bharat uttarakhand haridwar (sab kuchh) ( भारत उत्तराखंड हरिद्वार (सब कुछ))
➣ हरिद्वार या हरद्वार नामकरण के सम्बन्ध में लगभग सभी विद्वान एकमत है कि यह स्थान भगवान बदरीनाथ एवं केदारनाथ का प्रवेशद्वार होने के कारण हरिद्वार या हरद्वार कहा जाता है।➣ इसे गंगाद्वार कहा जाने का कारण यहां से गंगा मैदानी क्षेत्र में प्रविष्ट होती है।
➣ स्कन्द पुराण में इस क्षेत्र को मायापुरी कहा गया है,
➣ कुमाऊं में प्रचलित जागर गाथाओं में भी मायापुरहाट कहा है।
➣ माना जाता है कि मय नामक दैत्य के निवास स्थली होने के कारण इसका नाम मायापुरी प्रचलित हुआ
➣ मान्यता यह भी है कि महामाया सती की नाभि गिरने के कारण क्षेत्र को मायाक्षेत्र कहा गया।
➣ भगवान शिव द्वारा अपनी माया से प्रजापति दक्ष को पुनर्जीवित करने के कारण भी मायापुरी नामकरण का मत है।
➣ चौदवीं शताब्दी तक यह क्षेत्र मायापुर या गंगाद्वार कहलाता था।
पुराने नाम- गंगाद्वार, देवताओं का द्वार, तीर्थस्थलों का प्रवेश द्वार, स्वर्ग द्वार, मायापुर, खांडव वन क्षेत्र
स्थापना वर्ष - 1988
मुख्यालय- हरिद्वार
पड़ोसी जिले/देश/राज्य
पूर्व में- पौड़ी
दक्षिण में एवं पश्चिम में- उत्तर प्रदेश
उत्तर में- देहरादून
क्षेत्रफल- 2360वर्ग किमी
जनसंख्या- 18,90,422(18.74%)
ग्रामीण- 11,97,328
शहरी- 6,93,094
पुरुष- 10,05,295
महिला- 8,85,127
जनघनत्व- 801
साक्षरता- 73.43%
पुरुष- 81.04%
महिला- 64.79%
लिंगानुपात- 830
शिशु लिंगानुपात- 877
तहसीलें- हरिद्वार, रुड़की, लक्सर, भगवानपुर, नारसन
उपतहसील - लालढांग
विकासखण्ड- रुड़की, बहादराबाद, भगवानपुर, नारसन, लक्सर
विधानसभा सीटें- रुड़की, पिरान कलियर, मंगलौर, भेल, ज्वालापुर(SC), झबरेड़ा(SC), लक्सर, खानपुर, हरिद्वार, हरिद्वार ग्रामीण, भगवानपुर(SC) (11)
जिले के प्रमुख स्थल/मंदिर/तीर्थ
मायादेवी शक्तिपीठ- नगर के मध्य में स्थित प्राचीन शक्तिपीठ माता सती द्वारा हवन कुण्ड में प्राणाहुति देने पर उनकी देह को भगवान रुद्र ने पूरे विश्व में घुमाने की मान्यता है। इस क्षेत्र माता सती का धड़ गिरा था।
कुशावर्त घाट-
➣ हर की पैड़ी के दक्षिण में दो घाट है, गऊ घाट एवं कुशावर्त घाट।
➣ कुशावर्त घाट को वर्तमान स्वरूप एवं दत्तात्रेय के मंदिर का निर्माण इंदौर की महारानी अहिल्या बाई होल्कर द्वारा गया था।
बिल्वकेश्वर महादेव-
➣ ललतारो पुल के समीप बिल्व पर्वत पर स्थित है,
➣ शैल पुत्री उमा गौरी ने शिव प्राप्ति हेतु तप किया था
➣ एवं बिल्व(बेल) के पत्ते खाकर ही जीवन यापन किया।
➣ इसके निकट ही शंकराचार्य द्वारा स्थापित शिवालय तथा गौरीकुण्ड है।
श्रवणनाथ मंदिर- मोती बाजार, हरिद्वार में।
पारद शिवलिंग- शुद्ध पारे से निर्मित शिव लिंग है।
नीलेश्वर महादेव मंदिर- नीलपर्वत स्थित स्वयम्भू श्री नीलेश्वर महादेव मंदिर।
