दूर
वस्वर्गारोहिणी- सतोपंथ जलप्रपात है।
व्यास गुफा- सतोपंथ-वसुधारा मार्ग पर माणा के निकट
गणेश गुफा- व्यासगुफा के निकट
हनुमान चट्टी- बदरीनाथ के निकट ही स्थित है।
पाण्डेकेश्वर- विष्णुप्रयाग एवं बदरीनाथ के बीच पाण्डु की तपस्थली।

हेमकुण्ड अथवा लोकपाल
➣ हेमकुण्ड (श्रृंग सरोवर), पुराना नाम- दण्ड पुष्करणी।
➣ यह हिन्दुओं एवं सिक्खों का तीर्थ स्थल।
➣ 4632 मी0 (23200फीट) की ऊंचाई पर स्थित है।
➣ इसे खोजने का श्रेय हवलदार सोहन सिंह (1930) को जाता है।
➣ इस स्थान पर लक्ष्मण ने भगवान राम की आज्ञा उल्लंघन का प्रायश्चित किया था।
➣ हेमकुण्ड झील के किनारे लक्ष्मण गंगा या लोकपाल मंदिर है।
➣ सिक्खों के पवित्र ग्रन्थ दशमग्रन्थ के बचीत्तर नाटक में उल्लिखित है कि 10वें गुरु गोविन्द सिंह ने इस स्थान पर तप किया था।
➣ इस झील में हाथी पर्वत एवं सप्तऋषि पर्वतों से पानीआता है तथा इससे हिमगंगा नदी निकलती है।

फुलों की घाटी
➣ फ्रैंक स्माइथ द्वारा 1931 में खोजी गई।
➣ 6 नवम्बर 1982 में नेशनल पार्क बनाया गया।
➣ 14 जुलाई 2005 को विश्व धरोहर में शामिल ।
➣ इसके मध्य से पुष्पावती नदी बहती है।
➣ स्कन्द पुराण में इसे नन्दनकानन कहा गया।
➣ मेघदूतम् में अल्का कहा गया है।
➣ इसे स्थानीय तौर पर भ्यूंडार घाटी कहा जाता है।

रुद्रनाथ
➣ 2286 मी0 की ऊंचाई पर स्थित।
➣ इस स्थान पर शिव के मुख भाग का पूजन होता है।
➣ मंदिर के चारों ओर सूर्य कुण्ड, चन्द्रकुण्ड, ताराकुण्ड एवं मानसकुण्ड है।
➣ मंदिर के पीछे नन्दादेवी, नन्दा घुघटी और त्रिशुल आदि हिमाच्छादित चोटियां है।

रूपकुण्ड
➣ 5029मी0 (16499फीट) की ऊंचाई पर वेदिनी बुग्याल के निकट है।
➣ सर्वप्रथम 1942 में नन्दादेवी शिकार आरक्षण रेंजर एच0के0 माधवन ने इसमें कंकाल निकाले।
➣ इसे रहस्यताल या कंकाल झील के नाम से जानी जाती है।
➣ रूप कुण्ड के बारे में पौराणिक कथा- माना जाता है कि शिव-पार्वती(नन्दा) कैलाश जा रहे थे तो मार्ग में उन्हें प्यास लगी भगवान शिव इस स्थान पर त्रिशुल से जमीन में वार कर पानी निकाला एवं नन्दा की प्यास बुझायी। ➣ किन्तु नन्दा मां द्वारा अपनी छवि जल में देखकर शिव पर शंका जताई तो भगवान शिव ने समझाया कियह जल में उनका ही प्रतिबिम्ब हैं जिसे बताने के लिए
➣ शिव-पार्वती की एकाकार छवि जल में दिखाई दी जिसे अर्द्धनारीश्वर कहा जाता है। स्वरूप दर्शन के कारण तभी से रूपकुण्ड नाम पड़ा।

कैलुवा विनायक- गणेश की हरे पत्थर में मूर्ति है। यह स्थान रूपकुण्ड से 5 किमी दूरी पर है।

कल्पेश्वर
➣ इस स्थान पर भगवान शिव के केश प्रकट हुए थे। अतः यहां शिव की जटाओं की पूजा होती है।
➣ मान्यता है कि अप्सरा उर्वशी एवं दुर्वासा ऋषि ने कल्पवृक्ष के नीचे बैठकर तपस्या की थी।
➣ यह स्थान 2134मी0 की ऊंचाई पर है।

