उत्तराखंड में फसल उत्पादन: एक समग्र दृष्टिकोण
उत्तराखंड, जिसे 'देवभूमि' के नाम से भी जाना जाता है, न केवल प्राकृतिक सौंदर्य और सांस्कृतिक धरोहर के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहाँ की कृषि भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। राज्य का कुल क्षेत्रफल 56.70 लाख हेक्टेयर है, जिसमें से 7.66 लाख हेक्टेयर क्षेत्र फसलीय कृषि के अंतर्गत आता है। इसमें 56.8 प्रतिशत कृषि पर्वतीय क्षेत्रों में और 43.2 प्रतिशत मैदानी क्षेत्रों में की जाती है।
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महत्वपूर्ण कृषि क्षेत्र
उत्तराखंड के विभिन्न जिलों में कृषि क्षेत्र के अनुसार भिन्नताएं पाई जाती हैं। राज्य में सबसे अधिक कृषि क्षेत्र वाला जिला ऊधम सिंह नगर (53.83 प्रतिशत) है, जबकि सबसे कम कृषि क्षेत्र उत्तरकाशी जिले में (3.79 प्रतिशत) है। फसल सघनता के मामले में, पिथौरागढ़ जिला सबसे आगे है, जहां फसल सघनता 181.70 प्रतिशत है। दूसरी ओर, हरिद्वार जिले की फसल सघनता 144.39 प्रतिशत है, जो सबसे कम है।
उत्तराखंड में मुख्यतः रबी और खरीफ की फसलें उगाई जाती हैं, जबकि जायद की फसलें अपेक्षाकृत कम होती हैं। राज्य में सर्वाधिक क्षेत्र में गेहूं की खेती होती है। आइए जानते हैं यहाँ उगाई जाने वाली विभिन्न फसलों के बारे में:
रबी की फसलें (Rabi Crops)

रबी की फसलें मुख्य रूप से शीत ऋतु में उगाई जाती हैं। इन फसलों को अक्टूबर-नवंबर के महीने में बोया जाता है और अप्रैल-मई में काटा जाता है।
यह शीत ऋतु में की फसल है।इसे अक्टूबर नवंबर में बोया जाता है व अप्रैल मई में काट लिया जाता है।
प्रमुख रबी फसलें:
- अन्न: गेहूं, जौ
- तिलहन: सरसों
- दलहन: मटर, चना, मसूर
- नगदी फसलें: गन्ना, बटसीम
खरीफ की फसलें (Kharif Crops)
खरीफ की फसलें मानसून के दौरान उगाई जाती हैं। इन्हें जून-जुलाई में बोया जाता है और सितम्बर-अक्टूबर में काटा जाता है। पर्वतीय क्षेत्रों में खरीफ की फसलें प्रमुख रूप से उगाई जाती हैं, जिसमें मिश्रित खेती की जाती है।
यह मानसून काल की फसल होती है। इसे जून-जुलाई में बोया जाता है और सितम्बर-अक्टूबर में काटा जाता है।
प्रमुख खरीफ फसलें:
- अन्न: धान, ज्वार, बाजरा, मक्का
- दलहन: मूंग, उड़द, सोयाबीन, लोबिया, अरहर
- तिलहन: सोयाबीन, मूंगफली, सूरजमुखी, तिल
- नगदी फसलें: कपास, तंबाकू
विशेषकर पर्वतीय क्षेत्रों में, राजमा, कोदो, मडुआ, झंगोरा, और उड़द जैसी फसलों की प्रमुखता है। इसके अलावा, मकई, तिल, मूली, लौकी, करेला जैसी फसलें भी खरीफ के दौरान उगाई जाती हैं।
खरीफ की फसल में मिश्रित खेती भी की जाती है। मुख्य फसलों के साथ-साथ मकई, तिल, मूली, लौकी, करेला आदि की भी खेती की जाती है।
जायद की फसलें (Zayed Crops)

जायद की फसलें मार्च-अप्रैल के महीने में बोई जाती हैं। इन फसलों की खासियत यह होती है कि ये तेज गर्मी और शुष्क हवाओं को सहन कर सकती हैं। मुख्य रूप से तराई-भावर और दून घाटी में जायद की फसलों की खेती होती है।
यह फसल मार्च अप्रैल में बोई जाती हैं इन फसलों में तेज गर्मी और शुष्क हवाएं सहन करने की क्षमता होती है। तराई-भावर, दून घाटी के अतिरिक्त सिंचित क्षेत्रों में जायद की फसलों की खेती की जाती है।
प्रमुख जायद फसलें:
- तरबूज, खरबूज, ककड़ी
- मूंग, उड़द
सिंचित क्षेत्रों में जायद की फसलें उगाई जाती हैं, जो उत्तराखंड के कृषि परिदृश्य में एक विशेष महत्व रखती हैं।
