उत्तराखंड में वनों के प्रकार (Types of Forests in Uttarakhand)
.png)
उत्तराखंड, भारत के सबसे खूबसूरत और जैव विविधता वाले जंगलों का घर है। यहाँ के वन उपोष्णकटिबंधीय वनों से लेकर अल्पाइन वनों तक फैले हुए हैं, जो कई प्रकार की वनस्पतियों और जीवों का आवास प्रदान करते हैं। इसके अलावा, ये वन स्थानीय समुदायों के लिए भी कई महत्वपूर्ण संसाधन प्रदान करते हैं। इस ब्लॉग में, हम उत्तराखंड के वनों के प्रकार, उनके विशेषताओं, जैव विविधता संरक्षण और अन्य संबंधित पहलुओं के बारे में विस्तार से जानेंगे।
उत्तराखंड में वनों को आठ प्रमुख प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
1. उपोष्ण कटिबंधीय वन (Subtropical Forests)
- ऊँचाई: 750 से 1200 मीटर तक।
- प्रमुख वनस्पति: साल, सेमल, हल्दू, खैर, बांस।
- विशेषता: इन वनों में साल के पेड़ प्रमुख होते हैं और इनका एक प्रतिवर्ष पतझड़ का चक्र होता है। ये वन राज्य के उप-हिमालयी क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
2. उपोष्ण कटिबंधीय शुष्क वन (Subtropical Dry Forests)
- ऊँचाई: 1500 मीटर से कम।
- प्रमुख वनस्पति: जामुन, बेर, गूलर।
- विशेषता: इन वनों में वर्षा कम होती है और ये शुष्क जलवायु वाले क्षेत्रों में स्थित होते हैं।
3. उष्णकटिबंधीय आर्द्र पतझड़ वन (Tropical Moist Deciduous Forests)
- ऊँचाई: 1500 मीटर से कम।
- प्रमुख वनस्पति: सागौन, शहतूत, पलास।
- विशेषता: ये मानसूनी वन हैं जो एक समय पर अपने पत्ते गिरा देते हैं और मुख्य रूप से शिवालिक श्रेणी में पाए जाते हैं।
4. कोणधारी वन (Coniferous Forests)
- ऊँचाई: 910 से 1800 मीटर।
- प्रमुख वनस्पति: चीड़।
- विशेषता: चीड़ के पेड़ चट्टानी धरातल पर भी उग सकते हैं। राज्य के कुल वन क्षेत्र का लगभग 15.25% भाग इस वन प्रजाति से आच्छादित है।
5. पर्वतीय शीतोष्ण वन (Montane Temperate Forests)
- ऊँचाई: 1800 से 2700 मीटर।
- प्रमुख वनस्पति: देवदार, बाज, बुरांश।
- विशेषता: ये वन सदाबहार होते हैं और इनकी ढालों पर बांज के पेड़ों की प्रधानता रहती है।
6. एल्पाइन/उप-एल्पाइन वन (Alpine/Sub-Alpine Forests)
- ऊँचाई: 2700 से 3000 मीटर।
- प्रमुख वनस्पति: स्प्रूस, फर, भोजपत्र, देवदार।
- विशेषता: यहाँ के पेड़ तेलयुक्त होते हैं और इनसे सुगंधित तेल भी निकाला जाता है।
7. अल्पाइन झाड़ियां और घास के मैदान (Alpine Shrubs and Meadows)
- ऊँचाई: 3000 से 3600 मीटर।
- प्रमुख वनस्पति: जूनिपर, विलो, रिब्स।
- विशेषता: इन क्षेत्रों में घास के मैदान जिन्हें बुग्याल कहा जाता है, पाए जाते हैं और यहाँ कई घुमंतू पशुपालक रहते हैं।
8. टुंडा वन (Tundra Forests)
- ऊँचाई: 3600 से 4800 मीटर।
- प्रमुख वनस्पति: काई, घास।
- विशेषता: 4800 मीटर से ऊपर बर्फ का आवरण होता है और वनस्पति कम हो जाती है।
उत्तराखंड में जैव विविधता संरक्षण