आदिबद्री
➣ आदि का अर्थ होता है- शुरूआत करना चूंकि ये सभी बद्री में से पहला बद्री धाम है अतः इसे आदिबद्री कहा जाता है।
➣ कर्णप्रयाग के निकट स्थित है।
➣ पिरामिड के आकार के ऊंचे चबूतरे पर स्थित 16 मंदिरों का प्राचीन समूह वर्तमान में केवल 14 मंदिर है।
➣ इनमें नारायण मंदिर सबसे प्राचीन मंदिर है।
➣ इन मंदिरों का निर्माण शंकराचार्य ने किया था।
➣ इसके पुजारी थापली गांव के थपलियाल ब्राह्मण है।

योगध्यान बद्री
➣ पाण्डुकेश्वर के समीप स्थित है।
➣ पाण्डु-कुन्ती का विवाह स्थल माना जाता है।
➣ अर्जुन ने इस स्थान पर तप किया था।
➣ शिखर शैली में निर्मित मंदिर है।

भविष्य बद्री सुभाई गांव जोशीमठ के निकट है।

ध्यान बद्री- उर्गम में स्थित है। भगवान विष्णु की ध्यानाकृति में मूर्ति होने के कारण नाम ध्यान बद्री है।

वृद्ध बद्री- अणिमठ नामक स्थान पर पुराना नाम अरण्य मठ।
➣ भगवान विष्णु ने नारद मुनि को वृद्ध के रूप में दर्शन दिये थे अतः इसका नाम वृद्ध बद्री पड़ा।

नृसिंह बद्री- जोशीमठ में सर्वप्रथम शंकराचार्य इसी स्थान आये थे।

बद्रीनाथ/बदरी विशाल
➣ चार धामों में से अंतिम धाम।
➣ माता लक्ष्मी यहां बेर के पेड़ के रूप में स्थापित रही थी अतः इसे बद्री (बर) के नाम के रूप में जाना जाता है।
➣ इस पवित्र धाम का प्रथम उल्लेख- पाराशर संहिता में मिलता है।
➣ अलकनन्दा के तट पर स्थित है।
➣ 3,133 मी0 (10,279फीट) की ऊंचाई पर शंकराचार्य द्वारा स्थापित।
➣ नर एवं नारायण पर्वतों के मध्य है।
➣ यहां के पुजारी नम्बूदरी ब्राह्मण (केरल) है।
➣ यहां का मंदिर मिश्रित शैली में बना है।

बद्रीनाथ के समीपवर्ती तीर्थ
शंकराचार्य मंदिर - बदरीनाथ मुख्य मंदिर के दायीं ओर स्थित है।

तप्त कुण्ड - इसे अग्नि तीर्थ या वहिन तीर्थ भी कहा जाता है। यह गर्म जल गरूड़ शिला से निकलता है।

नारद कुण्ड - तप्त कुण्ड से नीचे अलकनन्दा की धारा से शिलाओं से जल रूककर प्राकृतिक कुण्ड बन गया जिसमें शंकराचार्य द्वारा बद्रीनाथ की मूर्ति निकालकर पुनस्थापित किया।

पंच शिलाएं - गरूड़ शिला, नारद शिला, मार्कडेय शिला, नरसिंह शिला, एवं वाराही शिला।

माता मूर्ति मंदिर - माणा ग्राम में बदरीनाथ की माता जी का मंदिर माना जाता है। इसमें चतुर्भुजी विष्णु की मूर्ति है, जिसे उत्सव मूर्ति कहा जाता है। शीतकाल में इसी मूर्ति की पूजा जोशीमठ में की जाती है।

शेष - नेत्र - अलकनन्दा के बाएं तट पर एक विशाल शिला है जिसमें सर्प नेत्र अंकित है।

चरण पादुका - बद्रीनाथ के सीधे पीछे चरण पादुका तीर्थ है। यहां चरणों के निशान हैं, जिन्हें शिवजी के चरण कहा जाता है।

वसुधारा - नर पर्वत पर लगभग 122 मी0 (400फीट) की ऊंचाई से गिरने वाले दो जलप्रपात वसुधारा के माम से विख्यात है।


अलकापुरी
➣ वसुधारा से आठ किमी ऊपर स्थित है।
➣ इसे कुबेर एवं यक्षों का निवास स्थान माना जाता है।
➣ यहां एक ग्लेशियर भी है जहां से अलकनन्दा नदी का उद्गम होता है।