कनखल-
➣ कनखल में। दक्ष प्रजापति की राजधानी।
➣ यहां सतीघाट, श्री हरिहर मंदिर, सतीकुण्ड, तिलभाण्डेश्वर महादेव मंदिर, तालड़ावाला राम मंदिर, प्राचीन विश्वकर्मा मंदिर, पातालेश्वर महादेव मंदिर, दादू मंदिर इत्यादि प्रमुख मंदिर एवं तीर्थ क्षेत्र है।
मनसा देवी मंदिर- बिल्व पर्वत के ऊपर स्थित मंदिर जो माँ मनसा को समर्पित है जिन्हें वासुकी नाग की पत्नी माना जाता है। इस मंदिर का जीर्णोद्धार श्रवणनाथ मठ के महन्त शन्तानंदनाथ ने करवाया था।
चण्डी देवी मंदिर- नीलपर्वत पर स्थित मंदिर। इस मंदिर का विधिवत निर्माण 1886 में जम्मू राजा सुचेत सिंह द्वारा करवाया गया था। जीर्णोद्धार श्रवणनाथ मठ के महंत शंतानंन्दनाथ ने कराया। यहां चैत्र चतुर्दशी को मेला लगता है।
काली माँ मंदिर- चंडीदेवी द्वार के पश्चिम में तरू गंगा के तट पर इस मंदिर का निर्माण गुरु अमरा ने संवत् 1858 में किया था।
सप्त ऋषि आश्रम- हर की पैड़ी के निकट सप्त ऋषियों की स्मृति में, मान्यतानुसार तपस्यालीन सात ऋषियों के आश्रम होने के कारण गंगा यहां से सात धाराओं में विभक्त हुई थी।
नारायणी शिला- नक्काशीदार पुष्प जैसी रचना कहा जाता है कि इस शिला का आधा हिस्सा गया बिहार में है।
चेहड़मल- लोकमान्यतानुसार भूतों के राजा के रूप में जाना जाता है, रूड़की के निकट ही तेलीवाला गांव में इनका थान है। यह एक झील के किनारे है। यहां प्रतिवर्ष मेले का का आयोजन होता है।
गुग्घापीर या गुघाल की मजार- जहीर दीवान के रूप प्रसिद्ध हिन्दु- मुस्लिम दोनों के आराध्य है।
नौगजा पीर की मजार- नौ गजों के साथ युद्ध स्थल में रहने के. कारण नौगजा कहलाते है।
शाह विलायत पीर की मजार- 1193 में शाह विलायत बुखारा से भारत आये थे।
जटाशंकर महादेव मंदिर- खानपुर में ये हमारी ही मान्यताओं में विविधता है कि इस स्थान को भी घटोत्कच के जन्म स्थान के रूप में माना जाता है।
अतिरिक्त परमार्थ निकेतन, सुरेश्वरी देवी मंदिर, जयराम आश्रम, भारत माता मंदिर, दक्षेश्वर महादेव मंदिर, दूधाधारी बाबा का राम मंदिर, साक्षी गोपाल मंदिर, साधु बेला, पावन धाम इत्यादि हरिद्वार जिले में प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है।
पिरान कलियर
➣ इस नगर को 340- 270 ई0पू0 में राजा रामपाल द्वारा बसाया गया।
➣ इसका पुराना नाम हरिद्वार गढ़फग था।
➣ राजा जोधसेन द्वारा इसका नामकरण किकट हरिद्वार रखा गया।
➣ 1133 में राजा कल्याण पाल ने इसका नाम कलियर रखा।
➣ मुस्लिम सूफी सन्त हजरत अलाउद्दीन अली अहमद साबिर, हजरत इमाम अबु मोहम्मद सालेह, हजरत शाह किलकिली एवं हजरत गायब शाह की मजारें हैं।
हर की पैड़ी
➣ यह पूर्व में ब्रह्मा का पूजा स्थल था, राजा श्वेत ने गंगावतरण के बाद यहां पर ब्रह्मा की आराधना की थी।
➣ इसके मध्य वर्तमान में भी ब्रह्म कुण्ड के रूप में जाना जाता है, मान्यता है कि इसी स्थान पर कलश की बूंदें छलकी थी।
