उत्तराखंड के सभी वन्यजीव अभ्यारण्य और संरक्षण आरक्षित क्षेत्रों का परिचय
आज के इस ब्लॉग में हम उत्तराखंड के सभी वन्यजीव अभ्यारण्य, उनकी स्थापना, उनसे जुड़ी महत्त्वपूर्ण घटनाएं, राज्य में स्थित संरक्षण आरक्षित (Conservation Reserves), नंदा देवी जैव सुरक्षित क्षेत्र (Biosphere Reserve), और दो विश्व धरोहर स्थलों के बारे में विस्तार से जानेंगे। साथ ही, उत्तराखंड के वन्यजीव संरक्षण से संबंधित विशेष पहलुओं पर भी चर्चा करेंगे।

वन्यजीव अभ्यारण्य की परिभाषा
वन्यजीव अभ्यारण्य ऐसे संरक्षित क्षेत्र होते हैं जहां जानवर, पक्षी और वनस्पतियाँ सुरक्षित रहते हैं। इन्हें सरकार या किसी अन्य संस्था द्वारा स्थापित किया जाता है ताकि पशु-पक्षियों और वन संपदा का संरक्षण किया जा सके, साथ ही शिक्षा और अनुसंधान के क्षेत्र में उनकी मदद ली जा सके।
उत्तराखंड के प्रमुख वन्यजीव अभ्यारण्य
उत्तराखंड में 7 वन्यजीव अभ्यारण्य स्थित हैं, जो निम्नलिखित हैं:
गोबिंद वन्यजीव अभ्यारण्य (Govind Wildlife Sanctuary)
- स्थापना: 1 मार्च 1955
- स्थिति: उत्तरकाशी
- क्षेत्रफल: 485 वर्ग किमी
- यह राज्य का सबसे पुराना वन्यजीव विहार है।
केदारनाथ वन्यजीव अभ्यारण्य (Kedarnath Wildlife Sanctuary)
- स्थापना: 1972
- स्थिति: चमोली, रुद्रप्रयाग
- क्षेत्रफल: 957 वर्ग किमी
- यह राज्य का सबसे बड़ा वन्यजीव विहार है और कस्तूरी मृग संरक्षण के लिए प्रमुख केंद्र है।
अस्कोट वन्यजीव अभ्यारण्य (Askot Wildlife Sanctuary)
- स्थापना: 1986
- स्थिति: पिथौरागढ़
- क्षेत्रफल: 600 वर्ग किमी
- यहां सर्वाधिक कस्तूरी मृग पाए जाते हैं।
बिन्सर वन्यजीव अभ्यारण्य (Binsar Wildlife Sanctuary)
- स्थापना: 1988
- स्थिति: अल्मोड़ा
- क्षेत्रफल: 47 वर्ग किमी
सोना नदी वन्यजीव अभ्यारण्य (Sona Nadi Wildlife Sanctuary)
- स्थापना: 1987
- स्थिति: पौड़ी गढ़वाल
- क्षेत्रफल: 301 वर्ग किमी
- यहां प्रोजेक्ट एलीफेंट योजना चलायी जाती है।
मसूरी वन्यजीव अभ्यारण्य (Mussoorie Wildlife Sanctuary)
- स्थापना: 1993
- स्थिति: देहरादून
- क्षेत्रफल: 11 वर्ग किमी
- इसे विनोग माउंट क्लेव अभ्यारण्य भी कहते हैं और यह सबसे छोटा अभ्यारण्य है।
नंधौर वन्यजीव अभ्यारण्य (Nandhaur Wildlife Sanctuary)
- स्थापना: 2012
- स्थिति: नैनीताल, चंपावत
- क्षेत्रफल: 270 वर्ग किमी
- यह राज्य का सबसे नया वन्यजीव अभ्यारण्य है।
उत्तराखंड के संरक्षण आरक्षित क्षेत्र (Conservation Reserves)
संरक्षण आरक्षित क्षेत्र संरक्षित और अभयारण्यों के बीच बफर जोन के रूप में कार्य करते हैं। राज्य में चार प्रमुख संरक्षण आरक्षित क्षेत्र हैं:
आसन वेटलैंड्स (Asan Wetlands)
- स्थापना: 2005
- स्थिति: चकराता, देहरादून
- क्षेत्रफल: 440.40 हेक्टेयर
- इसे ढालीपुर झील के नाम से भी जाना जाता है।
झिलमिल झील (Jhilmil Lake)
- स्थापना: 2005
- स्थिति: हरिद्वार
- क्षेत्रफल: 3783 हेक्टेयर
- यहां बारहसिंगा मिलते हैं।
पवलगढ़ संरक्षण आरक्षित (Pawalgarh Conservation Reserve)