उत्तराखंड की जैव विविधता को संरक्षित करने के लिए विभिन्न उपाय किए गए हैं, जिनमें राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव अभ्यारण्य, और जैव विविधता पार्क शामिल हैं। राज्य का अधिकांश क्षेत्र आरक्षित और संरक्षित वनों से आच्छादित है, जो पौधों और जीव-जंतुओं की कई प्रजातियों को संरक्षण प्रदान करते हैं।
वनों का प्रशासनिक विभाजन
उत्तराखंड के वन दो प्रमुख प्रशासनिक श्रेणियों में विभाजित हैं:
- संरक्षित वन: ये वे वन क्षेत्र हैं जो पर्यावरणीय दृष्टिकोण से अत्यधिक संवेदनशील होते हैं।
- आरक्षित वन: इन वनों में वाणिज्यिक और गैर-वाणिज्यिक उपयोग की अनुमति होती है, लेकिन यह कड़े नियमों के तहत होता है।
उत्तराखंड औषधीय विपणन संग्रहण व शोध संस्थान
यह संस्थान औषधीय पौधों की खोज, संरक्षण, और विपणन के कार्य में संलग्न है। यहाँ पर औषधीय पौधों से संबंधित शोध और उत्पादन की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए विभिन्न पहल की जाती हैं।
उत्तराखंड में वनों का प्रशासनिक विभाजन
उत्तराखंड राज्य में वनों का प्रशासनिक नियंत्रण चार मुख्य श्रेणियों में बांटा गया है, जो निम्नलिखित हैं:
1. विभाग अधीन वन (74.46%)
- इन वनों पर पूर्णत: सरकारी नियंत्रण होता है।
- यहां पर पेड़ काटने, पशु चराने या खेती करने की अनुमति नहीं होती है।
2. राजस्व विभागधीन वन (13.76%)
- इन वनों में पेड़ काटने, खेती करने और पशु चराने की अनुमति होती है।
3. वन पंचायताधीन वन (15.32%)
- इन वनों का नियंत्रण स्थानीय पंचायतों के हाथों में होता है।
- वन पंचायतों में 9 सदस्यों में से 4 महिला सदस्यों का होना अनिवार्य है।
4. निजी वन (0.46%)
- इन वनों पर व्यक्तिगत या निजी अधिकार होते हैं।
वन एवं वानिकी से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी
- पौध रोपण नीति: उत्तराखंड में 6 जून 2006 को देश में पहली बार पौध रोपण नीति लागू की गई।
- वन पंचायतें: प्रदेश में कुल 12,089 वन पंचायतें हैं।
- देववन: प्रदेश में 400 ऐसे वन हैं जिनके संसाधनों का दोहन नहीं होता, इन्हें देववन कहा जाता है।
- समवर्ती सूची में वानिकी: 42वें संविधान संशोधन के तहत वानिकी को समवर्ती सूची का विषय बनाया गया है।
- प्रशासनिक संरचना: राज्य में कुल 13 वृत्त, 44 प्रभाग, 284 रेंज और 5069 बीट हैं।
- आरा मिल एवं औद्योगिक इकाइयां: राज्य में 400 आरा मिल, 32 प्लाईवुड बोनियर इकाइयां और 174 लीसा इकाइयां हैं।
उत्तराखंड का अंतरराष्ट्रीय महत्व
- उत्तराखंड का पर्वतीय क्षेत्र विश्व के 12 प्रमुख जैव विविधता वाले क्षेत्रों में से एक है।
उत्तराखंड में औषधीय पौधों का विपणन, संग्रहण एवं शोध
- सहकारिता विभाग द्वारा संग्रहण की शुरुआत: जड़ी-बूटियों का संग्रहण सर्वप्रथम 1972 ईस्वी में सहकारिता विभाग द्वारा किया गया।