उत्तराखंड की प्रमुख फसलें (Major Crops of Uttarakhand)
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उत्तराखंड राज्य कृषि पर आधारित राज्य है, जहाँ की प्रमुख फसलों में गेहूं और चावल का महत्वपूर्ण स्थान है। यहां की जलवायु और भौगोलिक स्थिति इन फसलों के उत्पादन के लिए अनुकूल है। इस ब्लॉग में हम राज्य की प्रमुख फसलों गेहूं और चावल के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे।
1. गेहूं (Wheat)
गेहूं उत्तराखंड की प्रमुख फसल है और राज्य की कुल कृषि भूमि के लगभग 33 प्रतिशत हिस्से में इसे उगाया जाता है। गेहूं ग्रेमिनी कुल का पौधा है और इसे सबसे महत्वपूर्ण खाद्यान्न फसल माना जाता है।
गेहूं उत्पादन के बारे में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य:
- भारत, चीन के बाद विश्व में गेहूं उत्पादन में दूसरे स्थान पर है।
- गेहूं की फसल को विशेष रूप से दोमट मिट्टी में उगाया जाता है।
- यह फसल मुख्यतः उत्तरप्रदेश, पंजाब, और हरियाणा राज्यों में सर्वाधिक मात्रा में उत्पादित होती है।
- उत्तराखंड के प्रमुख गेहूं उत्पादक जिले देहरादून, ऊधम सिंह नगर, हरिद्वार, पौढ़ी, और नैनीताल हैं।
गेहूं के उत्पादन के लिए आवश्यक भौगोलिक दशाएं:
- वार्षिक वर्षा: 50 सेमी से 75 सेमी।
- तापमान:
- आरंभिक चरण में: 10°C से 15°C।
- बाद के चरण में: 20°C से 25°C।
कुमाऊं मंडल में गढ़वाल की तुलना में गेहूं अधिक क्षेत्र में बोया जाता है, जिससे यह राज्य की सबसे अधिक उगाई जाने वाली फसल है।
2. चावल (Rice)

चावल उत्तराखंड की दूसरी सबसे महत्वपूर्ण फसल है, जो राज्य की कुल कृषि भूमि के लगभग 21.6 प्रतिशत भाग में उगाई जाती है। यह भी ग्रेमिनी कुल का पौधा है और भारत की सबसे प्रमुख खाद्य फसल मानी जाती है।
चावल उत्पादन के बारे में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य:
- भारत में चावल की खेती का क्षेत्रफल विश्व में सबसे अधिक है।
- चावल उत्पादन में भारत, चीन के बाद दूसरे स्थान पर है।
- कृष्णा और गोदावरी डेल्टा को "भारत का चावल का कटोरा" कहा जाता है।
- राज्य में चावल की प्रमुख फसलें तीन बार होती हैं: अमन (शीतकालीन), औस (शरद् कालीन), और बोरो (ग्रीष्मकालीन)।
चावल के लिए आवश्यक भौगोलिक दशाएं:
- मिट्टी: चिकनी उपजाऊ या मटियार दोमट मिट्टी।
- तापमान:
- प्रारंभिक चरण में: 20°C।
- बाद के चरण में: 27°C।
- वर्षा: 75 सेमी से 200 सेमी तक।
उत्तराखंड के प्रमुख चावल उत्पादक जिले देहरादून, हरिद्वार, नैनीताल, टिहरी, पौढ़ी, और बागेश्वर हैं।
1. गन्ना (Sugarcane)
- गन्ना उत्तराखंड राज्य की तीसरी सबसे महत्वपूर्ण फसल है।
- यह ग्रेमिनी कुल का पौधा है और एक उष्णकटिबंधीय फसल है।
- भारत में गन्ना सबसे अधिक सिंचित फसल है, और भारत विश्व में गन्ना एवं चीनी के उत्पादन में ब्राजील के बाद दूसरे स्थान पर है।
- देश में सबसे अधिक गन्ना और चीनी का उत्पादन महाराष्ट्र में होता है।
- विश्व में सबसे अधिक गन्ना उत्पादकता यूएसए के हवाई द्वीप क्यूबा में पाई जाती है।
- भारतीय चीनी तकनीकी संस्थान कानपुर में स्थित है, जबकि भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान लखनऊ में है।
- कोयम्बटूर में केन्द्रीय गन्ना अनुसंधान संस्थान और भारतीय गन्ना प्रजनन संस्थान स्थित हैं।
- गन्ने की खेती के लिए चिकनी दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है।