- स्थापना: 2012
- स्थिति: रामनगर
- क्षेत्रफल: 5244 हेक्टेयर
नैना देवी संरक्षण आरक्षित (Nainadevi Conservation Reserve)
- स्थापना: 2015
- स्थिति: नैनीताल
- क्षेत्रफल: 21224 हेक्टेयर
- यहां 600 से अधिक पक्षी प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
नंदा देवी जैव आरक्षित क्षेत्र (Nanda Devi Biosphere Reserve)
यह एक बड़ा संरक्षित क्षेत्र है, जो वन्यजीवों और जैव विविधता को बनाए रखने के लिए समर्पित है:
- स्थापना: 1988
- स्थिति: चमोली, बागेश्वर, पिथौरागढ़
- क्षेत्रफल: 5860 वर्ग किमी
उत्तराखंड में स्थित विश्व धरोहर स्थल (World Heritage Sites in Uttarakhand)
उत्तराखंड अपनी प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक धरोहर के लिए जाना जाता है, और इसमें स्थित कुछ स्थानों को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थलों की सूची में भी शामिल किया गया है। यहां के दो स्थान जिन्हें यह सम्मान प्राप्त हुआ है, वे हैं:
नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान (Nanda Devi National Park)
- स्थापना का वर्ष: 1988
- विवरण: नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान हिमालय की दूसरी सबसे ऊँची चोटी, नंदा देवी (7816 मीटर) के आसपास फैला हुआ है। यह अपनी दुर्गमता और प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है, और यहां के अद्वितीय पारिस्थितिकी तंत्र में विभिन्न प्रकार के पौधे और वन्यजीव पाए जाते हैं। यह क्षेत्र कस्तूरी मृग, हिम तेंदुआ, तिब्बती भेड़िया, और हिमालयी तीतर जैसी प्रजातियों के लिए भी जाना जाता है।
फूलों की घाटी (Valley of Flowers)
- स्थापना का वर्ष: 2005 (यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त)
- विवरण: यह उद्यान चमोली जिले में स्थित है और अपने विविध प्रकार के फूलों और समृद्ध जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध है। मानसून के दौरान यह घाटी रंग-बिरंगे फूलों से ढक जाती है, जिससे यह पर्यटकों और वनस्पतिशास्त्रियों के लिए एक आकर्षण का केंद्र बन जाती है। यहां 300 से अधिक प्रकार की फूलों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
उत्तराखंड में वन्यजीवों के संरक्षण के लिए विशेष प्रबंध
उत्तराखंड में वन्यजीवों की सुरक्षा और उनके संरक्षण के लिए विभिन्न प्रबंध किए गए हैं, जिनमें कुछ महत्वपूर्ण पहलें शामिल हैं:
केदारनाथ वन्य जीव अभ्यारण्य
केदारनाथ वन्यजीव अभ्यारण्य की स्थापना विशेष रूप से कस्तूरी मृग (Musk Deer) के संरक्षण के लिए की गई थी। यह मृग की दुर्लभ और लुप्तप्राय प्रजातियों में से एक है।कस्तूरी मृग अनुसंधान केंद्र (महरूढी, बागेश्वर)
1977 में कस्तूरी मृग के संरक्षण और अनुसंधान के लिए महरूढी बागेश्वर में एक अनुसंधान केंद्र की स्थापना की गई थी।कस्तूरी मृग प्रजनन एवं संरक्षण केंद्र (कांचुला खर्क, चमोली)
1982 में चमोली जिले के कांचुला खर्क में कस्तूरी मृग के प्रजनन और संरक्षण के लिए एक केंद्र स्थापित किया गया था।स्नो लैपर्ड (हिम तेंदुआ) योजना