- भेषज सहकारी संघ की स्थापना: 1980 में जड़ी-बूटियों के संरक्षण के लिए जनपदवार भेषज सहकारी संघ की स्थापना हुई।
- बेलाडोना की खेती: उत्तराखंड में सर्वप्रथम 1910/1903 में बेलाडोना औषधीय पौधे की खेती की गई।
- बायोडीजल के लिए जेट्रोपा की खेती: आज उत्तराखंड में बायोडीजल के उत्पादन के लिए जेट्रोपा की खेती की जा रही है।
राज्य के प्रमुख औषध विपणन संस्थान
- इंडियन ड्रग्स एंड फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड (आईडीपीएल), ऋषिकेश
- इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ आयुर्वेद फॉर ड्रग रिसर्च, ताड़ीखेत (अल्मोड़ा)
- कोऑपरेटिव ड्रग्स फैक्ट्री, रानीखेत (अल्मोड़ा)
- इंडियन मेडिसन एंड फार्मास्यूटिकल्स कॉर्पोरेशन लिमिटेड, मोहन (अल्मोड़ा)
- कुमाऊं मंडल विकास निगम, नैनीताल
- गढ़वाल मंडल विकास निगम, पौड़ी
उत्तराखंड के औषधीय शोध संस्थान
- उच्च स्थलीय पौध शोध संस्थान, श्रीनगर (गढ़वाल)
- जड़ी-बूटी शोध एवं विकास संस्थान, गोपेश्वर (चमोली)
- औषधीय एवं सुगंधित पौध शोध संस्थान, पंतनगर (ऊधम सिंह नगर)
- जी. बी. पंत हिमालय पर्यावरण एवं विकास संस्थान, कोसी, कटारमल (अल्मोड़ा)
- वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून
इस जानकारी से उत्तराखंड के वनों की प्रशासनिक संरचना, औषधीय पौधों का महत्व, और राज्य के जैव विविधता के प्रति अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण को समझने में मदद मिलती है
FAQs: उत्तराखंड के वनों के प्रकार
Q1. उत्तराखंड में कितने प्रकार के वन पाए जाते हैं?
उत्तर: उत्तराखंड में वनों के आठ प्रमुख प्रकार पाए जाते हैं: उपोष्णकटिबंधीय वन, उपोष्णकटिबंधीय शुष्क वन, उष्णकटिबंधीय आर्द्र पतझड़ वन, कोणधारी वन, पर्वतीय शीतोष्ण वन, एल्पाइन/उप-एल्पाइन वन, अल्पाइन झाड़ियां और घास के मैदान, और टुंडा वन।
Q2. उपोष्णकटिबंधीय वनों की क्या विशेषताएं हैं और ये कहाँ पाए जाते हैं?
उत्तर: उपोष्णकटिबंधीय वन 750 से 1200 मीटर की ऊँचाई पर पाए जाते हैं। इन वनों में साल, सेमल, हल्दू, खैर, और बांस जैसे पेड़ होते हैं। ये वन उप-हिमालयी क्षेत्रों में स्थित हैं और इनका एक नियमित पतझड़ का चक्र होता है।
Q3. कोणधारी वनों में किस प्रकार के पेड़ पाए जाते हैं?
उत्तर: कोणधारी वनों में चीड़ के पेड़ प्रमुख होते हैं। ये 910 से 1800 मीटर की ऊँचाई पर पाए जाते हैं और राज्य के कुल वन क्षेत्र का लगभग 15.25% भाग इस प्रजाति से आच्छादित है।
Q4. उत्तराखंड के अल्पाइन झाड़ियों और बुग्यालों की क्या विशेषताएं हैं?
उत्तर: अल्पाइन झाड़ियां और बुग्याल 3000 से 3600 मीटर की ऊँचाई पर पाए जाते हैं। यहाँ जूनिपर, विलो, और रिब्स जैसी वनस्पतियाँ मिलती हैं। बुग्याल हरे-भरे घास के मैदान होते हैं जो घुमंतू पशुपालकों के लिए आदर्श चरागाह हैं।
Q5. टुंडा वन कहाँ पाए जाते हैं और इनकी विशेषता क्या है?