- उत्तराखंड में कुल कृषि योग्य क्षेत्र के लगभग 6.00 प्रतिशत हिस्से में गन्ने की खेती की जाती है। राज्य के प्रमुख गन्ना उत्पादक जिले हरिद्वार, ऊधम सिंह नगर, और देहरादून हैं। इनमें सबसे अधिक उत्पादन ऊधम सिंह नगर में होता है।
2. जौ (Barley)

- जौ की खेती मुख्य रूप से गढ़वाल मंडल में की जाती है।
- राज्य के प्रमुख जौ उत्पादक जिले पौड़ी, टिहरी, पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, देहरादून, चमोली, नैनीताल, और उत्तरकाशी हैं।
3. मक्का (Maize)
- मक्का की खेती राज्य के प्रमुख जिलों देहरादून, नैनीताल, रुद्रप्रयाग, पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, और पौड़ी गढ़वाल में की जाती है।
4. मंडुआ (Mandua)
- मंडुआ, जिसे कोदा या रागी के नाम से भी जाना जाता है, उत्तराखंड के पर्वतीय भागों में उगाया जाता है।
- राज्य के प्रमुख मंडुआ उत्पादक जिले अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, नैनीताल, और बागेश्वर हैं।
- मंडुआ का अधिकांश उत्पादन जापान को निर्यात किया जाता है।
5. सरसों (Mustard)

- सरसों की खेती राज्य के प्रमुख जिलों ऊधम सिंह नगर, हरिद्वार, देहरादून, पौड़ी, और नैनीताल में की जाती है।
6. दालें (Pulses)
- उत्तराखंड में विभिन्न प्रकार की दालों की खेती की जाती है, जिनमें कालेउ, गुरूस, कहत, मास, भट्ट, राजमा, मसूर, चना, उर्द, मटर, और सोयाबीन प्रमुख हैं।
- राज्य के कुल दाल उत्पादन का लगभग 70 प्रतिशत भाग कुमाऊं के जिलों ऊधम सिंह नगर, नैनीताल, अल्मोड़ा, बागेश्वर, और पिथौरागढ़ में उत्पादित होता है।
- इसके अलावा, हरिद्वार, पौड़ी, देहरादून, और चमोली में भी दालों की खेती की जाती है।
उत्तराखंड की सब्जी एवं मसाले (Vegetables and Spices of Uttarakhand)
उत्तराखंड की कृषि परंपरा में सब्जियों और मसालों का महत्वपूर्ण स्थान है। राज्य की भौगोलिक विविधता और अनुकूल जलवायु विभिन्न प्रकार की फसलों को उगाने में सहायक है। इस लेख में हम राज्य की प्रमुख सब्जियों और मसालों के बारे में जानकारी देंगे, साथ ही बागवानी फसलों का भी उल्लेख करेंगे।
1. सब्जियां (Vegetables)
उत्तराखंड की प्रमुख सब्जी आलू है। राज्य में आलू का सबसे अधिक उत्पादन किया जाता है। इसके अलावा अन्य सब्जियों में भी राज्य में काफी विविधता पाई जाती है।
2. मसाले (Spices)
उत्तराखंड के मसालों में भी बड़ी विविधता है, और इनका उत्पादन प्रमुखता से किया जाता है:
- अदरक: मसालों में उत्पादन के हिसाब से उत्तराखंड में अदरक का प्रथम स्थान है।
- हल्दी: हल्दी का उत्तराखंड में द्वितीय स्थान है।
- लहसुन: लहसुन का उत्पादन उत्तराखंड में तीसरे स्थान पर आता है।
3. खरीफ की फसलें (Kharif Crops)
उत्तराखंड में खरीफ की प्रमुख फसलों में निम्नलिखित फसलें आती हैं:
- सूरजमुखी
- भंगजीरा
- जिल
- झंगोरा
- मंडुआ
4. राज्य का सम्मान
सितंबर 2018 में, उत्तराखंड विधानसभा ने गाय को राष्ट्र माता का दर्जा देकर राज्य के सांस्कृतिक और धार्मिक महत्त्व को और अधिक मजबूती दी है।
उत्तराखंड की बागवानी फसलें (Horticulture Crops of Uttarakhand)
उत्तराखंड में बागवानी की परंपरा भी बहुत पुरानी और महत्वपूर्ण है। 1869 से राज्य में व्यावसायिक फसलोत्पादन की शुरुआत हुई थी। इसके तहत चौबटिया में 1860 में उद्यान की स्थापना की गई और 1932 में चौबटिया, रानीखेत में पर्वतीय फल शोध केंद्र की स्थापना की गई थी। इस क्षेत्र में उत्तराखंड का स्थान जम्मू और हिमालय के बाद शीर्ष पर आता है।