1990-91 से राज्य में हिम तेंदुआ के संरक्षण के लिए विशेष योजनाएं चलाई जा रही हैं।टाइगर वॉच परियोजना
1991-92 से उत्तराखंड में बाघों के संरक्षण के लिए टाइगर वॉच परियोजना लागू की गई है।प्राकृतिक विरासत केंद्र, देहरादून
2014 में, देहरादून में विश्व का पहला प्राकृतिक विरासत केंद्र स्थापित किया गया, जो प्राकृतिक धरोहर के संरक्षण और अनुसंधान को बढ़ावा देने का कार्य करता है।
उत्तराखंड के अन्य वन्यजीव संरक्षण स्थल
चीला वन्यजीव विहार और मालन पशु विहार
ये वन्यजीव विहार पौड़ी गढ़वाल जिले में स्थित हैं और इनका उद्देश्य क्षेत्रीय वन्यजीवों के संरक्षण को सुनिश्चित करना है।गोबिंद बल्लभ उच्च स्थलीय प्राणी उद्यान, नैनीताल
1995 में स्थापित इस उद्यान में उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाए जाने वाले वन्यजीवों का संरक्षण किया जाता है।देहरादून चिड़ियाघर (पहले मालसी डियर पार्क)
उत्तराखंड का पहला चिड़ियाघर, जिसे 2016 में देहरादून में स्थापित किया गया था।
कुछ विशेष जानकारी
जिंगो बाइबोला का प्रदर्शन क्षेत्र
इसे "जीवित जीवाश्म" कहा जाता है, और इसका प्रदर्शन क्षेत्र नैनीताल के समीप सडियाताल में स्थापित किया गया है। यहां 112 नर और 1300 मादा पौधों का रोपण किया गया है।ब्रह्मकमल (सौगंधिक पुष्प)
यह एक दुर्लभ हिमालयी पुष्प है, जिसे महाभारत के वन पर्व में सौगंधिक पुष्प के रूप में वर्णित किया गया है। स्थानीय लोग इसे "कौल पद्म" के नाम से जानते हैं।रेड डाटा बुक और भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण
भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण के तहत लुप्तप्राय पादप प्रजातियों की सूची को "रेड डाटा बुक" के नाम से प्रकाशित किया जाता है।
उत्तराखंड के वन्यजीव संरक्षण पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
उत्तराखंड में कितने वन्यजीव अभ्यारण्य स्थित हैं?
उत्तराखंड में कुल 7 वन्यजीव अभ्यारण्य हैं, जिनमें गोबिंद, केदारनाथ, अस्कोट, बिन्सर, सोना नदी, मसूरी, और नंधौर शामिल हैं।उत्तराखंड में दो विश्व धरोहर स्थल कौन-कौन से हैं?
उत्तराखंड में दो विश्व धरोहर स्थल हैं:- नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान (1988 में शामिल)
- फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान (2005 में शामिल)
उत्तराखंड का सबसे बड़ा वन्यजीव अभ्यारण्य कौन सा है?
केदारनाथ वन्यजीव अभ्यारण्य, जो 957 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला है, राज्य का सबसे बड़ा वन्यजीव अभ्यारण्य है।कस्तूरी मृग संरक्षण के लिए कौन से स्थान प्रमुख हैं?
कस्तूरी मृग संरक्षण के लिए प्रमुख स्थान हैं:- केदारनाथ वन्यजीव अभ्यारण्य
- कस्तूरी मृग अनुसंधान केंद्र, महरूढी, बागेश्वर (1977 में स्थापित)
- कस्तूरी मृग प्रजनन एवं संरक्षण केंद्र, कांचुला खर्क, चमोली (1982 में स्थापित)
उत्तराखंड में स्नो लैपर्ड (हिम तेंदुआ) संरक्षण कब शुरू हुआ?