सतोपंथ - यह एक त्रिकोण सरोवर है। इसके आगे सोमकुण्ड एवं विष्णु कुण्ड भी है। इसके समीप ही राम गुफा है।

उत्तराखण्ड के 14 प्रयाग
केशवप्रयाग - अलकनन्दा एवं सरस्वती का संगम
विष्णुप्रयाग - अलकनन्दा एवं धौलीगंगा (विष्णु गंगा)
नन्दप्रयाग - अलकनन्दा एवं नन्दाकिनी
कर्णप्रयाग - अलकनन्दा एवं पिंडर (कर्णप्रयाग)
रूद्रप्रयाग - अलकनन्दा एवं मन्दाकिनी
देवप्रयाग - अलकनन्दा एवं भागीरथी
दुण्डी प्रयाग - अलकनन्दा एवं ढोंडकी
शिव प्रयाग - अलकनन्दा एवं खाण्डव गंगा
कूल प्रयाग - अलकनन्दा एवं हर्षवती
सोमप्रयाग - मन्दाकिनी एवं सोमगंगा
जगदीश प्रयाग - अलकनन्दा एवं पट्टवती
सूर्य प्रयाग - मंदाकिनी एवं अलसतरंगिणी
गणेश प्रयाग - भागीरथी एवं भिलंगना
इन्द्रप्रयाग - गगा एव नयार

जिले की प्रमुख नदियां
अलकनन्दा
➣ पौराणिक. ग्रन्थों में देवनदी के नाम से वर्णित है।
➣ यह सत्यपथ(सतोपंथ) ग्लेशियर से निकलती है।
➣ वसुधारा इसका प्रमुख सहायक जलस्रोत है।
➣ बद्रीनाथ तक 24 किमी अपवाह पथ है।

ऋषि गंगा- बद्रीनाथ में अलकनन्दा में शामिल हो जाती है।

सरस्वती
➣ देवताल से निकलती है।
➣ ऋग्वेद में इसे सिन्धुकी माता कहा गया है। अरवा इसकी सहायक नदी है।
➣ माणा के निकट यह नदी केशवप्रयाग नामक स्थान पर अलकनन्दा में शामिल होती है।
➣ अलकनन्दा में शामिल होने वाली यह पहली नदी है।
➣ इसका अपवाह क्षेत्र 50 किमी. है।

धौलीगंगा-
➣ देवबन पर्वत से निकलती है।
➣ विष्णुप्रयाग में अलकनन्दा में मिलती है। (92किमी)
➣ गणेश गंगा, गिरथी गंगा एवं ऋषिगंगा इसकी प्रमुख सहायक नदियां है

बिरही गंगा-
➣ नन्दाघुघटी एवं त्रिशुल पर्वतों से निकलकर
➣ अलकनन्दा में समाहित हो जाती है ।(35किमी.)

बालखिल्य
➣ बालखिल्य पर्वत (तुंगनाथ-रुद्रनाथ की श्रेणी) से निकलकर अलकापुरी के समीप अलकनन्दा में शामिल होती है।
➣ (30 किमी.) अमृतगंगा इसकी सहायक नदी है।

निगोल नदी
➣ तुंगनाथ पर्वत की तलहटी से निकलकर है (30-35किमी.)
➣ यह सोनला के निकट उत्तरों में अलकनन्दा में शामिल हो जाती है।

नन्दाकिनी
➣ नन्दाकिनी पर्वत से निकलकर, नन्दप्रयाग में
➣ अलकनन्दा में (30-35किमी) सम्मिलित हो जाती है।
➣ चुपलागाड़, गौरी नदी, मौलागाड इसकी सहायक नदियां है।

पिण्डर
➣ पिण्डारी ग्लेशियर से निकलकर कर्णप्रयाग में
➣ अलकनन्दा में शामिल होती है। (105किमी)
➣ प्राणमती, आटागाड़, ज्ञानगंगा सहायक नदियां है।

गिरथी गंगा
➣ नीति माणाा घाटी में प्रवाहित होने वाली नदी।
➣ यह किंगरी-बिंगरी से निकलती है।

उक्त्त नदियों के अलावा रुद्रगगा, कचनगगा, गरुड़गंगा, पातालगगा, भ्यूंडार आदि अलकनन्दा में सम्मिलित होती हैं।