- चौबटिया को फलोद्यान का स्वर्ग कहा जाता है, और भवाली को पर्वतीय बाजार के रूप में जाना जाता है।
- राज्य में फलों के उत्पादन में नाशपति का प्रथम स्थान, आड़ू का द्वितीय और सेब का तृतीय स्थान है। इसके अलावा, अन्य प्रमुख फलों में लीची, संतरा, नीबू, अखरोट, अमरूद, आलूबुखारा आदि शामिल हैं।
1. लीची (Lychee)
- उत्तराखंड में सबसे अधिक लीची का उत्पादन देहरादून में होता है। इसलिए देहरादून को भारत सरकार ने लीची निर्यात जोन घोषित किया है और इसे लीची नगर के नाम से भी जाना जाता है।
- इसके अलावा, लीची का उत्पादन नैनीताल, ऊधम सिंह नगर, पिथौरागढ़ और पौड़ी जिलों में भी किया जाता है।
2. सेब (Apple)
- उत्तराखंड में सेब का उत्पादन हरिद्वार और ऊधम सिंह नगर को छोड़कर बाकी सभी जिलों में किया जाता है।
- राज्य में सबसे अधिक सेब के बाग उत्तरकाशी में हैं, इसके बाद क्रमशः नैनीताल, देहरादून, चमोली, टिहरी, पिथौरागढ़ और अल्मोड़ा में सेब का उत्पादन होता है।
- राज्य में उत्पादित सेब को दिल्ली में न्यूजीलैंड ब्रांड के नाम से और अन्य राज्यों में हिमाचली सेब कहकर बेचा जाता है।
3. संतरा और नीबू (Oranges and Limes)
- ये दोनों फल एक ही वंश के पौधे होते हैं और उत्तराखंड में प्रमुखता से उगाए जाते हैं।
- राज्य के प्रमुख संतरा और नीबू उत्पादक जिले नैनीताल, अल्मोड़ा, देहरादून, हरिद्वार हैं। यहां पर देशी नागपुरी, एम्पदर, और लड्डू किस्म के संतरे पैदा होते हैं।
4. नाशपति (Pear)
- उत्तराखंड में नाशपति का उत्पादन अल्मोड़ा, बागेश्वर, पौड़ी, हरिद्वार, देहरादून, चमोली और अन्य जिलों में किया जाता है।
5. अखरोट (Walnut)
- राज्य के पिथौरागढ़, चमोली, उत्तरकाशी और पौड़ी जिलों में अखरोट का उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाता है।
औषधीय एवं अन्य फसलें (Medicinal and Other Crops)
उत्तराखंड में औषधीय पौधों और जड़ी-बूटियों का महत्वपूर्ण स्थान है, और इनका संरक्षण व संग्रहण राज्य की सांस्कृतिक और आर्थिक धरोहर का हिस्सा है। 1972 से सहकारिता विभाग के अंतर्गत जड़ी-बूटी विकास योजना के तहत जड़ी-बूटियों का संग्रहण कार्य प्रारंभ किया गया था। इसके साथ ही गढ़वाल एवं कुमाऊँ के राजाओं के समय से वैद्यक परंपरा और औषधीय पौधों के उपयोग के प्रमाण मिलते हैं।
औषधीय फसलों का संरक्षण एवं विकास
- 1980 में जड़ी-बूटियों के संरक्षण के लिए भेषज सहकारी संघों की स्थापना की गई थी।
- औषधीय पदार्थों का संग्रहण वन प्रबंधन अधिनियम 1982 के तहत किया जाता है, जिसमें 114 जड़ी-बूटियों को संरक्षित किया गया है।
औषधीय पौधों की खेती
राज्य में कई महत्वपूर्ण औषधीय पौधों की खेती की जाती है, जिनमें बैलाडोना, कुटकी, अफीम, मिंट, तुलसी, लेमन ग्रास, चाय, और जेटरोफा प्रमुख हैं। इन पौधों का औषधीय, सुगंधित और वाणिज्यिक उपयोग होता है, जिससे राज्य के किसानों को आर्थिक लाभ होता है।
औषधीय अनुसंधान एवं संस्थान
राज्य में औषधीय पौधों के संरक्षण और अनुसंधान के लिए कई संस्थान स्थापित किए गए हैं, जिनमें शामिल हैं:
- इण्डियन ड्रग्स एण्ड फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड, ऋषिकेश (1961)
- इण्डियन मेडिसन फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड, मोहना (अल्मोड़ा)
- इण्डियन इंस्टीट्यूट ऑफ आयुर्वेद फॉर ड्रग रिसर्च, ताड़ीखेत (1964)