➣ महाराज भृतहरि ने इस स्थान पर तप कर जीवन मुक्ति प्राप्त की थी।
➣ भुतहरि ने नीतिशतक(भृतहरि श्रृंगार शक्ति) एवं वैराग्य शतक की रचना इसी स्थान पर की थी।
➣ सम्राट विक्रमादित्य ने अपने बड़े भ्राता की स्मृति में इस घाट एवं सीढ़ियों का निर्माण करवाया।
रुड़की-
➣ रुडी नामक महिला के नाम पर शहर का नामकरण हुआ।
➣ सोनाली नदी के तट पर बसा शहर है।
➣ 1847 में थॉमसन कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग की स्थापना की गई, जो एशिया का पहला इंजीनियरिंग कॉलेज था।
➣ 21 सितम्बर, 2001 को देश का सातवां आई0आई0टी0 बनाया गया।
➣ 1960 में देश का पहला भूकंप इंजीनियरिंग विभाग खोला गया।
➣ 1995 में पहला जल विकास प्रशिक्षण केन्द्र खोला गया।
➣ सोनाली नदी में बने पुल के ऊपर से गंगनहर गुजरती है।
➣ देश में प्रथम बार रेल 22 दिसम्बर, 1851 को रुड़की से पिरान कलियर के मध्य चली।
➣ देश में प्रथम गो- वध निषेध आन्दोलन 17 सितम्बर, 1918 को रुड़की के कटारपुर गांव से हुई थी।
➣ रुड़की को इंजीनियरिंग का चमत्कारिक स्थल इंजीनियर्स का मक्का कहते हैं।
झबरेड़ा- लंढौरा रियासत का ही हिस्सा।
गुरूकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय- 4 मार्च, 1902 को स्वामी श्रद्धानन्द ने गुजरांवाला से गुरुकुल कांगड़ी यहां स्थापित किया। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की संस्तुति पर इसे 1962 में विश्वविद्यालय बनाया गया।
गुरुकुल नारसन- चौधरी लाल सिंह की प्रेरणा तथा हुकमचन्द, बाबू जीवनलाल, चौ0 शेरसिंह तथा पं0 विरेन्द्र कुमार वेदालंकार के सहयोग से नारसन 1939 में संस्कृत पाठशाला की नींव रखी गई। 1958 में इसे राजा महेन्द्र प्रताप सिंह के नाम से कृषि डिग्री कॉलेज बनाया गया।
आई0आई0टी0 रुड़की- इसका ऐतिहासिक विवरण रुड़की शीर्षक में दे दिया गया है।
राज्य लोक सेवा आयोग- 15 मई, 2001 को एक अध्यक्ष एवं 6 सदस्यों वाला यह आयोग गुरुकुल कांगड़ी के निकट स्थापित।
सिंचाई अनुसंधान संस्थान- 1928 रुड़की में स्थापित। 1949 इसे अनुसंधान संस्थान का दर्जा मिला।
संरचना अभियांत्रिकीय अनुसंधान केन्द्र- यह पूर्व में केन्द्रीय भवन अनुसंधान संस्थान का विभाग था। जून, 1956 में अनुसंधान संस्थान बनाया गया।
केन्द्रीय भवन अनुसंधान संस्थान- 1947
राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान- 1979 रुड़की में
पतंजलि आयुर्वेदिक अनुसंधान केन्द्र- 3 मई, 2017।
उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय- 2005 में स्थापित ।
आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय- 2009 में स्थापित।
पंतजलि योग डीम्ड विश्वविद्यालय- 2009 में स्थापित।
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