जिले की प्रमुख जलविद्युत परियोजनाएं परियोजना
अलकनन्दा में -
विष्णु गाड - परियोजना
पीपलकोटी परियोजना,
नन्दप्रयाग परियोजना,
लंगासू परियोजना,
अमृतगगा परियोजना,
वोवला नन्दप्रयाग परियोजना,
देवसारी बांध परियोजना इत्यादि।

पिण्डर में -
देवल परियोजना,
मेलखेत परियोजना,
खेलगंगा परियोजना,
बांग एवं घेस परियाजनाएं इत्यादि।

कल्पगंगा में - उर्गम परियोजना
नन्दाकिनी में - राजवक्त्ती परियोजना, देवली परियोजना
बनाला परियोजना - बनाला नदी
ऋषिगंगा परियोजना - ऋषिगंगा नदी में

धौलीगंगा में
तमकलाटा परियोजना,
लाटा तपोवन परियोजना,
तपोवन - विष्णु गाड परियोजना
, मनेरी, झेलम - तमक परियोजना

बिरही गंगा में - गौना ताल परियोजना

जिले के प्रमुख मेले
पुरा का मेला - नौटी
नौठा का मेला - आदि बदरी
पाँचाली का मेला - गैरसैंण
सिरगुर का मेला - सिरगुर
देवाल का मेला - देवाल
कुलसारी का मेला - कुलसारी
अठवाड़ का मेला - रैंस - चोपता
नन्दा राजरात का मेला - कासुंवा का नौटी से सिल्ला समुद्र तक
तोमश्वर की मयाल - थराली खाल
नन्दकशरी का मेला - थराली
बिखोत का मेला - कर्णप्रयाग
अनुसूया का मेला - अनुसूया ग्राम में।
नन्दकेशरी का मेला - थराली
नागनाथ का मेला - पोखरी
धरैदा का मेला - गैरसैंण
खांकर खेत का जात - लोबा खंसर - स्यूणी मल्ली
जसोली का मेला - धनुपर
हरियाली का मेला - जसोली
तिमुण्डिया का मेला - जोशीमठ
माढ़वी का मेला - नैणी - नौटी
कुरुड़ देवराड़ा - दशौली - बधाण
गैण्डा का मेला - बंधाण, चांदपुर
बम्पा - नीति घाटी में
बसंत बुरांश मेंला
सिरगुर का मेला
झाकड़ी उत्सव - जामु फाटा में
वनयात्रा - मैखण्डा में
देवाल का मेला - देवाल
कुलसारी मेला - कुलसारी में
तोमेश्वर की मयाल - थराली में
मनणा मै की जात - मदमहेश्वर मार्ग में
मैखण्डी मेला - फाटा में
अनुसूया देवी का मेला - अनुसूया मंदिर में
बमोलों की जात - रामदा - लोबा खंसर, चमोली में
हरेन्दा बिखौती - गैरसैण
कुरुड़ देवराड़ा - दशौली
रम्माण उत्सव - सलूड़ गांव में प्रतिवर्ष अप्रैल में

गोचर का मेला
➣ गोचर में तत्कालीन गढ़वाल के डिप्टी कमिश्नर के सुझाव पर नवम्बर, 1943 को शुरू हुआ। प्रारम्भ में मेले की तिथि का निर्धारण नहीं था किन्तु आजादी के बाद पं0 जवाहर लाल नेहरू के जन्मदिन पर प्रतिवर्ष 14 नवम्बर को आयोजन का निर्णय लिया गया।
प्रमुख समाचार पत्र एवं पत्रिकाएं
समाज -1942 में राम प्रसादबहुगुणा ने हस्तलिखित शुरू किया।

देवभूमि - 1953 में राम प्रसाद बहुगुणा द्वारा शुरू किया गया दूसरा समाचार पत्र।

उत्तराखण्ड आब्जर्वर - 1964 में। चमोली से धनन्जय भट्ट द्वारा शुरू।

शैलजा दर्शन - 1977 सुरेन्द्र सिंह भिलंगवाल द्वारा शुरू।

औली समाचार - 2001 नीति-माणा घाटी में। चमोली का।

नवोदित पाक्षिक - समाचार पत्र हरीश चन्दोला द्वारा।

अनिकेत - 1977 रमेश पहाड़ी द्वारा द्वारा शुरू।

अतिरिक्त -द नन्दा पोस्ट, बद्री विशाल, गंगा-यमुना एक्सप्रेस इत्यादि ।

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