- इसके अधीन रानीखेत और चम्बा में दो हर्बल गार्डन हैं।
- को-ऑपरेटिव ड्रग फैक्ट्री, रानीखेत
- गढ़वाल मण्डल विकास निगम, पौढ़ी
- उच्चस्थलीय पौध शोध संस्थान, श्रीनगर (1979)
- जड़ी-बूटी शोध एवं विकास संस्थान, गोपेश्वर (1989)
- औषधीय एवं सुगंधित पौध संस्थान (सीमैप), पंतनगर (1959)
- इसके शोध केंद्र पंतनगर, पुरारा (बागेश्वर), बैंगलोर और हैदराबाद में स्थित हैं।
- वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून (1906)
- जी.बी. पंत हिमालय पर्यावरणीय एवं विकास संस्थान, कोसी कटारमल (1988-89)
प्रमुख औषधीय फसलें
1. बैलाडोना (Belladonna)
बैलाडोना एक महत्वपूर्ण औषधीय पौधा है, जिसकी खेती कुमाऊँ में 1910 से की जा रही है। इसका उपयोग औषधीय उद्योगों में विभिन्न रोगों के उपचार के लिए किया जाता है।
2. जिरेनियम (Geranium)
यह अफ्रीकी मूल का एक सुगंधित पौधा है, जिसका उपयोग इत्र और सौंदर्य प्रसाधनों में किया जाता है। इसकी पत्तियों से सुगंधित तेल निकाला जाता है, जो बहुत मूल्यवान है।
3. चाय (Tea)
उत्तराखंड की पर्वतीय ढालों पर चाय की खेती होती है। राज्य में चाय के बागान अल्मोड़ा, पौढ़ी गढ़वाल, नैनीताल, चमोली, पिथौरागढ़, और देहरादून जैसे जिलों में फैले हुए हैं। यहां की चाय की विशेषता यह है कि इसकी गुणवत्ता चीन की उलांग चाय के समकक्ष मानी जाती है।
चाय की खेती का इतिहास:
- 1834 में ब्रिटिश सरकार द्वारा कुमाऊँ में चाय की खेती की संभावनाएं तलाशने का कार्य शुरू हुआ था।
- 1835 में पहली बार चीन से चाय के पौधे लाकर कुमाऊँ और गढ़वाल में चाय के बागान लगाए गए थे।
- 1907 में पौड़ी के गडोली में उत्तराखंड की पहली सरकारी चाय फैक्ट्री स्थापित की गई थी।
- 1824 - ब्रिटिश लेखक बिशप हेबर ने कुमाऊँ में चाय की संभावना का उल्लेख किया।
- 1834 - बैंटिक ने कॉल्हने के नेतृत्व में चाय कमेटी का गठन किया।
- 1834 - चीन से चाय के बीज मंगवाए गए और झरीपानी (देहरादून) को चाय प्रशिक्षण हेतु उपयुक्त पाया गया।
- 1835 - कुमाऊँ में अल्मोड़ा के लक्ष्मेश्वर और भीमताल के पास भरतपुर में चाय की पौधशालाएं स्थापित की गईं।
- 1835 - डॉ० फाल्कनर द्वारा अल्मोड़ा के लक्ष्मेश्वर में पहला चाय बगीचा बनाया गया।
- 1835 - कोठ (टिहरी गढ़वाल) में चाय की खेती की शुरुआत हुई।
- 1838 - फॉरच्यून नामक अंग्रेज अधिकारी को चाय की जानकारी प्राप्त करने के लिए चीन भेजा गया।
- 1841 - मेजर कॉर्बेट ने हवालबाग में चाय बगीचा बनाया, जिसे लाला अमरनाथ साह ने खरीदा।
- 1843 - कैप्टन हडलस्टन ने पौड़ी और गडोलिया में चाय बागानों की स्थापना की।
- 1844 - देहरादून के पास कौलागीर में डॉ० जेमिसन के निर्देशन में सरकारी बागान की स्थापना।
- 1850 - राम जी साहिब ने कत्यूर में चाय बगीचा बनाया, जिसे श्री नार्मन टूप ने खरीदा।
- 1850 - गढ़वाल में चाय विशेषज्ञ एसाई वांग ने चाय की खेती का निरीक्षण किया।
- 1907 - पौड़ी के गडोली में चौफिन नामक चीनी काश्तकार द्वारा उत्तराखंड की पहली सरकारी चाय फैक्टरी की स्थापना।
राज्य में जड़ी-बूटियों का विपणन
राज्य में जड़ी-बूटियों के विपणन को सुव्यवस्थित करने के लिए ऋषिकेश, टनकपुर, और रामनगर में जड़ी-बूटी मंडियों की स्थापना की गई है। इससे किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य मिलता है और जड़ी-बूटियों का व्यापार सुचारू रूप से चल रहा है।
FAQ: उत्तराखंड में फसल उत्पादन
1. उत्तराखंड में कुल कृषि क्षेत्र कितना है?