उत्तराखंड में स्नो लैपर्ड संरक्षण योजना 1990-91 में शुरू की गई थी।उत्तराखंड का सबसे नया वन्यजीव अभ्यारण्य कौन सा है?
नंधौर वन्यजीव अभ्यारण्य, जो 2012 में स्थापित किया गया था, उत्तराखंड का सबसे नया अभ्यारण्य है।उत्तराखंड में कौन-कौन से संरक्षण आरक्षित क्षेत्र (Conservation Reserves) हैं?
उत्तराखंड में चार प्रमुख संरक्षण आरक्षित क्षेत्र हैं:- आसन वेटलैंड्स (2005 में स्थापित)
- झिलमिल झील (2005 में स्थापित)
- पवलगढ़ संरक्षण आरक्षित (2012 में स्थापित)
- नैना देवी संरक्षण आरक्षित (2015 में स्थापित)
देहरादून में स्थापित प्राकृतिक विरासत केंद्र का उद्देश्य क्या है?
2014 में स्थापित यह केंद्र प्राकृतिक धरोहर के संरक्षण और अनुसंधान को बढ़ावा देने के उद्देश्य से कार्य करता है।जिंगो बाइबोला का प्रदर्शन क्षेत्र कहां स्थित है?
जिंगो बाइबोला का प्रदर्शन क्षेत्र नैनीताल के समीप सडियाताल में स्थित है, जहां 112 नर और 1300 मादा पौधों का रोपण किया गया है।महाभारत में किस पुष्प को 'सौगंधिक पुष्प' कहा गया है?
महाभारत के वन पर्व में 'ब्रह्मकमल' को सौगंधिक पुष्प के रूप में वर्णित किया गया है। स्थानीय लोग इसे 'कौल पद्म' के नाम से जानते हैं।रेड डाटा बुक क्या है?
रेड डाटा बुक भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण द्वारा प्रकाशित एक सूची है, जिसमें लुप्तप्राय पादप प्रजातियों को शामिल किया जाता है।उत्तराखंड का सबसे पुराना वन्यजीव अभ्यारण्य कौन सा है?
गोबिंद वन्यजीव अभ्यारण्य, जिसकी स्थापना 1 मार्च 1955 को हुई थी, उत्तराखंड का सबसे पुराना वन्यजीव अभ्यारण्य है।उत्तराखंड का पहला चिड़ियाघर कहां स्थित है और इसका पुराना नाम क्या था?
उत्तराखंड का पहला चिड़ियाघर देहरादून में स्थित है, जिसे 2016 में स्थापित किया गया था। पहले इसे 'मालसी डियर पार्क' के नाम से जाना जाता था।कौन सा अभ्यारण्य उत्तराखंड का सबसे छोटा है?
मसूरी वन्यजीव अभ्यारण्य, जो 11 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला है, उत्तराखंड का सबसे छोटा अभ्यारण्य है।नंदा देवी जैव आरक्षित क्षेत्र का क्षेत्रफल कितना है?
नंदा देवी जैव आरक्षित क्षेत्र का कुल क्षेत्रफल 5860 वर्ग किलोमीटर है।उत्तराखंड में प्रोजेक्ट एलीफेंट योजना कहां चलायी जाती है?
प्रोजेक्ट एलीफेंट योजना सोना नदी वन्यजीव अभ्यारण्य में चलायी जाती है।
निष्कर्ष
उत्तराखंड की वन्यजीव विविधता और उसके संरक्षण के प्रयास राज्य की जैविक संपदा को संरक्षित रखने के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। विभिन्न अभयारण्यों, संरक्षण आरक्षित क्षेत्रों और जैव सुरक्षित क्षेत्रों के माध्यम से राज्य में वन्यजीवों का सुरक्षित आवास सुनिश्चित किया जाता है।
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