उत्तर: टुंडा वन 3600 से 4800 मीटर की ऊँचाई पर स्थित होते हैं। यहाँ की वनस्पतियाँ काई और घास होती हैं, और 4800 मीटर से ऊपर बर्फ का आवरण रहता है जहाँ वनस्पति बहुत कम हो जाती है।
FAQs: उत्तराखंड में वनों का प्रशासनिक विभाजन
Q6. उत्तराखंड में वनों को कितनी प्रशासनिक श्रेणियों में विभाजित किया गया है?
उत्तर: उत्तराखंड में वनों का प्रशासनिक नियंत्रण चार श्रेणियों में बांटा गया है: विभाग अधीन वन, राजस्व विभागधीन वन, वन पंचायताधीन वन, और निजी वन।
Q7. वन पंचायताधीन वनों का क्या महत्व है?
उत्तर: वन पंचायताधीन वनों का नियंत्रण स्थानीय पंचायतों के हाथों में होता है। इन पंचायतों में 9 सदस्यों में से 4 महिला सदस्यों का होना अनिवार्य है। यह स्थानीय समुदायों को वन प्रबंधन में शामिल करने का एक महत्वपूर्ण तरीका है।
FAQs: उत्तराखंड के औषधीय पौधे और शोध संस्थान
Q8. उत्तराखंड में औषधीय पौधों का विपणन और संग्रहण कब शुरू हुआ?
उत्तर: उत्तराखंड में औषधीय पौधों का संग्रहण 1972 ईस्वी में सहकारिता विभाग द्वारा शुरू किया गया था। इसके बाद 1980 में भेषज सहकारी संघ की स्थापना हुई।
Q9. राज्य में औषधीय पौधों पर शोध के लिए कौन-कौन से संस्थान कार्यरत हैं?
उत्तर: उत्तराखंड में कई औषधीय शोध संस्थान हैं, जैसे उच्च स्थलीय पौध शोध संस्थान (श्रीनगर, गढ़वाल), जड़ी-बूटी शोध एवं विकास संस्थान (गोपेश्वर, चमोली), औषधीय एवं सुगंधित पौध शोध संस्थान (पंतनगर, ऊधम सिंह नगर), और जी. बी. पंत हिमालय पर्यावरण एवं विकास संस्थान (अल्मोड़ा)।
Q10. उत्तराखंड में बेलाडोना की खेती कब से शुरू हुई?
उत्तर: उत्तराखंड में बेलाडोना औषधीय पौधे की खेती सर्वप्रथम 1910/1903 में शुरू हुई थी।
यहाँ भी पढ़े
- उत्तराखंड की प्रमुख फसलें | Major Crops of Uttarakhand in Hindi
- उत्तराखण्ड में सिंचाई और नहर परियोजनाऐं | Irrigation And Canal Project in Uttarakhand
- उत्तराखण्ड की मृदा और कृषि | Soil and Agriculture of Uttarakhand in Hindi
- उत्तराखण्ड में उद्यान विकास का इतिहास | History of Horticulture Development in Uttarakhand in
- उत्तराखंड की प्रमुख वनौषिधियां या जड़ी -बूटियां | Main Herbs of Uttrakhand in Hindi
- उत्तराखण्ड के प्रमुख त्यौहार | Uttrakhand ke Pramukh Tyohaar
- उत्तराखण्ड के प्रमुख लोकनृत्य | Uttarakhand ke Pramukh Loknrityan
- उत्तराखंड में वनों के प्रकार | Types of Forests in Uttrakhand in Hindi
- उत्तराखंड के सभी राष्ट्रीय उद्यान | All National Parks of Uttarakhand in Hindi
- उत्तराखंड के सभी राष्ट्रीय उद्यान | All National Parks of Uttarakhand in Hindi
- उत्तराखंड के सभी वन्य जीव अभ्यारण्य | All Wildlife Sanctuaries of Uttarakhand in Hindi
- उत्तराखंड की जैव विविधता: एक समृद्ध प्राकृतिक धरोहर - Biodiversity of Uttarakhand: A Rich Natural Heritage
टिप्पणियाँ