उत्तराखंड का कुल कृषि क्षेत्र 7.66 लाख हेक्टेयर है, जिसमें 56.8% कृषि पर्वतीय क्षेत्रों में और 43.2% मैदानी क्षेत्रों में की जाती है।
2. राज्य में सबसे अधिक कृषि क्षेत्र वाला जिला कौन सा है?
उत्तराखंड में सबसे अधिक कृषि क्षेत्र वाला जिला ऊधम सिंह नगर है, जिसमें कृषि क्षेत्र 53.83% है।
3. उत्तराखंड में प्रमुख रबी फसलें कौन सी हैं?
उत्तराखंड में प्रमुख रबी फसलों में गेहूं, जौ, सरसों, मटर, चना, और मसूर शामिल हैं।
4. खरीफ फसलों में उत्तराखंड में कौन सी फसलें प्रमुख हैं?
उत्तराखंड में खरीफ फसलों में धान, ज्वार, बाजरा, मक्का, मूंग, उड़द, सोयाबीन, और राजमा प्रमुख हैं।
5. उत्तराखंड में जायद की फसलें कब बोई जाती हैं?
जायद की फसलें मार्च-अप्रैल के महीने में बोई जाती हैं। इन फसलों में तरबूज, खरबूज, और ककड़ी शामिल हैं।
6. उत्तराखंड की प्रमुख फसलें कौन सी हैं?
उत्तराखंड की प्रमुख फसलों में गेहूं, चावल, गन्ना, जौ, मक्का, और मंडुआ शामिल हैं।
7. गेहूं की खेती के लिए उत्तराखंड में कौन से जिले प्रमुख हैं?
गेहूं की खेती के लिए उत्तराखंड के प्रमुख जिले देहरादून, ऊधम सिंह नगर, हरिद्वार, पौढ़ी, और नैनीताल हैं।
8. चावल की खेती के लिए आवश्यक भौगोलिक दशाएं क्या हैं?
चावल के लिए चिकनी उपजाऊ मिट्टी, 75 सेमी से 200 सेमी तक की वर्षा, और 20°C से 27°C तक के तापमान की आवश्यकता होती है।
9. उत्तराखंड में किस प्रकार की दालों की खेती होती है?
उत्तराखंड में कालेउ, गुरूस, कहत, मास, भट्ट, राजमा, मसूर, चना, उड़द, और मटर जैसी दालों की खेती होती है।
10. उत्तराखंड में सब्जियों का उत्पादन कौन सी फसल से सबसे अधिक है?
उत्तराखंड में आलू की खेती सबसे अधिक की जाती है, इसके अलावा राज्य में अन्य सब्जियों की भी विविधता है।
11. उत्तराखंड में कृषि परंपरा में मसालों का क्या महत्व है?
उत्तराखंड की कृषि परंपरा में मसालों का महत्वपूर्ण स्थान है, और राज्य की भौगोलिक विविधता विभिन्न प्रकार की मसालों को उगाने में सहायक है।
12. उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में विशेष फसलों का क्या महत्व है?
पर्वतीय क्षेत्रों में राजमा, कोदो, मडुआ, और झंगोरा जैसी फसलों की प्रमुखता है, जो स्थानीय कृषि और आर्थिक स्थिरता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
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